‘प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं’ कविता का सारांश लिखें।

‘प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं’ कविता का सारांश लिखें।

उत्तर :- पाठयपुस्तक में ‘प्रेम-अयनि श्री राधिका’ शीर्षक के अंतर्गत चार दोहे संकलित हैं तथा ‘करील के कुंजन ऊपर वारौं’ शीर्षक कविता के अंतर्गत एक सवैया संकलित है। रसखान कवि कहते हैं कि श्री राधिका प्रेम की खान हैं और श्रीकृष्ण का सारा व्यक्तित्व प्रेम के रंग में सराबोर है। प्रेम रूपी वाटिका (प्रेमोद्यान) के ये दोनों मालिन-माली हैं। प्रेमिका राधा की आँखें जबसे श्रीकृष्ण की आँखों से मिली हैं, तब से वे कृष्ण मिलन के लिए बेचैन रहने लगी हैं। धनुष पर खींचे गए बाण के समान उनकी आँखें बड़ी कोशिश के बाद उनके वश में होती हैं, पर कृष्ण दर्शन की विवशता में उनकी आँखें स्थायी रूप से उनके वश में नहीं रह पातीं; वे धनुष से छूटे तीर की तरह श्रीकृष्ण की आकर्षक छवि की ओर बड़ी तेजी से चल पड़ती हैं। नंद किशोर श्रीकृष्ण ने राधा का मन रूपी माणिक्य चुरा लिया है। मन-माणिक्य के चोरी चले जाने से राधा फेर में पड़ गई हैं। ‘बेमन’ होने के कारण (मन के अभाव में) राधा का जीना मुश्किल हो गया है। जिस दिन से राधा (गोपिका) की आँखें प्रियतम कृष्ण से लगी है, उस दिन से ‘चितचोर’ कृष्ण को वह क्षण-भर के लिए भी अपनी आँखों से दूर करना नहीं चाहती। पाठयपुस्तक में संकलित रसखान के सवैये में कवि की श्रीकृष्ण और ब्रज के. प्रति अनन्य भक्ति अभिव्यक्त हुई है। कवि के लिए श्रीकृष्ण की छोटी लाठी (लकुटी) और कंबली (कमरिया) इतनी महत्त्वपूर्ण है कि तीनों लोकों का राज्य भी उनके सामने तुच्छ है। कवि कहता है कि मुझे यदि तीनों लोकों का राज्य भी प्राप्त हो जाए तो मैं कृष्ण की लाठी और कंबली की महत्ता के समक्ष उसे तुच्छ समझूँगा और उसका त्याग कर दूंगा। मुझे तो नंद की गाएँ चराते समय अपार सुख मिलता है। उसके आगे तो आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख भी कुछ नहीं है। रसखान कवि के भीतर ब्रज के वन, बाग और तड़ाग को देखने की लालसा तीव्र हो उठी है। वे कहते हैं कि सोने-चाँदी के करोड़ों महल भी ब्रज के करील कुंजों की समता नहीं कर सकते। मुझे यदि कोई सोने-चाँदी के करोड़ों महल दे तब भी मैं उन्हें अस्वीकार कर दूंगा और ब्रज के करील-कुंजों के वैभव से प्राप्त आनंदानुभूति को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण पूँजी मानूँगा।

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