बहुसांस्कृतिक एवं बहुभाषीय समाज में समानता के लिए शिक्षा की भूमिका को समझाइये ।
बहुसांस्कृतिक एवं बहुभाषीय समाज में समानता के लिए शिक्षा की भूमिका को समझाइये ।
उत्तर— बहुसांस्कृतिक एवं बहुभाषीय समाज में समानता के लिए शिक्षा की भूमिका— भारत एक विशालतम देश है जहाँ पर अनेक धर्मों, समूहों तथा सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं जिनकी संस्कृतियों एवं भाषाओं में पर्याप्त भिन्नता दृष्टिगत होती है। इन सभी समूहों के रीति-रिवाज, खान-पान, वेश-भूषा, आचार-विचार, जीवन सम्बन्धी मूल्यों एवं परम्पराओं में पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है इसी भिन्नता के कारण इन समूहों एवं सम्प्रदायों में पर्याप्त संघर्ष एवं आपसी वैमनस्य बना रहता है जो राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। यही बाधा समाज में अशान्ति का कारण है जिसके कारण राष्ट्र की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति नहीं हो पाती है। अतः आवश्यक है कि देश के सभी नागरिकों में अन्तर-सांस्कृतिक दृष्टिकोण को विकसित कर विभिन्न संस्कृतियों के समूहों के मध्य परस्पर भेद-भाव, द्वेष तथा कट्टरता को समाप्त किया जाए और उनमें परस्पर भाई-चारे एवं सहयोग की भावना को विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाए।
भारत देश में सांस्कृतिक भावना का विकास इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हमारे देश में अल्पसंख्यकों की भी एक बहुत बड़ी संख्या निवास करती है जिनकी संस्कृतियाँ परस्पर अलग-अलग हैं जिसके कारण इन सब में आपसी वैमनस्य उत्पन्न होता रहता है यही बातें राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बड़ी बाधा है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए इन सभी बाधाओं को दूर करना अत्यन्त आवश्यक है । इसके लिए नागरिकों में अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास करना चाहिए। यदि देश के सभी नागरिकों में अन्तर सांस्कृतिक दृष्टिकोण को विकसित कर दिया जायेगा तो देश मजबूत और सुदृढ़ को जायेगा और साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय भावना भी विकसित की जा सकेगी।
शिक्षा, अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास करने में अपनी महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भूमिका निभा सकती है। शिक्षा के द्वारा हम बालकों के समक्ष इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर सकते हैं जिसमें रहकर सभी बालक दूसरी संस्कृतियों को समझकर उसे स्वीकार करने के लिए प्रेरित हो और संस्कृतियों का आदान-प्रदान कर सके। बालकों में अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास करने में शिक्षक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है किन्तु जिस शिक्षक का सांस्कृतिक दृष्टिकोण अत्यन्त व्यापक होगा वही इस कार्य को करने में पूर्णतया सक्षम होगा।
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