बिहार के तीव्र आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? इन बाधाओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है ?
बिहार के तीव्र आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? इन बाधाओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है ?
उत्तर – बिहार भारत के सबसे गरीब राज्यों में एक है। ‘बिमारु’ राज्यों में भी इसका स्थान सबसे न्यूनतम स्तर पर है। जबकि यहाँ प्राकृतिक संसाधन भरपूर हैं। बिहार का गंगा दोआब क्षेत्र विश्व का सबसे उपजाऊ भूमि क्षेत्र है। आवश्यक खनिज संसाधन भी यहाँ उपलब्ध हैं। इसके बावजूद यहाँ लगभग 33.47% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन करती है। यहाँ रोजगार के अवसर भी कम उपलब्ध हैं, जिसके कारण लोगों को अपने जीवन-यापन और रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। गरीबी के कारण उनमें काम-स्कील भी नहीं होता, जिसके कारण उनके कष्ट और बढ़ जाते हैं। इस सबके लिए जिम्मेवार बिहार का आर्थिक पिछड़ापन है। यह पिछड़ापन सुनियोजित विकास एवं नियोजन के बावजूद यहां विद्यमान है। बिहार राज्य के आर्थिक विकास में मुख्य बाधाएं निम्नलिखित हैं :
कृषि की बदहाली – बिहार कृषि प्रधान राज्य है। कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, किन्तु यहां की कृषि व्यवस्था समस्याग्रस्त है। बिहार की कुल भूमि का 73.06% अर्थात् दो-तिहाई (2/3 ) भाग बाढ़ से ग्रसित क्षेत्र है। साथ ही बिहार से में भूमि सुधार और हरित क्रांति के अच्छे प्रभाव नहीं पड़े। बिहार में अधिकांश किसान छोटे या सीमान्त कृषक की श्रेणी में आते हैं। जोतों का उपविभाजन एवं उपखण्डन की स्थिति हमेशा रही है। केवल 2% व्यक्ति के पास ही 21% जोत योग्य भूमि उपलब्ध है। बिहार में प्रति हेक्टेयर उत्पाद बहुत कम है। बिहार में प्रति हेक्टेयर अन्न की उत्पादकता जहां 2779 किलोग्राम है वहीं पंजाब में 3484 किलोग्राम है। बिहार में कुल जोत का मात्र 49% भूमि ही सिंचित है जबकि सिंचाई कृषि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है। इस प्रकार प्राकृतिक बाधा, संस्थागत तकनीकी, आर्थिक तथा जोत का छोटा आकार आदि बिहार के कृषि की बदहाली के लिए जिम्मेदार है।
बाढ़ की समस्या – बिहार में नेपाल से बाढ़ आती है। हर वर्ष कम या अधिक बाढ़ का आना बिहार में तय है जिससे मकान, फसल, मवेशी आदि की क्षति होती है। रोजगार के अवसर कृषि में शून्य हो जाती है। जिसके फलस्वरूप बिहार के लोगों की क्रयशक्ति निम्नतम स्तर पर पहुँच जाती है। जिससे 2400 कैलोरी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खरीदने की क्षमता लोगों में नहीं रहती है और गरीबी रेखा के नीचे बिहारवासी आ जाते हैं। जल जमाव की समस्या बिहार में विशेषकर उत्तर बिहार में बहुत ही विकराल है। वैसे बिहार के कुल 28 जिला बाढ़ से प्रभावित हैं और 2.5 – हेक्टेयर भूमि जल जमाव की समस्या से प्रभावित है। एक अध्ययन के अनुसार देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 17.2% हिस्सा बिहार में है। बिहार में औसतन बाढ़ से हुई क्षति भारत देश में बाढ़ से हुई कुल क्षति का लगभग 12 प्रतिशत है। भारत देश के बाढ़ प्रभावित कुल जनसंख्या का 21% हिस्सा बिहार राज्य में निवास करती है। बिहार के आर्थिक पिछड़ापन के कारणों को अमृर्त्य सेन के मॉडल से समझा जा सकता है। अमर्त्य सेन के अनुसार- “बंगलादेश में बाढ़ से आये बेरोजगारी एवं क्रयशक्ति में ह्रास ही बंगलादेश के दरिद्रता एवं अकाल के आधारभूत कारण हैं” ठीक उसी तरह बिहार के आर्थिक पिछड़ापन का प्रमुख कारण बाढ़ से आयी बेरोजगारी, आर्थिक क्षति एवं बदहाली है।
ऊर्जा (बिजली ) का अभाव – ऊर्जा आर्थिक विकास का मुख्य घटक है। कृषि हो या उद्योग किसी भी क्षेत्र का विकास ऊर्जा के बिना संभव नहीं है। हालांकि हाल के वर्षों में बिहार में बिजली आपूर्ति में सुधार हुई है, फिर भी आर्थिक विकास की गति काफी धीमी है। फलतः इससे विकास के अनेक कार्य अवरुद्ध हैं।
औद्योगिक पिछड़ापन – स्वतंत्रता के समय बिहार राज्य देश का पाँचवा औद्योगिक राज्य था, किन्तु राज्य में चीनी, सीमेंट, में इस्पात, कागज एवं जूट उद्योग का पतन औद्योगिक पिछड़ेपन का कारण बना। तत्पश्चात् बिहार का विभाजन तो शेष बिहार को और भी पिछड़ा बना दिया। अधिकांश औद्योगिक क्षेत्र झारखंड में चले गए और बिहार के अधिकांश पुराने उद्योग बंद पड़े हैं। बिहार में कुल 28 चीनी मिलें हैं जिसमें मात्र 11 चालू हालत में हैं। बिहार में अशोक पेपर मिल चालू नहीं किया जा सका है। चर्म उद्योग, हस्तकरघा उद्योग, कृषि आधारित उद्योग, रेशमी कीट पालन उद्योग सभी वित्तीय अभाव तथा तकनीकी पिछड़ापन के शिकार है। इस औद्योगिक पिछड़ापन के कारण बिहार में आर्थिक पिछड़ापन की स्थिति बनी हुई है।
कमजोर आर्थिक एवं सामाजिक संरचनाएं- बिहार में परिवहन के प्रमुख साधन सड़क और रेल हैं जो स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ही विकसित किये गये थे और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसमें नगण्य विस्तार हुआ है। वर्तमान में बिहार में रेलमार्ग की कुल लम्बाई 3,731 किमी. है जो कि देश के कुल रेलमार्ग का लगभग 5.6 प्रतिशत है। बिहार में प्रति 1000 वर्ग किमी. पर रेलमार्ग का घनत्व 39.6 किमी. है। जबकि प्रति लाख आबादी पर रेलमार्ग की लम्बाई मात्र 4.9 किमी. है।
बिहार में सड़कों की स्थिति एक दशक पहले काफी खराब थी, लेकिन विगत वर्षों में सड़क क्षेत्र में काफी सुधार हुए हैं। वर्ष 2004-05 से 2016-17 के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग में 1302 किमी., राज्य उच्च पथ में 1871 किमी. और अन्य सड़कों में 129477 किमी. की वृद्धि हुई है। राज्य में पीछले कुछ वर्षों में सड़क क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है जिससे वर्तमान में बिहार सड़क घनत्व (प्रति 100 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर सड़कों की लम्बाई) के मामले में केरल और पश्चिम बंगाल के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है। बिहार के कुल जनसंख्या में 61.8% लोग ही शिक्षित हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर से काफी नीचे है। साथ ही बिहार में स्वास्थ्य की दशा अत्यन्त दयनीय है। आज भी अस्पताल एवं स्वास्थ्य केन्द्र की संख्या बहुत कम है। परिणामतः शिशु मृत्यु दर 44 प्रति हजार है।
लोक उपक्रम में केन्द्र का वास्तविक विनियोग- बिहार राज्य में केन्द्र सरकार अपने विनियोग में निरंतर कमी करती जा रही है। जिससे बिहार के आय प्रवाह में रिसाव आ गया है। विनियोग बचत से आता है। बचत तब बढ़ेगा जब आय अधिक होगी। आय अधिक तब होगा जब विनियोग अधिक हो ।
वित्तीय संस्थाओं की कमी- अविभाजित बिहार में भी वित्तीय संस्थाओं का अभाव था। बंटवारे के बाद और भी अभाव हो गया, जिससे साख प्रवाह काफी कम है। बिहार में तीन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं- पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रायोजित मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रायोजित उत्तर बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक द्वारा प्रायोजित बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक। बिहार में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की 2018 (सितंबर तक) में कुल शाखाएं 2,110 थीं। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का वर्ष 2017-18 के दौरान साख-जमा अनुपात 53.2% था। जबकि समान अवधि में निजी व्यावसायिक बैंकों का साख-जमा अनुपात 41.6% था। अनुसूचित व्यापारिक बैंकों का वर्ष 2017-18 के दौरान साख-जमा अनुपात लगभग 40.4% था। बिहार में साख प्रवाह के लिए सहकारी बैंक तथा ग्रामीण बैंकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि वाणिज्यिक बैंक बिहार राज्य के जमा को शाखा बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत दूसरे राज्यों में हस्तान्तरित कर देते हैं।
निम्न प्रति व्यक्ति आय एवं गरीबी का दुश्चक्र- रैगनरनर्क्स ने ‘गरीबी दुश्चक्र’ की अवधारणा का विचार दिया था। इसके अनुसार बिहार राज्य पूर्णतः गरीबी दुश्चक्र का शिकार है। बिहार राज्य में प्रतिव्यक्ति आय कम है जिसके फलस्वरूप बचत निम्न स्तर पर है। कम बचत के कारण विनियोग भी कम होता है। विनियोग कम होने पर पूंजी निर्माण दर कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप बिहार में प्रति व्यक्ति आय पुनः निम्न स्तर पर कायम रहती है।
निम्न आर्थिक विकास दर – भारत में आर्थिक विकास दर लगभग 8-9% आंका गया है जबकि बिहार राज्य का आर्थिक विकास दर लगभग 4.5% आंका गया है। विगत कुछ वर्षों में बिहार के आर्थिक विकास दर में तेजी से सुधार हुआ है, तथा यह राष्ट्रीय स्तर से भी अधिक हो गया है फिर भी गरीबी का दुश्चक्र बना हुआ है।
इस प्रकार बिहार की अर्थव्यवस्था उपर्युक्त मूलभूत कारणों से आर्थिक पिछड़ापन की शिकार है, किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि बिहार का पिछड़ापन दूर नहीं हो सकता। आज भी यहाँ विकास की सारी संभावनाएं मौजूद हैं। आवश्यकता है जागने की और मिल-जुलकर संकल्प लेने की। इसके लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों की भागीदारी भी आवश्यक है।
इस पिछड़ापन को दूर करने के लिए पिछले दो-तीन साल से राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार द्वारा कई ठोस कदम उठाये गये हैं। बिहार में कृषि की बदहाली को दूर करने के लिए इन्द्रधनुषी क्रांति एवं अनुबंधात्मक कृषि पर बल दिया जा रहा है। औद्योगिक पिछड़ापन को दूर करने के लिए बिहार औद्योगिक प्रोत्साहन नीति-2011 की घोषणा की गई है। आधारभूत संरचना के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है। भारत निर्माण योजना द्वारा सड़क, आवास, सिंचाई, विद्युत आदि के विकास पर बल दिया जा रहा है। कई नई विद्युत उत्पादन ईकाईयों की स्थापना की जा रही हैं। रोजगार गारंटी योजना के द्वारा गरीबों को रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है। आशा है कि इन सभी प्रयासों का परिणाम सकारात्मक होगा और बिहार का पिछड़ापन कम होगा।
• आर्थिक पिछड़ेपन के निदान
बिहार राज्य में आर्थिक पिछड़ापन के निदान के लिए निम्नलिखित कार्य किया जाना चाहिये –
1. बिहार के बाढ़ ग्रसित क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए समुचित उपाय किए जाने चाहिए।
2. बिहार के कृषि में हरित क्रांति लाने के लिए पंजाब के तर्ज पर कार्य किए जाएं।
3. बिहार राज्य अपने स्तर से ऊर्जा बढ़ाने के लिए निजी उद्यमियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
4. बिहार राज्य में एग्रो उद्योगों को विकसित किया जाए तथा उपभोक्ता वस्तु उद्योग को स्थापित किया जाए। चीनी उद्योग को पुनः स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना होगा।
5. बिहार में इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य होना चाहिए ।
6. लोक उपक्रमों का निजीकरण किया जाए।
7. साख प्रवाह बढ़ाना वाणिज्य बैंकों का दायित्व है, इसके लिए सरकार सहकारी बैंक का गारन्टर फिर से बने । सहकारी बैंक की व्यवस्था लोकतांत्रिक हो ताकि लालफीताशाही एवं अफसरशाही का वर्चस्व न हो ।
8. बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय वृद्धि करने हेतु शुद्ध विनियोग में वृद्धि किया जाए।
9. केन्द्र सरकार बिहार राज्य को अधिक धन दे तथा कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाए ताकि विनियोग में वृद्धि हो ।
10. बिहार में आर्थिक विकास दर में वृद्धि लाने हेतु राज्य के घरेलू उत्पादन में वृद्धि किया जाये।
11. भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम द्वारा ‘ग्लोबल मीट प्रोग्राम में बिहार विकास के लिए 10 सूत्री कार्य योजना को अमल करने पर बल दिया जाए।
उपरोक्त कार्यों के संपादन से बिहार में आर्थिक पिछड़ापन को आसानी से दूर किया जा सकता है। इन सब कार्यों के संपादन के लिए राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति एवं जन-सहभागिता के सहयोग की जरूरत है, जिससे बिहार बिमारू राज्य की कोटि से निकलकर विकसित राज्य बन सकेगा और बिहारवासियों को अन्य राज्यों में पलायन नहीं करना पड़ेगा।
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