भारतीय संविधान में प्रतिपादित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
भारतीय संविधान में प्रतिपादित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर— भारतीय संविधान में प्रतिपादित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक दिये गये हैं। इन्हें संविधान निर्माताओं ने आयरलैण्ड के संविधान से लिया है। ये राज्य की कार्यपालिका व व्यवस्थापिका के समक्ष आचार संहिता के रूप में हैं। विधि निर्माण में इनका प्रयोग करना राज्य का कर्त्तव्य है, लेकिन ये बाध्यकारी नहीं हैं। एल. जी. खेडेकर के अनुसार, “नीति निर्देशक तत्त्व वे आदर्श हैं जिनकी क्रियान्विति का प्रयत्न शासन को करना है। ”
विवेचन की सुविधा की दृष्टि से इन तत्त्वों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है—
(1) आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व– भारत में एक लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना की पूर्ति हेतु संविधान में अनेक निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था की गई है। इसमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं—
(i) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो तथा दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
(ii) श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य एवं शक्ति एवं बाल्य अवस्था का आर्थिक दुरुपयोग न हो । राज्य बच्चों के स्वस्थ विकास हेतु अवसर व सुविधाएँ प्रदान करे ।
(iii) राज्य इस बात का प्रयास करे कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार रोजगार पा सके, शिक्षा प्राप्त कर सके एवं बेकारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अंगहीन होने की दशा में सार्वजनिक सहायता प्राप्त कर सके।
(iv) राज्य ऐसी व्यवस्था करे कि कृषि, उद्योग व अन्य क्षेत्रों में लगे श्रमिकों को अपने जीवन निर्वाह के लिए यथोचित वेतन व अवकाश मिल सके।
(v) राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने का प्रयत्न करे ।
(2) सामाजिक सुरक्षा और शिक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व– लोगों के सामाजिक तथा शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से संविधान में कुछ निर्देशक तत्त्वों का वर्णन किया गया है। यथा—
(i) राज्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार संहिता बनाने तथा 14 वर्ष की आयु तक के बालकों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा।
(ii) राज्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक हितों की उन्नति का विशेष प्रयत्न करेगा तथा उनकी सभी प्रकार के शोषणं से रक्षा करेगा तथा ऐसे मादक द्रव्यों व पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध लगायेगा जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
(iii) राज्य पर्यावरण, वन्य जीव तथा वनों की रक्षा के लिए प्रयत्न करेगा ।
(3) पंचायती राज, प्राचीन स्मारक तथा न्याय सम्बन्धी निर्देशक– देश के पंचायती राज के विकास, प्राचीन स्मारकों की रक्षा तथा न्याय की प्राप्ति के उद्देश्य से कुछ निर्देशक तत्त्वों का वर्णन किया गया है। यथा—
(i) राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए प्रयत्न करेगा तथा उन्हें आवश्यक अधिकार व शक्तियाँ प्रदान करेगा।
(ii) राज्य राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों व कलात्मक एवं ऐतिहासिक रुचि की वस्तुओं को नष्ट होने, कुरूप बनाने तथा उनका निर्यात करने से रोकेगा।
(iii) राज्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता हेतु उसे कार्यपालिका से पृथक् करने का प्रयत्न करेगा।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व– राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की वृद्धि के लिए, राष्ट्रों के मध्य न्यायपूर्ण व सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने, अन्तर्राष्ट्रीय कानून और संधियों के प्रति आदर की भावना बढ़ाने तथा अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने का प्रयत्न करेगा।
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