मातृभाषा एवं राष्ट्रीय भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
मातृभाषा एवं राष्ट्रीय भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर— मातृ भाषा (Mother Tongue)– मातृ भाषा वह भाषा होती है जिसे कोई बालक अपनी माता का अनुकरण करके स्वाभाविक रूप से सीखता है। वास्तव में यह मातृ भाषा का संकुचित अर्थ है बालक जिस प्रदेश में जन्म लेता है, उसकी बोली या क्षेत्रीय भाषा वह पहले सीखता है। वास्तव में बालक की मातृभाषा उसकी क्षेत्रीय भाषा होती है।
विस्तृत अर्थ में मातृभाषा किसी क्षेत्र विशेष की उस भाषा को कहा जाता है जिसमें उस क्षेत्र के रहने वाले सभी व्यक्ति मौखिक तथा लिखित रूप से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। वास्तव में बालक केवल अपनी माता से नहीं वरन् अपने सम्पर्क में आने वाली सभी व्यक्तियों तथा वातावरण से सीखता है। इस प्रकार उसकी भाषा का विकास होता है। हिन्दी उत्तर भारत व मध्य भारत के आधुनिक भागों में बोली जाती है। इसीलिए यह इस क्षेत्र की मातृभाषा कही जाती है।
महात्मा गाँधी ने मातृभाषा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा’मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उसी प्रकार आवश्यक है जिस तरह बालक के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध ।”
बचपन में मातृभाषा के अलावा दूसरी भाषा में शिक्षण देना मातृभूमि के लिए पाप समझा जाता है। इसी कारण को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक राज्य में प्राथमिक शिक्षण का आधार मातृभाषा मानकर उसी में शिक्षा का आरम्भ किया गया है, क्योंकि मातृभाषा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भावात्मक विकास में सहायक होती है। मातृभाषा विचार-विनिमय का साधन है, नैतिकता एवं रचनात्मक शक्ति के विकास में सहायक सिद्ध होती है। संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि मातृभाषा सर्वांगीण विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है।
राष्ट्रभाषा (National Language)– किसी राष्ट्र के निर्माण, विकास एवं भावात्मक एकता के लिए राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है। राष्ट्रभाषा प्राय: वह भाषा होती है जिसका प्रयोग उस राष्ट्र के अधिकांश व्यक्ति करते हैं। यह भाषा राजकीय एवं सार्वजनिक कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। मातृ भाषा के बाद राष्ट्र-भाषा का प्रमुख स्थान है। प्रत्येक राष्ट्र की एक भाषा होती है जिसका संविधान में उल्लेख किया जाता है। जिस भाषा को देश की अधिकांश जनता बोलती है और समझ लेती है उसे राष्ट्र-भाषा कहा जाता है।
भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा का गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया गया परन्तु प्रादेशिक संकीर्णता के कारण यह सम्भव नहीं हो सका। दुर्भाग्य यह है कि विदेशी भाषा (अंग्रेजी) को अपनाने में संकोच नहीं है परन्तु हिन्दी को अपनाने में आपत्ति रही है जबकि हिन्दी में राष्ट्रभाषा के सभी गुण समाहित हैं।
भारत के सभी प्रदेशों में हिन्दी भाषा का प्रयोग किसी न किसी रूप में किया जाता है। भारत में हिन्दुओं के चार धामों- बद्रीनाथ, द्वारिका, पुरी तथा रामेश्वरम् में सभी दर्शन हेतु जाते हैं इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश हिन्दी भाषी प्रदेश में हरिद्वार, ऋषिकेश, अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन, आदि धर्मस्थल हैं। सभी प्रदेशों से इन धर्मस्थलों पर आते हैं और हिन्दी का व्यवहार होने के कारण सभी हिन्दी सीखना चाहते हैं। हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ संस्कृत तथा हिन्दी में हैं और गीता प्रेस गोरखपुर बहुत सस्ते मूल्य में उपलब्ध कराता है। यह संस्था हिन्दी की बहुत बड़ी सेवा कर रही है। मूल ग्रन्थ संस्कृत में होने के कारण संस्कृत सीखना आवश्यक है। संस्कृत सीखने का प्रथम सोपान हिन्दी भाषा ही है।
राष्ट्र-भाषा को राज्य भाषा भी कहते हैं। राष्ट्र निर्माण और भावात्मक एकता में राष्ट्र भाषा की अहम् भूमिका होती है। राष्ट्र-भाषा की आवश्यकता का उल्लेख निम्न प्रकार से है—
(i) देशवासियों में परस्पर सम्पर्क तथा विचारों का आदानप्रदान एक राष्ट्र-भाषा के माध्यम से ही होता है।
(ii) राष्ट्र-भाषा देश के गौरव और सम्मान का भी प्रतीक होती है इसका अभाव, हीन भावना का परिचायक माना जाता है।
(iii) राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता का विकास एक राष्ट्र-भाषा की शिक्षा द्वारा सम्भव होता है।
(iv) भारत जैसे विशाल देश में भाषाओं की विविधता का होना स्वाभाविक है सभी भाषाओं का आदर सम्मान तथा विकास किया जाना चाहिए।
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