वर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्रों के वैज्ञानिकों का एक प्रमुख ध्येय दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज है। भारत के द्वारा अंतरिक्ष शोध के विकास की विवेचना, विशेष रूप से 21वीं सदी में, इस ध्येय की पूर्ति के लिए कीजिए।
वर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्रों के वैज्ञानिकों का एक प्रमुख ध्येय दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज है। भारत के द्वारा अंतरिक्ष शोध के विकास की विवेचना, विशेष रूप से 21वीं सदी में, इस ध्येय की पूर्ति के लिए कीजिए।
उत्तर – राष्ट्र के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका, तथा महत्त्व को उजागर करने के लिए डॉ. विक्रम साराभाई ने राष्ट्र को अंतरिक्ष सेवाएं प्रदान करने हेतु ‘इसरो’ को विकास एजेंट के रूप में विभिन्न अंतरिक्ष मिशनों पर कार्य प्रारंभ करने के दिशा निर्देश दिए गए और उन्हें स्वदेशी तौर पर विकास करने के लिए निर्देश दिए गए। इस कारण वर्तमान समय में यह विश्व की 6वें वृहत्तम अंतरिक्ष एजेंसी का स्थान प्राप्त कर चुका है। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार अभी ऐसे तीन ग्रह हैं जिनका वातावरण धरती के सौरमंडल की तरह है। पृथ्वी से 39 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित ये तीनों ग्रह आकार में पृथ्वी और शुक्र ग्रह के समान हैं जिसपर जीवन की संभावनाएं हो सकती है। नासा के केप्लर अंतक्षित दूरबीन से प्राप्त जानकारी के आधार पर जिन दो ग्रहों में धरती से अत्यधिक समानता पाई गई है वो केप्लर 438बी तथा केपलर 442बी हैं जो लाखों बौने तारों की परिक्रमा कर रहे हैं ।
भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरूआत बेहद सीमित संसाधनों के साथ की थी यह कार्यक्रम 60 के दशक में प्रारंभ हुआ था और मंगल यान के करीब 50 वर्ष पहले भारत ने अपना पहला रॉकेट 21 नवम्बर, 1963 को लांच किया, किंतु भारत में बना पहला रॉकेट रोहिणी 75 को 20 नवम्बर, 1967 को लांच किया गया।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र की उपलब्धि की विवेचना की जाय तो इसरो ने 21वीं सदी में ऐसी कई उपलब्धियां हासिल की है जिसकी वहज से अंतरिक्ष विज्ञान में अग्रणी माने जाते वाले अमेरिका और रूस और चीन जैसे विकसित राष्ट्र भी सोचने पर विवश हैं।
22 जनवरी, 2020 को बंगलुरू में भारतीय अंतरिक्षत अनुसंधान संगठन (ISRO), इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एस्ट्रोनॉटिक्स (IAA) और एस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (ISI) की प्रथम बैठक में इसरो द्वारा मानवयुक्त गगनयान मिशन के लिए मानव महिला रोबोट ‘व्योममित्र’ को लांच किया गया। 27 मार्च, 2019 को भारत द्वारा ‘मिशन शक्ति’ को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (A-SAT) से मात्र तीन मिनट में एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया गया।
अप्रैल, 2018 को इसरो द्वारा लांच नेवीगेशन सैटेलाइट IRNSS स्वदेशी तकनीक से निर्मित है जो अमेरिका की तरह ही भारत को स्वयं का जीपीएस सिस्टम उपलब्ध करवाती है।
5 जून, 2017 को इसरो ने भारत का सबसे भारी रॉकेट GSLV-MK-3 लांच किया जो अपने साथ 3136 किग्रा. वजनी सैटेलाइट GSAT-19 लेकर अंतरिक्ष में गया और 2,300 किग्रा. से भारी सेटैलाइटों के प्रक्षेपण के लिए विदेशी प्रक्षेपकों पर भारत की अन्य देशों पर निर्भरता को समाप्त कर दिया।
14 फरवरी, 2017 को PSLV के माध्यम से एक साथ 104 सैटेलाइट का प्रक्षेपण इसरो को एक नया विश्व कीर्तिमान बनाने में सहायता की जिसमें 101 उपग्रह अन्य देशों के थे। इससे पहले इसरो ने 2016 में एक साथ 20 उपग्रह को प्रक्षेपित किया था।
25 सितम्बर, 2014 को भारत द्वारा मंगल ग्रह की कक्षा में मंगलयान को सफलतापूर्वक स्थापित करना भी 21वीं सदी के भारतीय अंतरिक्ष शोध की दिशा में एक कारगर प्रयास है। इसकी उपलब्धि का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत ऐसा देश था जिसने अपने प्रथम प्रयास में ही यह सफलता प्राप्त की। साथ ही यह अभियान इतना सस्ता था कि इसका बजट मात्र 460 करोड़ रुपये के लगभग ही आकलित किया गया, जो आज के किसी भी अत्याधुनिक तकनीकों से निर्मित फिल्मों के बजट से भी कम है।
देश में दूर संचार प्रसारण और ब्राडबैंड जैसी अवसरंचना के क्षेत्र में विकास के लिए इसरो के द्वारा उपग्रहों के माध्यम से कई कार्यक्रम को संचालित किया गया जिसमें INSAT और GSAT जैसे उपग्रहों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। वर्तमान समय में हमारे देश में 200 से अधिक ट्रांसपोंडरो का प्रयोग संचार सेवाओं के लिए किया जा रहा है। इसकी सहायता से भारत में टेलीमेडिसीन, टेलीविजन, ब्रॉडबैंड रेडियो, आपदा प्रबंधन, दूर संचार तथा खोज और बचाव जैसी कई सेवाओं का उपलब्ध हो जाना संभव हो सका।
अंतरिक्ष शोध के विकास में दूसरी अहम भूमिका भू-पर्यवेक्षण (Earth-observation) की रही है, जिसके कारण मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन, संसाधनों की मैपिंग तथा भू-पर्यवेक्षण के माध्यम से नियोजन आदि क्षेत्रों में सटीक जानकारी प्राप्त हो पाती है। परिणामत: कृषि एवं जल प्रबंधन, आपदा राहत कार्य तथा वन सर्वेक्षण रिपोर्ट का तैयार हो पाना संभव हो सका।
इसके अतिरिक्त यदि नौवहन तकनीक की बात की जाय तो उपग्रह आधारित यह महत्वपूर्ण तीसरा क्षेत्र है। इस तकनीक का उपयोग देश में वायु सेवाओं को मजबूत बनाने और इसकी गुणवत्ता के विकास के लिए किया जाता है। भारत द्वारा प्रारंभ गगन कार्यक्रम का संबंध इसी क्षेत्र से है। वर्ष 2016 में भारत ने IRNSS का नाम परिवर्तित कर इसे नाविक (NAVIC) कर दिया जो 7 उपग्रहों पर आधारित कार्यक्रम है।
इसरो के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत द्वारा अंतरिक्ष में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित किया जायेगा, इसके साथ-साथ वर्ष 2022 तक तीन सदस्यीय दल को अंतरिक्ष भेजने हेतु गगनयान परियोजना भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के आर्थिक उपयोग की संभावना में वृद्धि कर सकती है। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार 350 बिलियन डॉलर का है जो 2025 तक बढ़कर 550 बिलियन डॉलर तक हो जाने की संभावना है। भारत का अंतरिक्ष उद्योग 7 बिलियन डॉलर के आस-पास है जो वैश्विक बाजार का केवल 2 प्रतिशत ही है। भारत में अंतरिक्ष शोध के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका को सीमित रखा गया है। जबकि विश्व का सबसे बड़ा अंतरिक्ष संस्थान का क्षेत्र नासा भी जिनी क्षेत्र की सेवाएं लेता रहा है। वर्तमान समय में भारत में नवीन अंतरिक्ष से संबंधित 20 से अधिक ‘स्टार्ट अप्स’ मौजूद हैं जिनका दृष्टिकोण पारंपरिक विक्रेता और आपूर्तिकर्ता मॉडल से भिन्न है।
किसी भी ग्रह पर मानव जीवन के लिए आवश्यक है कि वहां का तापमाना न तो बेहद गर्म हो न ही ठंडा । ऐसे ग्रह का आकार भी पृथ्वी के द्रव्यमान के अनुसार ही होना चाहिए वरना गुरुत्वाकर्षण एक समस्या साबित हो सकती है। पृथ्वी जैसे ये ग्रह अपेक्षाकृत हमारे सौरमंडल के सर्वाधाकि नजदीक हैं। शुक्र ग्रह पर वैज्ञानिकों को जीवन के संकेत मिले हैं। इस ग्रह के वातावरण में फॉस्फीन गैस की मौजूदगी से वैज्ञानिकों को लगता है कि वहां जीवन होने की संभावना हो सकती है। हालांकि यहां वास्तविक जीवन के रूपों की खोज नहीं की है, लेकिन यह माना जाता है कि पृथ्वी पर फॉस्फीन गैस तब बनती है जब वैक्टिरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति वाले वातावरण में उसे उत्सर्जित करते हैं। मंगल ग्रह की प्रथम उड़ान से पहले यह माना जाता रहा है कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आबर्तिक सूचना पर आधारित था, विशेषतः ध्रुवीय अक्षांशों पर। इन सीधी रेखाओं में केवल भ्रमित करने वाली तथ्य ही सामने आई वास्तविकता का अभाव रहा फिर भी सौरमंडल के सभी ग्रहों में पृथ्वी के अलावा, मंगल को जीवन विस्तार का महत्त्वपूर्ण विकल्प माना जा सकता है।
भविष्य की तैयारी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आधुनिकता बनाए रखने की कुंजी है और इसरो जैसे देश में बनाने व बढ़ाने का प्रयास करता है। इस प्रकार भारत 21वीं सदी के अंतरिक्ष शोध कार्यक्रमों के तहत भारी वाहक प्रमोचितों, समानव अंतरिक्ष उड़ान परियोजनाओं, पुन:उपयोगी प्रमोचक रॉकेटों, सेमी क्रायोजेनिक इंजन एकल तथा दो चरणी कक्षा (SSTO एवं TSTO) रॉकेटों, अंतरिक्ष उपयोगों के लिये सम्मिश्र सामाग्री का विकास एवं उपयोग इत्यादि के विकास में अग्रसर है। प्रौद्योगिक क्षमता के अतिरिक्त भारत ने विज्ञान एवं विज्ञान की शिक्षा में भी योगदान दिया। अंतरिक्ष विभाग के तत्वाधान में सूदूर संवदेन, खगोलिकी तथा खगोल भौतिकी वायुमंडलीय विज्ञान तथा सामान्य कार्यों में अंतरिक्ष विज्ञान’ के लिए समर्पित अनुसंधान केंद्र तथा स्वायत्त संस्थान कार्यरत हैं। वैज्ञानिक परियोजनाओं सहित अंतर्राष्ट्रीय मिशन वैज्ञानिक समुदाय को आंकड़ा प्रदान करने के साथ-साथ विज्ञान शिक्षण को भी बढ़ावा देते हैं जो विज्ञान को समृद्ध करता है।
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