संथाल विद्रोह के कारण क्या थे? उसकी गति और उसके परिणाम क्या थे ?

संथाल विद्रोह के कारण क्या थे? उसकी गति और उसके परिणाम क्या थे ?

38 (66वीं BPSC/2021 )
अथवा
संयुक्त बिहार में संथाल विद्रोह के इतने बड़े पैमाने पर सशस्त्र रूप धारण करने के मूल कारणों का विश्लेषण करें एवं आंदोलन के पश्चात हुए परिणामों / प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर – संथाल विद्रोह औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध प्रथम सशक्त जनजातीय विद्रोह था। संथाल लोग तत्कालीन बिहार से लेकर बंगाल तक फैले हुए थे, किन्तु विद्रोह का केन्द्र संथालपरगना था । संथालपरगना पूर्वी बिहार राज्य के भागलपुर से लेकर राजमहल तक के विस्तृत क्षेत्र को कहा जाता है। इस क्षेत्र को ‘दमन-ए-कोह’ के नाम से भी जाना जाता है । यद्यपि इस विद्रोह के अपने मूलभूत कारण थे, तो परिणाम भी कम महत्वपूर्ण नहीं थे। इसके परिणाम दूरगामी थे जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों को कई सुधार करने पड़े ।

संथाल विद्रोह

कारणः-

1. जमींदारी प्रथा एवं उसके दुष्प्रभाव

2. दिकुओं की जनसंख्या में वृद्धि एवं संथालों पर अंकुश

3. साहूकारों की स्थिति

4.  ऋण वृद्धि 

5. सामाजिक कारण

6. राजनीतिक कारण

7. तात्कालिक कारण

परिणामः –

1. अन्य क्षेत्रों को काटकर नवीन संथालपरगना का निर्माण

2. काश्तकारी क्षेत्र में संथालपरगना टेनेन्सी एक्ट लागू किया जाना।

3. सामाजिक क्षेत्र में ‘मांझी व्यवस्था’ की पुनःबहाली

4. राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रभाव

संथाल विद्रोह के कारण 

1. जमींदारी प्रथा एवं इसके दुष्प्रभावः ब्रिटिश शासन की शुरुआत ने उनके जीवन को तहस-नहस कर दिया। अंग्रेजी सरकार ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए भू-स्वामित्व की ऐसी प्रणाली अपनाई, जिसने जमींदारी प्रथा को जन्म दिया। उनके सरदारों को ब्रिटिश अधिकारियों ने जमींदारों का दर्जा प्रदान किया। इन जमींदारों का उपयोग सरकार को अपना हित साधने के लिए तथा अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए करनी थी । लगान की एक नई प्रणाली शुरू की गई, परन्तु गांव के लोग एक जगह लगान दिया करते थे। लेकिन अब प्रत्येक व्यक्ति को अलग से कर देना होता था। इतना ही नहीं, उनके द्वारा उत्पादित हर वस्तु पर सरकार ने नया कर लगाया। यह कर इतना अधिक था कि पहले से वसूली जा रही कर में तिगुनी वृद्धि हो गई जो संथाल कृषकों की स्थिति व क्षमताओं से अधिक था। नये करों की वसूली के लिए मैदानी इलाकों में, खासकर उत्तरी बिहार के लोगों को बहाल किया गया। उनके साथ व्यापार करने के लिए बाहर के व्यापारियों को प्रोत्साहन दिया गया।
2. दीकुओं की जनसंख्या वृद्धि एवं नवीन परिवर्तन: दीकुओं की जनसंख्या वृद्धि भी विद्रोह के कारणों में से एक था। ये लोग अपनी आर्थिक संपन्नता के कारण बहुत कम समय में अच्छा प्रभाव जमा लिए थे। साथ ही अब जंगली भूमि, वन एवं गांव के संसाधनों के इस्तेमाल पर भी तरह-तरह के अंकुश लगा दिए गए। जगह बदलकर की जाने वाली खेती पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई, जबकि ये सब संथालों की परंपरागत मूल संपत्ति थीं। ऐसी स्थिति में प्राकृतिक अनिश्चितताओं ने संथालों को और अधिक दुर्बल बना दिया।
3. साहूकारों की स्थितिः संथालों की आर्थिक दुर्बलता ने साहूकारों एवं जमींदारों के लिए आदर्श स्थिति बना दी, वे अपने पैर मजबूती से जमा सकें। समय पर लगान नहीं देने के कारण उनकी जमीन नीलाम की जाने लगी। इस स्थिति से बचने के लिए संथालों ने गांव के महाजनों एवं साहूकारों से ऊंची ब्याज दर पर ऋण लेना आरंभ किया। इन ऋणों के लेखा-जोखा में गड़बड़ी की जाने लगी तथा ब्याज की दर बढ़ने लगी । इस प्रकार के बही खाते भी औपचारिकता मात्र थे, जिनसे इन संथालों का शोषण ही होता था।
4. ऋण में वृद्धिः साहूकारों के सूदखोरी के परिणामस्वरूप संथाल ऋण भार में दबते गए। ऋणों में जब भारी वृद्धि हुई तब संथालों से उसकी वापसी की मांग की गई, किन्तु संथाल अपनी दुर्बल स्थिति के कारण लिए गए ऋण को चुका पाने में असमर्थ थे। फलतः साहूकार एवं महाजनों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं, उनके बहु-ब इ-बेटियों के साथ खिलवाड़ भी किया गया। संथालों ने इस अत्याचार के विरुद्ध पुलिस एवं न्यायालय की शरण लेने की कोशिश की, लेकिन सब बेकार हुआ, क्योंकि वे सब ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शोषण के ही उपकरण थे और उनसे उनकी मिलीभगत भी थी। इस तरह से ये लोग औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के भंवर जाल में फंस गए और इनका जीना दूभर हो गया।
उपरोक्त कारणों के अलावा संथाल विद्रोह के राजनीतिक, सामाजिक एवं तात्कालिक कारण भी थे, जो निम्नलिखित हैं –
सामाजिक कारण: ब्रिटिश प्रभाव के दौरान संथालों के धार्मिक परिवेश में भी हस्तक्षेप किया गया। विशेषकर ईसाई मिशनरियों के माध्यम से धर्म परिवर्तन एवं इनकी मान्यताओं पर चोट पहुंचाया गया। संथाल अपने धार्मिक मान्यताओं के प्रति बहुत आस्था रखते थे। परिणामतः उनमें तात्कालीन ब्रिटिश व्यवस्था के विरुद्ध चेतना फैली।
राजनीतिक कारण: संथाल विद्रोह के लिए राजनीतिक तत्व भी उत्तरदायी थे। संथालों का शासन या राजनीतिक ढांचा ग्राम पंचायत द्वारा संचालित होता था। यह प्रतिनिधियों द्वारा शासन की व्यवस्था थी।
तत्कालीन कारण: संथाल विद्रोह का तात्कालिक कारण दारोगा हत्या प्रकरण माना जाता है जिसमें मामूली चोरी के मामले में दारोगा की सहायता से जब संथालों को गिरफ्तार कर लिया गया, तब संथालों ने प्रतिक्रिया में दारोगा की हत्या कर दी थी। तनाव की स्थिति में आगे चलकर विद्रोह का आरंभ और विस्तार होता गया।

संथाल विद्रोह केविद्रोह के परिणाम:-

यद्यपि संथाल विद्रोह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाया, लेकिन विद्रोह के परिणामस्वरूप बदलाव देखे जा सकते हैं

1. संथाल बहुल क्षेत्र के लिए विशेष प्रशासनिक पद्धति के तहत भागलपुर एवं वीरभूम के कुछ क्षेत्रों को काटकर संथाल – परगना जिला बनाया गया। यह नन- रेगुलेशन जिले के रूप में था जहां सामान्य कानून लागू नहीं थे।
 2. इस क्षेत्र में संथाल परगना टेनेन्सी (काश्तकारी) एक्ट लागू किया गया, जिसके तहत ग्राम प्रधान को मान्यता दी गई तथा ग्रामीण अधिकारियों को पुलिस संबंधी अधिकार दिए गए।
3. संथाल क्षेत्र की सामाजिक व्यवस्था ‘मांझी व्यवस्था’ को पुनः बहाल किया गया।
4. यह विद्रोह न सिर्फ जनजातीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण प्राथमिक कड़ी है, बल्कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ा।
कुल मिलाकर संथाल विद्रोह के कारणों में मुख्यतः शोषण और जुल्म के खिलाफ संथालों के असंतोष थे। कालांतर में संथाल जनजातीय क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार किए गए। इस प्रकार कारणों की तरह इसके परिणाम भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।
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