विद्यालय में नृत्य व नाटक प्रशिक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
विद्यालय में नृत्य व नाटक प्रशिक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर— उच्च प्राथमिक स्तर पर नृत्यकला की गतिविधियाँ—
(1) टेप – रिकॉर्डर व सीडी द्वारा छोटे बाल गीतों पर बच्चों को अपने तरह से नृत्य मुद्राओं एवं पद संचालन के लिए स्वतंत्र छोड़ना।
(2) बच्चों के उम्र स्तरानुसार स्थानीय परिचित खेलों को सरल ताल पर पद संचालन एवं हाथों की मुद्राएँ बनाने के लिए स्वतंत्र अवसर प्रदान करना।
(3) परिवेश में उपलब्ध जीव-जन्तुओं का अवलोकन करने का अवसर देना व उनकी चाल, बोली को लयात्मक तरीके से प्रस्तुत करने का मौका देना।
(4) सामूहिक रूप से गोले में खड़ा करके, विभिन्न प्रकार के पैटर्न से ताली बजवाना व विभिन्न ताली पैटर्न से मिलान करते हुए अंग व पद संचालन करने का मौका देना ।
(5) दोनों हाथों को कमर पर रखकर आगे-पीछे या दायें-बायें चलकर पद संचालन करवाना।
(6) वीसीडी के माध्यम से विभिन्न अंचल के लोक नृत्यों को बच्चों को देखने का अवसर देना व उनके नृत्यों में शारीरिक अंग संचालन व वेशभूषा के अन्तर पर बातचीत करना ।
(7) स्थानीय लोकगीतों में से चयनित गीतों पर बच्चों को नृत्य के लिए स्वतंत्र छोड़ना ।
(8) विभिन्न ताल व धुन के पैटर्न की रिकॉर्डेड वीडियो सीडी से टीवी के माध्यम से ‘नृत्य के साथ व्यायाम’ (ऐरोबिक्स) विधा का बच्चों को देखने का अवसर प्रदान करें। पहले बच्चों को व्यायाम के लिए स्वतंत्र छोड़ें, बाद में शिक्षक स्वयं कुछ सरल तरीके के व्यायाम धुन के साथ करवायें। इसके बाद ऑडियो सीडी के आधार पर बच्चों को स्वयं व्यायाम करने का स्वतंत्र अवसर प्रदान करें ।
(9) सरल ताल पर पद संचालन के साथ-साथ हाथों की मुद्राएँ समूह के साथ बनाने का अभ्यास करवायें ।
(10) सरल ताल पर बच्चों के पद संचालन हाथ की मुद्राओं के साथ-साथ कमर को थोड़ा दायें, बायें, धीरे-धीरे लचीलेपन, लयात्मक रूप से हिलाने का अभ्यास करवायें।
(11) टेप में रिकॉर्ड विभिन्न सुगम तालों को बच्चों को सुनने का अवसर देना व उनके अंतर पर बात करना।
नृत्य के प्रति बालकों का आकर्षण स्वाभाविक होता है, फिर भी शास्त्रीय नृत्य के प्रति उनकी रुचि जागृत करने के लिए नृत्य – शिक्षक को उन्हें निम्नलिखित रूप से प्रेरित करना चाहिए—
(i) नृत्य के प्रति रुचि पैदा करने के लिए समय-समय पर वेशभूषा, मेकअप आदि द्वारा नृत्य का आयोजन किया जाए तथा कलाकारों द्वारा नृत्य प्रदर्शन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(ii) नृत्य देखने की चीज है, अतः नृत्यांगनाओं की वेशभूषा, मेकअप आदि द्वारा बालक विशेष रूप से आकर्षित होते हैं। इसलिए विभिन्न नृत्यों की सलाइड्स व फिल्म-पट्टियाँ दिखाकर इसका आकर्षण बढ़ाया जा सकता है।
(iii) चलचित्र व दूरदर्शन के नृत्य सम्बन्धी कार्यक्रमों द्वारा नृत्य के प्रति रुचि जागृत की जा सकती है।
(iv) नृत्य की शिक्षा प्रारम्भ में सामूहिक लोक नृत्य के रूप में दी जानी चाहिए, क्योंकि शास्त्रीय नृत्य का आधार लोक नृत्य है। लोक नृत्य कठोर नियम में बंधा हुआ नहीं होता। इसलिए बालक सरलता से सीख पाते हैं। –
(v) सामूहिक लोक नृत्य के समुचित अभ्यास हो जाने के पश्चात् छात्रों को शास्त्रीय नृत्य के प्रति प्रेरित किया जाना चाहिए।
(vi) बालकों के दैनिक जीवन से सम्बन्धित विषयों पर आधारित गीतों को एक्शन सांग्ज के रूप में कराना चाहिए।
(vii) सांगीतिक धुनों द्वारा विभिन्न व्यायाम कराते हुए शारीरिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिसका नृत्य प्रशिक्षण में विशेष महत्त्व है।
(viii) भाव और रस के अभिव्यंजन मुखाभिनय द्वारा होता है। शिक्षक को आँख, पुतली, भौं, होंठ, नाक आदि उपांगों के संयोग से विद्यार्थियों को, भावों को अभिव्यक्त करना सिखाना चाहिए और कथनानुसार उनमें भावों का संचार करने की योग्यता उत्पन्न करनी चाहिए।
(ix) नृत्य शिक्षण में हस्तमुद्रा का पादसंदोलन अंग संचलन हैं। नृत्य में अर्थ, हस्त मुद्राओं द्वारा व्यक्त होता है। मुद्राओं के अभिनय में दो पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए – उनको शुद्ध आकृति और आन्दोलन में घुमाना तथा स्थानानुकूल स्थिति।
(x) पादसंदोलन अथवा पादाभिनय मुख्यतया पाद आन्दोलन है। अनेक प्रकार के पाँव के बोल इससे प्रस्तुत किये जाते हैं। ताल क्रीड़ा में इसका विशेष स्थान है। पाँव के बोलों की अनेक जातियाँ हैं, जैसे— ठाठ, आमद, एजन, नृत्य, परन, साहित्य, परन, तत्कार और रस परन ।
नाटक का प्रशिक्षण–छोटे-छोटे विषय लेकर अपनी कक्षा में नाटक से बच्चों का परिचय कराएँ । सरल व मार्गदर्शित गतिविधियों से शुरुआत करें। किसी भी काल्पनिक पात्र या जानवर की नकल करवाते हुए उनका आत्मविश्वास बढ़ाएँ। फिर कम नियंत्रित गतिविधियों जैसे— नाटक की ओर बढ़ें। आपको आश्चर्य होगा कि बच्चों की साधारण-सी क्रियाओं जैसे हाथों को फैलाना, छोटे और बड़े कदम लेना, मनोभावों को प्रदर्शित करने के लिए उनके चेहरे और शरीर का इस्तेमाल करना भी आपको बताना पड़ेगा।
बच्चे भाषा के प्रति अपने शरीर से प्रतिक्रिया करते हैं जो स्वांग और अभिनय की तरफ पहला कदम है। बच्चों को अक्सर यह आभास नहीं होता कि वे अपनी बात कितने अलग-अलग ढंग से कह सकते हैं। उनसे शब्दों या वाक्यों को शान्त स्वर में, दुखी स्वर में, वीर या रौद्र स्वर में बोलने के लिए कहना भी, उनके लिए अपनी आवाज की शक्ति को पहचानने का अच्छा तरीका हो सकता है। बच्चों को यह महसूस होना जरूरी है कि आपके भीतर नाटकीकरण के प्रति जोश है और आप अपने द्वारा प्रस्तावित गतिविधियों को करने में मजा लेते हैं। आप उनके साथ मिलकर एक प्रारूप या आदर्श की तरह काम करते हैं और उन्हें कक्षा में सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
आप किन्हीं व्यावसायिक अभिनेता या अभिनेत्रियों को प्रशिक्षित नहीं कर रहे हैं…बल्कि बच्चों को नाट्य कला का अभ्यास और उसका इस्तेमाल करने के रोचक तरीके सिखा रहे हैं। यदि यही रचनात्मक प्रतिक्रिया नाटकीकरण की अपनी क्षमताओं और भाषा में सुधार कर लेंगे। कुछ अच्छी
बातों पर टिप्पणी करें व उनके प्रदर्शन को महत्त्व दें। किसी भूमिका को निभाने में बच्चे अपनी रोजमर्रा की पहचान से बाहर निकलकर अपने संकोच से छुटकारा पा सकते हैं।
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