विद्युत धारा तथा इसके प्रभाव (Electric Current and its Effects)

विद्युत धारा तथा इसके प्रभाव (Electric Current and its Effects)

विद्युत धारा तथा इसके प्रभाव (Electric Current and its Effects)

विद्युत धारा (Electric Current)
जब विद्युत आवेश किसी चालक के माध्यम से बहता है, तो चालक में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। उदाहरण जब टॉर्च में सेल के द्वारा आवेश का प्रवाह होता है, तब विद्युत धारा टॉर्च के माध्यम से बल्ब को प्रकाश देती है। किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाह की समय-दर को विद्युत धारा अथवा विद्युत धारा की तीव्रता कहते हैं। यदि एक चालक में समय में प्रवाहित आवेश की मात्रा Q है, तब
                                                  विद्युत धारा I = आवेश (Q)/समय (t) = ne/t
जहाँ, n = चालक में प्रवाहित इलेक्ट्रॉनों की संख्या, e = इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.6 × 10-19 कूलॉम. इसका SI मात्रक ऐम्पियर होता है, जो फ्रैंच वैज्ञानिक एण्ड्रे-मेरी ऐम्पियर के नाम पर पड़ा। यह एक अदिश राशि है। जब किसी चालक के अनुप्रस्थ-काट में 1 कूलॉम आवेश प्रति सेकण्ड की दर से प्रवाहित हो, तब परिपथ में विद्युत धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।
अर्थात्                                        1 ऐम्पियर = 1 कूलॉम /1 सेकण्ड
विद्युत धारा के छोटे मात्रक मिली ऐम्पियर (ImA = 10-3 A) तथा माइक्रोऐम्पियर (1µA = 10-6 A) होते हैं। विद्युत धारा को धनावेशों (positive charges) का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा को ही विद्युत धारा की दिशा माना गया है। इसी प्रकार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों, जो ऋणावेश (negative charges) हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।
विद्युतिकी तथा स्थिर विद्युतिकी में मुख्य अन्तर यह है कि विद्युतिकी, आवेश की गति या आवेश के प्रवाह को जबकि स्थिर वैद्युतिकी स्थिर आवेश को दर्शाती है।
विद्युत धारा के प्रकार (Types of Electric Current)
मापांक तथा दिशा के अनुसार विद्युत धारा दो प्रकार की होती हैं
(i) दिष्ट् धारा (Direct Current, DC) जिस धारा का परिमाण एवं दिशा समय के साथ नहीं बदलता है उसे दिष्ट धारा कहते हैं। उदाहरण सेल, बैटरी तथा DC डाइनेमो दिष्ट धारा के विभिन्न स्रोत हैं।
(ii) प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current,AC) वह धारा जिसका परिमाण एवं दिशा समय के साथ परिवर्तनशील होते हैं प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। उदाहरण AC डाइनेमो प्रत्यावर्ती धारा का स्रोत है।
धारा घनत्व ( Current Density ) 
किसी धारावाही चालक के किसी बिन्दु पर प्रति एकांक क्षेत्रफल के अभिलम्बवत् गुजरने वाली धारा को उस बिन्दु पर धारा घनत्व कहते हैं। इसे J से प्रदर्शित करते हैं। अतः
                                        धारा घनत्व J = विद्युत धारा/क्षेत्रफल
इसका SI मात्रक ऐम्पियर मी2 होता है। यह एक सदिश राशि है।
विद्युत विभव और विभवान्तर (Electric Potential and Potential Difference)
इलेक्ट्रॉन सदैव उच्च घनत्व से निम्न घनत्व की ओर बहते हैं। इसी प्रकार, एक सेल की धनात्मक टर्मिनल में ऋणात्मक टर्मिनल की अपेक्षा अधिक विभव होता है। अत: इलेक्ट्रॉन का प्रवाह ऋणात्मक टर्मिनल से धनात्मक टर्मिनल की ओर होता है, इस प्रकार विद्युत धारा ऋणात्मक टर्मिनल से धनात्मक टर्मिनल की ओर बहती है।
विद्युत विभव (Electric Potential)
एक बिन्दु के लिए विद्युत विभव दर्शाता है कि एकांक आवेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र के एक बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य विद्युत विभव कहलाता है।
विद्युत विभवान्तर (Electric Potential Difference) 
एकांक आवेश द्वारा चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक प्रवाहित होने में किए गए कार्य को ही दोनों सिरों के बीच का विभवान्तर कहते हैं। विद्युत विभवान्तर का SI मात्रक वोल्ट (V) है, जिसे इटली के भौतिक विज्ञानी अलेसान्द्रो वोल्टा के नाम पर रखा गया है। यह एक अदिश राशि है। यदि 1 कूलॉम के आवेश Q को किसी चालक के बिन्दु A से B तक प्रवाहित होने में W जूल कार्य करना पड़ता है, तो दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर निम्न प्रकार है
                                                  ΔV = VB – VA W/Q
इसे V = W/Q भी लिख सकते हैं ।
यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है, तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट होता है। अतः
                                               1 वोल्ट = 1 जूल/1 कूलॉम
विद्युत विभवान्तर के छोटे मात्रक 1 mV = 10-3V तथा 1µV = 10-6V है
विद्युत विभव के बड़े मात्रक 1 किलो वोल्ट = 103 वोल्ट तथा 1 मेगावाट = 106 वोल्ट हैं
किसी परिपथ में दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर वोल्टमीटर (Voltmeter) द्वारा मापा जाता है।
वोल्टमीटर उच्च प्रतिरोध का एक उपकरण है, जिसमें अवयव समान्तर क्रम में जुड़े होते हैं, जिसके द्वारा विभव मापा जाता है।
ओम का नियम (Ohm’s Law)
सन् 1827 में, जर्मन भौतिक विज्ञानी जार्ज साईमन ओम ने, किसी धातु के तार में प्रवाहित विद्युत धारा I तथा उसके सिरों के बीच विभवान्तर में परस्पर सम्बन्ध का पता लगाया। ओम के नियमानुसार, यदि चालक की भौतिक अवस्था में कोई परिवर्तन न किया जाए तो चालक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा चालक में प्रवाहित धारा का अनुपात नियत रहता है।
यदि चालक के सिरों पर आरोपित विभवान्तर V तथा चालक में बहने वाली विद्युत धारा i है. तो ओम के नियम से
                                                        V/I = नियतांक = R या V = IR या I = V/R
जहाँ, R एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है जिसे दिये गये ताप पर धारा का प्रतिरोध (resistance of the current) कहते हैं। उपरोक्त दिए गए सूत्र से धारा प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती होती है। यदि प्रतिरोध का मान दोगुना हो, तब धारा का मान आधा हो जाता है।
वह चालक, जो ओम के नियम का पालन करते हैं, ओमीय चालक या रेखीय चालक (ohmic conductors) कहलाते हैं उदाहरण धारा के कम मान के लिए धात्विक तार ।
वह चालक जो ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं, अनओमीय चालक (non-ohmic conductors) कहलाते हैं। उदाहरण निर्वात् नलिकाएँ, डायोड वाल्व, ट्रायोड वाल्व, टॉर्च का बल्ब ।
प्रतिरोध (Resistance)
विद्युत प्रतिरोध किसी पदार्थ का वह गुण है, जिसके कारण पदार्थ अपने अन्दर होने वाले धारा के प्रवाह का विरोध करता है अर्थात् धारा के प्रवाह में रुकावट उत्पन्न करता है।
                                                        चालक का प्रतिरोध, R = V/I
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम (Ω) होता है। यह एक अदिश राशि होती है।
यदि किसी चालक के सिरों पर 1 वोल्ट का विभवान्तर लगाने पर चालक में 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित होती हो. तो उस चालक का प्रतिरोध 1 ओम होता है।
अर्थात्                               1 ओम = 1वोल्ट/1ऐम्पियर
                                                      1Ω = 1V/1A
यदि प्रतिरोध आधा हो जाए, तब विद्युत धारा का मान दोगुना हो जाता है। दूसरे शब्दों में यदि प्रतिरोध दोगुना हो जाए, तो विद्युत धारा आधी रह जाती है।
प्रतिरोध (Resistor) यह विद्युत परिपथ का एक अवयव है, जो विद्युत प्रतिरोध के बहाव को सन्तुलित करता है। यह विद्युत उपकरणों में वहाँ प्रयोग होता है। जहाँ ऊँचे प्रतिरोध की आवश्यकता होती है। यह परिपथ में धारा कम करता है। उदाहरण अयस्क जैसे नाइक्रोम, मैंगनिन तथा कॉन्सटैन्टन, आदि।
प्रतिरोधकता (Resistivity)
किसी पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध उस पदार्थ द्वारा बने एकांक लम्बाई व एकांक अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल वाले तार के प्रतिरोध के बराबर होता है। इसका SI मात्रक ओम-मी ( Ω-m) होता है।
अत: धातु की प्रतिरोधकता धातु में मुक्त इलेक्ट्रॉनों के घनत्व n अर्थात् धातु की प्रकृति पर तथा ताप पर निर्भर करती है। यह धातु के तार की लम्बाई l तथा उसके अनुप्रस्थ -काट के क्षेत्रफल 4 पर निर्भर नहीं करती है। अचालक पदार्थ जैसे काँच, रबर, ऐबोनाइट, आदि में प्रतिरोधकता अधिक परन्तु चालकों में प्रतिरोधकता कम होती है। अयस्कों की प्रतिरोधकता इसके घटक धातुओं से अधिक होती है।
अयस्कों का उपयोग उपकरणों जैसे आयरन हीटर के ऊष्मीय तन्तुओं (filaments) को बनाने में किया जाता है। इसका कारण यह है कि ये उच्च ताप पर आसानी से ऑक्सीकृत (oxidised) नहीं होते हैं। विद्युत ऊर्जा की ऊष्मा के कारण अयस्कों के अवयवों की प्रतिरोधकता अधिक होती है।
विभिन्न कारक जिन पर किसी चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है (Different Factors on Which the Resistance of a Conductor Depends) 
एक निश्चित ताप पर किसी चालक तार का प्रतिरोध तार की लम्बाई, अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल तथा पदार्थ पर निम्नलिखित प्रकार से निर्भर करता है
(i) चालक की लम्बाई (Length of the Conductor) किसी चालक तार का प्रतिरोध (R), उसकी लम्बाई (l)के अनुक्रमानुपाती होता है।
अर्थात्                                    R ∝ l
तार का प्रतिरोध लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है। जब तार की लम्बाई दोगुनी या आधी कर दी जाती है, तो प्रतिरोध आधा या दोगुना हो जाता है।
(ii) चालक के अनुप्रस्थ -काट का क्षेत्रफल (Area of Cross-section of the Conductor) किसी चालक तार का प्रतिरोध (R), उसके अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात्                                   R ∝ 1/A
तार का प्रतिरोध अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। जब किसी तार का अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल दोगुना किया जाता है, तब प्रतिरोध आधा हो जाता है। यदि तार के अनुप्रस्थ-काट के क्षेत्रफल को आधा किया जाता है, तो प्रतिरोध दोगुना हो जाता है।
(iii) चालक के पदार्थ की प्रकृति (Nature of the Material of the Conductor) चालक का प्रतिरोध जिस पदार्थ का बना होता है, तो प्रतिरोध उस पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि विभिन्न पदार्थों के समान लम्बाई (l) तथा समान अनुप्रस्थ-काट (A) के तार लिए जाएँ, तो उनका प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होता है। अतः कुछ धातुओं का प्रतिरोध कम तथा कुछ का प्रतिरोध अधिक होता है।
(iv) प्रतिरोध पर ताप का प्रभाव (Effect of Temperature on Resistance)
विभिन्न प्रकार की धातुओं के लिए ताप के प्रभाव नीचे दिये गये हैं
(a) ताप वृद्धि के साथ चालक का प्रतिरोध बढ़ जाता है।
(b) ताप वृद्धि के साथ अर्द्धचालक का प्रतिरोध कम हो जाता है।
(c) ताप वृद्धि के साथ अचालकों का प्रतिरोध बढ़ जाता है।
(d) ताप बढ़ाने पर विद्युत अपघट्यों का प्रतिरोध घट जाता है।
(e) ताप बढ़ाने पर अयस्कों का प्रतिरोध बहुत कम बढ़ता है।
ऊपर दिए गए सम्बन्धों को इस प्रकार लिख सकते हैं
                R ∝ l/A तथा R = ρ l/A
जहाँ, ρ एक नियतांक है जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध या
प्रतिरोधकता (resistivity or specific resistance) कहते हैं ।
प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम-मी होता है।
प्रतिरोध से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण पद (Some Important Terms Related to Resistance)
◆ चर प्रतिरोध (Variable Resistance) इसका उपयोग विद्युत परिपथ में धारा को (बिना विभव को परिपथ के अनुरूप बदले) बदलने में किया जाता हैं। विद्युत परिपथ में कुछ क्षणों में धारा घटती-बढ़ती रहती है।
◆ रियोस्टेट (Rheostat) इस उपकरण का उपयोग विद्युत परिपथ में प्रतिरोधों तथा धाराओं को बदलने में किया जाता है। सामान्यतः परिपथ में अज्ञात मात्रा के लिए रियोस्टेट एक चर प्रतिरोध की भाँति कार्य करता है।
◆ अच्छे चालक (Good Conductor) वे चालक या धातुएँ जिन्हें विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बहने के लिए कम प्रतिरोध वाले इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है, अच्छे चालक कहलाते हैं। उदाहरण सिल्वर, कॉपर, ऐलुमिनियम अच्छे चालक हैं तथा सिल्वर विद्युत का सबसे अच्छा चालक होता है।
◆ कम चालक (Poor Conductor) वे चालक या धातुएँ जिन्हें विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बहने के लिए अधिक प्रतिरोधकता वाले इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता पड़ती है, कम चालक कहलाते हैं। उदाहरण लोहा विद्युत का कम चालक होता है।
◆ अचालक (Insulator) वे चालक या धातुएँ जिन्हें विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बहने के लिए अत्यधिक प्रतिरोधकता वाले इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है, अचालक कहलाते हैं उदाहरण रबर, सूखी लकड़ी, प्लास्टिक, आदि। अचालक में विद्युत धारा नहीं बहती है।
प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistances)
एक परिपथ में निश्चित प्रतिरोध ज्ञात करने के लिए दो या दो से अधिक प्रतिरोध एक-दूसरे से विभिन्न संयोजन विधियों द्वारा जोड़े जा सकते हैं।
प्रतिरोधों को जोड़ने की दो विधियाँ निम्नलिखित हैं
प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम संयोजन (Series Combination of Resistances)
जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधों का एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है, तो प्रतिरोधों के इस संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं, इस संयोजन को पाव क्रम संयोजन भी कहते हैं।
दिया गया चित्र प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम में संयोजन दर्शाता है श्रेणीक्रम संयोजन में भिन्न-भिन्न प्रतिरोधों में प्रवाहित होने वाली धारा समान तथा प्रत्येक प्रतिरोधों पर विभवान्तर अलग-अलग होता है। श्रेणीक्रम संयोजन में तुल्य प्रतिरोध
                                         R = R1 + R2 + R3 + …..
उदाहरण श्रेणीक्रम संयोजन में प्रतिरोधों का समतुल्य प्रतिरोध उनके प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर सम्पूर्ण प्रतिरोध बढ़ता है।
श्रेणीक्रम संयोजन में ( In Series Combination)
◆ परिपथ में बहने वाली धारा विभिन्न प्रतिरोधों की स्थिति पर निर्भर नहीं करती है।
◆ श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों के सिरों के बीच के विभवान्तर उनके प्रतिरोधों के अनुक्रमानुपाती होते हैं तथा परिपथ में बहने वाली धारा नियत होती है।
◆ श्रेणीक्रम में लगने वाला कुल विभव, अलग-अलग प्रतिरोधों के विभव के बराबर होता है।
◆ श्रेणीक्रम में लगने वाला तुल्य प्रतिरोध परिपथ में लगने वाले प्रतिरोधों से अधिक होता है।
प्रतिरोधों का समान्तर क्रम संयोजन (Parallel Combination of Resistances) 
जब प्रतिरोधों को एक-दूसरे से समान्तर क्रम में जोड़े जाते हैं तो यह संयोजन प्रतिरोधों का समान्तर क्रम संयोजन कहलाता है।
समान्तर क्रम संयोजन में तुल्य प्रतिरोध
समान्तर क्रम संयोजन में ( In Parallel Combination)
◆ समान्तर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों में प्रवाहित धाराएँ उनके प्रतिरोधों के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
◆ परिपथ में लगने वाला वोल्टेज विभिन्न प्रतिरोधों की स्थिति पर निर्भर नहीं करता है।
◆ परिपथ में बहने वाली कुल धारा अलग-अलग प्रतिरोधों में बहने वाली धाराओं के योग के बराबर होती है।
◆ समान्तर क्रम में लगा तुल्य प्रतिरोध परिपथ में लगने वाले प्रतिरोधों से कम होता है।
चालकत्व (Conductance)
चालक के विद्युत प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकत्व कहते हैं, इसे G से प्रदर्शित करते हैं। इसका SI मात्रक म्हो (mho) अथवा ओम होता है, चालकत्व का SI मात्रक सिमेन भी होता है।
R प्रतिरोध वाले चालक का चालकत्व,            G=1/R
चालकता (Conductivity)
चालक के पदार्थ की प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम को चालकता कहते हैं, इसे o से निरूपित करते हैं।
अतः                       चालकता (σ) = 1/प्रतिरोधकता (ρ)
चालकता का SI मात्रक ओम-1 मी-1-1 m-1) या म्हो मी-1 या सीमेन मी-1 (Sm-1 ) होता है।
◆ सभी चालकों की चालकता ताप बढ़ने पर बढ़ती है तथा ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालकों की चालकता घटती है, जबकि अचालकों की प्रतिरोधकता पर ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
◆ धातुओं तथा अयस्कों की चालकता ठण्डे होने पर बढ़ती है ।
◆ चालकता तथा प्रतिरोधकता या प्रतिरोध तथा चालकत्व का गुणनफल सभी धातुओं के लिए सदैव समान होता है।
चालकता के आधार पर पदार्थों का वर्गीकरण (Classification of Materials in Terms of Conductivity)
चालकता पदार्थ का वह गुण है, जो यह निर्धारित करता है कि पदार्थ में विद्युत आवेश का प्रवाह कितनी सुगमता से होता है। इस आधार पर पदार्थ निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
(i) सुचालक (Conductor) वे पदार्थ जिनकी विद्युत चालकता बहुत अधिक होती है, सुचालक पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण चाँदी, ताँबा, अम्ल, क्षार लवणों के जलीय विलयन, आदि ।
(ii) अर्द्धचालक (Semiconductor) वे पदार्थ जिनकी विद्युत चालकता चालकों व अचालकों के मध्य होती है, अर्द्धचालक पदार्थ कहलाते हैं। इनमें उचित अशुद्धियाँ मिलाकर इनकी चालकता में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। उदाहरण जर्मेनियम, सिलिकॉन, कार्बन, आदि।
(iii) अचालक (Insulator) वे पदार्थ जिनमें विद्युत आवेश का प्रवाह नगण्य होता है, अचालक पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण सूखी लकड़ी, रबड़, कागज, अभ्रक, शुद्ध आसुत जल, आदि। शुद्ध आसुत जल विद्युत का अचालक होता है, परन्तु थोड़ा-सा अम्ल या क्षार या लवण मिलाने पर यह विद्युत चालक की भाँति कार्य करता है।
(iv) अतिचालक (Superconductor) कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, कि इनका ताप धीरे-धीरे घटाने पर इनकी चालकता बढ़ती है, परन्तु एक विशेष ताप के नीचे ठण्डा करने पर चालकता अचानक शून्य हो जाती है, इस प्रकार के पदार्थ अतिचालक पदार्थ कहलाते हैं तथा पदार्थों के अतिचालक होने का यह गुण अतिचालकता कहलाता है। यह घटना 10 K से 0.1 K ताप पर होती है। मरकरी की अतिचालकता 4.2 K, लैड की अतिचालकता 7.25 K तथा नियोबियम की अतिचालकता 9.2 K होती है।
तापी प्रतिरोधक (Thermistors)
तापी प्रतिरोधक एक ऊष्मा संवेदनशील उपकरण है जिसमें प्रतिरोधकता परिवर्तन बहुत तेजी से ताप के परिवर्तन के साथ होता है। तापों में कम परिवर्तन को मापने के लिए ही तापमापी बनाए जाते हैं। तापी प्रतिरोधक के उपयोग निम्नलिखित हैं
(i) इसका उपयोग अधिक ताप परिवर्तन तथा कम ताप परिवर्तन ज्ञात करने में किया जाता है।
(ii) इसका उपयोग टेलीविजन सैट की पिक्चर ट्यूब में धारा के परिवर्तन से फिलामेन्ट को सुरक्षित करने में किया जाता है।
(iii) कारखानों में ताप की मात्रा नियन्त्रित करने में किया जाता है।
(iv) जनित्र, ट्रांसफॉर्मर तथा विद्युत मोटर की वैल्डिंग की सुरक्षा में किया जाता है।
विद्युत सेल (Electric Cell)
विद्युत सेल विद्युत वाहक बल का स्रोत होता है। इसके द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके, किसी परिपथ में आवेश के प्रवाह को निरन्तर बनाया जाता है।
विद्युत वाहक बल (Electromotive Force)
इसमें सेल के दो इलेक्ट्रोडों के बीच अधिकतम विभवान्तर होता है। यह तब होता है जब सेल से कोई धारा नहीं बहती है।
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध (Internal Resistance of a Cell) 
सेल के अन्दर उपस्थित विद्युत अपघट्य पदार्थ द्वारा सेल के अन्दर आवेश के प्रवाह में डाले गए विरोध अथवा रुकावट को ही सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कहते हैं। इसे सामान्यत: प्रतीक द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसका मात्रक ओम (Ω) होता है।
विद्युत धारा का तापीय प्रभाव (Heating Effect of Electric Current) 
जब विद्युत धारा उच्च प्रतिरोध के तार जैसे नाइक्रोम में प्रवाहित की जाती है, तो तार का प्रतिरोध अत्यधिक गर्म होकर ऊष्मा उत्पन्न करता है। यह विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहलाता है। विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के कारण ही विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा में बदल जाती है। उदाहरण यदि पंखे को लगातार या लम्बे समय तक चलाए तो यह गर्म हो जाता है।
विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग नीचे दिए गए हैं
(i) इसका उपयोग विद्युत तापीय उपकरणों जैसे विद्युत प्रेस, विद्युत केतली, विद्युत टोस्टर, रूम हीटर, आदि में होता है।
(ii) विद्युत धारा के तापीय प्रभाव का उपयोग विद्युत बल्बों द्वारा प्रकाश उत्पादन में होता है।
विद्युत धारा के तापीय प्रभाव के प्रयोगात्मक अनुप्रयोग (Practical Applications of Heating Effects of Electric Current)
विद्युत बल्ब (Electric Bulb)
विद्युत बल्ब का आविष्कार थॉमस एल्वा एडीसन ने किया था। इसमें टंगस्टन के महीन तार का फिलामेन्ट होता है। टंगस्टन में ऊँची प्रतिरोधकता तथा ऊँचा गलनांक लगभग (3800°C) होता है। बल्ब के अन्दर निर्वात् कर दिया जाता है, ताकि इसमें उपस्थित वायु में फिलामेन्ट ऑक्सीकृत होकर भंगुर न बने। उच्च ताप पर टंगस्टन वाष्प बनकर बल्ब की दीवारों पर जमनें लगता है और बल्ब काला पड़ जाता है।
इससे बचाव हेतु बल्ब में कुछ मात्रा में अक्रिय गैसें (नाइट्रोजन अथवा ऑर्गन) भर दी जाती हैं, ताकि चालन एवं संवहन जैसी क्रियाएँ नहीं हो सकें।
विद्युत फ्यूज (Electric Fuse)
विद्युत उपकरणों में उन पर अंकित निर्धारित धारा से अधिक धारा प्रवाहित होने से रोकने की युक्ति को विद्युत फ्यूज कहते हैं। जब परिपथ में विद्युत धारा का मान बहुत बढ़ जाता है या दोनों तार परस्पर मिल जाते हैं तो परिपथ लघुपथित (short circuit) हो जाता है तथा उत्पन्न ऊष्मा से उपकरणों के जल जाने या आग लग जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
इन खतरों से बचने के लिए परिपथों की वायरिंग में फ्यूज तार लगाए जाते हैं। फ्यूज तार ताँबा, टिन और सीसे के मिश्रण से बना हुआ एक छोटा-सा तार होता है, जो चीनी मिट्टी के होल्डर में लगे दो धात्विक टर्मिनलों के बीच खिंचा रहता है। इस तार का गलनांक ताँबे की तुलना में बहुत कम तथा प्रतिरोधकता उच्च होती है। जिस परिपथ की सुरक्षा करनी होती है उसके संयोजक तारों के श्रेणीक्रम में उचित क्षमता का फ्यूज तार लगाते हैं जिससे अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने पर फ्यूज तार गर्म होकर पिघल जाता है तथा परिपथ टूट जाता है तथा विद्युत उपकरण खराब होने से बच जाते हैं। घरेलू परिपथ में उपयोग होने वाली फ्यूज की अनुमत विद्युत धारा 1 A, 2 A, 3 A, 5 A, 10 A, आदि होती है।
प्रतिदीप्त नलिका (Fluorescent Tube)
इसमें कम दबाव पर मरकरी की वाष्प भरी होती है। जब फ्लोरोसेंट ट्यूब का स्विच ऑन किया जाता है, तो इसमें पराबैंगनी प्रकाश की अदृश्य किरणें उत्सर्जित होती हैं। ये पराबैंगनी किरणें फ्लोरोसेंट की परत पर गिरने पर दृश्य प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इस ट्यूब में बहुत कम मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह विद्युत ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा को प्रकाश ऊर्जा में बदल देती है। यह ट्यूब बहुत सस्ती होने के कारण आसानी से मिल जाती है।
सघन प्रतिदीप्त नलिका (Compact Fluorescent Tube)
CFL एक छोटे आकार की प्रतिदीप्त नलिका है, जो एक ही नियम पर कार्य करती है। यह दीप्त बल्बों से 4 से 6 गुना अधिक अच्छी होती है। यदि हम 15 वाट की प्रतिदीप्त नलिका खरीदें, तो यह 60 वाट के दीप्त बल्ब जितना प्रकाश उत्पन्न करती है। यह बल्बों से महंगी होती है। लेकिन यह बल्बों की तुलना में 15 गुना ज्यादा चलती है। प्रतिदीप्त लैम्पों में मरकरी भरी होती है, जो मानव जाति के लिए खतरनाक होती है।
प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)
यह एक ऐसी धारा है, जिसका परिमाण तथा दिशा समय के साथ बदलते हैं तथा यह कुण्डली के पहले आधे चक्कर में एक दिशा में तथा दूसरे आधे चक्कर में विपरीत दिशा में बहती है। इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं। अर्थात् यह धारा पहले एक दिशा में शून्य से अधिकतम व अधिकतम से शून्य तथा फिर विपरीत दिशा में शून्य से अधिकतम व अधिकतम से शून्य हो जाती है, इसे प्रत्यावर्ती धारा का एक चक्र कहते हैं। हमारे देश में प्रत्यावर्ती धारा घरेलू पॉवर सप्लाई के रूप में उपयोग की जाती है।
AC विद्युत उत्पादन तथा इसका प्रसारण (AC Power Generation and its Transmission)
सभी विद्युत ऊर्जा, प्रत्यावर्ती धारा के रूप में उत्पादित की जाती है, क्योंकि इसका उत्पादन आसान है तथा इसे ट्रांसफॉर्मर द्वारा एक वोल्टेज से दूसरे वोल्टेज में बिना किसी ऊर्जा क्षय के बदला जा सकता है। विद्युत उत्पादन स्टेशनों पर उत्पादित विद्युत का वोल्टेज स्तर 11 किलोवोल्ट होता है तथा इसको मुख्य सब स्टेशनों में पहुँचाने के लिए उच्चायी ट्रांसफॉर्मर की सहायता से 132 किलोवोल्ट कर दिया जाता है, जिससे उच्च वोल्टेज पॉवर को केबिल तार द्वारा पहुँचने में बहुत कम शक्ति का क्षय होता है।
सभी सबस्टेशनों से 33 किलोवोल्ट की वोल्टेज छोड़ी जाती है, जोकि दोबारा घटकर 220 वोल्ट हो जाती है। इसके बाद इसे आसानी से ग्राहकों को बाँट दिया जाता है। यहाँ 220 वोल्ट प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग-माध्य-मूल मान है। अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग-माध्य-मूल मान शिखर मान (peak value) का 1/√2 गुना होता है।
भारत में घरों में सप्लाई की जाने वाली प्रत्यावर्ती धारा का शिखर वोल्टेज 311 वोल्ट तथा आवृत्ति 50 हर्ट्ज होती है। एक पूर्ण चक्र के लिए प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है।
दिष्ट् धारा से अधिक प्रत्यावर्ती धारा के लाभ (Advantages of AC over DC)
(i) AC उत्पादन सस्ता तथा सरल है।
(ii) यह रेक्टिफायर (प्रवर्धक) की सहायता से DC में आसानी से बदल जाता है।
(iii) AC में ऊर्जा क्षय कम होता है इसलिए इसे अधिक दूरी तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है।
दिष्ट् धारा से अधिक प्रत्यावर्ती धारा की हानियाँ (Disadvantages of AC over DC)
(i) AC को छूने पर यह हमें अपनी ओर आकर्षित करती है जबकि DC को छूने पर यह हमें दूर फेंकती है, इसलिए AC बहुत ज्यादा हानिकारक होती है।
(ii) AC का उपयोग विद्युत लेपन विधि में नहीं किया जाता है, क्योंकि इसे नियतांक धारा की आवश्यकता होती जो DC के द्वारा दी जाती है।
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