विभिन्न ‘नीति-निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन कीजिए। 1950 के बाद बिहार में इन्हें किस तरह से क्रियान्वित किया गया है ?
विभिन्न ‘नीति-निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन कीजिए। 1950 के बाद बिहार में इन्हें किस तरह से क्रियान्वित किया गया है ?
उत्तर- संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति-निर्देशक तत्व हैं। निर्देशक तत्वों का उद्देश्य राज्य के कल्याणकारी स्वरूप की स्थापना करना है। यद्यपि संविधान में निर्देशक तत्वों का वर्गीकरण नहीं किया गया है परंतु इनकी प्रकृति एवं मूल भावना को समझने के लिए इन्हें निम्न भागों में बांटा जा सकता है
1. समाजवादी सिद्धांतों पर आधारित तत्व- इन सिद्धांतों का उद्देश्य राज्य के समाजवादी स्वरूप को बनाना एवं लोगों को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय प्रदान करना है। ऐसे सिद्धांत राज्य को निम्न निर्देश देते हैं –
(i) राज्य लोक-कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा (अनुच्छेद- 38 )।
(ii) समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था इसी में है (अनुच्छेद 39-A )
(iii) सार्वजनिक धन का स्वामित्व तथा नियंत्रण इस प्रकार करना ताकि सार्वजनिक हित का सर्वोत्तम साधन हो सके (अनुच्छेद- 39-B)
(iv) धन का समान वितरण (अनुच्छेद 39-C)
(v) कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार (अनुच्छेद 41)
(vi) काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध (अनुच्छेद 42)
(vii) कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी (अनुच्छेद 43 )
(viii) उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों का भाग लेना (अनुच्छेद 43-A)
(ix) पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्त्तव्य (अनुच्छेद 47 )
2. गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित तत्व- गांधीजी के आदर्शों से प्रेरित कुछ निर्देशक तत्व निम्न हैं –
(i) ग्राम पंचायतों का संगठन (अनुच्छेद 40)
(ii) कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना (अनुच्छेद 43 )
(iii) एससी/एसटी तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि (अनुच्छेद 46 )
(iv) मादक द्रव्यों और हानिकारक औषधियों का निषेध (अनुच्छेद 47 )
(v) दुधारू पशुओं के वध पर प्रतिबंध (अनुच्छेद 48)
3. उदारवादी बौद्धिक सिद्धांतों पर आधारित तत्व –
उदारवादी बौद्धिक सिद्धांतों पर आधारित निर्देशक तत्व निम्न हैं –
(i) नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता (अनुच्छेद 44 )
(ii) प्रारंभिक शैशवास्था की देखभाल तथा 6 वर्ष से कम आयु के बालकों की शिक्षा का प्रावधान (अनुच्छेद 45)
(iii) कृषि एवं पशुपालन का संगठित एवं वैज्ञानिक पद्धति अपना कर उनका विकास (अनुच्छेद 48 )
(iv) पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन, वन्यजीवों की रक्षा (अनुच्छेद 48 – A)
(v) राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण (अनुच्छेद 49 ) .
(vi) कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण (अनुच्छेद 50)
(vii) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि (अनुच्छेद 51)
• महत्व
यद्यपि नीति-निर्देशक तत्वों का पालन करने के लिए कार्यपालिका बाध्य नहीं है परंतु भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी भी सरकार का उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। वैसे में नीति-निर्देशक तत्व कार्यपालिका को सही दिशा दिखाते हैं। सामान्यतः सरकार इनका ध्यान रखती है। अभी जनकल्याण के अनेक कार्यक्रम इन नीति-निर्देशक तत्वों के आधार पर ही बनाए जा रहे हैं।
> बिहार में क्रियान्वयन
1950 के बाद भारत में नीति निर्देशक सिद्धांतों का क्रियान्वयन कई स्तरों पर करने के प्रयास किए गए हैं। बिहार में भी इन्हें समग्र भारत में क्रियान्वयन के अनुसार ही क्रियान्वित किया गया है। बिहार में 1950 के बाद नीति निर्देशक सिद्धांतों के क्रियान्वयन हेतु किए गए प्रयासों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा सकता है –
अनुच्छेद 38 एवं अनुच्छेद 39 में दिए गए निर्देश के अनुरूप आय, धन एवं उत्पादन के साधनों के संकेन्द्रण एवं अधिकतम लोगों की आजीविका के प्रर्याप्त साधन उपलब्ध कराने हेतु भूमि सुधार, जमींदारी उन्मूलन, हरित क्रांति, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना पर जोर दिया गया। इस परिप्रेक्ष्य में 1950 में बने भूमि सुधार अधिनियम (जमींदारी तथा उन्मूलन), भूदान अधिनियम 1954, बिहार राज्य चकबंदी अधिनियम, 1956 एवं भूमि हदबंदी अधिनियम, 1966 उल्लेखनीय हैं। लेकिन बिहार में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण भूमि सुधार के प्रयासों को आशानुरूप सफलता नहीं मिली। भूमि सुधार बिहार में राजनीतिक मुद्दा बन गया जिससे आगे चलकर हिंसा और उग्रवाद का जन्म हुआ। राज्य सरकार द्वारा 490 हजार एकड़ भूमि अधिनियम के तहत अधिगृहित की गई लेकिन 160 हजार एकड़ भूमि न्यायालय में विवादास्पद हो गई।
> हरित क्रांति की शुरुआत बिहार में गहन कृषि – जिला कार्यक्रम (IADP) के तहत 1960-61 में शाहाबादा में किया गया। लेकिन पंजाब-हरियाणा राज्यों के समान बिहार में कृषि के विकास को गति नहीं मिल सकी। यद्यपि फसल प्रतिरूप में परिवर्तन आया तथा धान का क्षेत्रफल घटा, जबकि गेहूं का क्षेत्रफल बढ़ा। भूमि सुधार कार्यक्रमों के ठीक से लागू न हो पाने, किसानों की गरीबी, प्राकृतिक आपदा, पूंजी की कमी ने कृषि विकास को बिहार में प्रभावित किया है।
> बिहार में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, यथा- चीनी, कागज तथा सीमेंट आदि के कारखाने आदि की भी स्थापना की गई। लेकिन, कालांतर में अधिकतर रूग्णता के शिकार हो गए। यद्यपि हाल के वर्षों में इनके पुनर्जीवन के प्रयास हुए हैं तथा औद्योगिक प्रोत्साहन हेतु अनेक कदम उठाए गए हैं, फिर भी व्यापक रूप में सफलता नहीं मिल पाई है।
> संविधान के अनुच्छेद 38 एवं 39 के विभिन्न खंडों के अनुरूप ही बिहार में भी समान कार्य के लिए समान वेतन प्रणाली, बालश्रम प्रतिषेध अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू किए गए हैं।
> संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) एवं 41 में नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार तथा काम पाने के अधिकार देने का निर्देश दिया गया है। तदनुरूप भारत में कई रोजगार कार्यक्रम, जैसे MNREGA है जो बिहार में भी चल रहा है। बिहार में चल रहे राजगार कार्यक्रमों में राष्ट्रीय आजीविका मिशन भी उल्लेखनीय है।
> संविधान के अनुच्छेद 40 की भावनाओं के अनुरूप बिहार में पंचायती राज अधिनियम भी लागू है तथा इनका प्रत्येक पांच वर्षों में नियमित चुनाव भी हो रहा है। बिहार में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर इस संस्था के माध्यम से महिला सशक्तिकरण का प्रयास किया गया है।
> संविधान के अनुच्छेद 41 में कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार का उल्लेख है। इस स्थिति में कई सामाजिक सुरक्षा योजनाएं, यथा-वृद्धावस्था पेंशन योजना, दुर्घटना मुआवजा योजना तथा हाल ही में लागू की गई मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष योजना, मुख्यमंत्री विकलांग सशक्तीकरण योजना (सम्बल) और भिक्षावृत्ति निवारण योजना उल्लेखनीय है ।
> संविधान के अनुच्छेद 42 में काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं के अनुरूप बिहार में भी प्रसूति हित लाभ अधिनियम, कारखाना अधिनियम लागू है। इसके अतिरिक्त ममता कार्यक्रम एवं जयप्रभा जननी शिशु आरोग्य एक्सप्रेस योजना जैसे हाल में प्रारंभ किए गए कार्यक्रम भी उल्लेखनीय हैं।
> संविधान के अनुच्छेद 43 में कर्मकारों के लिए निर्वाचन मजदूरी एवं कुटीर उद्योग के अनुरूप बिहार में मजदूरी अधिनियम तथा कारखाना अधिनियम लागू है।
> संविधान के अनुच्छेद 45 के आलोक में शिक्षा का अधिकार कानून बिहार में भी लागू किया गया है। इसके अतिरिक्त स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने हेतु मुख्यमंत्री – साइकिल एवं पोषक योजना भी यहां लागू की गई है।
> संविधान के अनुच्छेद 46 में अनुसूचित जातियों / जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ-संबंधी हितों की अभिवृद्धि के प्रावधान के अनुरूप बिहार में भी इन वर्गों के लिए छात्रवृत्ति, नकद सहायता, कौशल विकास और आरक्षण जैसे पहल किए गए हैं। विगत वर्षों में बिहार के अल्पसंख्यक वर्गों के लिए हुनर योजना, तालिम मरकज योजना तथा मुख्यमंत्री श्रम – शक्ति योजना शुरू किया गया है।
> संविधान के अनुच्छेद 47 में पोषाहार स्तर व जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य के जिस कर्त्तव्य का उल्लेख है, उसी के अनुरूप बिहार में भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राज्य सरकार की स्वस्थ योजना, ममता कार्यक्रम, एम्बुलेंस सेवा, निःशुल्क चिकित्सा सुविधा संबंधी योजनाएं संचालित किए जा रहे हैं। बिहार के स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों का सबसे नकारात्मक पक्ष है, नशाबंदी के संदर्भ में पहल की गंभीरता का अभाव।
> संविधान के अनुच्छेद 48 में कृषि एवं पशुपालन के संगठित प्रावधान के अनुरूप बिहार में भी कृषि, पशुपालन, पर्यावरण-संरक्षण, वन व वन्य जीव संरक्षण के प्रयास किए गए हैं। इस संबंध में कृषि रोडमैप, कृषि कैबिनेट, धान की श्रीविधि से खेती, वन नीति, कृषि वानिकी, वृक्ष संरक्षण योजना, समग्र पशुधन विकास योजना, विभिन्न अभयारण्यों, राष्ट्रीय पार्क एवं पक्षी विहार के संदर्भ में किए गए प्रयास उल्लेखनीय हैं।
> संविधान के अनुच्छेद 49 में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण के प्रावधान के अनुरूप ही पुरातात्त्विक एवं कलात्मक महत्व के स्थलों से समृद्ध बिहार में ऐसे स्थलों के संरक्षण एवं परिरक्षण के प्रयास हो रहे हैं।
> इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि यद्यपि बिहार में नीति निर्देशक सिद्धांतों के क्रियान्वयन में संसाधनों की कमी के साथ-साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी मुख्य बाधक रहे हैं, फिर भी इस दिशा में जो भी कुछ प्रयास हाल के वर्षों में हुए हैं, वे सराहनीय हैं।
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