क्षेत्रीय विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहां तक सफल रहा है? विवेचना कीजिए |

क्षेत्रीय विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहां तक सफल रहा है? विवेचना कीजिए |

अथवा

क्षेत्रीय विकास की चर्चा कीजिए, बिहार में क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम किस हद तक सफल रहा, आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए |
उत्तर- आजादी के बाद देश में क्षेत्रीय असमानता जोरों पर थी। संसाधन होते हुए भी उनके समुचित दोहन के अभाव में आर्थिक संवृद्धि दर काफी कम थी। रोजगार के अवसर भी काफी सीमित थे, जिनके कारण निर्धनता दर काफी थी । प्रथम पंचवर्षीय योजना के बाद आर्थिक नियोजन पर ध्यान दिया गया, जिसमें एक स्तर क्षेत्रीय विकास का रहा । भारत सरकार के योजना आयोग एवं NSD के आर्थिक योजना के तहत राज्यों को संसाधन मुहैया करवाए गए जिसके फलस्वरूप राज्यों ने अपने क्षेत्रों के अंतर्गत आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत की।
इन शुरुआती आर्थिक नियोजन में कृषि एवं कृषि का विकास पर जोर दिया गया, जबकि द्वितीय पंचवर्षीय योजना के बाद औद्योगिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया। इन योजनाओं से एक तरफ देश की GDP में कृषि का योगदान बढ़ा, तो दूसरी तरफ बेरोजगारी की दर भी कम हुई। राज्यों ने अधिशेष कृषिगत् उत्पादन से विनिर्माण का शुभारंभ किया, जिनसे पूर्व के हालात बदले एवं राज्यों के पास भी स्वयं के संसाधन विकसित हुए जिनसे अन्य आर्थिक क्रिया-कलापों के कार्यान्वयन में सुविधा हुई। चूंकि क्षेत्रीय विकास का एक पैमाना यह रहा कि संबंधित राज्य में बुनियादी संरचनात्मक घटक कितना विकसित है, इन्हीं संरचनात्मक घटक के अभाव में देश के अन्दर क्षेत्रीय असमानता ने जन्म लिया।
आज संरचनात्मक घटकों की मौजूदगी के कारण गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों का आर्थिक विकास दर उच्च हैं, वहीं बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य ‘बीमारू राज्यों’ की श्रेणी में आते हैं।
छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान बिहार में क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य था- पहचान किए गए गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को साधन उपलब्ध कराकर उनकी आय में वृद्धि करना, जिनके फलस्वरूप वह परिवार गरीबी रेखा के ऊपर आ सके। इस कार्यक्रम द्वारा ग्रामीण इलाकों में स्वरोजगार के लिए अतिरिक्त अवसर भी पैदा किया जाना था। यह प्रोग्राम केन्द्र प्रायोजित है जिसमें केन्द्र- राज्य की सहभागिता क्रमश: 50:50 है। प्रति वर्ष केन्द्र सरकार इस कार्यक्रम के अतिरिक्त DWCRA एवं TRYSEM के माध्यम से भी कार्यक्रम का संचालन करती है। 8वीं पंचवर्षीय योजना में क्षेत्रीय
नियोजन के अंतर्गत कुल 468 करोड़ रुपये खर्च हुए जिसमें 2.50 करोड़ रुपये DWCRA पर तथा 48.50 करोड़ रुपये TRYSEM पर खर्च किया गया, शेष राशि अन्य योजनाओं पर खर्च किए गए। बिहार में 8वीं योजना के दरम्यान इस कार्यक्रम में 2.95 लाख परिवार लाभान्वित हुए। साथ ही TRYSEM के अंतर्गत करीब 16 हजार लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया।
 भारत सरकार के द्वारा इन योजना को सफलीभूत बनाने में बिहार सरकार ने कई गलतियां कर दी। पहली बात, इन योजनाओं की निगरानी का कोई नियोजित तंत्र नहीं था, दूसरी बात कि मध्यस्थों के कारण इन योजनाओं का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंच पाया। आर्थिक नियोजन के लिए जरूरी है कि क्षेत्र में बुनियादी संरचना खड़ा किया जाय, परन्तु बिहार में दबंगों एवं भष्टाचार के कारण कोई भी योजना सफल नहीं हो पायी।
अतः आवश्यकता है कि राज्य सरकार इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए एक विकसित या विशेष निगरानी योजना बनाए जिसमें भष्टाचार पर अंकुश के अलावा गुण्डागर्दी पर लगाम लगाए जाएं ताकि आर्थिक क्रिया-कलाप सुचारू रूप से चल सकें, अन्यथा इसके बिना विकास बेमानी है।
> विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि एवं उद्योग विकास हेतु किए गए उपायों का उल्लेख ।
> TRYSEM (Training of Rural Youth for Self-Employment): इस योजना का आधार ग्रामीण गरीबी को दूर करने के लिए तकनीक मुहैया कराकर स्वरोजगार खोलना है |
> DWCRA (Development of Wamen and Children in Rural Area): ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा नियोजित इस योजना का आशय ग्रामीण निर्धनता को कम करने के लिए 15-20 महिलाओं का समूह बनाना जो गरीबी रेखा से नीचे हों ताकि स्वरोजगार कर सकें।
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