‘विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम’ पर टिप्पणी लिखिए ।
‘विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम’ पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर— विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम को परम्परागत पाठ्यक्रम भी कहते हैं । पाठ्यक्रम के स्वरूप में विषय-वस्तु को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में बालक तथा उसकी रुचियों एवं योग्यताओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है । इसमें शिक्षक ही सर्वेसर्वा होता है। बालक शिक्षा के लिए होता है, न कि शिक्षा बालक के लिए। बालक में योग्यताएँ तथा रुचियाँ हैं या नहीं, उसे कठोर परिश्रम करके निर्धारित विषय-वस्तु का ज्ञान करना ही पड़ता है। इस प्रकार का पाठ्यक्रम ज्ञानात्मक पक्ष को अधिक बल देता है ।
विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में अध्यापक का शिक्षण पाठ्यक्रम तक ही सीमित रहता है। वह पाठ्यक्रम के अलावा छात्रों को और कोई ज्ञान प्रदान करना उचित नहीं समझता है। वह छात्र के केवल ज्ञान- भण्डार को बढ़ाने पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करता है, भले ही इस ज्ञान की छात्र के जीवन में कोई उपयोगिता हो या न हो।
सेलर तथा अलेक्जेण्डर के अनुसार, “विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में ज्ञान के संगठित अंगों के अध्ययन के अनुभव को शिक्षा के उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए प्रयोग में आने वाली प्रमुख निधि माना जाता है। तथ्यों, विवरणों, व्याख्याओं, सामान्यीकरणों, सिद्धान्तों तथा धारणाओं से
युक्त ज्ञान को सामग्री के अंगों के रूप में गठित तथा पुनर्गठित किया जाता है।”
विषयकेन्द्रित पाठ्यक्रम के पक्ष में तर्क—
विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम परम्परावादी पाठ्यक्रम है। यह प्राचीन काल से ही चला आ रहा है और आज भी अपने प्रमुख गुणों के कारण अधिकांश विद्यालयों में व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है। इसके पक्ष में हम निम्नांकित तर्क दे सकते हैं—
(1) सुविधाजनक—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम अनेक दृष्टियों से सुविधाजनक होता है । यह सुविधाएँ सामान्यतः नीचे लिखे कार्यों में स्पष्ट नजर आती हैं—
(अ) परिवर्तन करने में सुविधा एवं सरलता—विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम को सरलता से परिवर्तित किया जा सकता है। जब भी समाज में परिवर्तन होता है या समाज जब भी पाठ्यक्रम में परिवर्तन करने की माँग करता है तो यह कार्य बड़ी ही सरलता से किया जा सकता है। इसमें परिमार्जन तथा संशोधन करना भी सरल हो जाता है।
(ब) निर्माण में सरलता—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम का निर्माण तथा विकास करना अपेक्षाकृत सरल होता है। इसके प्रचलन एवं क्रियान्वयन में भी अधिक कठिनाई नहीं होती है। इसको देखकर अध्यापक वांछित विषय-सामग्री बड़ी सुविधा से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत कर देता है। इसमें अध्यापक को भी कोई विशेष कठिनाई नहीं होती है।
(स) समझने में सरल—अध्यापक तथा छात्रों के लिए इस प्रकार के पाठ्यक्रम को समझना बड़ा सरल होता है। अध्यापक इससे दिशानिर्देश प्राप्त करते हैं कि उन्हें क्या तथा कितनी विषय-वस्तु पढ़ानी है तथा छात्र भी इसे देखकर सहज ही समझ जाते हैं कि उन्हें क्या पढ़ना है।
(द) मूल्यांकन में सरलता—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम का उद्देश्य विषय-सामग्री पर छात्र का अधिकार कराना होता है। यह कार्य अधिक कठिन नहीं है। इस ज्ञान का मूल्यांकन करना भी सरल होता है। सामान्यतः निबन्धात्मक परीक्षाओं द्वारा मूल्यांकन कर लिया जाता है ।
(2) अनुभवों की प्रभावी व्याख्या—विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालकों को न केवल तैयार अनुभव ही प्रदान करता है वरन् इन अनुभवों को समन्वित रूप भी प्रदान करता है। इससे उनकी व्याख्या करना सरल हो जाता है। वर्तमान अनुभव तभी सार्थक होते हैं जब उनको भूतकालीन, व्यक्तिगत तथा समूहगत अनुभवों से जोड़ दिया जाए। विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम अनुभवों को व्यवस्था देकर छात्रों के समय तथा श्रम में बचत करता है।
(3) बौद्धिक विकास में सहायक—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम सरलता से छात्रों का बौद्धिक विकास कर पाता है। इसमें ज्ञानात्मक शक्तियों के विकास पर बल दिया जाता है। ज्ञानात्मक शक्तियों के विकास के प्रयासों के फलस्वरूप उन्हीं छात्रों का बौद्धिक विकास हो जाता है। सेलर तथा अलेक्जेण्डर के अनुसार इससे बालक जीवन की समस्याओं का सामना करने में सक्षम होता है।
(4) व्यवहार परिमार्जन में सहायक—जब छात्रों का बौद्धिक विकास होता है। तो निश्चित ही उनके व्यवहारों में भी परिवर्तन होता है । विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम हमारी बौद्धिक क्षमताओं को बढ़ाकर हमारे व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाते हैं ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम सहज, सुलभ तथा सुविधापूर्ण होने के साथ ही साथ हमारी बौद्धिक क्षमताओं में वृद्धि करने वाला तथा व्यवहारों में परिमार्जन करने वाला है। इसलिए इसे छात्र, अध्यापक तथा अभिभावक सभी चाहते हैं।
विषयकेन्द्रित पाठ्यक्रम की कमियाँ—विषय- केन्द्रित पाठ्यक्रम में निम्नांकित कमियाँ स्पष्ट दिखायी देती हैं—
(1) पुस्तकीय ज्ञान—केन्द्रित पाठ्यक्रम छात्रों को केवल पुस्तकीय तथा सैद्धान्तिक ज्ञान पर ही प्रदान कर पाते हैं। विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में व्यावहारिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है । इस प्रकार ज्ञान जीवन को सफल बनाने के लिए अधिक उपयोगी नहीं होता है।
(2) अप्रजातांत्रिक—विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम छात्रों में संकीर्ण प्रतिद्वन्द्वता विकसित करता है। यह छात्रों में प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास करने में पूरी तरह असफल रहता है । यह बच्चों में प्रजातांत्रिक गुणों का विकास नहीं कर पाता है फलतः वे सफल एवं अच्छे नागरिक नहीं बन पाते हैं।
(3) संकीणता—विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम शिक्षा को संकीर्णता प्रदान करता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत शिक्षा केवल कुछ विषयों के ज्ञान तक ही सीमित रह जाती है। यह शिक्षा को संकुचित अर्थ देता है। दूसरे, इसमें छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तितव का विकास नहीं हो पाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम से एकीकृत, समन्वित तथा सह-सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त करना कठिन होता है।
(4) रटने पर बल—इस प्रकार के पाठ्यक्रम में वही छात्र उत्तम माना जाता है जो अधिक-से-अधिक विषय-वस्तु को रट लेता है। रटकर सीखा ज्ञान अस्पष्ट तथा अर्थहीन होता है। छात्र उसको अपने जीवन में प्रयोग करने में असफल रहता है ।
(5) अमनोवैज्ञानिक—इस प्रकार का पाठ्यक्रम पूरी तरह अमनोवैज्ञानिक होता है । यह न तो छात्रों की मानसिक आवश्यकता की पूर्ति करता है और न यह व्यक्तिगत विभिन्नताओं का अनुसरण करता है। यह छात्रों की रुचियों तथा क्षमताओं की ओर ध्यान नहीं देता है।
(6) असामाजिक—सामाजिक दृष्टि से भी यह पाठ्यक्रम अनुपयुक्त है। यह छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास करने में पूरी तरह असफल रहता है। इससे छात्रों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों का भी विकास नहीं हो पाता है। यह समाज की समस्याओं, आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं कर पाता है।
(7) परीक्षाओं का न केवल बाहुल्य का महत्त्व—इस प्रकार के पाठ्यक्रम में परीक्षाओं ही होता है अपितु उन्हें आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया जाता है। एक प्रकार से सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर परीक्षाओं का ही एकाधिकार हो जाता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम में परीक्षाएँ भी छात्रों के रटने की शक्ति तथा मात्रा की ही जाँच कर पाती हैं। वे छात्रों के अवबोध तथा कौशल आदि क्षमताओं का मूल्यांकन नहीं कर पाती हैं।
(8) पुस्तकों का महत्त्व—इस प्रकार का पाठ्यक्रम शिक्षा प्राप्त करने के लिए पुस्तकों को ही सर्वोत्तम साधन मानता है। यह पाठ्यक्रम शिक्षा प्राप्त करने के अन्य अनौपचारिक साधनों की अवहेलना करता है। यह केवल कक्षागत शिक्षण पर ही आधारित हैं । कक्षा से बाहर के साधनों से प्राप्त ज्ञान को यह महत्त्व नहीं देता है। परिणामस्वरूप घर समाज तथा विद्यालय में तालमेल नहीं हो पाता है।
(9) नवाचारों की अवहेलना—इस प्रकार के पाठ्यक्रम में नवाचारों के लिए कोई स्थान नहीं है । वास्तविक रूप में देखे तो पाते हैं कि इसमें नवाचारों की कोई गुंजाइश ही नहीं है। अध्यापक भी इस प्रकार के पाठ्यक्रम में अपनी शिक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पाता है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम आज के प्रजातांत्रिक युग में छात्रों तथा समाज की विभिन्नीकृत आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं की परिपूर्ति नहीं कर पाता है इसलिए आज इसकी सर्वत्र आलोचना हो रही है।
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