शिक्षक के लिए अनुशासनिक ज्ञान के महत्त्व की विवेचना कीजिए ।
शिक्षक के लिए अनुशासनिक ज्ञान के महत्त्व की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— शिक्षक के लिए अनुशासनिक ज्ञान का महत्त्व अनुशासनिक ज्ञान एक ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय है जिसका ज्ञान प्रशिक्षणार्थी एवं कार्यरत शिक्षक दोनों को ही अनिवार्य रूप से होना चाहिए। एक शिक्षक अपने दायित्वों का निर्वहन उस रूप में ही सर्वोत्तम ढंग से कर सकता है जब उसको विषयगत अनुशासनिक व्यवस्था का ज्ञान हो । वर्तमान समय में शिक्षक की भूमिका व्यापक हो गयी है । अतः उसको समस्त विषयों की सामान्य जानकारी अवश्य होनी चाहिए। विषय विशेषज्ञता के साथ-साथ उसको अन्य सहयोगी एवं सह-सम्बन्ध रखने वाले विषयों की जानकारी का होना भी आवश्यक है। अतः एक शिक्षक के लिए अनुशासनिक ज्ञान के उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) शिक्षण कला में प्रभावशीलता–वर्तमान समय में ज्ञान का क्षेत्र व्यापक है । एक शिक्षक द्वारा जब कला में शिक्षण कार्य किया जाता है तो छात्र उससे वह प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं जो कि अन्य विषय से सम्बन्धित हैं परन्तु वर्तमान विषय शिक्षण को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक है। इस स्थिति में शिक्षक ने अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर अन्य विषयों के बारे में ज्ञानार्जन किया है तो वह छात्र के प्रश्न का उत्तर दे सकेगा तथा अपनी शिक्षण कला को प्रभावी बना सकेगा। अत: यह ज्ञान शिक्षक की शिक्षण कला को सर्वोत्तम एवं प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।
(2) शैक्षिक समस्याओं के समाधान की योग्यता–अनुशासनिक ज्ञान के माध्यम से शिक्षक शैक्षिक समस्याओं के समाधान की योग्यता प्राप्त करता है। अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि किसी प्रकरण को स्पष्ट करने में उसी संकाय के अन्य विषयों की सहायता की आवश्यकता होती है या किसी अन्य संकाय के विषयों की सहायता से आवश्यकता होती है। इस स्थिति में अन्तः अनुशासनिक प्रक्रिया का उपयोग करके शिक्षक उस प्रकरण को सरल एवं स्वाभाविक रूप में छात्रों को समझा देता है। इस प्रकार की प्रत्येक शैक्षिक समस्या का समाधान अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर सम्भव होता है।
(3) प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का विकास– अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर ही प्रभावी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का जन्म होता है । अनुशासनिक व्यवस्था में शिक्षक द्वारा उन शिक्षण विधियों का उपयोग किया जाता है जो कि क्रमबद्ध एवं सुसंगठित रूप में स्तरानुकूल होती हैं तथा अधिगम गतिविधियों के निर्धारण में भी इस तथ्य को ही ध्यान में रखा जाता है। परिणामस्वरूप छात्रों का अधिगम स्तर उच्च होता है तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावी रूप में सम्पन्न होती है।
(4) विषयों के सहसम्बन्ध का ज्ञान–अनुशासनिक ज्ञान के माध्यम से विषयों के सहसम्बन्ध का ज्ञान शिक्षक को होता है; जैसेविज्ञान संकाय के समस्त विषय एक-दूसरे से सहसम्बन्ध रखते हैं। अतः शिक्षक भौतिक विज्ञान का शिक्षण करते समय भौतिक विज्ञान को विशेष रूप से ज्ञानार्जन का विषय बनाएगा तथा अन्य विज्ञानों के बारे में सामान्य जानकारी रखेगा जिससे आवश्यकता के अनुरूप भौतिक विज्ञान शिक्षण में अन्य विज्ञानों के प्रकरणों का उपयोग किया जा सके ।
(5) विषयों के समन्वयन का ज्ञान–अनुशासनिक ज्ञान के माध्यम से एक शिक्षक को प्रत्येक विषय के अन्य विषयों से सहसम्बन्ध के बारे में ज्ञान हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह अपने शिक्षण में आवश्यकता के अनुरूप अन्य विषयों को समन्वित कर देता है।
(6) उचित शिक्षण विधियों के उपयोग का ज्ञान–अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर ही छात्रों के लिए शिक्षक द्वारा उचित शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे—प्राथमिक स्तर पर शिक्षक द्वारा खेल विधि का उपयोग किया जाता है तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रयोग प्रदर्शन विधि का उपयोग किया जाता है। दोनों ही विधियाँ स्तरानुकूल हैं। इसी प्रकार किसी एक विधि का उपयोग एक से अधिक विषयों के शिक्षण में किया जाता है; जैसे—प्रोजेक्ट विधि एवं समस्या समाधान विधि का उपयोग विज्ञान संकाय एवं कला संकाय के विषयों में व्यापक रूप से किया जाता है।
(7) शिक्षण अधिगम सामग्री के उचित प्रयोग का ज्ञान– अनुशासनिक ज्ञान के अन्तर्गत शिक्षक शिक्षण अधिगम सामग्री के स्वरूप एवं उसके प्रयोग के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है तथा एक ही शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग विविध प्रकरणों को स्पष्ट करने में किस प्रकार सम्भव है, इसका भी ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार की गतिविधियों
के ज्ञान से शिक्षक शिक्षण अधिगम सामग्री का सर्वोत्तम उपयोग करके शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिपूर्ण बनाता है।
(8) सामाजिक समस्याओं के समाधान की योग्यता– सामान्यतः अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याएँ शिक्षक के समक्ष उत्पन्न होती हैं जिनका समाधान किसी एक विषय या किसी एक संकाय के माध्यम से नहीं हो सकता। इस स्थिति में शिक्षक को अनुशासनिक ज्ञान का सहारा लेना पड़ता है तथा विविध संकायों एवं उनके विषयों के समेकित ज्ञान से समस्या का समाधान सम्भव हो जाता है।
(9) स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास–अनुशासनिक ज्ञान का प्रमुख उद्देश्य शिक्षकों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास करना होता है । एक शिक्षक से जब कोई छात्र प्रश्न करता है तो वह यह नहीं जानता है कि उसके शिक्षक का विषय क्या है, मात्र वह अपनी जिज्ञासा शान्त करना चाहता है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर यह तथ्य व्यापक रूप से देखा जाता है। इस स्थिति में एक शिक्षक तभी सफल हो सकता है जब वह विविध विषयों का अध्ययन करता हो। इसके लिए उसे स्वाध्याय की आवश्यकता होगी जो कि अनुशासनिक ज्ञान के माध्यम से सरल एवं स्वाभाविक रूप में विकसित होती है।
(10) सन्तुलित ज्ञान का अर्जन एवं शिक्षण–अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर सन्तुलित ज्ञान का अर्जन शिक्षक द्वारा किया जाता है। वह किसी भी शैक्षिक, व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्या के समाधान के लिए उसके विविध पक्षों का अध्ययन करता है। इसके उपरान्त वह उस समस्या का समाधान करता है। ठीक इसी क्रम में वह प्रत्येक संकाय के ज्ञान को ग्रहण करता है जिसकी उसको अपने दायित्व निर्वहन में आवश्यकता होती है । इस प्रकार वह ज्ञान का सन्तुलित रूप प्राप्त करता है तथा शिक्षण भी सन्तुलित रूप में करता है।
(11) ज्ञान के प्रति व्यापक दृष्टिकोण का विकास–अनुशासनिक ज्ञान के माध्यम से ही शिक्षक का ज्ञान के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विकसित होता है क्योंकि उसको विविध प्रकार के प्रकरणों को स्पष्ट करने तथा सामाजिक एवं शैक्षिक समस्याओं के समाधान में विविध विषयों एवं संकायों का सहारा लेना पड़ता है। अतः शिक्षक का ज्ञान के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विकसित होता है। इसके आधार पर विज्ञान संकाय से सम्बन्धित शिक्षक कला संकाय तथा कला संकाय का शिक्षक विज्ञान संकाय के विषयों के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त करना चाहता है।
(12) सर्वोत्तम दायित्व निर्वहन की योग्यता का विकास– अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर शिक्षक द्वारा अपने दायित्व का सर्वोत्तम पालन किया जा सकता है। अनुशासनिक ज्ञान के आधार पर ही शिक्षक विभिन्न विषयों के साथ सहसम्बन्ध स्थापित करने में सक्षम होता है। इसी आधार पर एक शिक्षक प्रकरण को स्पष्ट करने की योग्यता प्राप्त करता है; जैसे—सामाजिक अध्ययन का शिक्षक इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, नागरिकशास्त्र एवं समाजशास्त्र के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाता है।
अतः स्पष्ट होता है कि अनुशासनिक ज्ञान की आवश्यकता एक के लिए अनिवार्य होती है। अनुशासनिक ज्ञान के सभी तथ्य शिक्षक के लिए उपयोगी होते हैं तथा अनुशासनिक ज्ञान से ही एक शिक्षक सर्वोत्तम रूप में शिक्षक बन सकता है।
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