शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? असमानता के प्रमुख कारण बताइये।
शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? असमानता के प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर– शैक्षिक अवसरों का समानता का अर्थ–भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार दिए गए हैं जिसमें विचार, भाषण एवं लेखन की स्वतन्त्रता, समानता एवं भातृत्व प्रमुख मौलिक अधिकार हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी समान अवसर की माँग करने का प्रत्येक नागरिक को अधिकार है। इन अधिकारों के आधार पर जातिपाँति, धर्म-सम्प्रदाय, लिंग, भेद, राजनीति के आधार पर किसी को शिक्षा प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता।
राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अनुसार, “शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य शैक्षिक अवसरों की समानता प्रदान करना है एवं पिछड़े अथवा अपर्याप्त सुविधाएँ प्राप्त वर्ग या व्यक्तियों को अपने विकास के लिए शिक्षा प्राप्त करने के योग्य बनाना है।”
शैक्षिक अवसर की समानता से तात्पर्य, “समाज के प्रत्येक सदस्य को लिंग, जाति, धर्म, स्थान तथा भाषा आदि की भिन्नता होते हुए भी शिक्षा प्राप्त करने के अपनी योग्यता के आधार पर समान अवसर प्राप्त होंगे।” दूसरे शब्दों में, शैक्षिक अवसरों की समानता से आशयसमाज के प्रत्येक सदस्य को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने के अवसर समान रूप से प्राप्त होंगे। ताकि सभी बालक अपनी योग्यता, क्षमता, रुचि एवं आकांक्षओं के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह सके। अतः शिक्षा के अवसर की समानता प्रजातान्त्रिक देश की अनिवार्य आवश्यकता है।
शिक्षा के अवसर की असमानता के कारण– निम्नलिखित हैं—
(1) शिक्षा सुविधाओं का अभाव– भारत के विभिन्न राज्यों में शिक्षा का प्रसार समान रूप से नहीं है और न अभी हो रहा है। निर्जन एवं पहाड़ी क्षेत्रों में मीलों तक विद्यालय नहीं हैं। फलत: उस क्षेत्र के निवासियों को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त नहीं होते हैं ।
(2) निर्धनता– भारत की अधिकांश जनता “गरीबी रेखा” के स्तर से नीचे है। उन्हें रोटी-रोजी जुटाने से ही फुरसत नहीं मिलती। छोटेछोटे मासूम बच्चे होटलों में नौकरी करते, रेल में सामान बेचते, बूटपालिश करते शहरों में देखे जा सकते हैं। गाँवों में उन्हें पशु चराते, खेत में मजदूरी करते या कार्य करते हुए देखा जा सकता है। एक ओर गगन चुम्बी अट्टालिकाएँ हैं, ऐश्वर्य के शाही ठाठ उपलब्ध हैं तथा दूसरी ओर ऊपर वर्णित गरीबी । भला ऐसी परिस्थितियों में शिक्षा के समान अवसरों की कल्पना कैसे की जा सकती है ।
(3) शिक्षा संस्थाओं के स्तर में अन्तर– आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न कुछ शिक्षा संस्थाओं में बालकों को उत्तम कोटि का वातावरण, शिक्षा व्यवस्था, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ यदि क्रियाकलापों के अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं जैसे—देहरादून स्कूल, राजस्थान में विद्याभवन उदयपुर आदि । जबकि अधिकांश विद्यालय आकाश के नीचे किसी वृक्ष की छाया में लगते हैं जहाँ पर शिक्षा सुविधा की बात तो दूर, पर्याप्त मात्रा में शिक्षक भी उपलब्ध नहीं होते हैं ।
(4) बालक-बालिकाओं में भेद– भारतीय समाज में बालक’ बालिकाओं में अन्तर समझा जाता है। बालिका को परिवार में हेय दृष्टि से देखा जाता है। बालक की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाता है और बालिका की उपेक्षा की जाती है। संविधान ने नारी-पुरुष को समानाधिकार दिया है किन्तु क्या समाज ने उसे स्वीकार किया है ? फलतः बालकों की शैक्षिक समानता के अवसर की बात ढोंग है।
(5) शैक्षिक भिन्नता– एक ओर सैनिक एवं पब्लिक स्कूल हैं जहाँ सम्पन्न वर्ग के बालक ही अध्ययन कर सकते हैं जो समस्त प्रकार की सामग्री से परिपूर्ण हैं। दूसरी ओर एक नीम के वृक्ष के नीचे लगी पाठशाला, जहाँ शिक्षक को बैठने हेतु आसन की व्यवस्था भी नहीं है। यही नहीं, इनके पाठ्यक्रम, शिक्षण व्यवस्था आदि में जमीन आसमान का अन्तर है ।
(6) पारिवारिक वातावरण– भारत सदियों से गुलाम रहा है। सामाजिक वर्ग भेद एवं जाति व्यवस्था ने समाज में छुआ-छूत को जन्म दिया । फलतः प्रत्येक जाति की अलग-अलग सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था बनी । वर्तमान में भारतीय पारिवारिक वातावरण में इतनी भिन्नता है कि जिसे शब्दों में नहीं लिखा जा सकता । धनी एवं सम्पन्न वर्ग के बच्चों को समस्त प्रकार की शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं, दूसरी ओर एक झोपड़ी में सारा परिवार रहता है। अतः शिक्षा के समान अवसर की बात दिवा- स्वप्न है।
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