भाषा का अर्थ स्पष्ट कीजिये एवं महत्त्व पर भी प्रकाश डालिये।

भाषा का अर्थ स्पष्ट कीजिये एवं महत्त्व पर भी प्रकाश डालिये। 

उत्तर— भाषा का अर्थ– साधारणतया ‘भाषा’ शब्द का प्रयोग विचारों अथवा भावों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त उन सभी साधनों के लिए होता है, जो चेतन प्राणियों एवं जड़ पदार्थों में देखे एवं सुने जाते हैं। उदाहरण के लिए मानव परस्पर विचार-विनिमय के लिए जिन ध्वनि संकेतों को अपनाते हैं, वे सभी भाषा कहलाते हैं। पशु तथा पक्षी जिस ध्वनि का प्रयोग करके अपने विविध भावों को व्यक्त करते हैं, उसे पशुओं एवं पक्षियों की भाषा कहा जाता है ।
भाषा मानव भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। यह विचारविनिमय का साधन है। यह भाव, विचार, अनुभव आदि को व्यक्त करने का सांकेतिक साधन है।
(1) काव्यादर्श के अनुसार– ” यह समस्त तीनों लोक अन्धकारमय हो जाते, यदि शब्द रूपी ज्योति (भाषा) से यह संसार प्रदीप्त न होगा।”
(2) शास्त्रीय अर्थों में— ” विचार की अभिव्यक्ति के लिए समाज द्वारा स्वीकृत जिन व्यक्त वर्णों, ध्वनि संकेतों का व्यवहार होता है उसे ‘भाषा’ कहा जाता है। “
(3) रामचन्द्र वर्मा के अनुसार– “मुख से उच्चरित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बतायी जाती है, भाषा कहलाती है।”
(4) महर्षि पतंजलि के अनुसार– “भाषा वह व्यापार है, जिससे हम वर्णनात्मक या व्यक्त शब्दों के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं। “
(5) बांडिरा के अनुसार– “भाषा एक प्रकार का चिह्न है, चिह्न से आशय उन प्रतीकों से है, जिनके द्वारा मानव अपना विचार दूसरों पर प्रकट करते हैं। ये प्रतीक कई प्रकार के होते हैं, जैसे- स्पर्श ग्राह्य, नेत्र ग्राह्य और श्रोत ग्राह्य | “
(6) स्वीट के अनुसार– “ध्वन्यात्मक शब्दों के द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है। “
(7) कामता प्रसाद के अनुसार– भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि भाषा में ध्वनि संकेतों का प्रयोग होता है। इन ध्वनि संकेतों से भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति होती है। ये ध्वनि संकेत रूढ़ तथा परम्परागत होते हैं, परन्तु आवश्यकतानुसार नए भी बनते रहते हैं ।
भाषा का महत्त्व– भाषा के बिना मनुष्य पशु के समान है। भाषा के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। भाषा का आविष्कार एवं विकास वस्तुतः मनुष्य का विकास है। मनुष्य के व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में भाषा के महत्त्व को इस प्रकार समझा जा सकता है—
(1) ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन– भाषा के माध्यम से ही एक पीढ़ी समस्त संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौंपती है। भाषा के माध्यम से ही हम प्राचीन और नवीन, आत्मा और विश्व पहचानने की सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। भाषा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
(2) व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक– भाषा व्यक्तित्व के विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति अपने आन्तरिक भावों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तथा इसी अभिव्यक्ति के साथ अन्दर छिपी अनन्त शक्ति अभिव्यक्त होती है। अपने विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकता है तथा अनेक भाषायें बोल सकना विकसित व्यति के ही लक्षण हैं। अतएव किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी उसके व्यक्तित्व का विकास भी उतने ही प्रभावशाली ढंग से होगा।
(3) भाषा राष्ट्र की एकता का आधार– समस्त राष्ट्र प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम से होता है। भाषा राष्ट्रीय एकता का मूलाधार है। इसके साथ ही कोई अन्य भाषा भी विभिन्न भाषा भी विभिन्न राष्ट्रों के बीच विचार-विनिमय, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का साधन बनती है। ऐसी भाषाओं के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के विद्वानों की विचारधारायें राष्ट्र विशेष तक ही सीमित रह जातीं ।
(4) विचार-विनिमय का सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन– बालक जन्म के कुछ ही दिनों पश्चात् परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है। यह भाषा वह स्वाभाविक एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है। इसे सिखाने के लिये किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती। यह विचार विनिमय का सर्वोत्तम साधन है क्योंकि भाषा संकेतों एवं चिह्नों से श्रेष्ठ है।
(5) सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन– भाषा समाज के सदस्यों को एक सूत्र में बाँधती है। भाषा के माध्यम से ही समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है। भाषा जितनी विकसित होगी, समाज उतना ही विकासशील होगा। भाषा के माध्यम से समाज के नैतिक व्यापार ही सम्पन्न नहीं होते अपितु उसकी संस्कृति भी अक्षुण्ण रहती है। यह भाषा ही है जिसके आधार पर विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग मिल-जु -जुलकर रहते हैं। वस्तुतः भाषा समाज को जोड़ने में सहायक है। अतएव यह कहा जा सकता है कि भाषा सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन है।
(6) साहित्य एवं कला, संस्कृति एवं सभ्यता का विकास– साहित्य भाषा में लिखा जाता है। भाषा का विकास उसके पल्लवित साहित्य के दर्पण में देखा जाता है। इसी तरह से कला के स्वर भी भाषा में मुखरित होते हैं। जब वायुमण्डल में स्वर गूंजते हैं तथा श्रोता गद्गद् हो जाते हैं तो यह सारा चमत्कार भाषा का ही होता है। भाषा के द्वारा ही हम अपने समाज के आचार-व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवन शैली से अवगत होते हैं और भाषा के द्वारा ही हम नवीन आविष्कारों के आधार पर एक नवीन सृष्टि का सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उन्नत बनाते हैं।
(7) चिन्तन एवं मनन की स्रोत– हम भाषा के द्वारा ही विचार, चिन्तन एवं मनन करते हैं। मानव अपने विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही सभी प्राणियों में शिरोमणि समझा जाता है। शुक्रसारिकादि पक्षी केवल थोड़े-से समझने योग्य विचार व्यक्त कर सकते हैं। इसी कारण अन्य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। विचारों की ऊँचाइयों के कारण ही आज मानव विभिन्न ग्रहों की जानकारी लेने में सक्षम है विश्वशान्ति एवं मानव एकता के प्रयास निरन्तर प्रयत्नशील हैं। अतएव यह स्पष्ट हो जाता है कि विचार चिन्तन और मनन शक्तियों का विकास भाषा पर ही आधारित होता है।
(8) शिक्षा की प्रगति की आधारशिला– भाषा शिक्षा का आधार है । सभी ज्ञान-विज्ञान के ग्रन्थ भाषा में ही लिपिबद्ध होते हैं। अगर भाषा न होती तो भाषा के स्वरूप का भी निर्माण नहीं होता तथा यदि शिक्षा की व्यवस्था न होती तो मनुष्य असभ्य, हिंसक तथा जंगली रहा होता । भाषा के अभाव में पूर्वजों द्वारा उपलब्ध ज्ञान हमें कभी प्राप्त न होता।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *