सुरक्षा बल एवं संस्थाए तथा उनके अधिदेश
सुरक्षा बल एवं संस्थाए तथा उनके अधिदेश
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ)
मूल रूप से केन्द्रीय सुरक्षा बल दो प्रकार के हैं- सीएपीएफ एवं सीपीएमएफ । सीएपीएफ ‘केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कहा जाता है । इस शब्दावली की शुरुआत सन् 2011 में हुईं। भारत सरकार के निम्नलिखित आठ पुलिस बलों को ‘केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ ) ‘ की श्रेणी में रखा गया है:
1. बीएसएफ
2. सीआरपीएफ
3. आईटीबीपी
4.सीआईएसएफ
5. एसएसबी
6. एनएसजी
8. आरपीएफ
8.एसपीजी
प्रथम छ: पुलिस बल अर्थात् बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी तथा एनएसजी, गृह मंत्रालय और एसपीजी कैबिनेट सेक्रिटेरीएट तथा आरपीएफ रेल मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में हैं। भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी इन सभी पुलिस बलों के मुखिया होते हैं। ये सभी बल गृह मंत्रालय के सहयोगी हैं एवं उसे ही रिपोर्ट करते हैं। ये बल पहले ‘केंद्रीय अर्द्ध-सैनिक बल’ (सीपीएमएफ) के तौर पर जाने जाते थे, किंतु जो बल रक्षा मंत्रालय के सामरिक नियंत्रण में नहीं थे, उन्हें 2011 से सीएपीएफ के तौर पर पुनः पदनामित किया गया।
इन छ: बलों में से तीन अर्थात् बीएसएफ, एसएसबी एवं आईटीबीपी मूलतः सीमाओं की रक्षा करते हैं जबकि सीआरपीएफ चुनाव ड्यूटी और आतंकवाद के मुकाबले के साथ-साथ आंतरिक सुरक्षा में राज्य पुलिस की सहायता करता है। इनके अतिरिक्त सीआईएसएफ, देश के प्रमुख संस्थानों की सुरक्षा का दायित्व निभाता है। एनएसजी एक कमांडों बल है जिसे आतंकवाद का मुकाबला करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है, जो अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा भी करता है । एसपीजी को पूर्व प्रधानमंत्रियों एवं वर्तमान प्रधानमंत्री की आसन्न (Close Proximate ) के लिए गठित किया गया है, जबकि आरपीएफ रेल सम्पदा एवं यात्रियों की सुरक्षा करता है।
● सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ)
बीएसएफ एक सीमा रक्षा बल है, जिसकी स्थापना 1 दिसम्बर, 1965 को हुई। शांतिकाल के दौरान इसका मुख्य कार्य पाकिस्तान एवं बांग्लादेश से लगने वाली अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की रखवाली एवं सीमा पार के अपराधों को रोकना है। बीएसएफ गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। सन् 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध ने मौजूदा सीमा प्रबंधन प्रणाली की कमियों को उजागर करते हुए, पाकिस्तान के साथ लगी भारत की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं की रखवाली के लिए एक एकीकृत केंद्रीय संस्था के तौर पर सीमा सुरक्षा बल के गठन की दिशा में एक मुख्य भूमिका निभाई। बीएसएफ ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के समय भी एक अहम भूमिका निभाई थी।
186 बटालियनों के साथ इसकी जनशक्ति लगभग 2.5 लाख है। बीएसएफ की कुछ बटालियनें सीआरपीएफ के साथ दंडकारण्य के नक्सल प्रभावित इलाके एवं ‘जम्मू-कश्मीर’ में भी तैनात हैं।
कोलकाता एवं गुवाहाटी में स्थित बीएसएफ की दो बटालियनों को ‘राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल’ (एनडीआरएफ) के तौर पर पदनामित किया गया है।
> शांतिकाल के दौरान बीएसएफ की भूमिका
सीमा पार के अपराधों एवं भारत के राज्य क्षेत्र में गैर-कानूनी आप्रवास की रोकथाम
सीमा पर तस्करी एवं अन्य अवैध गतिविधियों की रोकथाम
घुसपैठ विरोधी दायित्वों का निर्वाहन
सीमा पार की खुफिया सूचनाएं एकत्रित करना
> युद्ध के समय बीएसएफ की भूमिका
युद्ध के दौरान बीएसएफ निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी है:
निर्दिष्ट क्षेत्रों में जमीनी कब्जा
दुश्मन के केंद्रीय पुलिस बल अथवा अनियमित बलों के विरुद्ध सीमित आक्रामक कार्यवाही
सेना द्वारा नियंत्रित दुश्मन के इलाके में कानून और व्यवस्था बनाए रखना
युद्ध शिविरों में युद्धबंदियों की रखवाली
सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना के मार्गदर्शक के तौर पर कार्य
शरणार्थियों के नियंत्रण में सहायता
पहरेदारी
छापे सहित खुफिया सूचना एकत्रित करने संबंधी विशेष कार्य करना
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ)
सीआरपीएफ सबसे बड़ा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है। यह दिनांक 27 जुलाई, 1939 को ‘क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस’ के रूप में अस्तित्व में आया। भारत की आजादी के बाद यह ‘केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल’ बना और तब से इस बल की ताकत और क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्तमान में इस बल की 195 एग्जिक्यूटिव बटालियन, 02 आपदा प्रबंधन बटालियन, 04 महिला बटालियन, 10 आरएएफ बटालियन, 05 सिग्नल बटालियन, गहन कार्यवाही के लिए 10 कमांडों (कोबरा) बटालियन, 01 स्पेशल ड्यूटी ग्रुप, 01 पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (पीडीजी) तथा 40 ग्रुप सेंटर व प्रशिक्षण संस्थान हैं। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय (एमएचए) के तत्वावधान में कार्य करता है। सीआरपीएफ का मुखिया भारतीय पुलिस सेवा का एक अधिकारी होता है। भूमिका सीआरपीएफ की प्राथमिक भूमिका कानून व व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस कार्यवाही, विद्रोह की रोकथाम एवं नक्सल विरोधी कार्यवाही में राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों की सहायता करना है। देश भर में निष्पक्ष आम चुनाव करवाने में भी सीआरपीएफ एक अहम भूमिका अदा करता है। इसके अलावा, जम्मू में माता वैष्णों देवी तथा संसद भवन इत्यादि महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों एवं इमारतों की निगरानी भी करता है । ,
सीआरपीएफ की कुछ विशिष्ट संरचनाएं निम्नलिखित हैं:
1. रेपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ): सीआरपीएफ की आरएएफ की विंग में 10 बटालियन है। सांप्रदायिक दंगों एवं घरेलू अशांति से निपटने के लिए अक्टूबर, 1992 में इसका गठन किया गया। त्वरित कार्यवाही करने के लिए बेहतर गतिशीलता एवं बहु – जातीय संरचना के साथ यह एक विशेष बल है।
2 . कठोर कार्यवाही के लिए कमांडों ( कोबरा ) बटालियनः सीआरपीएफ में 10 विशिष्ट कोबरा बटालियने हैं। इनको कमांडो ऑपरेशन एवं गोरिल्ला/छद्म युद्ध के लिए प्रशिक्षित एवं सुसज्जित किया गया है। ये आसूचना पर आधारित त्वरित कार्यवाही करने में भी सक्षम होते हैं। इसका गठन मुख्यतः नक्सल प्रभावित क्षेत्रों हेतु किया गया है।
3. स्पेशल ड्यूटी ग्रुप (एसडीजी): सीआरपीएफ की एक विशिष्ट यूनिट है, जिसका कार्य एसपीजी संरक्षित जगहों पर सशस्त्र सुरक्षा प्रदान करना है। इस ग्रुप में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की विभिन्न यूनिटों के कार्मिकों को शामिल किया गया है। इसके सदस्यों को परमाणु एवं जैव रासायनिक हमलों का मुकाबला करने, बचाव कार्य तथा व्यवहार प्रबंधन में भी प्रशिक्षित किया जाता है। पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (पीडीजी) सीआरपीएफ की एक विशिष्ट यूनिट है, जिसका कार्य संसद भवन को सशस्त्र सुरक्षा प्रदान करना है। सन् 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद इसकी रचना की गईं। इस ग्रुप में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की विभिन्न यूनिटों के 1540 कार्मिक शामिल हैं। इसके सदस्यों को परमाणु एवं जैव रासायनिक हमलों का मुकाबला करने, बचाव कार्य तथा व्यवहार प्रबंधन में भी प्रशिक्षित किया जाता है।
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी)
आईटीबीपी एक सीमा रक्षक बल है। यह बल गृह मंत्रालय (एमएचए) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। चीन के तिब्बतीय स्वायत्त क्षेत्र के साथ लगी भारतीय सीमा की रखवाली के लिए 24 अक्टूबर, 1962, को आईटीबीपी की स्थापना की गईं। सन् 1962 में भारत-चीन संघर्ष के मद्देनज़र 4 सर्विस बटालियनों के साथ इसकी शुरुआत की गई थी। फिलहाल, 4 विशिष्ट बटालियनों एवं 77,022 की जनशक्ति के साथ इसकी कुल 49 बटालियने हैं। वर्तमान में आईटीबीपी की बटालियनें, लद्दाख के काराकोरम दर्रे से अरुणाचल प्रदेश के दिफू ला तक 3488 किमी लंबी भारत-चीन सीमाओं की रखवाली कर रही हैं। मानवयुक्त सीमा चौकियाँ, सीमा कं पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टर में 21,000 फुट तक की ऊंचाई पर स्थित हैं। आईटीबीपी, एक माउंटेन ट्रेंड बल है तथा इसके अधिकांश अधिकारी एवं कार्मिक व्यावसायिक तौर पर पर्वतारोही व स्कीयर हैं।
> आईटीबीपी एक बहु-आयामी बल है जिसके मुख्यतः 5 उत्तरदायित्व हैं
उत्तरी सीमा की निगरानी, सीमा अतिक्रमण का पता लगाना और उसकी रोकथाम तथा स्थानीय जनता में सुरक्षा की भावना मजबूत करना ।
गैर-कानूनी आप्रवास तथा सीमापार से तस्करी एवं अपराधों को रोकना।
संवेदनशील संस्थानों और संकटग्रस्त अति विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा ।
किसी भी क्षेत्र में शांति भंग होने की स्थिति में कानून-व्यवस्था स्थापित करना ।
देश में शांति कायम रखना।
आईटीबीपी द्वारा संचालित इन सीमा चौकियों को उच्च तंगुता के खतरों और सामान्यत: शून्य से 40 डिग्री सेल्सीयस से नीचे के तापमान की अत्यधिक सर्दी के अतिरिक्त बर्फीली आंधियों. हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है।
हाल ही में आईटीबीपी को आपदा प्रबंधन का उत्तरदायित्व भी दिया गया है। हिमालय में आने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा के दौरान पहली प्रतिक्रिया करने का दायित्व होने के कारण आईटीबीपी ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं पूर्वोत्तर में 06 ( अब 08) क्षेत्रीय प्रतिक्रिया केन्द्र स्थापित किए हैं। साथ ही इसने देश के अन्य हिस्सों तथा अपने जिम्मेदारी के इलाके में घटित विभिन्न आपदिक परिस्थितियों में कई बचाव एवं राहत कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। आईटीबीपी ने किसी भी रेडियोलॉजिकल, रासायनिक व जैविक आपातकालीन स्थितियों से निपटने सहित आपदा प्रबंधन में अपने 1032 कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।
आईटीबीपी की कमांडो यूनिटें, अफगानिस्तान में दूतावास एवं भारतीय वाणिज्य दूतावास सुरक्षा प्रदान करती हैं। आईटीबीपी 1981 से वार्षिक कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों को सुरक्षा भी प्रदान कर रहा है। साथ ही यह यात्रियों के लिए संचार, सुरक्षा और चिकित्सा की भी समुचित व्यवस्था करता है।
हिमालय की पर्वत श्रृंखला में तैनात आईटीबीपी ने पहाड़ों में बचाव एवं राहत कार्यों में विशेषज्ञता विकसित की है, जिसके लिए बहुत ही उच्च स्तर का विशिष्ट कौशल अपरिहार्य है। प्राकृतिक आपदा के समय यह बल, बचाव व राहत प्रदान करने में हमेशा अव्वल रहता है। सन् 2013 में उत्तराखंड में राहत अभियान के दौरान आईटीबीपी ने एक अहम भूमिका निभाईं आईटीबीपी, सुदूर सीमा, आतंकवादग्रस्ति क्षेत्रों एवं दूरदराज के गांवों में सिविक एक्शन के तहत नागरिक आबादी के लिए मुफ्त चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता देखभाल इत्यादि के बारे में बड़ी संख्या में कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ)
सीआईएसएफ की स्थापना सन् 1969 में हुई, यह 59 घरेलू व अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों तथा 86 औद्योगिक उपक्रमों को अग्नि सुरक्षा कवर सहित कुल 307 औद्योगिक इकाइयों को सुरक्षा कवर प्रदान करता है। यह औद्योगिक क्षेत्रों, जैसे- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, अंतरिक्ष प्रतिष्ठानों, टकसालों, तेल क्षेत्रों व रिफाइनरियों, प्रमुख बंदरगाहों, दिल्ली मेट्रो, भारी वास्तुविद्या, इस्पात संयंत्रों, बैराजों, उर्वरक इकाइयों, हवाई अड्डों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के स्वामित्व व नियंत्रणाधीन पनबिजली/ताप विद्युत संयंत्रों तथा भारतीय मुद्रा के उत्पादन संबंधी टकसालों इत्यादि की सुरक्षा करता है। इन चार दशकों के अंतराल में इस बल में कई गुना वृद्धि हुई है। 31 दिसम्बर, 2012, तक इसकी जनशक्ति बढ़कर 1,33,762 कार्मिक हो गई। सीआईएसएफ गृह मंत्रालय (एमएचए) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है । वैश्वीकरण और अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के इस दौर में सीआईएसएफ देश की एक प्रमुख व बहुआयामी सुरक्षा एजेंसी के तौर पर आतंकवाद एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों सहित देश के विविधतापूर्ण क्षेत्रों में स्थापित किए गए महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे/प्रतिष्ठानों को सुरक्षा प्रदान करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।
भारतीय संसद द्वारा 25 फरवरी, 2009 को सीआईएसएफ (संशोधन) अधिनियम, 2008 पारित किया गया, जिसमें यह प्रावधान रखा गया कि देश भर के निजी एवं सहकारी प्रतिष्ठान भी शुल्कीय आधार पर सीआईएसएफ से सुरक्षा प्राप्त कर सकेंगे। इस अधिनियम के तहत विदेशों में भारतीय मिशन की सुरक्षा एवं संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में हिस्सेदारी के लिए सीआईएसएफ की तैनाती का भी प्रावधान रखा गया है। “
वर्ष 2009 से सीआईएसएफ, इंफोसिस को उनके बंगलुरु कैम्पस की सुरक्षा प्रदान कर रहा है। इंफोसिस मैसूर, रिलांयस रिफायनरी जामनगर तथा दिल्ली मेट्रो, एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाईन और कुछ ऐसे नवीनतम निजी संस्थान हैं, जो सीआईएसएफ से सुरक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी)
एसएसबी एक सीमा रक्षा बल है। एसएसबी गृह मंत्रालय (एमएचए) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। नेपाल और भूटान के साथ लगी भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा की रक्षा करना इसका मूल कार्य है। पूर्व में इस बल को ‘विशेष सेवा ब्यूरो’ के रूप में जाना जाता था।
एसएसबी (विशेष सेवा ब्यूरो) को भारत-चीन युद्ध के मद्देनजर सन् 1963 के शुरू में स्थापित किया गया था। इस बल का प्राथमिक कार्य सीमावासियों में राष्ट्र भाव को जागृत करना और तात्कालीन नेफा, उत्तरी असम (असम राज्य के उत्तरी क्षेत्र), उत्तर बंगाल (पश्चिम बंगाल राज्य के उत्तरी क्षेत्र) तथा उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश व लद्दाख क्षेत्र के निवासियों में प्रशिक्षण, उन्नति, कल्याणकारी गतिविधियों एवं प्रेरणा की सतत् प्रक्रिया के माध्यम से प्रतिरोध के लिए उनकी क्षमताओं का विकास करना था।
अपनी नई भूमिका के मद्देनजर सन् 2001 में एसएसबी को गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में रखते हुए ‘सशस्त्र सीमा बल’ के रूप में पुनर्नामित किया गया। कारगिल युद्ध के बाद एक सीमा पर एक बल’ की अवधारणा को अपनाते हुए ऐसा किया गया । सन् 2001 में एसएसबी को 1751 कि.मी. लंबी भारत-नेपाल सीमा की रखवाली का जिम्मा सौंपा गया। मार्च 2004 में, एसएसबी को सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम एवं अरुणाचल प्रदेश से लगी 699 कि.मी. भारत – भूटान सीमा की सुरक्षा का जिम्मा भी सौंपा गया। एसएसबी, पहला ऐसा सीमा रक्षा दल है जिसने महिलाओं को भर्ती करते हुए बटालियन खड़ी करने का निर्णय लिया।
एसएसबी, जम्मू और कश्मीर में काउंटर इंसरजेन्सी ऑपरेशन तथा झारखंड व बिहार में नक्सल विरोधी अभियानों में भी तैनात है। यह बल भारत के विभिन्न हिस्सों में आंतरिक सुरक्षा ड्यूटी, जैसे-चुनाव ड्यूटी तथा कानून व व्यवस्था कायम करने संबंधी ड्यूटी को भी बखूबी अंजाम दे रहा है।
> एसएसबी की ड्यूटी में निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
सीमावर्ती क्षेत्र के निवासियों में सुरक्षा की भावना मजबूत करना ।
गैर-कानूनी आप्रवास तथा सीमापार से तस्करी एवं अपराधों को रोकना और भारत के राज्य क्षेत्र में गैर-कानूनी प्रवेश की रोकथाम |
तस्करी एवं अन्य अवैध गतिविधियों की रोकथाम
● राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी)
संघीय आकस्मिकता तैनाती बल के तौर पर सन् 1984 में स्थापित एनएसजी, भारत का एक ऐसा विशेष बल है जिसे शुरू में आतंक विरोधी गतिविधियों की रोकथाम के लिए खड़ा किया गया था और जिसे सन् 1986 में संसद द्वारा परित ‘राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अधिनियम के तहत कैबिनेट सचिवालय के अंतर्गत खड़ा किया गया था। यह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल स्ट्रक्चर के अंतर्गत कार्य करता है। एनएसजी, शत-प्रतिशत प्रतिनियुक्ति पर आधारित बल है जिसमें सेना, सशस्त्र पुलिस बलों, राज्य पुलिस तथा अन्य संगठनों से कार्मिक प्रतिनियुक्ति पर आते हैं। इस बल का मूल कार्य विशिष्ट परिस्थितियों में आतंकी खतरे को बेअसर करना तथा अपहरण व बंधक बचाव अभियानों में सक्रिय भूमिका अदा करना है। एनएसजी कमांडो, अत्यंत जोखिम भरे कार्यों, जैसे-अपहरण एवं आतंक विरोधी अभियान इत्यादि को सफलतापूर्वक अंजाम देने में प्रशिक्षित होते हैं। इन्हें जोखिमग्रस्त अति विशिष्ट व्यक्तियों को मोबाइल सुरक्षा संरक्षण प्रदान करने का जिम्मा भी सौपा जाता है। राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा देश के सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने के नापाक मंसूबों को नाकाम करते हुए ये भारत की एकता एवं अक्षुणता की रक्षा करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नवीनतम तकनीक एवं अत्याधुनिक हत्थियारों का इस्तेमाल करते हुए आतंकवादी संगठनों पर बढ़त बनाने वाले एनएसजी को उत्कृष्ट विशेष अभियान यूनिट के तौर पर भी जाना जाता है। एनएसजी की कमान भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी द्वारा संभाली जाती है तथा यह बल गृह मंत्रालय (एमएचए) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
> एनएसजी के विशिष्ट लक्ष्यों में शामिल हैं:
आतंकवादी खतरों का निराकरण |
हवा में और जमीन पर अपहरण की स्थितियों से निपटना ।
बम निरोधक कार्यवाही (खोज, पता लगाना और आईईडी का निराकरण ) ।
विशिष्ट परिस्थितियों में आतंकियों से लड़ना और उन्हें निष्क्रिय करना।
बंधकों को छुड़ाना।
26 नवम्बर, 2008, को मुम्बई में हुए आतंकी हमलों के दौरान एनएसजी ने ब्लैक टोरेंडो एवं साईक्लोन ऑपरेशन के जरिए आतंकियों को नेस्तनाबूद करते हुए बंधकों को छुड़ाया। इस घटना के बाद मुम्बई, हैदराबाद, चैन्नई एवं कोलकाता में चार नए एनसीजी केन्द्रों की स्थापना की गई है।
अक्सर राज्यों के अनुरोध पर देश के विभिन्न हिस्सों में हुए विस्फोटों का अध्ययन करने के लिए एनएसजी ने मानेसर में एक राष्ट्रीय बम डाटा केन्द्र स्थापित किया हुआ है। यह सुरक्षा बलों के उपयोग और संदर्भ हेतु विस्फोटक एवं विस्फोट की घटनाओं पर एक डाटा बैंक रखता है।
विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी)
एसपीजी भारत सरकार की कार्यकारी संरक्षण संस्था है। यह भारत के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों एवं उनके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है। यह बल कैबिनेट सचिवालय के नियंत्रण में कार्य करता है ।
इस बल को श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में स्थापित किया गया। यह संरक्षितों को हर जगह एवं हर अवसर पर थल, जल व नभ में आसन्न (Close Proximate) सुरक्षा प्रदान करता है। ये संरक्षितों के परिवार के सदस्यों को भी सुरक्षा घेरे के माध्यम से आसन्न सुरक्षा प्रदान करते हैं।
रेलवे सुरक्षा बल
भारतीय रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ), रेल संपत्ति की रक्षा करने के लिए एक भारतीय केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है। आरपीएफ की जनशक्ति लगभग 65000 है।
> रेलवे सुरक्षा बल के कर्तव्यों में शामिल है:
रेलों की सुगम आवाजाही के लिए हर सम्भव प्रयास करना ।
रेलवे सम्पत्ति का संरक्षण और सुरक्षा |
यात्रियों, उनके सामान एवं यात्री क्षेत्र का संरक्षण और सुरक्षा |
मूल रूप से इस बल को ‘प्रहरी व निगहबान’ कहा जाता था और यह रेलवे प्रशासन के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता था। बाद में इस बल को ‘रेलवे सुरक्षा बल’ के तौर पर नामित किया गया और इसके सदस्यों को रेलवे संपत्ति पर अवैध कब्जा करने वाले व्यक्तियों को बिना वारंट के गिरफ्तारी करने की शक्तियाँ प्रदान की गईं ‘रेलवे संपत्ति’ शब्द में केवल रेलवे प्रशासन के स्वामित्व वाली संपत्ति है। समय के साथ-साथ ‘रेलवे संपत्ति’ की परिभाषा में विस्तार करते हुए ऐसी सम्पत्तियों जो रेलवे के स्वामित्व अथवा अधिकार अथवा सुपुर्द हैं, को भी इसमें शामिल किया गया। अपराधियों को रेलवे संपत्ति (अवैध कब्जा) अधिनियम, 1966 जिसे संक्षेप में आरपी (यूपी) अधिनियम 1966 के रूप में भी जाना जाता है, के अंतर्गत हिरासत में लिया जाता है। अब रेलवे सुरक्षा बल के पास एक अलग प्रशासनिक व्यवस्था है जो रेलवे प्रशासन के सामान्य पर्यवेक्षण में कार्य करती है
केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल (सीपीएमएफ) –
वर्गीकरण के पश्चात् असम राईफल्स एवं भारतीय तटरक्षक बल, मुख्य केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल हैं। असम राईफल्सः असम राईफल्स को प्रेम भाव से ‘नार्थ-ईस्ट के लोगों का मित्र’ भी कहा जाता है। यह देश का सबसे पुराना अर्द्ध सैनिक बल है जिसका मुख्यालय शिलांग में है। यह बल पूर्ण तौर पर पूर्वोत्तर में तैनात है तथा पूर्वोत्तर में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने और भारत-म्यांमार सीमा की रखवाली की दोहरी भूमिका निभा रहा है। इस बल का नेतृत्व सेना के अधिकारियों द्वारा किया जाता है। यह गृह मंत्रालय के अधीन रहते हुए भारतीय सैन्य बलों की सहायता करता है। यह गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में रहते हुए, आप्रेशनल सेना के अंतर्गत कार्य करता है। भारतीय तटरक्षक बलः इसका ध्येय भारत के जल क्षेत्र व उससे सटे क्षेत्र सहित विशेष आर्थिक क्षेत्र पर समुद्री कानून का प्रवर्तन करते हुए भारत के समुद्री हितों का संरक्षण करना है। यह रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है । सन् 2008 में मुम्बई में हुए हमलों के बाद सरकार ने भारतीय तटरक्षक बल, सम्पत्ति और बुनियादी सुविधाओं का विस्तार करने के लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। 2010 और 2019 के बीच बल की जनशक्ति, पोत एवं विमान तीन गुना होने की उम्मीद है।
सुरक्षा संस्थाएं तथा उनके अधिदेश
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा वास्तुकला
केंद्रीय सुरक्षा समिति
यह प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर कार्यकारी कार्यवाही के लिए सर्वोच्च निकाय है, जिसमें सामान्य रूप से रक्षा, विदेश, गृह और वित्त मंत्री भी शामिल हैं। यह राजनीतिक सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार है।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद
यह भारत का शीर्ष कार्यकारी निकाय है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों के मामलों पर प्रधानमंत्री कार्यालय को सलाह देता है। यह नवंबर, 1998 में स्थापित किया गया था। यह तीन स्तरीय संगठनात्मक संरचना है जिसमें रणनीतिक नीति समूह (एसपीजी), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनएससीएस) शामिल हैं। नवंबर 2018 में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को एसपीजी का अध्यक्ष बनाया गया है। ” एनएससी और सीसीएस दोनों की साझा सदस्यता है, जो निर्णय लेने और कार्यान्वयन में आसान मदद करती है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, एनएससी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, ‘एनएसए’ राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर प्रधानमंत्री कार्यालय को सलाह देते हैं।
आसूचना ब्यूरो (आईबी)
भारत की आंतरिक खुफिया एजेंसी कथित तौर पर दुनिया की सबसे पुरानी खुफिया एजेंसी है। सन् 1947 में इसे गृह मंत्रालय के अधीन केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के तौर पर नई भूमिका दी गईं।
अरविन्द कुमार आईबी के वर्तमान निदेशक हैं, जिन्होनें 26 जून 2019 को कार्यभार संभाला। ब्यूरो में कानून प्रवर्तन एजेंसियों से, ज्यादातर भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से एवं सेना से कर्मचारियों को शामिल किया जाता है। खुफिया ब्यूरो का डायरेक्टर (डीआईबी) भारतीय पुलिस सेवा का एक अधिकारी होता है। सन् 1947 की आजादी से पूर्व सैन्य खुफिया संगठनों को सौंपे गए कार्यों को, सन् 1951 में हिम्मत सिंह समिति (जिसे उत्तर एवं पूर्वोत्तर सीमा समिति के नाम से भी जाना जाता है) की सिफारिशों की पालना स्वरूप, आईबी को घरेलू खुफिया जिम्मेदारियों के अलावा विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में खुफिया सूचना संग्रह करने का कार्य सौंपा जाता है। भारत के अंदर एवं पड़ोसी देशों में होने वाली सभी प्रकार की मानव गतिविधियों का खुफिया ब्यूरों के कर्तव्य अधिकारपत्र में निर्धारण किया गया है। आईबी को भारत के भीतर से खुफिया सूचना जुटाने के साथ-साथ जवाबी खुफिया एवं आतंकवाद विरोधी कार्यों को करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
आसूचना ब्यूरो को कथित तौर पर बहुत ख्याति प्राप्त है, लेकिन आईबी द्वारा किए गए अभियान शायद ही कभी अवर्गीकृत हो पाते हैं। इस संस्था के क्रियाकलापों में अति गोपनीयता होने के कारण इसके और इसकी गतिविधियों के बारे में बहुत ही कम ठोस जानकारी उपलब्ध है।
शुरुआत में आईबी, भारत की आंतरिक और बाह्य खुफिया संस्था थी। सन् 1962 में भारत-चीन युद्ध और तत्पश्चात सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध के बाद सन् 1968 में इसे द्विभाजित करते हुए केवल आंतरिक खुफिया सूचना एकत्र करने का कार्य सौंपा गया।
आतंकवाद का सामना करने के लिए आईबी प्रमुख समन्वय संस्था है। यह पूरे देश में विभिन्न राज्य पुलिसों के साथ समन्वय स्थापित करती है।
आईबी को आतंकवाद का सामना करने में मिश्रित सफलता प्राप्त हुई है। 2008 की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईबी आतंकी मॉड्यूल को खत्म करने में कामयाब हुआ है। इसने हैदराबाद विस्फोटों से पहले पुलिस को सतर्क किया था तथा नवम्बर 2008 में हुए मुंबई हमलों से पहले समुद्र के माध्यम से मुंबई पर होने वाले संभावित हमले की भी आईबी ने कई बार चेतावनी दी थी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)
भारत में आतंक का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित एक संघीय संस्था है। यह केंद्रीय आतंकवाद कानून प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्य करती है। यह एजेंसी राज्यों की विशेष अनुमति के बिना राज्य भर में आतंक संबंधी अपराधों से निपटने के लिए अधिकृत है। यह संस्था 31 दिसम्बर, 2008 को संसद द्वारा पारित ‘राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008’ के. लागू होने के साथ अस्तित्व में आई।
सन् 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमलों के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक केंद्रीय एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई और एनआईए का गठन हुआ। एनआईए के संस्थापक महानिदेशक श्री राधा विनोद राजू थे, जो 31 जनवरी, 2010 तक सेवा में रहे। उनको मार्च 2013 में भारत के मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया और शरद कुमार को एनआईए के चीफ के रूप में नियुक्त किया गया।
एनआईए अधिनियम की अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों के तहत इस संस्था को आतंकवाद से जुड़े अपराधों के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार दिया गया है। एक राज्य सरकार, किसी भी केस की जांच एनआईए को सौपने का अनुरोध केन्द्र सरकार से कर सकती है, बशर्ते वह अपराध एनआईए अधिनियम की अनुसूची में विनिर्दिष्ट अपराधों की श्रेणी में दर्ज किया गया हो। केन्द्र सरकार भी एनआईए को भारत में कहीं पर भी अनुसूचित अपराधों की जांच करने के आदेश दे सकती है। एनआईए के अधिकारियों, जो कि भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय राजस्व सेवा से होते हैं, को वे सभी प्रकार की शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं जो कि किसी भी अपराध की जांच के सिलसिले में किसी पुलिस अधिकारी के पास होने चाहिए। हाल ही में एनआईए को इंडियन मुजाहिदीन के एक मॉड्यूल को खत्म करने और उसके प्रमुख पदाधिकारियों को गिरफ्तार करने में बड़ी सफलता हासिल हुई है।
बहु संख्या केन्द्र [ मल्टी एजेंसी सेंटर ( मैक)]
आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मैक एक एकीकृत संस्था है जिसका अधिदेश प्रतिदिन आतंकवाद से संबंधित सूचनाओं को सांझा करना है।
खुफिया प्रयासों को व्यवस्थित बनाने के लिए विभिन्न सुरक्षा संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल कर दिल्ली में ‘बहु संस्था केंद्र (मैक) ‘ तथा विभिन्न राज्यों में ‘सहायक बहु संस्था केंद्र (एसमैक) स्थापित किए गए हैं। बाद में भारत के केंद्रीय गृह मंत्री ने सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और 31 दिसम्बर, 2008 को मल्टी एजेंसी सेंटर (कार्यों, शक्तियों और कर्तव्यों) आदेश, 2008 जारी किया। एमएसी-एसएमएसी 2002 से कार्य कर रही हैं और 2009 से इसने पुनर्गठन के बाद नए सिरे से काम करना शुरू कर दिया है। उक्त आदेश की अनुवर्ती कार्यवाही में ‘मल्टी एजेंसी सेंटर’ (मैक), नई दिल्ली’, राज्य स्तर पर ‘सहायक मल्टी एजेंसी सेंटर (एसमैक) एवं अन्य सुरक्षा संस्थाओं के मुख्यालयों में 24×7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए हैं ताकि खुफिया सूचना को समय पर सांझा करते हुए खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जा सके। प्रत्येक कार्य दिवस में इन 25 संस्थाओं के नोडल अधिकारियों की बैठकें होती हैं। वर्तमान में मैक-एसमैक नेटवर्क के 416 नॉड्स देश भर में फैले हुए हैं जो नई दिल्ली स्थित मैक मुख्यालय से जुड़े हैं। इनमें राज्य की राजधानियों में स्थित 31 एसएमएसी मुख्यालय और 32 एसएसबी शामिल हैं। (अध्याय-2 में ‘मैक’ के बारे में कुछ और जानकारी दी गई है।)
राष्ट्रीय आसूचना ग्रिड (नेटग्रिड )
राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड अथवा नेटग्रिड एक एकीकृत खुफिया ग्रिड है, जो खुफिया सूचना के व्यापक स्वरूप को एकत्र करने के लिए भारत सरकार के कई विभागों एवं मंत्रालयों के डाटाबेस से जुड़ा होता है और जिसे खुफिया एजेंसियों द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है । सन् 2008 में मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के बाद पहली बार इसे प्रस्तावित किया गया था। 2013 से इसने काम करना शुरू करना था जोकि अभी तक शुरू नहीं हुआ है।
नेटग्रिड, आसूचना सूचना साझा करने का एक नेटवर्क है जो भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियों और मंत्रालयों के स्टैंड-अलोन डाटाबेस से डाटा का मिलान करता है। यह आतंकवाद का सामना करने का एक उपाय है, जो सरकार के डाटाबेस से टैक्स और बैंक खाते के विवरण, क्रेडिट कार्ड के लेन-देन, वीजा और अप्रवास के रिकार्ड तथा रेल एवं हवाई यात्रा के ब्यौरे सहित बहुत-सी जानकारी एकत्रित व मिलान करता है। यह संयुक्त डाटा 11 केंद्रीय एजेंसियों अर्थात रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, इंटेलिजेंस ब्यूरो, केंद्रीय जांच ब्यूरो, वित्तीय आसूचना इकाई, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड, सेंट्रल एक्साइज इंटेलिजेंस महानिदेशालय को उपलब्ध कराया जाता है।
नेटग्रिड, सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक ऐसा अनिवार्य उपकरण है जो उन्हें देश के विभिन्न संगठनों और सेवाओं के उपलब्ध डाटा से आतंकियों का पता लगाने और उनके बारे में प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने में सक्षम बनाता है। यह आतंकवादियों को पहचानने, पकड़ने, उन पर मुकदमा चलाने तथा आतंकी भूखंडों को हथियाने में मदद करता है।
राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन
राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अंतर्गत एक तकनीकी आसूचना एजेंसी है। इसकी स्थापना 2004 में की गई थी। इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिप्टोलॉजी रिसर्च एंड डेवलपमेंट (एनआईसीआरडी) सम्मिलित हैं, जो एशिया में अपनी तरह का पहला संस्थान है। (
राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआईसीआरडी) का मूल नाम ‘राष्ट्रीय तकनीकी सुविधा संगठन (एनटीआफओ)’ था, यह एक अत्यधिक विशिष्ट तकनीकी आसूचना एकत्रण एजेंसी है। यद्यपि यह एजेंसी विभिन्न आसूचना एजेंसियों, यहां तक कि भारतीय सशस्त्र बलों सहित इनके तकनीकी प्रकोष्ठों को प्रभावित नहीं करती है, यह आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामलों में अन्य एजेंसियों को तकनीकी आसूचना प्रदान करने हेतु सुपर फीडर एजेंसी के रूप में कार्य करती है। यह एजेंसी भारत की बाह्य सूचना एजेंसी, अनुसंधान और विश्लेषण स्कंध (आरएडब्ल्यू) के नियंत्रण में कार्य करती है, यद्यपि यह कुछ हद तक स्वायत्त है । तत्कालीन उपप्रधानमंत्री एल.के. अडवाणी की अध्यक्षता में मंत्री समूह ने आसूचना एकत्रण हेतु अत्याधुनिक तकनीकी स्कंध के रूप में एनटीएफओ के गठन की सिफारिश की थी। जब यह जीओएम रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो सुरक्षा कारणों से इसने अपनी सिफारिशों और अन्य मामलों को सार्वजनिक नहीं किया गया। संस्था राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे हेतु अहम उपग्रह निगरानी, प्रादेशिक निगरानी, इंटरनेट निगरानी सहित आधुनिक निगरानी कार्य करती है। एनटीआरओ को पूरी तरह से काम प्रारंभ करने के लिए विश्व की विशिष्ट एजेंसियों से विभिन्न आधुनिक उपकरणों की खरीद हेतु 700 करोड़ रुपये (100 मिलियन यूएस डालर) की आवश्यकता होगी। इसके अधिकारियों ने विभिन्न देशों की पहचान की है, जहां से ऐसे उपकरण (गैजेट) खरीदे जा सकते हैं, परन्तु सुरक्षा और अन्य प्रभावों के कारण इन्हें प्रकट करने से इंकार किया है। सरकार इस दिशा में 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद से ही काम कर रही है, जब सुब्रह्मण्यम समिति रिपोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे में आसूचना एकत्रण में कमियों को उजागर किया था। स्रोत बताते हैं कि राष्ट्रीय तकनीकी सुविधा संगठन के गठन हेतु रूपरेखा डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा अक्तूबर 2001 में तैयार की गई थी, जब वे प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार थे । इसे बाद में आंतरिक सुरक्षा मामलों पर मंत्री समूह की रिपोर्ट में उल्लिखित किया गया।
कार्य
यह एजेंसी नागर विमानन और सूदूर अन्वेषण, डाटा एकत्रण और प्रसंस्करण, साइबर सुरक्षा, गुप्त विज्ञान प्रणालियाँ, सामरिक हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकास और सामरिक निगरानी में प्रौद्योगिकी क्षमताओं को विकसित करती है।
राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के नियंत्रणाधीन राष्ट्रीय अहम अवसंरचना संरक्षण केन्द्र नामक एजेंसी का गठन सेंसरों और प्लेटफार्मों जिसमें उपग्रह, पनडुब्बियाँ, ड्रोन, वीएसएटीटर्मिनल लोकेटर और फाइबर ऑप्टिक केवल नोडल टेप बिन्दुओं से एकत्रित आसूचना को अहम अवसंरचना और अन्य महत्त्वपूर्ण स्थापनाओं हेतु खतरे के आंकलन की निगरानी और इंटरसेप्ट करने हेतु गठित किया गया है।
एनटीआरओ के पास दो रडार इमेजिंग उपग्रहों – आरआईएसएटी-4 और आरआईएसएटी-2 सहित प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह (टीईएस), कार्टोसेट-2A और कार्टोसेट 2B से डाटा के लिए भी अधिगम है।
वित्तीय आसूचना इकाई-भारत (एफआईयू- आईएनडी )
एफआईयू-आईएनडी की स्थापना भारत सरकार द्वारा ‘कार्यालय ज्ञापन 18 नवम्बर, 2004’ द्वारा एक केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में संदेहास्पद वित्तीय लेन-देनों से संबंधी सूचना प्राप्त प्रसंस्करण विश्लेषण और प्रसार हेतु उत्तरदायी एजेंसी के रूप में की गई थी। एफआईयू- आईएनडी धन आशोधन और अन्य संबंधित अपराधों के विरुद्ध किए जा रहे वैश्विक प्रयासों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, जांच और प्रवर्तन एजेन्सियों के प्रयासों हेतु समन्वय और सुदृढ़ीकरण हेतु भी उत्तरदायी है। एफआईयू-आईएनडी एक स्वायत्त निकाय है जो वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक आसूचना परिषद (ईआईसी) को सीधे रिपोर्ट करता है।
कार्य
एफआईयू-आईएनडी का मुख्य कार्य नकद / संदेहास्पद लेन-देन रिपोर्टों को प्राप्त करना, इनका विश्लेषण करना और यथा उपयुक्त महत्त्वपूर्ण वित्तीय सूचना को आसूचना / प्रवर्तन एजेन्सियों और विनियामक प्राधिकारियों को सूचित करना है। एफआईयू- आईएनडी के मुख्य कार्य हैं।
1. सूचना एकत्रण: यह विभिन्न रिपोर्टिंग उपक्रमों से नकद लेन-देन रिपोर्टों (सीटीआर), सीमा पर तार – अंतरण रिपोर्टों (सीबीडब्ल्यूटीआर), अचल संपत्ति की खरीद या बिक्री संबंधी रिपोर्ट (आईपीआर), और संदेहास्पद लेन-देन रिपोर्ट (एसटीआर) प्राप्त करने हेतु केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
2. सूचना विश्लेषण प्राप्त सूचना का विश्लेषण करना ताकि लेन-देन के पैटनों को उजागर कर धन आशोधन और संबंधित अपराधों संबंधी संदेह सुझाया जा सके।
3. सूचना बांटना: राष्ट्रीय आसूचना/ विधि प्रवर्तन एजेंसियों, राष्ट्रीय विनियामक प्राधिकरणों और विदेशी वित्तीय आसूचना इकाइयों साथ सूचना बांटना।
4. केंद्रीय कोष के रूप में कार्य करना: रिपोर्टिंग उपक्रमों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर नकद लेन-देनों और संदेहास्पद लेन-देनों संबंधी राष्ट्रीय डाटाबेस स्थापित और अनुरक्षित करना ।
5. समन्वयः धन आशोधन और संबंधित अपराधों को रोकने हेतु प्रभावी, राष्ट्रीय क्षेत्रीय और वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से वित्तीय सूचना समन्वय और संग्रहण सुदृढ़ीकरण और इसे बांटना ।
6. अनुसंधान और विश्लेषण: धन आशोधन प्रवृत्तियों मुख्य प्रकारों और विकास संबंधी सामरिक मुख्य क्षेत्रों की निगरानी और पहचान।
राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई)
यह भारतीय आसूचना एजेंसी है। यह निदेशालय केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा चलाया जाता है। यह संगठन अन्य आसूचना एजेंसियों जैसे आईबी या राज्य पुलिस संगठन, की तुलना में काफी कम स्टाफ संख्या के साथ काम करता है । यद्यपि अपने प्रारंभिक दिनों में यह सोने के अवैध व्यापार, मादक पदार्थों और आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए प्रतिबद्ध था। डीआरआई आवधिक आधार पर जाली भारतीय मुद्रा नोट (एफआईसीएन) जब्त करता है और मई 2012 में इसने 100 मिलियन रुपये की 6.6 किलोग्राम हिरोइन जब्त की थी, और चार लोगों को गिरफ्तार किया था।
> डीआरआई कर्तव्य चार्टर
विनिषिद्ध वस्तुओं, मादक पदार्थों का अवैध व्यापार, कम बिल बनाना इत्यादि संबंधी सूचना का गोपनीय स्रोतों सहित भारत और विदेश के स्रोतों द्वारा आसूचना एकत्रण।
जहां आवश्यक हो ऐसी आसूचना पर कार्यवाही और कार्य करने हेतु फील्ड कार्यालयों को ऐसी सूचना का प्रसार करना और विश्लेषण करना ।
महत्त्वपूर्ण जब्तियों और जांच मामलों पर नजर रखना । निदेशालय द्वारा अपेक्षित कार्यवाही कर सम्बंद्ध होना या जांच अपने हाथों में लेना ।
महत्त्वपूर्ण जांच/अभियोजन मामलों में मार्ग निर्देशन | तस्करी – रोधी मामलों पर विदेशों, भारतीय निशानों और प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संपर्क बनाए रखना ।
सीबीआई और इनके माध्यम से इंटरपोल के साथ संबंध बनाए एवं रखना उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों को आयकर अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही हेतु आयकर विभाग को संदर्भित करना ।
तस्करी प्रवृत्तियों पर नजर रखने हेतु जब्तियों और मूल्यों/दरों इत्यादि के आंकड़े रखना और वित्त मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों को अपेक्षित जानकारी प्रदान करना ।
तस्करी रोकने हेतु विधि और प्रक्रियाओं में कमियों का अध्ययन करना तथा उसका उपचार सुझाना।
स्वापक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी)
भारत सरकार ने 17 मार्च, 1986 को स्वापक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की । ब्यूरो, केन्द्र सरकार के परिवेक्षण और नियंत्रण में कार्य करता है, और निम्नांकित के संबंध में उपाय करने हेतु केन्द्र सरकार की शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करता है:
एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के प्रवर्तन उपबंधों के संबंध में विद्यमान एनडीपीएस अधिनियम, सीमा शुल्क, ड्रग्स और कॉस्मेटिक अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न कार्यालयों, राज्य सरकारों और अन्य प्राधिकारियों द्वारा कार्यवाही का समन्वय।
वर्तमान या भारत द्वारा अभिपुष्ट की जाने वाली विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों और नयाचार के अंतर्गत अवैध व्यापार के विरुद्ध बचाव उपायों का कार्यान्वयन और दायित्व
इन ड्रग्स और पदार्थों के अवैध व्यापार को रोकने और शमन हेतु समन्वय और वैश्विक कार्यवाही की विदेशों में संबंधित प्राधिकारियों और संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सुविधा में सहायता करना ।
ड्रग व्यसन से संबंधित मामलों में अन्य संबंधित मंत्रालयों, विभागों और संगठनों द्वारा की गई कार्यवाही का समन्वय ।
14 नवम्बर, 1985 से स्वापक ड्रग्स और नशीले पदार्थ अधिनियम, 1985 अस्तित्व में आया, जिसके तहत अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार की शक्तियों और कार्यों के प्रयोग के प्रयोजन हेतु इस केंद्रीय अधिकरण के गठन हेतु उपबंध किया गया।
स्वापक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो शीर्ष समन्वय एजेंसी है। यह जोनों और उप-जोनों के माध्यम से प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्य करती है। इसके जोन अहमदाबद, बंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, दिल्ली, गुवाहाटी, इंदौर, जम्मू, जोधपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुम्बई, और पटना में स्थित हैं। इसके उप-जोन अजमेर, अमृतसर, भुवनेश्वर, देहरादून, गोआ, हैदराबाद, इम्फाल, मंदसौर, मदुरै, मण्डी, रायपुर, रांची और तिरुवनंतपुरम में स्थित हैं। जोन और उप-जोन स्वापक पदार्थों और नशीले पदार्थों की जब्ती से संबंधित आंकड़े एकत्रित करना और विश्लेषण करना; प्रवृत्तियों, कार्य प्रणाली अध्ययन करना, आसूचना एकत्रित करना और इनका प्रसार करना और सीमा शुल्क, राज्य पुलिस और अन्य विधि-प्रवर्तन एजेंसियों के साथ निकट समन्वय में काम करना ।
स्वापक पदार्थ और नशीले पदार्थों संबंधी राष्ट्रीय नीति भारतीय संविधान के अनुच्छेद-47 में अंतर्विष्ट निदेशात्मक नियमों पर आधारित है, जो राष्ट्र को सिवाए चिकित्सा प्रयोजनों के ड्रग्स सेवन पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करने हेतु निर्देशित करती है। इस विषय पर सरकार की नीति इस संवैधानिक उपबंध पर आधारित होने के साथ-साथ विषय संबंधी अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर भी आधारित है।
भारत नारकोटिक ड्रग्स, 1961 एवं प्रोटोकॉल, 1972 द्वारा संशोधित संधि; नशीले पदार्थों संबंधी संधि, 1971 और स्वापक पदार्थ एवं नशीले पदार्थों में अवैध व्यापार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संधि, 1988 का हस्ताक्षरकर्ता है।
व्यापक विधायी नीति, इन तीन केंद्रीय अधिनियमों में अंतर्विष्ट है अर्थात ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, स्वापक पदार्थ और नशीले पदार्थ अधिनियम, 1988 और स्वापक पदार्थ और नशीले पदार्थों में अवैध व्यापार निवारण | इसका मुख्य उत्तरदायित्व ड्रग्स व्यसन निवारण अनेक मंत्रालयों, विभागों और संगठनों के माध्यम से करना है। इसमें वित्त मंत्रालय, राजस्व विभाग सम्मिलित हैं, जो स्वापक पदार्थ और नशीले पदार्थ अधिनियम 1985, और स्वापक पदार्थ और नशीले पदार्थों में अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1985 के प्रशासक के रूप में मुख्य समन्वय भूमिका निभाता है।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल
ओडिशा महाचक्रवात (1999) और गुजरात भूकम्प (2001) के रूप में आई दो राष्ट्रीय आपदाओं ने आपदा मोचन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता महसूस कराई। इस आवश्यकता के परिणामस्वरुप 26 दिसम्बर, 2005 को आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया गया। एनडीएमए को आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ योजनाएं और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए गठित किया गया था। “
डीएम अधिनियम ने प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिए (एनडीआरएफ) के गठन हेतु राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के गठन हेतु सांविधिक उपबंध किए हैं। तदनुसार 2006 में 8 बटालियनों (बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और सीआईएसएफ प्रत्येक से 2 बटालियन) के साथ एनडीआरएफ का गठन किया गया। वर्तमान में एनडीआरएफ की 10 बटालियनें हैं। प्रत्येक एनडीआरएफ बटालियन में 1149 कार्मिक होते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एसएसबी से 2 बटालियनों के परिवर्त्तन / अपग्रेडेशन को स्वीकृति प्रदान की है।
यह बल सभी प्रकार की प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं का सामना करने के लिए सबसे दृश्यमान और गतिशील बहु-क्षेत्रक, बहु-कौशल, आधुनिक एकमात्र समर्थ बल के रूप में, क्रमिक रूप से उभर रही है।
डीएम अधिनियम, 2005 पूर्व प्रतिक्रिया केन्द्रित दृष्टिकोण को परिवर्तित कर पूर्व सक्रिय, समग्र और आपदाओं के समेकित प्रबंधन को परिकल्पित करते हुए बचाव, शमन और तैयारी पर केंद्रित हैं। यह राष्ट्रीय विजन है और अन्य बातों के साथ-साथ सभी अंशधारकों में तैयारी की संस्कृति को पल्लवित करता है।
> एनडीआरएफ ने अत्यधिक कौशल के साथ बचाव और राहत प्रचालनों में नियमित और सघन प्रशिक्षण तथा पुनः प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और संबंधित एनडीआरएफ बटालियनों के उत्तरदायित्व के क्षेत्र के भीतर अनुकूलन, विभिन्न अंशधारकों के साथ मॉक ड्रिल और संयुक्त अभ्यास द्वारा इस विजन की प्राप्ति में अपनी महत्ता सिद्ध की है।
> एनडीआरएफ का विजन सभी प्रकार की प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं का सामना करने हेतु सबसे दृश्यमान और गतिशील बहु – क्षेत्रक, बहु-कौशल, आधुनिक, एकमात्र समर्थ बल के रूप में क्रमिक रूप से उभरना है, ताकि आपदाओं के प्रभावों को कम किया जा सके। यह विश्व का एकमात्र समर्पित आपदा मोचन बल है।
एनडीआरएफ की भूमिका और अधिदेश,
आपदाओं के दौरान विशिष्ट प्रतिक्रिया,
उपस्थित आपदा स्थितियों के दौरान पूर्व सक्रिय तैनाती,
अपने विद्यमान प्रशिक्षण और कौशलों को अधिग्रहित और निरंतर अपग्रेड करना,
संपर्क, द्रोह, रिहर्सल ( अभ्यास और मॉक ड्रिल),
राज्य आपदा मोचन बलों ( पुलिस, सिविल डिफेन्स और होम गार्ड) को समुदाय के साथ-साथ मूल और प्रचालनात्मक स्तर का प्रशिक्षण प्रदान करना । सभी एनडीआरएफ बटालियनें सक्रिय रूप से निम्नांकित कार्यों में लगी है:
समुदाय क्षमता निर्माण कार्यक्रम
लोक जागरुकता अभियान
प्रदर्शिनियाँ, पोस्टर, पर्चे एवं साहित्य
स्पेशल फ्रंटीयर फोर्स
स्पेशल फ्रंटीयर फोर्स (एसएफएफ) भारत का एक अर्द्ध सैनिक विशेष बल है, जिसका गठन 14 नवम्बर, 1962 को किया गया था। इसका मूल उद्देश्य भारत-चीन युद्ध होने की स्थिति में चीनी सीमा के पीछे गुप्त प्रचालन करना था।
एससफएफ को ‘स्थापना 22′ का नाम दिया गया, क्योंकि इसके पहले इंस्पेक्टर जनरल, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) भारतीय सेना के सुजान सिंह उबान थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे, मिलिट्री क्रॉस धारक और ब्रिटिश इंडिया आर्मी में एक महानायक थे। सिंह ने यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध में 22 माउंटेन रेजिमेंट को कमांड किया था, यह कमांड उन्होंने उत्तरी अफ्रीका के लांग रेंज डेजर्ट स्क्वेडन (एलआरडीएस) में की थी।
इसका मुख्यालय चकराता, उत्तराखण्ड में है और पहले इसे आसूचना ब्यूरो के सीधे अधीक्षण में रखा गया था और बाद में इसे अनुसंधान और विश्लेषण स्कंध, भारत की बाह्य आसूचना एजेंसी के अंतर्गत किया गया।
अनुसंधान और विश्लेषण स्कंध
अनुसंधान और विश्लेषण (आरएफडब्ल्यू या आरएडब्ल्यू) भारत की विदेशी आसूचना एजेंसी है। इसकी स्थापना 21 सितम्बर 1968 को भारत-पाक और भारत-चीन युद्धों में आसूचना असफलता के कारण की गई थी, जिसने भारत सरकार को विदेशी आसूचना एकत्रण हेतु एक विशेषीकृत, स्वतंत्र एजेंसी बनाने के लिए बाध्य किया था; इससे पूर्व घरेलू और विदेशी आसूचना दोनों आसूचना ब्यूरो के क्षेत्राधिकार में आते थे।
इसके प्रथम निदेशक रामेश्वर नाथ काव ने अपने नौ वर्ष के कार्यकाल के दौरान वैश्विक आसूचना समुदाय में शीघ्र ही काफी ख्याति अर्जित की और बंग्लादेश की स्वतंत्रता और भारत में सिक्किम राज्य को सम्मिलित करने जैसी मुख्य गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई थी। एजेंसी का मुख्य कार्य आसूचना एकत्रण, आतंकवाद रोधी कार्यकलाप करना, आतंकवाद रोधी प्रसार को बढ़ावा देना, भारतीय नीति निर्माताओं को परामर्श देना और भारत के विदेशी सामरिक हितों को आगे बढ़ाना है। यह भारत सुरक्षा कार्यक्रम की सुरक्षा में भी सम्मिलित है। अनेक विदेशी विश्लेषक रॉ को एक प्रभावी संगठन मानते हैं और भारत की राष्ट्रीय ताकत के एक प्राथमिक तंत्र के रूप में इसकी पहचान करते हैं।
रॉ का मुख्यालय नई दिल्ली में है, इसके वर्तमान प्रमुख राजेन्द्र खन्ना, 1978 बैच के अनुसंधान और विश्लेषण सेवा अधिकारी है। रॉ प्रमुख को मंत्रिमंडल सचिवालय में सचिव (अनुसंधान) पद दिया गया है, और वह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है और प्रशासनिक आधार पर भारत के मंत्रिमंडल सचिव को रिपोर्ट करता है, जो प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
अधिदेश
> रॉ के वर्तमान उद्देश्य में सम्मिलित हैं, परन्तु केवल इन तक सीमित नहीं;
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधा प्रभाव डालने वाले देशों के राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास की निगरानी करना और अपनी विदेश नीति का निर्धारण करना।
सशक्त और गतिशील भारतीय प्रसार की मदद के साथ अंतर्राष्ट्रीय मत परिवर्तित करना और विदेशी सरकारों को प्रभावित करना।
भारत के राष्ट्रीय हितों के सुरक्षा उपाय हेतु गुप्त प्रचालन ।
आतंक – रोधी प्रचालन और भारत के लिए खास उत्पन्न करने के लिए आतंकी तत्वों को तटस्थ करना।
> 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद और भारत के पाकिस्तान के साथ अस्थिर संबंधों में रॉ उद्देश्यों में निम्नांकित सम्मिलित हैं:
दो साम्यवादी राष्ट्रों, रूस और चीन के मध्य अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद और संप्रदाय के विकास पर नजर रखना। अन्य देशों की तरह इन दोनों शक्तियों का भारत में साम्यवादी दलों के साथ सीधा संपर्क है ।
पाकिस्तान को विशेषकर यूरोपीय देशों, अमरीका और सबसे महत्त्वपूर्ण चीन से सैन्य हार्डवेयर की आपूर्त्ति पर नियंत्रण और इसे सीमित करना।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) भारत में सबसे मुख्य अन्वेषण पुलिस है। यह भारत सरकार के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है। सीबीआई बड़ी अपराधिक जांच करती है, और भारत में इंटरपोल एजेंसी है। सीबीआई की स्थापना 1941 में विशेष पुलिस स्थापना के रूप में घरेलू सुरक्षा कार्य हेतु की गई थी। अप्रैल, 1963 को इसका नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो कर दिया गया। इसका सिद्धान्त है ‘उद्यमिता, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा’ है।
एजेंसी का मुख्यालय भारत की राजधानी, नई दिल्ली में स्थित है, और संपूर्ण भारत के मुख्य शहरों में इसके फील्ड कार्यालय हैं। सीबीआई केंद्र सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अंतर्गत आती है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री द्वारा की जाती है, जो सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। यद्यपि यह अमरीका में फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन के समान संस्था है, सीबीआई की शक्तियाँ और कार्य अधिनियमों (प्रमुखतः दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946) तक सीमित है।
सीबीआई ने भारत की प्रमुख अन्वेषण एजेंसी के रूप में प्रतिष्ठा स्थापित की है, जिसके पास जटिल मामलों हेतु संसाधन हैं, और यह कत्ल, अपहरण और आतंकवाद जैसे अपराधों की जांच में सहायता करती है। विश्रिप्त पार्टियों द्वारा दायर याचिकाओं के आधार पर उच्चतम न्यायालय और अनेक उच्च न्यायालयों ने सीबीआई को ऐसी जांच सौंपना प्रारंभ कर दिया है। 1987 में सीबीआई को दो भागों में बांटा गया – भ्रष्टाचार रोधी प्रभाग और विशेष अपराध प्रभाग।
सीबीआई की अध्यक्षता निदेशक, पुलिस महानिदेश रैंक के आईपीएस अधिकारी द्वारा की जाती है। निदेशक का चयन सीबीसी अधिनियम, 2003 के अनुसार किया जाता है, और इसका दो वर्ष का निश्चित कार्यकाल होता है।
संशोधित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति हेतु एक समिति को शक्ति प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री – अध्यक्ष
नेता प्रतिपक्ष – सदस्य
मुख्य न्यायधीश द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश या मुख्य न्यायधीश – सदस्य सिफारिशें करते समय समिति पूर्ववर्ती निदेशक के मत पर भी निर्भर करती है ।
उपरोक्त वर्णित सूची का गठन लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अंतर्गत किया गया था। ?
सीबीआई को जांच की विधिक शक्तियाँ, डीएसपीई अधिनियम, 1946 से प्राप्त हुई हैं, जो दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (सीबीआई) और संघ राज्य क्षेत्र के अधिकारियों को शक्तियाँ, कर्त्तव्य, विशेषाधिकार और जवाबदेही प्रदत्त करता है। केंद्र सरकार जांच हेतु सीबीआई की शक्तियों और क्षेत्राधिकार को किसी भी क्षेत्र (सिवाय संघ राज्य क्षेत्र) में विस्तारित कर सकती है, बशर्ते कि संबंधित राज्य सरकार की सहमति हो । सब-इंसपेक्टर या इससे ऊपर के सीबीआई सदस्यों को पुलिस स्टेशनों के प्रभारी अधिकारियों के बराबर माना जाता है। इस अधिनियम के अंतर्गत, सीबीआई केवल केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचना के बाद ही जांच कर सकती है।
सीबीआई और राज्य पुलिस के साथ इसके संबंध
कानून और व्यवस्था राज्य का उत्तरदायित्व है, चूंकि पुलिस राज्य का विषय है, और अपराध की जांच करना विशिष्टतः राज्य पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है। राज्यों के संबंध में सीबीआई संघ विषय होने के कारण, निम्नांकित में जांच कर सकता है:
केंद्रीय सरकार कर्मचारियों के विरुद्ध अपराध या केंद्रीय सरकार से संबंधित मामलों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के कर्मचारियों के विरुद्ध अपराध |
केंद्रीय सरकार के वित्तीय हितों को सम्मिलित करते मामले ।
भारत सरकार द्वारा प्रयोज्य केंद्रीय कानूनों का उल्लंघन।
बड़ा घोटाला या गबन; बहु – राज्य संगठित अपराध |
बहु- एजेंसी या अंतर्राष्ट्रीय मामले ।
सीबीआई संबंधित राज्य सरकार की अनुमति के साथ राज्य पुलिस से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामलों की भी जांच कर सकती है।
प्रवर्तन निदेशालय
आर्थिक प्रवर्तन महानिदेशक (Diretorate General of Economic Enforcement) विधि प्रवर्तन और आर्थिक आसूचना एजेंसी जो भारत में आर्थिक कानून लागू करने और आर्थिक अपराध से लड़ने हेतु उत्तरदायी है। यह राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय का भाग है। इसमें भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं। इस निदेशालय की स्थापना 1 मई, 1956 को की गई थी, जब आर्थिक कार्य विभाग में प्रवर्तन इकाई गठित की गई थी, ताकि विदेश व्यापार विनिमय अधिनियम, 1947 के अंतर्गत विनिमय नियंत्रण कानून उल्लंघनों पर कार्यवाही की जा सके। 1957 में इस इकाई का नाम बदलकर ‘प्रवर्तन निदेशालय’ कर दिया गया।
प्रवर्तन निदेशालय का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार के दो अहम अधिनियमों का प्रवर्तन करना हैविदेश विनिमय प्रबंधन अधिनियम 1999 (फेमा) और धन आशोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) ।
भारतीय सशस्त्र बल
भारतीय सशस्त्र बल भारत गणराज्य के सैन्य बल हैं। इसमें तीन पेशेवर वर्दीधारी सेवाएं हैं। भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना। भारत के राष्ट्रपति, भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं। भारतीय सशस्त्र बलों का प्रबंधन, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत किया जाता है। 1.3 मिलियन से अधिक सक्रिय कार्मिक संख्या के साथ इसका विश्व में तीसरा स्थान है और यह विश्व की सबसे बड़ी स्वैच्छिक सेना है। “
तीनों सशस्त्र बलों-भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के मुख्यालय नई दिल्ली में हैं। “
> सशस्त्र बलों के चारप्रमुख कार्य हैं:
भारत की प्रादेशिक अखण्डता को अक्षुण रखना।
विदेशी राष्ट्र से आक्रमण की स्थिति में देश की रक्षा करना ।
आपदाओं (उदाहरणतः बाढ़) के मामले में सिविल समुदाय का सहयोग करना ।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के लिए भारतीय प्रतिबद्धता के अनुसार संयुक्त राष्ट्र शांति प्रचालनों में भागीदारी करना।
Note: – यह नोट्स ऑनलाइन PDF फाइल से लिया गया हैं !!!!
Credit – Ashok Kumar,IPS
Credit – Vipul Anekant, DANIPS
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