1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान बिहार में जनभागीदारी का वर्णन कीजिए ।
1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान बिहार में जनभागीदारी का वर्णन कीजिए ।
(60-62वीं BPSC/2018)
अथवा
1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की भूमिका तैयार करने में उत्पन्न परिस्थितियों का वर्णन करते हुए बिहार की महत्वपूर्ण भागीदारी का वर्णन करें।
उत्तर – विभिन्न प्रांतों में 28 माह की सरकार चलाने के उपरांत कांग्रेस ने 1939 ई. में इस्तीफा दे दिया तथा 1940 ई. में महात्मा गांधी के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह (प्रथम सत्याग्रही- विनोबा भावे एवं दूसरे जवाहरलाल नेहरू बनें) के माध्यम से अपनी मांगों को पूरा करवाने की कोशिश की गई। लेकिन यह असफल रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीयों का विश्वास हासिल करने के उद्देश्य से 22 मार्च, 1942 को सर स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय दल (सर स्टैफर्ड क्रिप्स, पेंथिक लॉरेंस, ए.वी. एलेक्जेंडर) भारत आया जिसे ‘क्रिप्स मिशन’ के नाम से जाना जाता है। क्रिप्स ने भारतीय नेताओं को आश्वासन दिया कि युद्ध समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा। लेकिन महात्मा गांधी ने इसे ‘पोस्ट डेटेड चेक’ कहते हुए अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार क्रिप्स मिशन की असफलता तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की लगातार सफलता ने भारतीय जनता को एक बड़ा आंदोलन करने की प्रेरणा दी। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में, गांधीजी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पारित किया गया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव जवाहरलाल नेहरू द्वारा रखा गया और सरदार पटेल द्वारा इसका समर्थन किया गया।
” ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस आंदोलन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश था। 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के कुछ घंटों बाद ही महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप शीघ्र ही सम्पूर्ण देश में आंदोलन तीव्र हो गया। पटना में 9 अगस्त को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को ‘भारत रक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर बांकीपुर सेंट्रल जेल में भेज दिया। राज्य में सामूहिक जुर्माना अध्यादेश लागू कर दिया गया। तब पटना स्थित ‘महिला चरखा समिति’ की महिलाओं ने राजेन्द्र प्रसाद की बहन भगवती देवी की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया। इसी दिन गांधी मैदान में एक सभा आयोजित कर सचिवालय भवन पर झण्डा फहराने का भी निर्णय लिया गया। 11 अगस्त, 1942 को पटना के छात्रों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन पर झण्डा फहराने का प्रयास किया। पटना के जिला कलेक्टर डब्ल्यू जी आर्थर ने उन पर गोलियां चलवा दी जिसमें सात छात्र शहीद हो गए। पटना सचिवालय गोलीकांड में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद छात्र थे – उमाकांत सिन्हा, सतीश प्रसाद झा, रामानन्द सिंह, राजेन्द्र सिंह, जगत्पति कुमार सिंह, देवीपदा चौधरी तथा रामगोविन्द सिंह |
अंग्रेजों द्वारा की गई इस कायरतापूर्ण कार्रवाई से सम्पूर्ण बिहार में आंदोलन उग्र हो गया। 12 प्रस्ताव पारित कर सरकारी प्रतिष्ठानों को पूर्णरूप से ठप्प करने का आह्वान किया गया। अनेक स्थानों पर लोग हिंसक हो उठे तथा अंग्रेज अधिकारियों को मार भगाया।
इस आंदोलन में सीवान जिला के महाराजगंज थाना पर झंडा फहराने के क्रम में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव की गोली लगने से मृत्यु हो गई। फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा रानी ने थाना भवन पर झंडा फहराकर अपनी गिरफ्तारी दी। सीतामढ़ी से जुब्बा साहनी के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने 15 अगस्त, 1942 को मीनापुर थाने के थानेदार बॉलर को जिन्दा जला दिया।
13 अगस्त को मुंगेर में ‘आजाद हिन्दुस्तान’ नामक एक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया जिसमें सरकारी दमन का विरोध किया गया। इसके जवाब में सरकार की तरफ से भी 26 अगस्त, 1942 को ‘मुंगेर न्यूज’ का प्रकाशन सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित करने के लिए किया गया।
भारत छोड़ों आंदोलन में बिहार के समाजवादियों- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, गंगा शरण मिश्र तथा अन्य लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1942 में ही जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में डाल दिया गया था। 8 नवम्बर, 1942 को जयप्रकाश नारायण ने अपने साथियों के साथ भागकर नेपाल की तराई में शरण ली। यहीं पर उन्होंने आजाद दस्ते का निर्माण किया तथा भूमिगत होकर आंदोलन का नेतृत्व किया। राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली तथा अन्य ने भूमिगत होकर गुप्त रूप से रेडियो का संचालन किया। भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने के कारण यह आंदोलन समाजवादियों के नेतृत्व में आ गया था जिससे इस आंदोलन में कृषक व मजदूर वर्गों की भागीदारी बढ़ गई थी।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बिहार के ‘सियाराम दल’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस दल का गठन भागलपुर जिले के निवासी सियाराम सिंह द्वारा किया गया था। यह दल एक गुप्त सशस्त्र संगठन था, जो नौजवानों को अस्त्र-शस्त्र चलाने तथा छापामार युद्ध रणनीति का प्रशिक्षण देता था। इसका उद्देश्य गांव की जनता को संगठित कर ग्राम स्वराज व करना था। यह आंदोलन दो वर्षों तक चला। की स्थापना
इस प्रकार ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ सरकारी नीतियों के खिलाफ भारतीय जनता का एक जनाक्रोश था। इस आंदोलन में बिहार की जनता ने महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। इस आंदोलन का प्रसार सम्पूर्ण बिहार में था। इस आंदोलन में बिहार की भूमिका का वर्णन इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिहार के आंदोलनकारियों को अधिकतम 51 वर्ष की सजा तथा पूरे राज्य पर सामूहिक रूप से 40 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया। यह आंदोलन स्वतंत्रता प्राप्ति का अंतिम आंदोलन था, क्योंकि इसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए वार्ताओं का ही दौर चला।
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