1942 के QIM में बिहार के योगदान का वर्णन करें।
1942 के QIM में बिहार के योगदान का वर्णन करें।
(48वीं-52वीं BPSC/2009)
अथवा
QIM का स्वरूप लगभग नेतृत्वहीन, हिंसात्मक एवं तोड़-फोड़ वाला था एवं इसका विस्तार लगभग पूरे बिहार में छात्रों, किसानों, मध्यम वर्गों द्वारा हुआ, बताते हुए लिखें।
उत्तर– क्रिप्स की असफलता ने गांधी जी के विचारों में बड़ा परिवर्तन ला दिया एवं जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव लाया गया जिसे गहन विचार-विमर्श, समर्थन एवं मतभेदों के साथ 8 अगस्त, 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित कर दिया गया। गांधी जी ने जनता को ‘करो या मरो’ का मूल मंत्र दिया एवं कहा “हम देश को चिरंतन दासता की बेड़ियों में बंधे हुए देखने को जिन्दा नहीं रहेंगे । “
8-9 अगस्त को ही कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया एवं कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर दिया गया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को पटना में ही नजरबंद कर दिया गया। सैकड़ों नेताओं की गिरफ्तारी से जनता नेतृत्वहीन हो गई जिसके कारण आंदोलन सामान्य जनता के हाथ में आ गई। पूरे बिहार में प्रबल विरोध प्रदर्शन एवं तोड़फोड़ की घटना हुईं। छात्रों ने भी स्कूल, कॉलेज छोड़ आंदोलन में भाग लिया। बलदेव सहाय ने महाधिवक्ता के पद से इस्तीफा देकर आंदोलन में भाग लिया। 11 अगस्त, 1942 को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन के सामने विधायिका की इमारत पर तिरंगा लहराने की कोशिश की, जिलाधिकारी के आदेश पर पुलिस ने गोली चलाई एवं 7 छात्र मारे गए। इस घटना से आंदोलन और तीव्र एवं हिंसात्मक हो गया। सरकारी इमारतों को निशाना बनाया गया एवं संचार साधनों को ठप्प किया जाने लगा। रेल पटरियों को उखाड़ा गया एवं पुलिस पर भी हमले किए गए।
हजारीबाग जेल से जयप्रकाश नारायण, श्यामानंद मिश्र, योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण आदि भाग निकले एवं नेपाल पहुंचे। नेपाल में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ‘आजाद दस्ता’ नामक क्रांतिकारी संगठन बनाया गया, जिसका उद्देश्य सरकार के युद्ध कार्य में बाधा डालने के लिए तोड़-फोड़ करना था। देशभक्त युवाओं को सरदार नित्यानंद के निर्देशन में प्रशिक्षण दिया जाता था। ये क्रांतिकारी ‘छापामार पद्धति से ब्रिटिश सरकार से लड़ रहे थे। ‘आजाद दस्ता’ से प्रेरित होकर बिहार में भागलपुर एवं पूर्णियां में भी ऐसे संगठन सक्रिय हो गए। 1943 तक आजाद दस्ता सक्रिय रहा।
चम्पारण, हाजीपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा के क्षेत्रों में कई स्थानों पर क्रांतिकारी सरकारें संगठित की गई। तिरहुत प्रमंडल एवं बांका में भी ऐसी सरकारें बनी। गांवों में भी रक्षा दलों की स्थापना हुई।
इस प्रकार आंदोलन का स्वरूप लगभग नेतृत्वविहीन लेकिन प्रभावी था। स्थानीय नेताओं ने भाग लिया एवं तोड़-फोड़ तथा पिक हिंसा का व्यापक सहारा लिया। सरकार ने भी दमन चक्र चलाया जिसमें हजारों लोगों की जानें गईं। विद्रोह का विस्तार लगभग पूरे बिहार में था जिसमें मुख्यतः मध्यम वर्ग तथा छात्रों ने जमकर भाग लिया। डॉ. अंबा प्रसाद ने इसे एक ‘विद्यार्थी-किसान मध्यम वर्गीय विद्रोह’ कहा है।
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