1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में बिहार के योगदान का वर्णन कीजिए।

1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में बिहार के योगदान का वर्णन कीजिए।

(53-55वीं BPSC/2012 )
उत्तर– बिहार में देश और समाज के प्रति राजनीतिक चेतना प्रारंभ से ही रही है। आधुनिक काल में भी राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रत्येक चरण में बिहार ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका रही तथा यहां के राष्ट्रीय नेताओं ने इसे व्यापक आधार प्रदान किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह की पृष्ठभूमि उस समय तैयार हुई, जब भारत की अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों की अनुमति के बिना यह घोषणा कर दी कि द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत ब्रिटेन के साथ है। इस घोषणा से ब्रिटेन भारतीय संसाधन का इस्तेमाल अपने विजय के लिए करने लगा। ऐसे में कांग्रेस कार्यकारिणी के आदेश पर प्रांतीय कांग्रेसी मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिया। वायसराय का अगस्त प्रस्ताव भी मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति को प्रोत्साहित कर रहा था। इसे भी कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार व्यक्तिगत सत्यागह का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के इस दावे को खोखला साबित करना था कि भारत की जनता द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत की अंग्रेजी सरकार के साथ है।
कांग्रेसी मंत्रिमंडलों के त्यागपत्र के बाद गांधीजी ने व्यक्तिगत आधार पर सीमित सत्याग्रह प्रारंभ करने का फैसला किया। गांधीजी ने अपनी इस रणनीति के तहत यह तय किया कि प्रत्येक इलाके में कुछ चुने हुए लोग व्यक्तिगत सत्याग्रह करेंगे। गांधीजी द्वारा प्रारंभ किए गए इस व्यक्तिगत सत्याग्रह के मुख्य लक्ष्य निम्न थे
1. यह प्रदर्शित करना कि राष्ट्रवादियों के धैर्य को उनकी दुर्बलता अथवा कमजोरी न समझा जाए।
2. यह संदेश देना कि भारत के लोग युद्ध के पक्ष में नहीं है। साथ ही वे ( भारत के लोग) नाजीवाद और भारत के साम्राज्यवादी शासन को एक ही सिक्के के दो पहलू समझते हैं।
3. कांग्रेस की मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से स्वीकार करने के लिए अंग्रेजी सरकार को एक और मौका देना।
गांधीजी ने 17 अक्टूबर, 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। एक प्रकार से यह व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इस आंदोलन के पहले सत्याग्रही विनोबा भावे थे, जिन्होंने 17 अक्टूबर, 1940 को सत्याग्रह पवनार में शुरू किया, दूसरे सत्याग्रही जवाहरलाल नेहरू थे । इस आंदोलन को ‘दिल्ली चलो आंदोलन’ भी कहा गया।
> बिहार में व्यक्तिगत सत्याग्रह की प्रगति
बिहार में व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत 28 नवम्बर, 1940 को हुई। यहां के प्रथम सत्याग्रही श्रीकृष्ण सिंह थे। जब उन्हें गिरफ्तार करके जेल ले जाया जा रहा था तो बहुत बड़ा जनसमूह सत्याग्रह के आदर्शों का उल्लंघन करके उनके पीछे-पीछे जेल तक पहुंच गया। फलतः जेल के प्रवेश द्वार पर तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई ।
बिहार में इस सत्याग्रह के दूसरे सत्याग्रही अनुग्रह नारायण सिंह थे किंतु, इन्हें राजेन्द्र प्रसाद ने सत्याग्रह करने से तब तक रोके रखा जब तक जनता से सही आचरण करने तथा सत्याग्रह के निर्धारित आदर्शों का पालन करने का आश्वासन नहीं मिला। इसका परिणाम यह हुआ कि दो दिनों के बाद सत्याग्रह शुरू हुआ। अनुग्रह नारायण सिंह को पटना सिटी में सार्वजनिक भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
गया में 4 दिसंबर, 1940 को गौरीशंकर सिंह ने तथा सिलाव में 9 दिसंबर, 1940 को श्यामनारायण सिंह ने सत्याग्रह किया। बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी लोगों ने व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया।
बिहार में इस सत्याग्रह में महिलाओं ने भी भाग लिया। गया में कुछ महिलाएं इस सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार हुई। इस सत्याग्रह में भाग लेने वाली प्रमुख महिलाएं थीं- प्रियंवदा देवी, जगत रानी देवी, जानकी देवी आदि। जनजातीय समुदाय भी इस सत्याग्रह से अछूता नहीं रहा। तत्कालीन बिहार के ताना भक्तों की इसमें सक्रिय भूमिका रही।
मई 1941 तक अखिल भारतीय स्तर पर लगभग 25000 से अधिक सत्याग्रहियों को दंडित और गिरफ्तार किया जा चुका था। अनेक कांग्रेसी नेता जेल गए लेकिन इस सत्याग्रह के भागीदारी के सीमित प्रकृति के कारण बहुत कुछ अधिक हासिल नहीं किया जा सका। फिर भी, यह कि- “भारतीय लोग द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के साथ नहीं हैं”, इस लिहाज से यह सत्याग्रह सफल रहा। इस दृष्टिकोण से बिहार के सत्याग्रहियों की भूमिका निश्चय ही सराहनीय रही।
द्वितीय विश्वयुद्ध के परिदृश्य में बदलाव और विश्व जनमत के दबाव के कारण अंग्रेजी सरकार ने दिसंबर, 1941 में सभी कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया। फलतः कांग्रेस कार्यकारिणी ने भी इस सत्याग्रह को स्थगित करने का निर्णय लिया।
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