कृषि विविधता एवं जैविक कृषि भारत में खाद्य संरक्षण (Food Security ) के अच्छे विकल्प हैं।” बिहार के विशेष संदर्भ में इसकी आलोचनात्मक विवेचना कीजिए |

कृषि विविधता एवं जैविक कृषि भारत में खाद्य संरक्षण (Food Security ) के अच्छे विकल्प हैं।” बिहार के विशेष संदर्भ में इसकी आलोचनात्मक विवेचना कीजिए |

उत्तर – पहली बार जनसंख्या विस्फोट तथा खाद्य सुरक्षा का मुद्दा रॉबर्ट माल्थस द्वारा उठाया गया। इसकी चर्चा अपनी पुस्तक में करते हुए उन्होंने कहा कि विश्व जनसंख्या की वृद्धि ज्यामितीय श्रेणी (Geometrical Progression) में होती है, जबकि जीविका के साधनों की वृद्धि अंकगणितीय श्रेणी (Arithmetical Progression) में ।
1986 की विश्व विकास रिपोर्ट ने खाद्य सुरक्षा को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जहां सभी को, सभी समय पर्याप्त खाद्य एक सक्रिय स्वास्थ्यकर जीवन के लिए उपलब्ध हो। खाद्य तथा कृषि संगठन (FAO) ने 1986 में खाद्य सुरक्षा को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया, जहां यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि सभी को सभी समय उनकी आवश्यकता अनुसार मूलभूत खाद्य दोनों, भौतिक तथा आर्थिक रूप में प्राप्य हों।
•  खाद्य सुरक्षा के संबंध उपर्युक्त परिभाषा से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं
1. खाद्य सुरक्षा के लिए समग्र जनसंख्या के खाद्य की भौतिक उपलब्धि आवश्यक है।
2. सभी लोगों के पास पर्याप्त क्रयशक्ति हो ताकि वे अपनी जरूरत के लिए खाद्य पदार्थ खरीद सकें ।
3. स्वस्थय मानव जीवन के लिए उपलब्ध खाद्य मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों में पर्याप्त रूप में होना चाहिए जिससे वे पोषण 1 संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकें।
4. समय के साथ विकास के प्रत्येक चरण में खाद्य की बढ़ती मांग तथा रुचि के बदलते स्वरूप के पर ध्यान देना जरूरी है। के अनुसार खाद्य उपलब्धता
खाद्य सुरक्षा के उपर्युक्त बिंदुओं को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि कृषि विविधता एवं जैविक कृषि बिहार सहित पूरे भारत में खाद्य सुरक्षा के बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं।
•  कृषि विविधता एवं जैविक कृषि
कृषि विविधता से आशय है खेत के उत्पादक संसाधनों, जैसे- भूमि, पूंजी, श्रम आदि को विविध नवीन गतिविधियों में लगाना। नवीन गतिविधियां, नई फसल या पशुधन उत्पादन एवं मूल्यवर्द्धनकारी क्रियाओं से संबंधित हो सकती है, जैसे- फल, फूल, सब्जी, मसाले, मशरूम, चारा, नीम, पाम तथा एलोवेरा आदि की खेती, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन तथा डेयरी फार्मिंग आदि।
कृषि के विविधीकरण से कृषकों की आय में वृद्धि होगी एवं ग्राम स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। साथ ही पोषक तत्वों से युक्त भोजन की उपलब्धता बढ़ेगी। भोजन के खपत के बदलते स्वरूप तथा बदलती रुचि के अनुरूप खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ेगी जो खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
जैविक कृषि खेती करने की एक ऐसी पद्धति है, जिसके तहत अधिक उपज प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी प्रकार का रसायन उपयोग में नहीं लाया जाता है। इसमें रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर पत्तियों, गोबर तथा पेड़-पौधों से प्राप्त तथा दूसरे पदार्थों से निर्मित उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त फसलों को कीड़े-मकोड़ों से बचाने के लिए पेड़ों एवं जड़ी-बुटियों से तैयार कीटनाशक ही प्रयुक्त होते हैं। जैविक कृषि इसलिए भी जरूरी है कि भूमि एवं जलवायु प्रदूषण ने आहार-श्रृंखला को प्रदूषित कर दिया है। ऐसे में गुणवत्ता युक्त एवं प्रदूषण मुक्त भोजन की उपलब्धता के लिए जैविक कृषि अपनाना जरूरी हो गया है।
पिछले कुछ वर्षों में बिहार में कृषि विविधता एवं जैविक कृषि पर सरकार द्वारा ध्यान दिया जा रहा है। इस संबंध में बिहार सरकार ने शोध एवं अनुसंधान, अनुदानों, बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता पर विशेष जोर दिया है। बिहार एक कृषि प्रधान प्रदेश है। ऐसे में यहां के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए उपर्युक्त विकल्प और भी आवश्यक हो जाते हैं।
•  कृषि विविधीकरण एवं जैविक कृषि की सीमाएं
> मूल्यों में उतार-चढ़ाव एवं मौसम की प्रतिकूलता किसानों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है
> निर्यात मांग एवं घरेलू मांग में कमी या परिवर्तन किसानों के लिए कष्टकारी हो सकता है।
> बिजली, सड़क एवं सिंचाई जैसे बुनियादी सुविधाओं का अभाव एवं आवश्यक पूंजी की कमी बहुत बड़ी बाधा है।
> बिहार जैसे बाढ़ एवं सूखा प्रभावित राज्य में इसकी सफलता संदिग्ध है।
> लोगों में इस प्रकार की कृषि के लिए जागरूकता का अभाव है।
> इसमें खाद्यान्न उत्पादन में कमी होने की आशंका है।
> इस क्षेत्र में पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान का अभाव है।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि कृषि विविधता एवं जैविक कृषि भारत के खाद्य सुरक्षा का एक बेहतर विकल्प है। लेकिन इसकी कुछ अपनी सीमाएं हैं जिन्हें दूर कर खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित एवं सुनिश्चित बनाया जा सकता है।
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