शिक्षा एवं राजनीति को स्पष्ट कीजिए।
शिक्षा एवं राजनीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— शिक्षा एवं राजनीति प्राचीन समय से ही शिक्षा एवं राजनीति का गहरा सम्बन्ध रहा है। राजनीतिक संस्थाएँ प्रायः शिक्षा के लिये धन देती रही है। अतः वे ही शिक्षा से सम्बन्धित क्षेत्रों यथा उद्देश्य, पाठ्यक्रम, नीतियाँ आदि पर अपनी इच्छाएँ थोपती रही हैं। पूर्व में अधिकतर देशों में ऐसा होता रहा है। परन्तु पिछली कुछ दशकों से विश्व के अनेक देशों में लोकतन्त्र का प्रसार हुआ है। जिससे राजनैतिक संस्थाओं को शिक्षा के पोषण एवं विकास का महत्त्वपूर्ण साधन माना जाने लगा है। इस प्रकार शिक्षा और राजनीति में गहरा सम्बन्ध है।
शिक्षा एवं राजनीति के सम्बन्ध के निम्न दो पहलू हैं —
(1) राजनीति पर शिक्षा का प्रभाव – शिक्षा और राजनीति का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि शिक्षा राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखने व उसको स्वस्थ प्रकार से विकसित होने में किस प्रकार योगदान दे सकती है। भारत जैसे आधुनिकीकरण की ओर तीव्रता से अग्रसर होने वाले एक प्रजातंत्रीय देश के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि उत्तम नागरिकों के निर्माण किया जाये । उत्तम नागरिकों से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों से है जो अपने देश की ही नहीं, अपितु विदेशों की भी राजनीतिक समस्याओं में रुचि, समझ तथा स्वतंत्र सम्मति रखते हों, जो अपने राजनैतिक अधिकारों व कर्त्तव्यों के प्रति सजग हों, जो राजनीतिज्ञों और अवांछनीय तत्त्वों के हाथों की कठपुतलियाँ न बनें, अपितु अपनी बुद्धि, योग्यता तथा उत्तम चरित्र से अपने देश के हितों को सर्वोपरि रखते हुए कार्य करें।
शिक्षा को चाहिए कि वह अशिक्षित नागरिकों को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरुक बनाया जाए। यह शिक्षा का ही कार्य है कि वह अपने पाठ्यक्रम व अन्य क्रियाकलापों द्वारा विद्यार्थियों का समुचित रूप में राजनीतिक समाजीकरण करें। उपर्युक्त विवेचन से राजनीति पर शिक्षा का प्रभाव स्पष्ट है।
(2) शिक्षा पर राजनीति का प्रभाव — यदि आदर्श व्यवस्था के रूप में देखा जाए तो एक लोकतंत्रीय देश में शिक्षा के विकास में राजनीति बहुत सहायक सिद्ध होती है। राजनीति शिक्षा को नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करती है। नकारात्मक रूप में राजनीतिक अनिच्छा शिक्षा के मार्ग में बाधा है, वहीं राजनीतिक इच्छा शिक्षा के लिये अवसर है। पूर्व इकाई में हम राजनीतिक अनिच्छा के बारे में पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार राजनीतिक अनिच्छा शिक्षा के मार्ग में बाधा डालती है। दूसरी तरफ राजनीतिक इच्छा के फलस्वरूप शिक्षा चहुँमुखी विकास को प्राप्त होती है। उचित दूरी पर विद्यालय, शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती, संसाधनों की उपलब्धता, नवीनतम तकनीकी का उपयोग आदि प्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक इच्छा से जुड़े हुए मुद्दे हैं।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि जब तक हमारे राजनीतिक, संसद सदस्य, महत्त्वपूर्ण बुद्धिजीवी तथा अन्य प्रभावशाली नागरिक शिक्षा सम्बन्धी विषयों और समस्याओं को गहरे रूप में समझने तथा उनकी सही प्रकार से समालोचनाएँ करना आरम्भ नहीं करेंगे, तब तक शिक्षा सुविधाओं के समुचित व न्यायपूर्ण वितरण तथा शिक्षा के स्तरों में सुधार होना सम्भव नहीं है। उपर्युक्त विवेचन से राजनीति पर शिक्षा का प्रभाव स्पष्ट है।
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