राममूर्ति कमेटी 1990 की मुख्य सिफारिशों का वर्णन कीजिए।

राममूर्ति कमेटी 1990 की मुख्य सिफारिशों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर— राममूर्ति समिति, 1990 आचार्य राममूर्ति समिति ने सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की वस्तुनिष्ठ समीक्षा प्रस्तुत करते हुए, भारतीय शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ व्यावहारिक सिफारिशें प्रस्तुत की। इसमें तीन अध्याय तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप हैं। शेष अध्यायों में केवल वास्तविक मुद्दे और उन पर सिफारिशें दी गयी हैं—
अध्याय 1 : कार्यविधि तथा प्रक्रिया – राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप । अध्याय 2: दृष्टिकोण – राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप । अध्याय 3 : शिक्षा की भूमिका, उद्देश्य एवं मूल्य– राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार ।
अध्याय 4: पानी, ईंधन और चारे पर सिफारिश—
(1) पानी, ईंधन और चारे को आसानी से सुलभ कराने और बालिकाओं के स्कूल जाने में बहुत निकट का सम्बन्ध है । इसके लिये कोई व्यावहारिक योजना लागू की जानी चाहिये ।
(2) आठवीं पंचवर्षीय योजना की पूर्व पीठिका में प्रस्तावित स्थानीय क्षेत्र योजना को लागू करने में, वन में क्षेत्र के विकास, पेयजल.. मुहैया करने और सार्वजनिक भूमि को हरा-भरा बनाने के कार्यक्रम की योजना बनाते समय उपर्युक्त सम्बन्ध को भी ध्यान में रखना होगा ।
अध्याय 5 : बाल्यावस्था में आरम्भिक देखभाल और शिक्षा—
(1) महिलाओं की शिक्षा सम्बन्धी नीति के अन्तर्गत बाल्यावस्था में आरम्भिक देखभाल की शिक्षा और बालिकाओं के लिये प्रारम्भिक . शिक्षा की सुलभता के बीच आवश्यक सम्बन्धों को ध्यान में रखना आवश्यक है ।
(2) उक्त शिक्षा की व्यापक और प्रभावी सेवाएँ प्राइमरी और मिडिल स्कूल के पास उपलब्ध करायी जाकर प्रारम्भिक शिक्षा से जोड़ा जाना आवश्यक है ।
अध्याय 6: प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वजनीकरण—
(1) 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की देखभाल के लिये शिशु देखभाल केन्द्र कार्य करेंगे, जिन्हें आँगनबाड़ी केन्द्र के कर्मचारी सहयोग देंगे।
(2) अवर्गीकृत कक्षा पद्धति लागू होगी ताकि सभी बच्चे अपना स्थान विभिन्न स्तरों पर निर्धारित कर सकें।
अध्याय 7: प्रौढ़ शिक्षा – इसमें अनुवर्ती शिक्षा पर बल दिया गया है। इसे जन राष्ट्रीय साक्षरता मिशन सहयोग करेगा तथा उसके आधार पर ही इसका मॉडल तैयार होगा।
अध्याय 8 : शिक्षा और काम का अधिकार—इसमें समिति ने शिक्षा और काम के अधिकार पर बल दिया है।
अध्याय 9 : उच्च शिक्षा पर ध्यान–इस अध्याय में उच्च शिक्षा पर बल दिया गया है। समिति ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, परीक्षा से मुक्त विश्वविद्यालय, स्वायत्तता कॉलेज, ग्रामीण विश्वविद्यालय व्यवस्था पर अधिक अनुशंसा की है।
अध्याय 10 : तकनीकी और प्रबन्ध शिक्षा-विशेष महत्त्व के क्षेत्र की योजनाओं का क्रियान्वयन सहित मूल्यांकन एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति के द्वारा निम्नलिखित विचारार्थ विषयों के साथ होना चाहिये—
(1) क्या परियोजनाओं के उद्देश्यों की पूर्ति हुई है ?
(2) क्या व्यक्तिगत परियोजनाओं में निवेश इष्टतम हुए है ?
(3) परियोजनाओं का खर्चा चलाने के लिये यदि आवश्यक हो तो प्राथमिकताओं का पुनर्विन्यास
(4) मॉनीटरिंग पद्धति को सुदृढ़ बनाने के सम्बन्ध में सलाह देना ताकि परियोजनाओं की सफलता के विषय में अर्थपूर्ण पुनर्निवेश प्राप्त हो सके ।
अध्याय 11 : शिक्षा में भाषाओं का स्थान– त्रिभाषा सूत्र को समान तथा बुद्धिसंगत रूप से कार्यान्वित करने के लिये समिति के अनुसार निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिये
(1) तीन वर्षों में 400 घण्टों के अन्दर अंग्रेजी पढ़ाने और सिखाने का प्रावधान है।
(2) तीनों राष्ट्र स्तरीय भाषा विकास संस्थानों— केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, केन्द्रीय अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा संस्थान और केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान द्वारा हाथ में ली गयी प्रधान गतिविधियों हिन्दी, अंग्रेजी और आधुनिक भाषाओं में अध्यापकों को प्रशिक्षित करना है।
अध्याय 12 : शिक्षा की विषय-वस्तु और प्रक्रिया समिति के अनुसार शिक्षा की विषय-वस्तु और प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार से है—
(1) सांस्कृतिक विषयों एवं मूल्यपरक शिक्षा का पाठ्यक्रम में पूर्ण स्थान होना चाहिये ।
(2) क्षेत्रीय भाषाओं का विकास होना चाहिये
(3) भाषा शिक्षकों को प्रशिक्षण देना चाहिये।
(4) राष्ट्रीय स्तर पर अनुनाद प्रविधि में प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये ।
अध्याय 13 : अध्याय 13 में निम्नलिखित तथ्यों पर प्रकाश डाला गया—
(1) शिक्षा पद्धति के लिये जो महत्त्वपूर्ण क्षेत्र समिति प्रस्तावित कर रही है, उनके सन्दर्भ में शिक्षक प्रशिक्षण का पूर्णरूपेण नवीनीकरण करना होगा।
(2) इस कमेटी ने शिक्षक की एक नई संकल्पना प्रस्तुत की।
(3) शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं को अवांछित तथा उपद्रवी व्यक्तियों के लिये डम्पिंग ग्राउण्ड के रूप में प्रयोग किये जाने की पद्धत को तुरन्त समाप्त किया जाना चाहिये।
(4) योजनाकाल, संसाधन जुटाना, पाठ्यचर्या डिजाइन तथा विकास में अध्यापकों की सहभागिता का प्रस्ताव दिया।
अध्याय 14 : विकेन्द्रीकरण और सहभागी प्रबन्ध – इस अध्याय के अन्तर्गत समिति का मानना है कि प्रारम्भिक शिक्षा के सर्वीकरण, स्कूली शिक्षा. के व्यवसायीकरण और निरक्षर प्रौढ़ों के लिये शिक्षा की व्यवस्था करने जैसे व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वर्ष की निश्चित सीमा निर्धारित करनी होगी। सभी राज्यों की स्वीकार्य कसौटी के अनुसार जिला स्तर पर और उपजिला स्तर पर शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों की पहचान की जाये।
अध्याय 15 : शिक्षा के लिये संसाधन– यद्यपि परम्परागत रूप से शिक्षा को विकास माना जा रहा है लेकिन आठवें वित्त आयोग ने इसे गैरविकासात्मक क्षेत्र स्वीकार किया और फलतः इसकी स्थिति को उन्नत करने का आग्रह किया। इसके लिये आयोग ने भौतिक मानकों का अनुसरण किया।
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