दल शिक्षण क्या है ? दल शिक्षण विधि के उद्देश्य एवं सोपानों का वर्णन कीजिए। कक्षा में दल शिक्षण का नियोजन कैसे करते हैं ? लिखिये ।

दल शिक्षण क्या है ? दल शिक्षण विधि के उद्देश्य एवं सोपानों का वर्णन कीजिए। कक्षा में दल शिक्षण का नियोजन कैसे करते हैं ? लिखिये । 

                                        अथवा
दल शिक्षण का क्या अर्थ है ? इसके प्रकारों को स्पष्ट कीजिए। आप इस विधि द्वारा शिक्षण किस प्रकार आयोजित करते हैं ?
                                       अथवा
दल शिक्षण क्या होता है ? इसका आयोजन कैसे किया जाता है ?
उत्तर— टोली शिक्षण या दल शिक्षण विधि– इस पद्धति में एक साथ एक कक्षा में दो या अधिक अध्यापक अध्यापन कार्य करते हैं तथा कक्षा शिक्षण में एक दूसरे को सहयोग प्रदान करते हैं। इन शिक्षकों में एक शिक्षक संयोजक के रूप में कार्य करता है जो अन्य शिक्षकों के कार्यों में समन्वय लाता है। आधुनिक युग में शिक्षकों के साथ कुछ अन्य कर्मचारी तथा तकनीशियन भी कक्षा में जाने लगे हैं। ये व्यक्ति विद्युत व्यवस्था, शिक्षण यंत्रों के संचालन व लेखा-जोखा रखने का कार्य करते हैं। इस प्रविधि का विकास सर्वप्रथम सन् 1955 में ‘हावर्ड विश्वविद्यालय’ में हुआ। इसके बाद सन् 1960 में ब्रिटेन में इसका विकास ‘जे. फ्रीमैन’ ने किया । ‘शिकागो विश्वविद्यालय’ के ‘फ्रोसिस चेज’ ने टोली शिक्षण का प्रभावशाली प्रयोग शिक्षण के लिए किया ।
शैपलिन व ओल्ड के अनुसार, दल- शिक्षण अनुदेशात्मक संगठन का वह प्रकार है जिसमें शिक्षण प्रदान करने वाले व्यक्तियों को कुछ छात्र सुपर्द कर दिए जाते हैं। शिक्षण प्रदान करने वालों की संख्या दो या उससे अध्किा होती है जिन्हें शिक्षण का दायित्त्व सौपा जाता है तथा जो एक छात्र-समूह को सम्पूर्ण विषयवस्तु या उसके किसी महत्त्वपूर्ण अंग का एक साथ शिक्षण करते है । “
डेविड वारविक के अनुसार, “टोली शिक्षण संगठन का एक स्वरूप है जिसमें कई शिक्षक अपने साधनों रुचियों तथा दक्षताओं को इकट्ठा कर लेते हैं तथा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षकों की एक टोली द्वारा उन्हें प्रस्तुत किया जाता और स्कूल की सुविधाओं के अनुसार उपयोग किया जाता है। “
टोली- शिक्षण के उद्देश्य– टोली शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है—
(a) कक्षा को प्रभावी शिक्षण प्रदान करना ।
(b) शैक्षिक अनुदेशन में गुणात्मक विकास करना ।
(c) कक्षा को विशिष्टीकृत शिक्षण प्रदान करना।
(d) सहयोगी शिक्षा के अवसरों में वृद्धि करना ।
(e) शिक्षण, अनुदेशन में लोचशीलता लाना ।
(f) कक्षानुशासन बनाए रखना ।
(g) सहायक-सामग्री आदि के समुचित तथा विविध प्रयोग की संभावनाओं को बढ़ाना।
टोली शिक्षण या दल शिक्षण के प्रकार—
(1) एक ही विभाग के शिक्षकों की टोली– इस प्रकार की व्यवस्था माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के लिए एक ही विभाग के शिक्षकों से की जाती है। शिक्षा में उन सभी विभागों में सभी स्तर पर की जा सकती है जिनमें एक विषय के दो से अधिक शिक्षक होते है।
(2) एक ही संस्था के विभिन्न विभाग के शिक्षकों की टोली– इस प्रकार शिक्षण की व्यवस्था “अध्यापक- शिक्षा” तथा शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं में किया जाता है क्योंकि इन कक्षाओं के शिक्षण के लिए मनोविज्ञान, दर्शन, समाजशास्त्र तथा सांख्यिकी विभाग के शिक्षकों के सहयोग से टोली शिक्षण की व्यवस्था की जा सकती है। इससे अन्तः अनुशासन शिक्षण व्यवस्था को प्रोत्साहन मिलता है।
(3) विभिन्न संस्थाओं के एक ही विभाग के शिक्षकों की टोली– इसकी व्यवस्था प्रत्येक स्तर पर की जा सकती है इसमें अन्य संस्थाओं से विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाता है। एक नगर में कई प्रशिक्षण संस्थाएँ होने पर शिक्षण विषयों के लिए इसे प्रभावशाली ढंग से प्रयोग कर सकते हैं ।
टोली- शिक्षण के सिद्धान्त—
(1) अनुदेशन स्तर– टोली शिक्षण में विद्यार्थियों को आवश्यक अधिगम के प्रारम्भिक व्यवहार का अनुदेशन देने से पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए ।
(2) अधिगम वातावरण— टोली शिक्षण तभी सफल हो सकता है जब इसके लिए ठीक प्रकार का अधिगम वातावरण (जैसे— पुस्तकालय, प्रयोगशाला इत्यादि) की व्यवस्था हो ।
(3) निरीक्षण– समूह के उद्देश्यों पर निरीक्षण का प्रकार निर्भर होता है अतः समूह के उद्देश्यों को निरीक्षण के समय ध्यान में रखना आवश्यक है।
(4) शिक्षकों के उपयुक्त उत्तरदायित्व– शिक्षकों के उत्तरदायित्व का निर्धारण उनकी शैक्षिक योग्यताओं, रुचियों, क्षमताओं के अनुसार होना चाहिए।
(5) समय अवधि– टोली शिक्षण में विषय की माँग के महत्त्व इत्यादि के आधार पर समय सीमा निर्धारण करना चाहिए ।
(6) कक्षा आकार– समूह का आकार टोली शिक्षण के उद्देश्यों पर निर्भर करता है।
टोली शिक्षण के सोपान—
(1) योजना
(2) व्यवस्था
(3) मूल्यांकन ।
(1) योजना– सर्वप्रथम योजना तैयार करने हेतु निम्न क्रियाओं को करना महत्त्वपूर्ण हैं—
(a) टोली शिक्षण के उद्देश्य का निर्धारण करना ।
(b) उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली (रूप) में लिखना।
(c) विद्यार्थियों के पूर्व-ज्ञान का अनुमान लगाना ।
(d) शिक्षण के प्रकरण के विषय में निर्णय लेना।
(e) शिक्षकों को छात्रों की रुचियों व उनके कौशलों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्य देना ।
(f) अनुदेशन स्तर का निर्धारण करना।
(g) मूल्यांकन प्रविधियों का निर्धारण करना।
(h) शिक्षण सामग्री व अधिगम वातावरण तैयार करना।
(2) व्यवस्था– टोली शिक्षण की व्यवस्था के दौरान निम्न क्रियाएँ की जाती हैं—
(a) अनुदेशन के स्तर निर्धारण के लिए शिक्षक कुछ प्रश्न पूछकर अनुदेशन का स्तर निर्धारित करता है।
(b) विद्यार्थियों की व्यावहारिक भाषा को ध्यान में रखकर, शिक्षण सम्प्रेषण विधि का चयन किया जाता है।
(c) शिक्षक प्रमुख व्याख्यान देता है तथा टोली के अन्य सदस्य शिक्षक व्याख्यान के उन बिन्दुओं को नोट करता है जो विद्यार्थियों के लिए समझना कठिन होता है।
(d) तत्पश्चात् अन्य सदस्य शिक्षक व्याख्यान द्वारा विभिन्न तत्त्वों का स्पष्टीकरण करते हैं ।
(e) विद्यार्थियों की क्रियाओं को पुनर्बलन देकर विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हैं ।
(f) इन व्याख्यानों में विद्यार्थियों को कुछ कार्य कक्षा में ही करने के लिए दिया जाता है।
(3) मूल्यांकन– इस चरण में उद्देश्यों की प्राप्ति के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाता है इस चरण में निम्न क्रियाएँ होती हैं–
(a) विद्यार्थियों की निष्पत्तियों व उद्देश्य प्राप्ति के बारे में निर्णय लिया जाता है।
(b) मूल्यांकन के आधार पर योजना तथा व्यवस्था चरण में आवश्यक सुधार किया जाता है।
(c) मूल्यांकन के लिए मौखिक, लिखित प्रश्न व प्रयोगात्मक विधियों का अनुसरण किया जाता है।
(d) विद्यार्थियों की कमियों व कठिनाइयों का निदान किया जाता है और इनका आवश्यक उपचार भी किया जाता है।
(e) मूल्यांकन चरण के परिणाम विद्यार्थियों व शिक्षकों में पुनर्बलन का कार्य करते हैं ।
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