‘बालाघात’ हमारे श्रवण व वाचन कौशल को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
‘बालाघात’ हमारे श्रवण व वाचन कौशल को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर— बलाघात / दबाव ( Strees)– श्रवण कौशल के समान ही मौखिक कौशल में भी बलाघात / दबाव का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। आघात का सामान्य अर्थ है चोट । आघात दो प्रकार का होता है- एक में स्वर या तान का प्रयोग करते हैं और दूसरे में बल या श्वास-वायु का । इन्हें क्रमश: स्वराघात और बलाघात कहते हैं। स्वर के समान आघात भी किसी ध्वनि, शब्द या पूरे वाक्य में हो सकता है। तान या मात्रा के अपरिवर्तित रहते हुए भी आघात में अन्तर पड़ सकते हैं । बलाघात में किसी ध्वनि पर श्वास-वायु का विशेष धक्का देकर उच्चारण करते हैं और स्वराघात में स्व की उच्चता का प्रयोग करते हैं।
वाक्य के एक से अधिक शब्दों के अक्षरों के बलाघात को भी तुलनात्मक रूप में देखा जा सकता है, किन्तु इस प्रकार का तुलनात्मक मूल्यांकन प्राय: केवल एक शब्दों के अक्षरों का ही किया जाता है। उनके बलाघातों को क्रम से प्रथम बलाघात (सबसे प्रबल), द्वितीय बलाघात (उससे निर्बल), तृतीय बलाघात (उससे भी निर्बल), चतुर्थ बलाघात (तीसरे से निर्बल) आदि नामों से अभिहित किया जा सकता है। अंग्रेजी शब्द ‘ऑपाट्र्यूनिटी’ (Opportunity) में अक्षर हैं। तुलनात्मक दृष्टि से प्रथम बलाघात तीसरे अक्षर पर, द्वितीय पहले पर, तृतीय पाँचवें पर, चतुर्थ दूसरे पर और पंचम चौथे पर है। इसी रूप में बलाघात के सापेक्ष बल को लेकर विद्वानों ने इसके उच्च (Loud), उच्चार्द्ध (half loud), सामान्य, सशक्त या प्रबल (strong), अशक्त या निर्बल (weak) तथा मुख्य (primary), गौण (secondary) गौणातगौण या तृतीयक ( tertiary) आदि भेद किये हैं। मुख्य भेद हो ही होते हैं जिनके लिए उपर्युक्त में किसी युग्म या त्रिक में प्रथम दो का प्रयोग किया जा सकता है। अंग्रेजी शब्द ‘फादर’ (father) में प्रथम अक्षर मुख्य बलाघातयुक्त है और दूसरा गौण ।
भाषाविज्ञान के विद्वानों ने इस प्रकार अक्षर-बलाघात को ही शब्दबलाघात कहा है जिसका आशय है शब्द के अवयवों, अर्थात् अक्षरों पर बलाघात होना। बलाघात – प्रधान भाषाओं में शब्द के अक्षरों पर का बलाघात निश्चित होता है जिसे निश्चित बलाघात कहते हैं। भाषा को स्वाभाविक रूप में बोलने के लिए इनका ज्ञान और प्रयोग जरूरी है। भारतीय जब अंग्रेजी बोलते हैं तो उसे प्राय: बलाघातशून्य रूप से बोलते हैं, इसीलिए अंग्रेजों के लिए वह अस्वाभाविक लगती है और कभीकभी समझ में भी नहीं आती। यों तथाकथित बलाघातहीन भाषाओं में भी शब्द के अक्षरों पर बालाघात निश्चित होता है। जैसे हिन्दी में कुछ विशेष प्रकार के शब्दों में प्राय: अक्षर के उपात पर बलाघात होता है, इसी कारण अन्तिम ‘अ’ का लोप हो गया है, जैसे कमल, राम, दाल, आप आदि । अतः उपर्युक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि मौखिक-कौशल में प्रवीणता हासिल करने के लिए अर्थात् उसको विकसित करने के लिए इसका उचित ज्ञान एवं प्रयोग जरूरी है।
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