संगीत वाद्य तथा उनके प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
संगीत वाद्य तथा उनके प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर— वाद्य ‘वाद्य’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘वादनीय’ या ‘बजाने योग्य यंत्र विशेष’ यह शब्द ‘वद्’ धातु से उत्पन्न हुआ है।’ वदतीति वाद्यम्’ जो बोलता है, वही वस्तुतः वाद्य है। ध्यानपूर्वक सुनें तो वाद्य में हमें स्वरों और उसमें बंधे शब्दों का स्पष्ट उच्चारण सुनाई भी देता है ।
प्रकृति से प्रेरणा पाकर मनुष्य ने वाद्यों का विकास व सृजन किया । संगीत वाद्यों का क्रमिक विकास विश्व की मानव जाति का एक सम्मिलित प्रयास है। मनुष्य का आदिमतम् संगीत वाद्य ‘ताली’ रहा होगा, अर्थात् मनुष्य अपने शरीर के विभिन्न भागों पर हाथों द्वारा आघात करके लय-रूपों का आनन्द प्राप्त करता था। जंगल में विचरण करते मानव ने बाँस वनों में हवा बहने पर एक मधुर ध्वनि से प्रभावित हो, फूँक-वाद्यों की रचना की होगी। वृक्ष की सूखी फलियाँ जब हवा के झोंके से हिलने लगीं तो मानव उस ध्वनि की ओर आकर्षित हुआ और झुनझुना, घुँघरू आदि वाद्यों की कल्पना को आकार दिया होगा ।
प्राचीन चित्रकला व मूर्तिकला के ऐसे कई उदाहरण प्राप्त होते हैं, जिनसे विभिन्न वाद्यों के प्रयोग की जानकारी मिलती है; यथा—डमरू, वीणा, बंशी, घंटा, शंख, ढोल, नगाड़े, घुँघरू आदि ।
वाद्यों के प्रकार–वादन क्रिया एवं वाद्यों की संरचना के आधार पर वाद्यों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है। वाद्यों के प्रमुख चार प्रकार निम्नलिखित हैं—
(1) तन्तु वाद्य
(2) अवनद्ध वाद्य
(3) सुषिर वाद्य
(4) घन वाद्य
(1) तत वाद्य या तंतु वाद्य–इस श्रेणी के वाद्यों में तारों के द्वारा स्वरों की उत्पत्ति होती है। इनके भी दो प्रकार हैं—(i) तत वाद्य और (ii) वितत वाद्य । तत वाद्यों की श्रेणी में तार के वे साज आते हैं, जिन्हें मिजराब या अन्य किसी वस्तु की टंकोर देकर बजाते हैं; जैसे—वीणा, सितार, सरोद, तानपूरा, इकतारा, दुतारा इत्यादि । दूसरी वितत वाद्यों की श्रेणी में गज की सहायता से बजने वाले साज आते हैं; जैसे—इसराज, सारंगी, वायलिन इत्यादि ।
(2) अवनद्ध वाद्य–इस श्रेणी में चमड़े से मढ़े हुए ताल-वाद्य आते हैं; जैसे—मृदंग, तबला, ढोलक, खंजरी, नगाड़ा, डमरू, ढोल इत्यादि ।
(3) सुषिर वाद्य–इस श्रेणी में फूँक या हवा से बजने वाले वाद्य आते हैं; जैसे—बाँसुरी, हारमोनियम, क्लारनेट, शहनाई, बीन, शंख इत्यादि ।
(4) घन वाद्य–इस श्रेणी के वाद्यों में चोट या आघात से स्वर उत्पन्न होते हैं; जैसे-जलतरंग, मंजीरा, झाँझ, करताल, घंटातरंग, पियानो इत्यादि ।
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