दैनिक जीवन में रसायन (Chemistry in Everyday Life)
दैनिक जीवन में रसायन (Chemistry in Everyday Life)
दैनिक जीवन में रसायन (Chemistry in Everyday Life)
रसायन हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कपड़े जो हम पहनते हैं, मंजन, तेल, अपमार्जक कंघा, आदि जिनका हम प्रयोग करते हैं, दूसरी अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ; जैसे पेन्ट, वार्निश, औषधियाँ, रंजक, काँच, सीमेन्ट, आदि सभी रसायन की देन हैं।
साबुन और अपमार्जक (Soaps and Detergents)
इनका प्रयोग शोधन अभिकर्मक (cleansing agent) के रूप में किया जाता है। ये चिकनाई (वसा) के निष्कासन (removal) में सहायता करते हैं जो कपड़ों और त्वचा के साथ दूसरे पदार्थों को चिपका देती है।
साबुन ( Soaps)
साबुन दीर्घ श्रृंखला वाले वसा अम्लों ( RCOONa); जैसे स्टिएरिक अम्ल (C17H35 COOH), ओलिक अम्ल (C17H33 COOH) और पामिटिक अम्ल (C15H31 COOH) के सोडियम और पोटैशियम लवण हैं। इन्हें पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त किया जाता है। साबुनों का उपयोग जल के शोधन गुण को बढ़ाने के लिए किया जाता है। ये जैव निम्नीकृत यौगिक हैं।
निर्माण (साबुनीकरण अभिक्रिया) [Manufacture (Saponification Reaction)]
जब वसा (वसा अम्लों के ग्लिसरिल एस्टरों) को जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन के साथ गर्म किया जाता है तो साबुन (soaps) बनते हैं। यह अभिक्रिया साबुनीकरण अभिक्रिया कहलाती है।
◆ साबुन का अवक्षेपण करने के लिए विलयन में सोडियम क्लोराइड मिलाया जाता है।
◆ केवल सोडियम और पोटैशियम साबुन जल में विलेय होते हैं और शोधन में प्रयुक्त किए जाते हैं।
साबुन के प्रकार (Types of Soaps)
साबुन निम्न प्रकार के होते हैं
(i) प्रसाधन साबुन (Toilet Soaps) ये उत्तम प्रकार के वसा एवं तेलों से बनाये जाते हैं तथा इनमें से क्षार के आधिक्य को निकाल दिया जाता है। इन्हें आकर्षक बनाने के लिए इनमें रंग और सुगन्ध भी डाले जाते हैं।
(ii) पानी में तैरने वाले साबुन (Floating Soaps) इन्हें बनाने के लिए इन्हें सख्त होने से पहले वायु के छोटे बुलबुले विस्पन्दित किए जाते हैं।
(iii) पारदर्शी साबुन (Transparent Soaps) ये साबुन को एथेनॉल (एथिल ऐल्कोहॉल) में घोलकर और फिर विलायक के आधिक्य को वाष्पित करके बनाए जाते हैं।
(iv) औषध-साबुन (Medicated Soaps) इनमें औषधिय गुण वाले पदार्थ डाले जाते हैं।
(v) दाढ़ी बनाने वाले साबुन (Shaving Soaps) जल्द सूखने से रोकने के लिए इनमें ग्लिसरॉल होता है। इन साबुनों में रोजिन नामक गोंद डाली जाती है जिससे सोडियम रोजिनेट बनता है जो अच्छी तरह झाग बनाता है।
(vi) धुलाई के साबुन (Laundary Soaps) इनमें पूरक जैसे सोडियम रोजिनेट, सोडियम सिलिकेट, बोरेक्स और सोडियम कार्बोनेट होती हैं।
(vii) साबुन पाउडर और मार्जन साबुन (Soap Powders and Scouring Soaps) इनमें कुछ साबुन, मार्जक (अपघर्षों) जैसे कि झामक चूर्ण (powdered pumice) या बारीक रेत तथा सोडियम कार्बोनेट और ट्राइसोडियम फॉस्फेट जैसे बिल्डर होते हैं।
(viii) दानेदार साबुन (Soap Granules) ये सूखे हुए छोटे-छोटे साबुन के बुलबुले होते हैं।
अच्छे साबुन की विशेषताएँ (Characteristics of a Good Soap)
(i) इसमें मुक्त क्षार नहीं होना चाहिए।
(ii) इसमें 10% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।
(iii) यह ऐल्कोहॉल में विलेय होनी चाहिए तथा प्रयोग करते समय इसे चटकना नहीं चाहिए।
साबुन कठोर जल में कार्य क्यों नहीं करतें ? (Why soaps does not workin hard water?)
साबुन कठोर जल में उपस्थित कैल्सियम और मैग्नीशियम आयनों से अभिक्रिया करके क्रमशः अघुलनशील कैल्सियम और मैग्नीशियम साबुन बनाते हैं। ये मलफेन (scum) की तरह पानी से अलग हो जाते हैं तथा कपड़ों पर चिपचिपे पदार्थ की तरह चिपक जाता है। कठोर जल में धुले बाल इस चिपचिपे पदार्थ (अवक्षेप) के कारण कान्तिहीन लगते हैं।
√ सामान्यता सोडियम साबुनों की अपेक्षा पोटैशियम साबुन मुलायम होते हैं।
√ अम्लीय माध्यम में साबुन जल अपघटित होकर संगत अविलेय दीर्घ शृंखला युक्त वसा अम्ल देते हैं। तथा इस प्रकार अपने शोधन प्रभाव को खो देते हैं।
अपमार्जक (Detergents)
इनमें साबुन के सभी गुण होते हैं लेकिन ये वास्तव में साबुन नहीं होते। ये मृदु और कठोर दोनों प्रकार के जल में उपयोग किए जाते हैं, क्योंकि इनके कैल्सियम और मैग्नीशियम लवण जल में विलेय होते हैं। अतः मलफेन नहीं बनता है। ये अम्लीय माध्यम में भी उपयोग किए जा सकते हैं। अतः ये साबुनों की अपेक्षाकृत प्रबल शोधन गुण रखते हैं। रासायनिक तौर पर अपमार्जक लम्बी श्रृंखला वाले वसीय अम्लों के (12-18 कार्बन परमाणु वाले) के एल्किल सल्फेट या सल्फोनेट या अमोनियम लवण हैं; जैसे सोडियम लॉराइल सल्फेट, सोडियम p-डोडेसिल बेन्जीन सल्फोनेट। सामान्यता इन्हें वनस्पति तेलों से प्राप्त किया जाता है।
संश्लेषित अपमार्जकों का वर्गीकरण (Classification of Synthetic Detergents)
इन्हें मुख्यतया तीन वर्गों में बाँटा गया है
(i) ऋणायनी अपमार्जक (Anionic Detergents ) ये लम्बी श्रृंखला वाले ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सल्फोनित व्युत्पन्न होते हैं। उदाहरण सोडियम एल्किल बेन्जीन सल्फोनेट। इन अपमर्जकों का ऋणायनी भाग शोधन क्रिया में भाग लेता है।
उपयोग (Uses) इनका उपयोग घरेलू कार्यों तथा टूथपेस्ट (मंजन) में किया जाता है।
(ii) धनायनी अपमार्जक (Cationic Detergents) ये ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड ऋणायनों के साथ बने ऐमीनों के चतुष्क अमोनियम लवण हैं। उदाहरण सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड। यह जीवाणुनाशक होते हैं।
उपयोग (Uses) सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम ब्रोमाइड केश कण्डीशनरों में डाला जाता है।
(iii) अनआयनिक अपमार्जक (Non-ionic Detergents) इनकी संरचना में कोई आयन नहीं होता है। उदाहरण आंशिक एस्टरीकृत यौगिक जैसे पेन्टाएरीथीटोल मोनोस्टिएरेट (penta aerythritol monostearate)।
उपयोग (Uses) बर्तन धोने के द्रव अपमार्जक के रूप में।
साबुनों पर अपमार्जकों की हानियाँ (Disadvantages of Detergents over Soaps)
साबुन जैव निम्नीकृत होते हैं जबकि अपमार्जक जिनमें हाइड्रोकार्बन श्रृंखला अधिक शाखित होती हैं वे अजैव निम्नीकृत (non-biodegradable) होते हैं। और जल प्रदूषण करते हैं।
आजकल सीधी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला (या निम्नतम शाखित हाइड्रोकार्बन शृंखला) वाले अपमार्जक जो कि जैव निम्नीकृत होते हैं का प्रयोग प्रदूषण रोकने के लिए किया जाता है।
रंजक (Dyes)
वे पदार्थ जो रेशों और खाद्य पदार्थों के रंगने में प्रयुक्त होते हैं, रंजक कहलाते हैं। पदार्थ में उपस्थित क्रोमोफोर समूह जैसे नाइट्रो, ऐजो, आदि रंग के लिये उत्तरदायी होते हैं। ये समूह श्वेत प्रकाश का कुछ भाग अवशोषित कर लेते हैं। अतः बाहर दिखने वाले प्रकाश का रंग अवशोषित रंग का पूरक होता है।
रंजकों का वर्गीकरण (Classification of Dyes)
रंजकों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है
I. अनुप्रयोग के आधार पर (On the Basis of Applications)
(i) अम्लीय रंजक (Acid Dyes) ये अपने सोडियम लवणों के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं जो जल में विलेय है। ये ऊन सिल्क और नायलॉन को सीधे-रंगने में प्रयुक्त किए जाते हैं लेकिन सूती कपड़े रंगने में इनका प्रयोग नहीं किया जाता है। उदाहरण मेथिल आरेन्ज, मेथिल रेड, कॉन्गो रेड, आरेन्ज-I, आरेन्ज- II, आदि ।
(ii) क्षारीय रंजक (Basic Dyes) ये नायलॉन और पॉलिएस्टर को रंगने में प्रयुक्त होते हैं। उदाहरण एनिलीन यैलो, मैलेकाइट ग्रीन, आदि ।
(iii) प्रत्यक्ष रंजक (Direct Dyes) इनके जलीय विलयन में डुबाकर सीधे- रेशों को रंगा जाता है। उदाहरण मार्शियस यैलो, कॉन्गो रेड ।
(iv) परिक्षिप्त रंजक (Disperse Dyes) ये परिक्षिप्त रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। उदाहरण सेलिटॉन फॉस्ट, पिंक-बी।
(v) रेशा क्रियाशील रंजक (Fibre Reactive Dyes) रासायनिक अभिक्रिया द्वारा ये रेशों से चिपक जाते हैं। उदाहरण प्रोसियॉन, सिबा क्रॉन आदि ।
(vi) वेट रंजक (Vat Dyes) ये विशेषतया सूती कपड़ों को रंगने में काम आते हैं उदाहरण इण्डिगो।
(vii) बन्धक रंजक (Mordant Dyes) इन रंजकों को रेशे (fibre) और रंजक के बीच रंग बन्धक की आवश्यकता होती है। रंग बन्धकों के आधार पर एक ही रंजक विभिन्न रंग देता है उदाहरण ऐलिजेरिन ऐलुमिनियम के साथ चमकीला लाल तथा बेरियम के साथ नीला रंग देता है।
II. रासायनिक संघटन के आधार पर (On the Basis of Chemical Composition)
(i) ऐजो रंजक (Azo Dyes) उदाहरण मेथिल आरेन्ज, कॉन्गो रेड।
(ii) थैलीन रंजक (Phthalein Dyes) उदाहरण फिनॉल्फ्थैलीन और मयूरोक्रोम, फ्लोरीसीन, आदि ।
(iii) इन्डिगोइड रंजक (Indigoid Dyes) उदाहरण इण्डिगो (नील) और टायरिकन पर्पल।
(iv) एन्थ्रेक्विनोन रंजक (Anthraquinone Dyes) उदाहरण ऐलिजेरिन (प्राकृतिक रंजक), टर्की रेड, आदि।
(v) ट्राइफेनिल मेथेन रंजक (Triphenyl Methane Dyes) उदाहरण मैलेकाइट ग्रीन ।
बहुलक (Polymers)
बहुलक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘पॉली’ अर्थात् अनेक और ‘मर’ अर्थात् ‘इकाई / भाग’ से हुई है। बहुलक एक बृहदणु है जो कि पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाईयों के बृहत पैमाने पर जुड़ने से बनते हैं। पुनरावृत्त संरचनात्मक इकाईयाँ कुछ सरल और क्रियाशील अणुओं से प्राप्त होती है, जो एकलक (monomer) कहलाती है।
बहुलकीकरण (Polymerisation)
बहुलकों के सम्बन्धित एकलकों से विरचन के प्रक्रम को बहुलकीकरण कहते हैं। यह विशिष्ट दशाओं में होता है। उदाहरण जब ऐसीटिलीन गैस को लाल तप्त कॉपर की नली में गर्म किया जाता है तो इसके तीन अणु संयोग करके बेन्जीन देते हैं जो ऐसीटिलीन का बहुलक माना जाता है।
बहुलकन निम्न दो प्रकारों से हो सकता है
(i) योगज बहुलकन (Addition Polymerisation) इस प्रकार के बहुलकन में लघु अणुओं; जैसे जल (H2O), अमोनिया (NH), आदि के निराकरण के बिना एकलक अणु एक दूसरे से संयोग करते हैं। अतः प्राप्त बहुलक का अणुभार एकलक के अणुभार का बहुगुणक होता है। सामान्यता यह उत्क्रमणीय प्रक्रम है। PVC, पॉलिथीन, पॉलिस्टाइरीन, रबड़ इस प्रक्रम द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।
(ii) संघनन बहुलक (Condensation Polymerisation) इस प्रकार के बहुलकन में लघु इकाईयों; जैसे जल (H2O), अमोनिया (NH, ), आदि के निराकरण के साथ दो भिन्न एकलक अणु एक दूसरे से संयोग करते हैं। ऐसे बहुलक (इस प्रक्रम से प्राप्त बहुलक) का अणुभार एकलक के अणुभार का बहुगुणक नहीं होता है। टैरिलीन, नायलॉन, आदि इस प्रक्रम से प्राप्त किए जाते हैं।
प्लास्टिक (Plastics)
ये उच्च अणुभार वाले कार्बनिक बहुलक हैं। ये बनने के समय मुलायम रहते हैं तथा किसी भी आकार में ढ़ाले जा सकते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
1. प्राकृतिक प्लास्टिक (Natural Plastics)
ये पादप पदार्थों से बनायें जाते हैं; उदाहरण स्टार्च, सेलुलोस, आदि ।
2. कृत्रिम प्लास्टिक ( Synthetic Plastics)
ये प्रयोगशाला या इण्डस्ट्रीज में बनाए जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
(i) थर्मोप्लास्टिक (Thermoplastic) कुछ प्लास्टिक जो गर्म करने पर आसानी से विकृत हो जाते हैं तथा आसानी से मोड़े जा सकते हैं (गर्म करने पर मृदुल और ठण्डा करने पर कठोर हो जाते हैं) थर्मोप्लास्टिक कहलाते हैं। पॉलिथीन, पॉलिस्टाइरीन, टेफ्लॉन, और PVC थर्मोप्लास्टिक के कुछ उदाहरण हैं।
(ii) थर्मोसेटिंग प्लास्टिक (Thermosetting Plastic) कुछ प्लास्टिक ऐसे होते हैं जिन्हें एक बार आकार में ढ़ालने के पश्चात् दोबारा गर्म करके मुलायम नहीं बनाया जा सकता है। इन्हें थर्मोसेटिंग प्लास्टिक कहते हैं। ये अनुत्क्रमणीय हैं और ताप दृढ़ बहुलक कहलाते हैं। बैकेलाइट और मेलैमीन दो उदाहरण हैं।
(a) बैकेलाइट (Bakelite) फीनॉल (C6H5 OH) व फॉर्मेल्डिहाइड (HCHO) का सहबहुलक है जो सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) की उपस्थिति में बनता है। यह ऊष्मा और विद्युत का कुचालक है। यह कंघियों, फोनोग्राफ रेकॉर्ड, अभिलेखों, विद्युत स्विचों तथा बर्तनों के हत्थे बनाने में प्रयुक्त किया जाता है।
(b) मेलैमीन (Melamine) यह अग्निरोधी है। यह दूसरे प्लास्टिकों की अपेक्षा अच्छे से ऊष्मा सहन कर सकता है। इसका उपयोग फर्श की टाइलों, अभंजनीय बर्तनों तथा अग्निरोधी परिधानों के निर्माण में किया जाता है।
◆ सभी प्लास्टिकों की संरचना एकसमान नहीं होती। कुछ में यह रेखीय हैं (PVC, पॉलिथीन), जबकि दूसरों में यह तिर्यक बन्धित है (बैकेलाइट, मेलैमीन) ।
◆ प्लास्टिसाइजर कठोर और भंगुर प्लास्टिक को मुलायम और आसानी से ढ़लने योग्य प्लास्टिक में परिवर्तित कर देते हैं।
◆ प्लास्टिसाइजर उच्च क्वथनांक वाले एस्टर या हैलोएल्केन (एल्किल हैलाइड) होते हैं।
◆ पॉलिकार्बोनटों का उपयोग गोलीरोधी काँच, फ्रिज कन्टेनर, मिक्सी, जार तथा बच्चों की दूध की बोतलें, आदि बनाने में किया जाता है।
◆ ग्लिप्टल (glyptal) और वीटल (veetal) थर्मोसेटिंग प्लास्टिक के उदाहरण हैं।
प्लास्टिक के गुणधर्म (Properties of Plastic)
ये अनभिक्रियाशील, हल्के प्रबल और चिरस्थाई हैं। ये ऊष्मा और विद्युत के कुचालक हैं।
◆ माइक्रोवेव ओवन में भोजन पकाने हेतु विशिष्ट प्लास्टिक पात्र उपयोग में लाए जाते हैं। माइक्रोवेव ओवन में ऊष्मा खाद्य पदार्थों को पका देती है, परन्तु प्लास्टिक पात्र को प्रभावित नहीं करती।
रबड़ (Rubber)
रवड़ एक प्राकृतिक बहुलक है। यह रबड़ के लैटेक्स (भूमध्य रेखीय सदाबहार वनों में पाए जाने वाले वृक्षों का दूध) से प्राप्त किया जाता है जो कि रबड़ का जल में कोलॉइडी विलयन होता है। पूर्व में इसका प्रयोग कागज पर ग्रेफाइट (पेन्सिल) के निशान मिटाने लिए किया जाता था इसलिए इसका नाम रबड़ पड़ा। बाद में इसके अनेक दूसरे गुणों; जैसे प्रत्यास्थता (elasticity), जल अवशोषण क्षमता, आदि में सुधार करके इसका प्रयोग अनेकों उद्देश्यों में किया जाता है। पहले रखड़ को आमेजन और जायरे के जंगलों से प्राप्त किया जाता था। आमेजन नदी द्रोणी रबड़ के उत्पादन का मुख्य क्षेत्र है। इस कारण रबड़ को wild rubber भी कहते हैं। बीसवीं सदी के आरम्भ में मलाया और दक्षिण पूर्व एशिया में रबड़ की खेती की जाने लगी।
यह दो प्रकार की होती है
1. प्राकृतिक रबड़ (Natural Rubber)
इसे रवड़ के वृक्ष के लैटेक्स से प्राप्त किया जाता है यह आइसोप्रीन का समपक्ष बहुलक है या दूसरे शब्दों में यह समपक्ष-पॉलिआइसोप्रीन (cis-polyisoprene) है। इसे स्प्रिंग की तरह खींचा जा सकता है और यह प्रत्यास्थ गुण प्रदर्शित करती है।
2. संश्लेषित रबड़ (Synthetic Rubber)
इसकी खोज मैथ्यूस और हैरिस (Mathews and Hariss) ने की थी। निओप्रीन रबड़ और थाइकॉल रबड़, आदि संश्लेषित रबड़ के उदाहरण हैं।
(i) निओप्रीन रबड़ (Neoprene Rubber) क्लोरोप्रीन (2-क्लोरो-1,3 -ब्यूटाडाईन) के बहुलकन द्वारा बनती है तथा संश्लेषित रबड़ भी कहलाती है। इसमें वनस्पति और खनिज तेल के प्रति उत्कृष्ट प्रतिरोध होता है। इसका उपयोग वाहक पट्टे, गैस्केट विद्युत केवल और हौजों के बनाने में किया जाता है।
(ii) ब्यूना-N (Buna-N) 1, 3- ब्यूटाडाईन और ऐक्रिलोनाइट्राइल के बहुलकन द्वारा बनती है। इसका प्रयोग तेल सील, टंकी के लिए अस्तर, आदि के लिए किया जाता है।
(iii) थाईकॉल (Thiokol) यह रबड़ डाइक्लोरोऐथेन और पॉलिसल्फाइड की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त की जाती है। अन्य रसायनों के साथ इसका मिश्रण रॉकेट ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि यह ऑक्सीजन मुक्त करता है। यह ठोस प्रणोदक है। थाईकॉल का प्रयोग खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में, विलायक जमा करने वाली टंकी के अस्तर बनाने में किया जाता है।
रबड़ का वल्कनीकरण (Vulcanisation of Rubber)
इस प्रक्रिया में अपरिष्कृत रबड़ को इसके गुणों जैसे प्रतिरोध और प्रत्यास्थ को सुधारने के लिए सल्फर के साथ गर्म किया जाता है। प्राप्त वल्कनीकृत रबड़ मजबूत, रसायनों के प्रति अधिक प्रतिरोधी तथा उच्च ताप सहन करने वाली होती है।
◆ टायर बनाने के लिए प्रयुक्त होने वाली रबड़ के उत्पादन में 5% सल्फर का उपयोग तिर्यक बन्धक के रूप में किया जाता है और बैटरी केस बनाने में 30% सल्फर का उपयोग किया जाता है।
◆ ब्यूना-S (ब्यूटाडाईन स्टाईरीन रबड़) का उपयोग बबलगम (bubble gums) बनाने में किया जाता है।
◆ लाक्षा (lac) प्राकृतिक प्लास्टिक है।
रेशे (Fibres)
रेशे की लम्बी तथा धागेनुमा संरचनाएँ होती हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
1. प्राकृतिक रेशे (Natural Fibres)
इन्हें जन्तुओं और पौधों से प्राप्त किया जाता है, ये जैव निम्नीकरणीय होते हैं। पौधों से मिलने वाले रेशे सेलुलोस के बने होते हैं। सेलुलोस बड़ी संख्या में ग्लूकोस इकाईयों से निर्मित होता है। सेलुलोस कागज और टेक्सटाईल उद्योग में काम आता है। कॉटन (कपास), सन, जूट, आदि पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे हैं। जन्तुओं से प्राप्त रेशे जैसे ऊन, रेशम, आदि प्रोटीन से बने होते हैं।
2. अर्द्ध-संश्लेषित रेशे (Semisynthetic Fibres)
ये प्राकृतिक रेशों को कुछ रसायनों द्वारा उपचारित करके प्राप्त किए जाते हैं। उदाहरण रेयॉन (Rayon) यह काष्ठ लुगदी (सेलुलोस – एक प्राकृतिक रेशा) के रासायनिक उपचार द्वारा प्राप्त किया जाता है। सर्वप्रथम रेयॉन बनाने के लिए सेलुलोस (काष्ठ लुगदी) को सान्द्र तथा ठण्डे सोडियम हाइड्रॉक्साइड तथा बाद में कार्बन डाइसल्फाइड से उपचारित करके विस्कोस (viscose) प्राप्त करते हैं। ये ही कारण है कि कभी-कभी रेयॉन को विस्कोस रेयॉन (viscose rayon) कहा जाता है। विस्कोस को धातु बेलनों में बने छिद्रों में से तनु सल्फ्यूरिक अम्ल में गिराया जाता है। यहाँ विस्कोस लम्बे रेशों में परिवर्तित हो जाता है। बैड की चादरें बनाने के लिए रेयॉन को कॉटन के साथ तथा कालीन बनाने के लिए रेयॉन को ऊन के साथ मिश्रित किया जाता है। इसका उपयोग औषधि क्षेत्र में लिंट या जाली बनाने के लिए किया जाता है।
3. संश्लेषित रेशे (Synthetic Fibres)
इन्हें प्रयोगशालाओं या इण्डस्ट्रीज में रसायनों से प्राप्त किया जाता है। ये विभिन्न प्रकार के हैं; जैसे कार्बन फाइबर नायलॉन, पॉलिएस्टर, धात्विक रेशे, सिलिकॉन कार्बाइड रेशे, आदि। कुछ संश्लेषित रेशे इस प्रकार हैं
संश्लेषित रेशों के लाभ (Advantages of Synthetic Fibres)
ये प्राकृतिक रेशों की अपेक्षा शीघ्र सूखने वाले अधिक चलाऊ, कम महँगें, आसानी से उपलब्ध और रख-रखाव में सुविधाजनक होते हैं।
संश्लेषित रेशों की हानियाँ (Disadvantages of Synthetic Fibres)
संश्लेषित रेशे गर्म करने पर पिघल जाते हैं। रसोईघर या प्रयोगशाला में कार्य करते हुए हमें संश्लेषित वस्त्र नहीं पहनने चाहिए क्योंकि ये आसानी से आग पकड़ लेते हैं तथा पिघलकर पहनने वाले व्यक्ति के शरीर से चिपक जाते हैं।
◆ सर्वप्रथम नायलॉन, सन् 1935 में संश्लेषित किया गया था।
◆ पेट (PET) एक बहुत सुपरिचित प्रकार का पॉलिएस्टर है इसका प्रयोग बोतलें, बर्तन, फिल्म, तार और अन्य उपयोगी उत्पादों के निर्माण में किया जाता है।
◆ पॉलिकॉट, पॉलिएस्टर और कपास का मिश्रण है। पॉलिवूल, पॉलिएस्टर और ऊन का मिश्रण है।
◆ संश्लेषित रेशे पेट्रोरसायनों से विविध प्रक्रमों द्वारा तैयार किए जाते हैं।
◆ केवलर बुलेट प्रुफ जैकेट बनाने में प्रयुक्त किया जाता है।
सिरेमिक (Ceramics)
मृत्तिका सिरेमिक उद्योग में प्रयोग किए जाने वाला अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कच्चा पदार्थ है। शुद्ध अवस्था में मृत्तिका (clay) ऐलुमिनियम सिलिकेट है। चीनी मिट्टी (China clay) में मुख्यता अपघटित फेल्स्पार (feldspar) तथा अल्प मात्रा में क्वार्ट्ज (quartz) और माइका (mica) हैं।
सिरेमिक के उपयोग (Uses of Ceramics)
(i) पॉटरी (मिट्टी के बर्तन), टाइलें, सैनिटरी उपकरण, बिल्डिंग ब्रिक्स (ईटें), आदि, कुछ लोकप्रिय सिरेमिक उत्पाद हैं।
(ii) ऊष्मा सह ईंटें भट्टियों में अस्तर के लिए प्रयोग की जाती हैं।
(iii) अपघर्षक सिरेमिक सिलिकॉन और टंगस्टन कार्बाइड के बने होते हैं जो कर्तन और पीसने वाले औजार में प्रयोग किए जाते हैं।
(iv) कुछ सिरेमिक्स बहुत कम तापमान प्राप्त करने के लिए अतिचालक के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
औषध (Drugs)
औषध निम्न आण्विक द्रव्यमान के रसायन हैं। जब इनमें से कुछ का उपयोग रोगों के निदान, निवारण और उपचार के लिए किया जाता है तो इन रसायनों को औषध (medicines) कहते हैं।
औषध को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है
प्रतिज्वरकारी (Antipyretics)
Anti का अर्थ है ‘प्रति’ तथा pyretics का अर्थ है ‘ज्वर सम्बन्धी’। इनका प्रयोग शरीर का दर्द कम करने और बुखार उतारने के लिए किया जाता है। ऐस्प्रिन, क्रोसीन, ब्रूफेन, फिनैसिटिन, पैरासिटामॉल, एनलजिन, नॉवेलजिन, आदि दवाएँ प्रतिज्वरकारी के रूप में प्रयोग की जाती है।
पीड़ाहारी (Analgesics)
पीड़ाहारी दर्द को बिना चेतना – क्षीणता, असमन्वय या पक्षाघात अथवा तन्त्रिका तन्त्र में अन्य कोई बाधा उत्पन्न किए, कम अथवा समाप्त करते हैं। जैसे ऐस्प्रिन, पैरासिटामॉल, मार्फीन, (मार्फीन एक ओपियम एल्केलॉइड है जो पोस्ता (poppy) से प्राप्त किया जाता है) आदि ।
ऐस्प्रिन ऐसीटिल सेलिसिलिक अम्ल है यह ज्वरहारी (बुखार के दौरान शरीर का तापमान कम करता है) और पीड़ाहारी दोनों की तरह कार्य करता है। यह रक्त के थक्के न बनने देने के प्रभाव के कारण दिल के दौरे रोकने में भी प्रयुक्त किया जाता है। मॉर्फीन स्वापक – जिसकी आदत पड़ जाए (narcotic-addictive) पीड़ाहारी है यह ओपियम पौपी से प्राप्त किया जाता है। मारीजुआना (marijuana) राहत पहुँचाने वाला है।
प्रतिजैविक (Antibiotics)
ये रसायन सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि रोकते हैं या इनका विनाश करते हैं। इन्हें सूक्ष्मजीवियों से प्राप्त किया जाता है तथा दूसरे सूक्ष्मजीवियों को नष्ट करने में प्रयुक्त किया जाता है। सन् 1928 में एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने प्रथम प्रतिजीवाणु पेनिसिलिन की खोज की। पेनिसिलिन (जो कवक से प्राप्त की जाती है), ऐमीनोलाइकोसाइड, ऑफ्लोक्सासिन जीवाणुनाशी (bactericidal) है जबकि एरिथ्रोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन, क्लारैम्फेनिकॉल जीवाणु निरोधी (bacteriostatic) प्रतिजीवाणु है। ऐम्पिसिलिन, ऐमॉक्सीसिलिन, क्लोरैम्फेनिकॉल (जो मनुष्यों के लिए दवा के रूप में आखिरी सहारा मानी जाती हैं), वेंकोमाइसिन और ऑफ्लोक्सासिन विस्तृत स्पैक्ट्रम प्रतिजीवाणु (broad spectrum antibiotics) हैं, जो विस्तृत परास के जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के विरूद्ध प्रभावी होते हैं। पेनिसिलिन G एक संकीर्ण स्पैक्ट्रम प्रतिजीवाणु (narrow spectrum antibiotics) है, जो विशेष प्रकार के बैक्टीरिया के विरूद्ध प्रभावी है।
सल्फा औषध (Sulpha Drugs)
इन दवाओं में सल्फर और नाइट्रोजन भी होते हैं। सल्फापिरीडिन, सल्फाडिआजिन, सल्फागुआनिडिन और सल्फाथायजोल कुछ महत्त्वपूर्ण सल्फा औषध हैं। ये बैक्टीरिया संक्रमण के विरूद्ध प्रभावी हैं। सल्फैनिल ऐमाइड, प्रथम सल्फा औषध थी जिसको सन् 1908 में बनाया गया।
प्रतिरोधी (Antiseptic)
ये सूक्ष्मजीवियों का विनाश करते हैं या उनकी वृद्धि को रोकते हैं। लेकिन ये सजीव ऊतकों के लिए हानिकारक नहीं हैं। जैसे फ्यूरासिन, सोफ्रामाइसिन, आदि ये प्रतिजैविकों के समान खाए नहीं जाते हैं। डेटॉल, बिथियोनल, टिंक्चर आयोडीन, बोरिक अम्ल और 0.2% फीनॉल का जलीय विलयन अन्य पूतिरोधी हैं।
विसंक्रामी (Disinfectants)
इनका प्रयोग निर्जीव वस्तुओं जैसे फर्श, नालियों और यन्त्रों, आदि पर किया जाता है। उदाहरण फीनॉल का 1% विलयन, फिनाइल।
निश्चेतक (Anaesthesia)
ये औषधि संवेदी अंगों को बन्द कर देती हैं। अतः मुख्य बड़ी शल्य क्रिया (सर्जरी) के दौरान दिए जाते हैं। प्रथम निश्चेतक डाइएथिल ईथर (diethyl ether) विलियम मॉर्टेन (William Morten) द्वारा 1846 में प्रयुक्त किया गया था। क्लोरोफॉर्म को एक बार सामान्य निश्चेतक की तरह जेम्स सेम्पसन (James Sampson) ने सर्जरी में प्रयुक्त किया था लेकिन इसका स्थान कम विषैले (less toxic), अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित निश्चेतक जैसे ईथर ने ले लिया। कोकेन, डिआजेपाम (diazepalm), हैलोथेन (halothane), नाइट्रस ऑक्साइड, पेन्टोथेल सोडियम (pentothal sodium), आदि निश्चेतकों के रूप में प्रयुक्त होने वाले अन्य यौगिकों के उदाहरण हैं।
प्रतिअम्ल (Antacids)
ये औषधि आमाश्य में अम्ल को घटाती या उदासीन करती हैं। धात्विक हाइड्रॉक्साइड; जैसे ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड और मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड दोनों pH को उदासीनता से आगे बढ़ने नहीं देते। अतः इन्हें सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट से अच्छा प्रतिअम्ल कहा जाता है।
प्रसाधन (Cosmetics)
क्रीम, परफ्यूम, टैल्कम पाउडर, आदि प्रसाधन की तरह प्रयुक्त किए जाते हैं। विभिन्न प्रसाधनों में प्रयोग किए जाने वाले रसायन निम्न प्रकार हैं
◆ नमी देने वाली क्रीम (मोइश्चराइजिंग क्रीम) – सेटिल ऐल्कोहॉल और हाइड्रोक्विनोन।
◆ परफ्यूम–वेन्जल्डिहाइड, बेन्जिल ऐसीटेट, कपूर, एथेनॉल, लिनालूल और टपिनिऑल।
◆ नेल पॉलिश रिमूवर – ऐसीटोन, बेन्जिल ऐल्कोहॉल।
◆ शेविंग क्रीम – बेन्जेल्डिहाइड, कपूर, एथेनॉल ।
◆ शैम्पू – मेथिलीन क्लोराइड, एथेनॉल।
◆ नेल पॉलिश – टॉलुईन ।
◆ कॉलोन – मेथिलीन क्लोराइड, ऐसीटोन, वेन्जेल्डिहाइड |
◆ आफ्टर शेव लोशन-वेन्जिल ऐसीटेट |
◆ वैसलीन–पेट्रोलियम ।
काँच (Glass)
सर्वप्रथम इसका निर्माण मिस्त्र (Egypt) में हुआ था। यह विभिन्न क्षारीय धातुओं के सिलिकेटों का एक अक्रिस्टलीय पारदर्शक या आंशिक पारदर्शक समांगी मिश्रण है। साधारण काँच (सोडा काँच अथवा खिड़की काँच) की लगभग संरचना Na2O. CaO · 6SiO2 है। यह रेत (silica), सोडियम कार्बोनेट (सोडा) और कैल्सियम कार्बोनेट (चूना पत्थर) को उचित मात्रा में मिलाकर तथा उचित ताप पर पिघलाकर प्राप्त किया जाता है। कुछ काँच के टुकड़े (कुलेट-cullet) मिश्रण में गालक के रूप में मिलाए जाते हैं, जो मिश्रण को गलनीय बनाते हैं।
काँच का अनीलीकरण (Annealing of Glass)
इस प्रक्रिया में गर्म काँच की वस्तुओं को धीरे-धीरे निरन्तर तथा औसत दर्जे से ठण्डा किया जाता है। यदि काँच को बहुत धीरे ठण्डा करते हैं तो यह धुँधला (अपारदर्शी) हो जाता है तथा यदि इसे शीघ्रता से ठण्डा किया जाता है तो यह भंगुर और क्षयशील हो जाता है।
रंगीन काँच (Coloured Glass)
इन्हें पिघले या संगलित काँच में रंगों की आपूर्ति करने वाले पदार्थों को मिलाकर प्राप्त किया जाता है। ऐसे कुछ पदार्थ नीचे सारणी में दिए गए हैं।
◆ जल काँच (water glass) मूलतः सोडियम सिलिकेट है यह सोडियम कार्बोनेट के साथ सिलिका को गर्म करके प्राप्त किया जाता है। यह जल में विलेय है।
◆ सुरक्षा काँच में दो काँच की परतों के मध्य विनाइल ऐसीटेट रेजिन की पारदर्शी प्लास्टिक की परत होती है।
◆ ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग दूरसंचार एवं एण्डोस्कोपी में किया जाता है।
◆ ग्राउन्ड (ground) ग्लास साधारण सोडा काँच को एमरी (emery) और तारपीन के तेल (turpentine oil) के साथ पीसकर बनाया जाता है।
◆ धूप के चश्मों में प्रयुक्त रंगीन काँच में लैन्थेनॉइड ऑक्साइड होता है।
ग्लास वूल (Glass Wool)
यह तापरोधी तथा विद्युतरोधी पदार्थ है। यह विभिन्न ऊष्मीय और यान्त्रिक गुणों के साथ रोल करके स्लैब के रूप में बनाया जाता है। स्टील की अपेक्षा इसकी तनन सामर्थ्य ( tensile strength) उच्च होती है। वास्तव में यह अग्निरोधी है तथा फायर ग्लास बनाने में प्रयुक्त होता है। फाइबर ग्लास का उपयोग काँच प्रबलित प्लास्टिक (glass reinforced plastic) बनाने में किया जाता है।
सीमेन्ट (Cement)
यह एक महत्त्वपूर्ण भवन निर्माण सामग्री है इसका प्रयोग सर्वप्रथम ब्रिटेन में सन् 1824 में जोसेफ एस्पिडन ने किया था। इसे पोर्टलैण्ड सीमेन्ट भी कहा जाता है क्योंकि यह पोर्टलैण्ड टापू पर प्राप्त प्राकृतिक चूने के पत्थर से मिलता-जुलता है। यह धूसर (grey) रंग का पाउंडर (बारीक चूर्ण) है। रासायनिक रूप से यह कैल्सियम ऐलुमिनियम सिलिकेट है। सीमेन्ट का विशिष्ट गुण कठोरीकरण है जब यह जल के सम्पर्क में आता है तो इसमें उपस्थित सिलिकेट और ऐलुमिनेट जल से क्रिया करके कोलॉइडी विलयन बनाते हैं जो ठोस हो जाता है।
कच्चा माल (Raw Materials)
चूने का पत्थर, चिकनी मिट्टी तथा जिप्सम अल्प मात्रा में (2-3% भारानुसार ) । चूने का पत्थर कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) का स्रोत है। जबकि मिट्टी सिलिका, ऐलुमिना और फैरिक ऑक्साइड का स्रोत है।
संघटन (Composition)
यह कैल्सियम सिलिकेट और ऐलुमिनेट का मिश्रण होता है। इसका संघटन निम्न है
CaO =50-60%, SiO2 = 20-25%, Al2O3 = 5 – 10%, MgO = 2 – 3%, Fe2O3 = 1-2%, SO3 = 1-2%। जब चूने के पत्थर और चिकनी मिट्टी को तेजी से गर्म किया जाता है तब ये अभिक्रिया कर सीमेन्ट क्लिकर बनाते हैं इस क्लिंकर में जिप्सम मिश्रित कर सीमेन्ट बनाया जाता है।
◆ सीमेन्ट जमने की प्रक्रिया को धीमा करने के लिए इसमें जिप्सम मिलाया जाता है जिससे यह मजबूती से कठोर हो सके।
◆ सीमेन्ट के जमने की प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है। अतः सीमेन्ट जमने की प्रक्रिया के दौरान सीमेन्ट संरचनाओं को पानी छिड़ककर ठण्डा रखते हैं। –
◆ मोर्टार = रेत + सीमेन्ट + जल
◆ कंकरीट = रेत + छोटे-छोटे कंकड़ + सीमेन्ट + जल
◆ प्रबलित सीमेन्ट कंकरीट (RCC) = इस्पात या लोहे की सलाखें + रेत + छोटे-छोटे कंकड़ + सीमेन्ट + जल
◆ मोर्टार, कंकरीट और RCC भवन निर्माण, खम्भों, पुलों, बाँधों को बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री हैं।
◆ चूने की अधिकता से सीमेन्ट में जमने के समय दरारें आ जाती हैं जबकि ऐलुमिना की अधिकता से सीमेन्ट के जमने की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है। . –
उर्वरक (Fertilisers)
ये औद्योगिक पैमाने पर बनाए जाने वाले पौधों के पोषक तत्व हैं। उवर्रक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम तथा अन्य पोषकों की आपूर्ति के द्वारा मिट्टी की उवर्रता में वृद्धि करते हैं। इनका प्रयोग अच्छी वनस्पति वृद्धि तथा स्वस्य पौधे उत्पन्न होना सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
उर्वरकों के प्रकार (Types of Fertilisers)
नाइट्रोजनी उर्वरक, फॉस्फेटिक उर्वरक, NP उर्वरक तथा NPK उर्वरक
(i) नाइट्रोजनी उर्वरक (Nitrogenous Fertilisers) ये अमोनिया और इसके व्युत्पन्नों से प्राप्त किए जाते हैं। उदाहरण अमोनियम सल्फेट, कैल्सियम, अमोनियम नाइट्रेट, वेसिक कैल्सियम नाइट्रेट, कैल्सियम सायनेमाइड (नाइट्रोलियम) यूरिया, आदि। अमोनियम सल्फेट, (NH4 )2SO4 में 25% अमोनिया होता है जो भास्मिक मृदा में उपस्थित वैक्टीरिया द्वारा नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है। नाइट्रेटो को फसली पौधे आसानी से अवशोषित कर लेते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन झारखण्ड में स्थित सिन्दरी कारखाने में किया जाता है।
कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट, Ca(NO3)2 NH4NO3 में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 20% होती है जो पौधों द्वारा सीधे अवशोषित कर लिया जाता है। अपनी उच्च विलेयता के कारण इसका मृदा पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। इसका निर्माण पंजाब के नांगल में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
यूरिया, NH2CONH2 में लगभग 46% नाइट्रोजन होती है तथा यह मृदा के pH को प्रभावित नहीं करता है यह व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाने वाला नाइट्रोजनी उर्वरक है।
यह कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया के मिश्रण को 125-150°C ताप तथा 8.5 वायुमण्डल दाब पर गर्म करके प्राप्त किया जाता है। इस उवर्रक को बीजों के सीधे सम्पर्क में कभी नहीं आने देते हैं इस उर्वरक का प्रयोग किए जाने के 3-4 दिन बाद ही जल की आपूर्ति (सिंचाई) की जाती है।
(ii) फॉस्फेटिक उर्वरक (Phosphatic Fertilisers ) ये सुपरफॉस्फेट ऑफ लाइम, ट्रिपल सुपरफॉस्फेट (हड्डी राख से प्राप्त किया गया) तथा थॉमस धातुमल या फॉस्फेटिक धातुमल हैं। सुपरफॉस्फेट ऑफ लाइम, कैल्सियम डाइहाइड्रोजन फॉस्फेट और जिप्सम का मिश्रण है इसमें 16-20% P2O5 होता है। थॉमस धातुमल में 14-18% P2O5 होता है यह स्टील उद्योग का उपोत्पाद है। अपनी उच्च विलेयता के कारण यह पौधों द्वारा आसानी से स्वंगीकृत कर लिया जाता है।
(iii) पोटाश उर्वरक (Potash Fertilisers) पोटैशियम क्लोराइड, पोटैशियम नाइट्रेट तथा पोटैशियम सल्फेट पोटाश उर्वरकों के उदाहरण हैं।
(iv) NP उर्वरक (NP Fertilisers) ये मृदा में नाइट्रोजन तथा फॉरस्फोरस की आपूर्ति करते हैं। इन्हें नाइट्रोजनी और फॉस्फेटी उर्वरकों को उचित मात्रा में मिलाने पर प्राप्त किया जाता है। कैल्सियम सुपरफॉस्फेट नाइट्रेट, अमोनियाकृत फॉस्फेट सल्फेट तथा डाइहाइड्रोजन अमोनियाकृत फॉस्फेट NP उर्वरकों के उदाहरण हैं।
(v) NPK उर्वरक या पूर्ण उर्वरक (NPK Fertilisers) ये मृदा में तीनों मुख्य पोषक तत्वों नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम की आपूर्ति करते हैं। ये ही कारण है कि इन्हें मिश्रित उर्वरक या पूर्ण उर्वरक भी कहा जाता है। ये तीनों प्रकार के उर्वरकों (नाइट्रोजनी, फॉस्फेटी तथा पोटाश उर्वरकों को उचित मात्रा में मिलाकर प्राप्त किए जाते हैं।
◆ क्षारीय कैल्सियम नाइट्रेट और अमोनियम सल्फेट मृदा की अम्लीयता को बढ़ाते हैं जिसे मिट्टी में चूना डालकर उपचारित किया जाता है।
◆ नाइट्रोलिम Ca(CN), और कार्बन का मिश्रण है यह मृदा में बीजों के डालने के पूर्व डाला जाता है।
◆ कैल्सियम नाइट्रेट को नार्वेजियन साल्टपीटर भी कहते हैं।
◆ सुपरफॉस्फेट ऑफ लाइम का क्रियाशील अवयव कैल्सियम डाइहाइड्रोजन फॉस्फेट है जो कि जल में विलेय है।
विस्फोटक (Explosives)
ये वे पदार्थ हैं जो दहन के फलस्वरूप अत्यधिक ऊष्मा, ऊर्जा और तीव्र ध्वनि उत्पन्न करते हैं। ये शुद्ध यौगिक; जैसे टी एन टी के बने हो सकते हैं अथवा ये ईंधन और ऑक्सीकारक का मिश्रण भी हो सकते हैं। इन्हें प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक विस्फोटकों में भी वर्गीकृत किया जा सकता है।
(i) ट्राइनाइट्रोग्लिसरीन (Trinitroglycerine-TNG) यह एक रंगहीन तैलीय द्रव है जो डायनामाइट बनाने के काम आता है यह ग्लिसरीन की सान्द्र नाइट्रिक अम्ल और सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है इसे नोबल का तेल भी कहते हैं। इस विस्फोटक को सन् 1846 में खोज गया था।
(ii) ट्राइनाइट्रोटॉलुईन (Trinitrotoluene-TNT) यह टॉलुईन की सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है। इसकी खोज सन् 1863 में हुई थी लेकिन ब्रिटिश सेना द्वारा प्रयोग सन् 1914 में किया गया था।
(iii) रिसर्च एंड डेवेलपमेंट एक्सप्लोसिव (Research and Development रासायनिक नाम Explosive) इसका साइक्लोट्राइमिथाइलीन ट्राइनाइट्रामीन है। इसकी खोज जर्मनी के हैनिगं ने सन् 1899 में की थी इसे प्लास्टिक विस्फोटक भी कहते हैं। इसे साइक्लोनाइट (USA में), हेक्सोजन (जर्मनी में) तथा T-4 (इटली में) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक शक्तिशाली विस्फोटक है इसे शुद्ध रूप में या प्लास्टिक विस्फोटकों में प्रयोग किया जा सकता है। आर डी एक्स में प्लास्टिक पदार्थ; जैसे पॉलीब्यूटाइन, एक्रिलिक अम्ल या पॉलियूरेथेन मिलाकर प्लास्टिक बॉन्डेड एक्सप्लोसिव, PBE बनाया जाता है। यह एक शक्तिशाली विस्फोटक है। RDX में ऐलुमिनियम चूर्ण मिलाने पर C-4 विस्फोटक प्राप्त होता है। C-4 RDX एक जानलेवा विध्वंसक है। आर डी एक्स की विस्फोटक ऊष्मा 1510 किलोकैलोरी होती है।
(iv) ट्राइनाइट्रोफीनॉल (Trinitrophenol-TNP) इसे पिक्रिक अम्ल भी कहते हैं। इसे फीनॉल के नाइट्रीकरण (सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में सान्द्र नाइट्रिक अम्ल से क्रिया) द्वारा प्राप्त किया जाता है। यह भी एक शक्तिशाली विस्फोटक है।
(v) डायनामाइट (Dynamite) इसे स्वीडिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने सन् 1863 में खोजा था। यह नाइट्रोग्लिसरीन को लकड़ी के बुरादे या कीजेलगूर में अवशोषित करके तथा अल्प मात्रा में सोडियम कार्बोनेट को मिश्रित करके बनाया जाता है। यह सुरंगों में विस्फोट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
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