BPSC General Studies Chapter wise Solved Question Paper | भारत का आधुनिक इतिहास एवं भारतीय संस्कृति | कला एवं संस्कृति
BPSC General Studies Chapter wise Solved Question Paper | भारत का आधुनिक इतिहास एवं भारतीय संस्कृति | कला एवं संस्कृति
2. पाल कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर भी प्रकाश डालिए।
( 65वीं BPSC/2020 )
अथवा
पाल कला में भवन एवं मूर्ति निर्माण में अपनाई गई शैलियों का उल्लेख करें।
अथवा
बौद्ध धर्म एवं कला से प्रभावित उनकी कला शैलियों को दर्शाएं |
उत्तर – पाल वंश का संस्थापक गोपाल था जिसने बिहार में भी अपना शासन विस्तार किया। पालों के लंबे शासन के दौरान शांति एवं समृद्धि बनी रही जिसके फलस्वरूप कला के सभी क्षेत्रों में प्रगति हुई। पाल कला के अवशेष बिहार में प्रचुरता से मिले हैं।
भवन निर्माण कला : पाल कालीन भवनें मुख्यतः ईंट पर आधारित थी । इनके साक्ष्य ओदंतपुरी, नालंदा एवं विक्रमशिला महाविहार हैं। पाल शासक गोपाल द्वारा औदंतपुरी में एक महाविहार एवं मठ बनवाया गया था, यद्यपि इसके अवशेष सुरक्षित नहीं हैं। नालंदा में मंदिर, स्तूप एवं विहार बनवाए गए। धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्उद्धार किया एवं उसका खर्च चलाने के लिए 200 गांवों की आमदनी उसे दान में दी तथा भागलपुर में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जो कालांतर में नालंदा के बाद सबसे विख्यात विश्वविद्यालय के रूप में उभरा। यहां ईंट निर्मित मंदिर एवं स्तूप के अवशेष मिले हैं इनमें पत्थर एवं मिट्टी की बनी गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियां हैं। जावा के शैलेन्द्रवंशी शासक बालपुत्रदेव ने पाल शासक देवपाल से अनुमति लेकर नालंदा में एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया था।
मूर्तिकला : पाल-काल में कांस्य एवं प्रस्तर मूर्तिकला की एक नई शैली का उदय हुआ। इसके मुख्य प्रवर्तक धीमन एवं बिथपाल थे, जो धर्मपाल एवं देवपाल के समकालीन थे। पाल कालीन कांस्य मूर्तियां ढलवां किस्म की हैं। इसके सर्वोत्तम नमूने नालंदा तथा कुक्रीहार ( गया के निकट) से प्राप्त हुए हैं। ये मूर्तियां मुख्य रूप से बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, मैत्रेय तथा तारा की हैं। इनमें कुछ हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं।
पाल युग की पत्थर की मूर्तियां काले बैसाल्ट पत्थर (Black-Basalt Stone) की बनी हैं। सामान्यतः इन मूर्तियों में शरीर के अगले भाग को दिखाने पर ध्यान दिया जाता है। इनमें अलंकरण की प्रधानता है। इनमें बुद्ध, विष्णु की मूर्तियों की प्रधानता है। शैव एवं जैन धर्म का प्रभाव सीमित रहा है। सभी मूर्तियां अत्यंत सुंदर, अलंकार – प्रधान एवं कला की परिपक्वता को दर्शाती हुई हैं। कलात्मक सुन्दरता का एक अन्य उदाहरण एक तख्ती है जिस पर ‘शृंगार करती हुई एक स्त्री’ को दिखाया गया है। अतः पालों के काल में एक उन्नत कला एवं स्थापत्य का विकास हुआ जो स्थिर राजनीतिक और मजबूत आर्थिक स्थिति के साथ-साथ शासकों के रचनात्मकता एवं कला के प्रति उनकी रुचि को प्रदर्शित करता है ।
बौद्ध धर्म से संबंध- पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। अतः इनके कला पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट दिखता है। इनकी कला शैली की विषयवस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही हैं। इस कला पर बौद्ध धर्म का प्रभाव सबसे अधिक रहा लेकिन हिन्दू और जैन धर्म के प्रभाव भी दिखाई देते हैं। बिहार और बंगाल में मगध-बंग शैली विकसित हुई थी जिसे पाल सेन कला भी कहा जाता है। बिहार और बंगाल में पाल शासकों का दीर्घ काल तक शासन रहा था। उनके समय में नालन्दा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी कलात्मक गतिविधियों के केंद्र के रूप में खासे प्रसिद्ध थे। इस समय बौद्ध कला की छटा कुछ मद्धिम हो चली थी; फिर भी पाल शासकों ने स्थापत्य कला, चित्रकला और मूर्तिकला को नई उच्चाइयाँ प्रदान की। इसके उदाहरण आलोच्य पांडुलिपियों की चित्रकारियां और सरायटीले के भित्तिचित्र हैं। ऐसा देखने में मिला है कि इस समय अजन्ता शैली में चित्र बनाये गए थे जिसके सर्वोत्तम नमूने नेपाल के शाही दरबार, रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता, कला भवन काशी, महाराजा संग्रहालय बड़ौदा तथा बोस्टन संग्रहालय अमेरिका में सुरक्षित हैं।
पालकांस्य प्रतिमाओं के निर्माण में निर्णायक देन राजतक्षक, धीमान और उनके पुत्र विठपाल की रही जिन्हें दो महान पाल शासकों धर्मपाल और देवपाल का संरक्षण प्राप्त था। नालन्दा और कुक्रिहार से प्राप्त कांस्य प्रतिमाए इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि कांस्य प्रतिमाएं साँचे में ढाली जाती थी। लेकिन इनकी खास विशेषता यह है कि दोनों मूर्तियों का निर्माण एक ही शैली में हुआ है। इसके अतिरिक्त फतेहपुर, अंतिचक और इमादपुर आदि से भी कुछ मुर्तियाँ, कांसे के बने हुए स्तूपों के मॉडल और कुछ बर्त्तन प्राप्त हुए हैं, जिसमें अधिकांश का संबंध बौद्ध धर्म से है। बुद्ध, बोधिसत्व, अवलोकितेश्वर, मंजूश्री, मैत्रेय, तारा, जमला और हथग्रीव को इन मूर्तियों में दर्शाया गया है।
पत्थर की मूर्तियाँ भी अधिकत्तर बुद्ध एवं उनके विभिन्न रूपों की है, यथा- मंजूश्री, अवलोकितेश्वर तथा बोधिसत्व आदि। इसमें बुद्ध के जीवन को जीवंत करने की कोशिश की गयी है, जैसे उनका जन्म, ज्ञानप्राप्ति, प्रथम धर्मोपदेश की प्रस्तुति एवं निर्वाण आदि इसके बाद विष्णु की मूर्तियाँ हैं।
नालन्दा में विभिन्न युगों में बने महाविहार, स्तूप और मंदिर देखे जा सकते हैं। भिक्षुओं को रहने के लिए आवास एक निशिचत योजना के आधार पर बने हुये हैं जिसमें खुले आँगन के चारों ओर बरामदे हैं। इनके पीछे कमरे हैं जहां भिक्षु रहा करते थे। इमारतें दो मंजिला थी और इनमे सीढ़ियों की व्यवस्था थी। अंतिचक के स्थान से प्राप्त विक्रमशिला महाविहार के अवशेष पालकालीन स्थापत्य की विशिष्टता को और भी स्पष्ट करते है। यहां से एक मंदिर और एक स्तूप के अवशेष मिले है। दोनों ही ईट के बने हुए है। इनमें पत्थर और मिट्टी की बनी गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियां हैं। दीवारों के बाहरी हिस्से पर मिट्टी की तख्तियों से सजावट किया गया है। इनपर बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
> Key to Remember
> पालकालीन बने भवन, मूर्तियां एवं अन्य कला शैलियों को स्मरणीय बनाएं |
> बौद्ध धर्म प्रभावित कलाओं को स्मरण में रखें।
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