अपने देश में नाभिकीय ऊर्जा के सैन्य एवं नागरिक उपयोगों के बीच परस्पर संबंध की विवेचना कीजिए। अपने देश के सैन्य कार्यक्रम के संदर्भ में हाल ही में किए गए भारत – अमेरिका नाभिकीय स्वीकृति का परीक्षण कीजिए

अपने देश में नाभिकीय ऊर्जा के सैन्य एवं नागरिक उपयोगों के बीच परस्पर संबंध की विवेचना कीजिए। अपने देश के सैन्य कार्यक्रम के संदर्भ में हाल ही में किए गए भारत – अमेरिका नाभिकीय स्वीकृति का परीक्षण कीजिए

( 47वीं BPSC/2007 )
उत्तर – भारत में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत 1948 में डॉ. होमी जहांगीर भाभा की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग के गठन के साथ हुई। बाद में परमाणु आयोग के कार्यों के संपादन हेतु 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना हुई।
भारत के कार्यक्रम का उद्देश्य प्रारंभ से ही शांतिपूर्ण विकासात्मक कार्यों के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए परमाणु परमाणु अस्त्रों का विकास करना भी रहा है। अतः परमाणु ऊर्जा विभाग निम्नलिखित कार्यक्रमों को लागू कर रहा है
> ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) तथा थोरियम आधारित रिएक्टर का विकास करना।
> नाभिकीय कार्यक्रमों का उपयोग चिकित्सा, कृषि, उद्योग आदि में शांतिपूर्ण विकासात्मक रूप से करना ।
> एक्सीलेटर्स और लेसर्स जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी का विकास एवं उद्योगों को हस्तांतरण को प्रोत्साहन देना।
> राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर परमाण्विक हथियारों का विकास ।
हमारा नाभिकीय कार्यक्रम सैन्य एवं नागरिक उपयोगों दोनों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE), भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC) एवं रक्षा विकास एवं अनुसंधान संगठन (DRDO) जैसे प्रमुख संगठन भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम के प्रमुख अंग हैं, ये नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम, विकास कार्यक्रम, नाभिकीय क्षेत्र से जुड़े चिकित्सा एवं अन्य शांतिपूर्ण कार्यों के साथ ही सैन्य दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं विकास कार्यों में संलग्न हैं। इन संगठनों का 1974 के पोखरण परमाणु परीक्षण तथा 1998 के शक्ति – 98 नामक परमाणु परीक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय प्रतिरक्षा संबंधी सभी अनुसंधान एवं विकास कार्य मुख्यत: DRDO के अंतर्गत ही होते हैं। भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (UCIL) के द्वारा यूरेनियम खानों का संचालन किया जाता है जो देश की नाभिकीय ईंधन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है। ये ईंधन सैन्य एवं असैन्य कार्यों के लिए प्रयुक्त होते हैं। साथ ही परमाणु ईंधन संवर्धन तकनीक सैन्य / असैन्य परमाणु कार्यक्रम के लिए समान रूप से आवश्यक है।
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