अन्य देशों की तुलना में, भारत अलवण जल संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है? वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है? व्याख्या कीजिए |

अन्य देशों की तुलना में, भारत अलवण जल संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है? वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है? व्याख्या कीजिए |

अथवा
अलवणीय जल के संदर्भ में भारत की स्थिति की चर्चा करें। उन कारणों को भी बताएं जिनके कारण मीठे पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी इस समस्या को किस हद तक कम कर सकती है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर- भूमंडल पर उपलब्ध समग्र जल संसाधनों का 97.5% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में उपलब्ध है, जबकि केवल 2.5% भाग ही मीठा पानी है। उसका भी 2/3 हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है। भारत अपनी प्राकृतिक बनावट के अनुसार अन्य देशों की तुलना में प्राकृतिक संसाधन संपन्न देश है।
हिमालय की स्थिति – उत्तर में हिमालय सदा बर्फ से घिरा रहता है। हिमालय के हिमनद से निकलने वाली सदानीरा नदियां अपने साथ प्रचुर मात्रा में मीठे जल का अपवहन करती हैं। इन नदियों के जल का उपयोग सिंचाई एवं रि-साइक्लिंग के द्वारा पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है।
मानसूनी वर्षा- भारत में मानसून अपने साथ प्रचुर मात्रा में समुद्री जल को लाकर संपूर्ण क्षेत्र पर वर्षा करता है। इन समुद्री जल का रिस कर धरातल में समा जाने से धरातलीय पानी का स्रोत ऊंचा बना रहता है जिनसे उत्तर भारत में पानी की किल्लत नहीं होती। राजस्थान एवं दिल्ली समेत पश्चिमी भारत में पानी की कमी का मूल कारण है- वर्षा की कम मात्रा व सदानीरा नदियों की कमी।
•  तीन तरफ से समुद्र की अवस्थिति
भारत के लिए यह वरदान से कम नहीं है कि उसके तीन तरफ समुद्र हैं। इन समुद्रों से वर्षा के लिए प्रचुर मात्रा में जल ग्रहण क्षेत्र मिल जाते हैं। खारे समुद्री जल का रि-साइकिल एवं प्यूरीफाइंग से भी पेयजल की समस्या को दूर करने में किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता।
इन जलीय संसाधनों की प्राकृतिक उपलब्धता के बावजूद भी संपूर्ण भारत में अलवणीय जल की समस्या से रू-ब-रू होना पड़ता है। एक तरफ कुशल जल प्रबंधन का अभाव, तो दूसरी तरफ बढ़ती आबादी के कारण विकास के अन्य विकल्पों की खोज में जल प्रदूषण में वृद्धि भी मीठे जल की समस्या को बढ़ा देता है।
वर्तमान में जल प्रबंधन का कोई विकसित तंत्र नहीं है। वर्षाजल का अत्यधिक भाग बेकार चला जाता है, वहीं अत्यधिक सिंचाई वाले फसलों के लिए भारी मात्रा में भू-जल का दोहन किया जाता है, जिनसे भू-जल का स्तर कई राज्यों में काफी नीचे चला जाता है। नदियों के जल का रख-रखाव का भी कोई विकसित तंत्र का अभाव, स्थिति को और भयावह बना देता है। हिमालयी नदियों के जल का अत्यधिक भाग बिना उपयोग समुद्र में चला जाता है यदि जल प्रबंधन के द्वारा इन समस्याओं पर ध्यान दिया जाय तो स्थिति की गंभीरता से निजात पाना असंभव नहीं है।
एक तरफ सुनियोजित जल प्रबंधन का अभाव, तो दूसरी तरफ उपलब्ध जल का अत्यधिक हिस्सा भी प्रदूषित होता जा रहा है। उद्योग-धन्धों द्वारा अपशिष्ट का निस्तारण नदियों में होने के कारण नदियों का जल भी प्रदूषित हो रहा है। आर्सेनिक, कैडमियम, पारा जैसे हानिकारक रासायनिक तत्वों की उपस्थिति कई गंभीर बीमारियों को जन्म दे रही हैं। घरेलू कूड़े-कचरे एवं महानगरीय सीवेजों के कारण लगभग प्रत्येक महानगर की निकटवर्ती नदियां प्रदूषित होकर नये-नये रोगों को जन्म दे रही हैं।
देखा जाए तो भारत अलवणीय जल का सुसंपन्न देश है, इसके बावजूद कई कारणों से यहां पेयजल का अभाव है। स्थिति ऐसी है कि महानगरों में अगर बोतल वाले पानी की उपलब्धता खत्म हो जाए तो कोहराम की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसे में उचित जल-प्रबंधन एवं वैज्ञानिक तकनीक से पेयजल समस्या से निपटा जा सकता है।
वाटर शेड द्वारा वर्षा के जल का संचय किया जा सकता है, जिसका उपयोग पेयजल एवं सिंचाई के लिए उत्तम है। ऐसे चीजों के इस्तेमाल पर भी बल देना होगा, जिनसे भू-जलीय स्तर पर कोई प्रभाव न पड़े। नवीन तकनीकों से ऐसे बीजों का निर्माण किया जा रहा है जिन्हें कम पानी की मात्रा में भी सहज उगाया जा सकता है। बहुद्देशीय जल परियोजना पर बल देना भी एक कारगर कदम होगा जिनसे पेयजल की समस्या से निपटा जा सके। इसी तरह उत्तम जलीय प्रबंधन को विकसित करना होगा जिनसे पानी की न्यूनतम मात्रा का क्षय हो सके। देश की कई कंपनियां ऐसे तंत्र को विकसित कर रही हैं जिनसे प्यूरीफाइंग हो सके। उस तकनीकों पर बल देना होगा, साथ ही उद्योगों के कचरे का निपटान एवं शहरी सीवेजों के लिए उचित तंत्र की आवश्यकता है करेंगी । अन्यथा देश जल की समस्या से जूझेगा ही, कई तरह की बीमारियां भी लोगों को संक्रमित करेंगी।
इस तरह, भारत अपनी बनावट के कारण अलवणीय जल से संपन्न देशों में से एक है, परन्तु उचित जल प्रबंधन एवं रख रखाव के अभाव के कारण भयंकर जल की समस्या से भी जूझ रहा है । आश्चर्य नहीं कि अन्य समस्याओं की तरह जलाभाव की समस्या से भी बेहतर प्रबंधन एवं वैज्ञानिक तकनीकों से निपटा जा सकता है, जिसमें जनभागीदारी की भी अहम भूमिका है।
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> भारत में अलवणीय जल की समस्या के कारण
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