BPSC General Studies Chapter wise Solved Question Paper | BPSC अध्यायवार हल प्रश्न पत्र 1993 – 2021 | भारत का आधुनिक इतिहास एवं भारतीय संस्कृति | कला एवं संस्कृति

BPSC General Studies Chapter wise Solved Question Paper | BPSC अध्यायवार हल प्रश्न पत्र 1993 – 2021 | भारत का आधुनिक इतिहास एवं भारतीय संस्कृति | कला एवं संस्कृति

प्र . पटना कलम चित्रकला की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए |

(66वीं BPSC/2021 )
अथवा 

प्र. पटना कलम शैली के उद्भव एवं विकास का वर्णन करते हुए प्रमुख चित्रों एवं कलाकारों की चर्चा करें तथा इसकी मौलिकता एवं शैली की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख भी करें।

उत्तर– पटना कलम चित्रकला की एक विशिष्ट क्षेत्रीय शैली है। इसका विकास प्रमुखतया अठारहवीं शताब्दी के मध्य (1750 ई.) से लेकर बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध (1925 ई.) तक बहुत ज्यादा हुआ। चूंकि मुगल काल में ‘शाहीदरबार’ कला एवं संस्कृति का केन्द्र हुआ करता था, परंतु साम्राज्य के पतनोन्मुखी होने के साथ ही कलाकार विकेन्द्रीत होने लगे एवं कला के अनेक क्षेत्रीय केन्द्र एवं शैली का उदय हुआ। औरंगजेब द्वारा कला को राजकीय संरक्षण न देने की नीति तथा कमजोर होते मुगल साम्राज्य ने मुगल कलाकारों को मुगल दरबार से दूरदराज के इलाकों में जाकर बसने को विवश कर दिया। ऐसे ही एक कलाकारों का दल मुर्शिदाबाद जाकर बसा । प्लासी के युद्ध के बाद मीर जाफर के पुत्र मीरन द्वारा कला संबंधी पाबंदियों के कारण इन कलाकारों को पुनः विवश होकर मुर्शिदाबाद छोड़ना पड़ा। इन्हीं कलाकारों के कुछ समूह बिहार के पटना एवं पूर्णिया आदि शहरों में आकर बसे । इसी क्रम में मुगलों की शाही शैली एवं तत्कालीन ब्रिटिश शैली की विशेषताओं से युक्त एक नवीन ‘पटना शैली’ अथवा ‘पटना कलम’ का उदय हुआ। इस शैली का प्रमुख क्षेत्र पटना का लोदी कटरा, मुगलपुरा, दीवान मोहल्ला, मच्छरहट्टा तथा आरा एवं दानापुर रहा है ।
यह शैली अधिकतर कागज एवं हाथी दांत पर बनाए जाने वाले लघुचित्रों (Miniatures) की श्रेणी में आते हैं। इस शैली के चित्रकारों द्वारा विषय का चुनाव दैनिक जीवन के दृश्यों एवं जनसाधारण से किया गया है जो मुगल काल के बाद के बुद्धिजीवियों/कलाकारों की सोच को दर्शाता है। इसके पहले मुगल काल के चित्रकारी में ईरानी शैली से प्रभावित बादशाहों अथवा शासकों की जीवन शैली से जुड़ा हुआ था। यह एक बदलाव का सूचक था। ‘पटना कलम’ शैली बिहार के ‘मधुबनी चित्रकारी’ से भी अंतर रखता है जो महिलाओं की पूर्ण भूमिका वाली एक लोककला एवं मूलतः धार्मिक चित्रशैली है।
‘पटना कलम’ के चित्रों में लकड़ी काटता हुआ बढ़ई, मछली बेचती औरत, कहार, लोहार, सुनार, खेत जोतता किसान, साधु-संन्यासी आदि के चित्र हैं। इनमें से अनेक चित्र ‘पटना – संग्रहालय से लाकर अब बिहार – संग्रहालय’ में सुरक्षित रखे गए हैं। तस्वीरों को ब्रश से बनाया गया है जिनमें हल्के पीले, गहरे लाल, नीले, भूरे रंगों का प्रयोग हुआ है।
इस शैली के प्रमुख चित्रकारों में सेवक राम एवं हुलास लाल हैं। इनके चित्रों में होली – दिवाली जैसे धार्मिक दृश्य दिखाए गए हैं। इन दोनों चित्रकारों के अलावा जयराम दास, शिवदयाल लाल आदि प्रमुख नाम भी इस चित्रकला से संबद्ध हैं।
पटना-कलम शैली पर एक ओर मुगल शैली का प्रभाव दिखता है, तो वहीं इस पर तत्कालीन ब्रिटिश कला का भी असर झलकता है। लेकिन, इस शैली को विशिष्ट बनाती है इसकी अपनी स्थानीय विशेषताएं, जो पटना कलम के चित्रों के रेखांकन, रंग भरने की विधि, रंगों के चुनाव आदि के साथ विषय-वस्तु के चयन में भी सुस्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।

> पटना कलम शैली की विशेषताएं

लघु चित्र शैली: पटना-कलम के चित्र प्रधानतया लघुचित्रों (miniatures) की श्रेणी में आते हैं, जिन्हें अधिकांशतः कागज और कहीं-कहीं हाथी दाँतों पर उकेरा गया है।
सामान्य जन-जीवन की प्रधानता: बिहार, विशेषकर पटना के सामान्य जन-जीवन का चित्रांकन पटना शैली की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है। विषय-वस्तु के रूप में जीवन की आम घटनाओं का सजीव चित्रण उन घटनाओं को विशिष्टता देती है। वस्तुतः इसके द्वारा परंपरागत भारतीय चित्र शैली की भी अभिव्यक्ति हुई है। इसके चित्रों में श्रमिक वर्ग-(कुम्हार, नौकरानी, भिश्ती आदि), दस्तकारी वर्ग – ( बढ़ई, लोहार, सुनार, रंगरेज आदि), तत्कालीन आवागमन के साधन-(पालकी, घोड़ा, हाथी, एक्का, बैलगाड़ी आदि) का चित्रांकन हुआ है। इसी तरह मदरसा, पाठशाला, दाह-संस्कार, त्योहारों (होली, दशहरा आदि) एवं साधु-संतों के चित्र भी बनाए गए है।
 बारीकीपूर्ण अलंकरण: पटना – शैली के चित्रकारों को चित्रों को बारीकियों को गढ़ने और उसे उजागर करने में महारत हासिल थी। इस शैली के कलाकार चित्र में किसी पृष्ठभूमि और लैंडस्केप का इस्तेमाल बहुत कम करते थे।
 रंगने की निजी शैली: रंगने की नितांत निजी शैली पटना कलम की खास विशेषता है। सादगी और समानुपातिक विन्यास इस शैली की प्रमुख विशेषता है। इनमें चटख रंगों की जगह सौम्य और शांत रंगों का प्रयोग अधिक हुआ है। इस शैली में विषय-वस्तु को पेंसिल या चारकोल से रंखांकित (Sketch) कर उन्हें रंगने की प्रक्रिया को सामान्यत: नहीं अपनाया गया है। कलाकारों को अपने हाथों पर इतना अधिक नियंत्रण था कि तूलिका (ब्रश) एवं रंगों के सहारे ही रेखांकन कर रंग भरा करते थे। चित्रकार विभिन्न छांहा (शेड्स) के लाल रंग लाख या लाह से, सफेद रंग विशेष प्रकार की मिट्टी से, काला रंग कालिख अथवा जलाए गए हाथी दांत की राख से, नीला रंग नील से, आसमानी रंग लाजवर्द यानी लैपिस लैजुली नामक पत्थर से एवं गेरूआ व पीला रंग एक विशेष प्रकार की स्थानीय मिट्टी से तैयार करते थे। नीला और पीला रंग मिश्रित करके हरा रंग बनाते थे। इसके अलावा सोने एवं चांदी के वर्कों से क्रमशः सुनहरा एवं चांदी-सा उजला रंग तैयार करते थे। महीन कामों के लिए कलाकार एक या दो बालों वाले ब्रशों का प्रयोग करते थे। ये ब्रश गिलहरी की पूँछ के बालों से बनाए जाते थे, जो एक साथ मजबूत और मुलायम दोनों होते थे। लेकिन अनेक विशिष्टताओं एवं मौलिकता के बावजूद यह शैली अब प्रायः लुप्त हो चुकी है।
 मुगल शैली से भिन्नता: उल्लेखनीय है कि यह मुगल शैली से प्रभावित होते हुए भी कई मामलों में जैसे-विषय-वस्तु, रंगों के उपयोग और छायांकन के तरीकों में यह मुगल शैली से अलग थी। मुगल शैली में जहाँ राजमहल से संबंधित विषय-वस्तु होते थे, वहीं पटना कलम शैली में आम जनजीवन को विषय बनाया जाता था।
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