“चम्पारणं सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था । ” स्पष्ट कीजिए।
“चम्पारणं सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था । ” स्पष्ट कीजिए।
(66वीं BPSC/2021 )
अथवा
नील की खेती की तिनकठिया प्रथा और किसानों की खराब माली हालत को उद्घाटित करें।
अथवा
किसानों की दुर्दशा से आहत गांधीजी का चंपारण दौरा और उनके सत्याग्रह के साथ अपार जनभागीदारी की चर्चा करें।
अथवा
इस प्रथम सत्याग्रह की सफलता से गांधीजी को एक सर्वमान्य राष्ट्रीय जननेता की बनी पहचान का उद्घाटन करें।
अथवा
इस सत्याग्रह की सफलता से भावी आंदोलनों को मिली संजीवनी का उल्लेख करें।
उत्तर– ऐतिहासिक अर्थों में चंपारण सत्याग्रह एक निर्णायक घटना या मोड़ था। क्योंकि यह पिछली घटनाओं से कुछ नया करने की शुरुआत को चिह्नित करता है। यह एक निर्णायक घटना थी जो बाद के ऐतिहासिक आंदोलनों का मार्गदर्शक बना। चंपारण सत्याग्रह बिहार के चंपारण जिले में नील (इंडिगो) के बागान व्यापारियों के खिलाफ हुआ था क्योंकि अंग्रेजों ने गरीब किसानों को उनके खेतों के 3/20 वें हिस्से ( तिनकठिया सिस्टम) में न्यूनतम कीमत पर नील उगाने के लिए प्रताड़ित किया था। 1917 आते-आते अंग्रेजी सरकार का विरोध देश में चरम पर था, बावजूद इसके संचालन में सही दिशा, समेकित प्रयास और संगठित नेतृत्व के अभाव के कारण कोई भी क्रांतिकारी आंदोलन अपने उद्देश्यों में कामयाबी हासिल नहीं कर पा रहा था। 1893-1914 तक अफ्रीका में भारतीयों और अफ्रीकियों के अधिकारों के लिए नस्लभेदी अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए आंदोलनों और कई सफल सत्याग्रहों के बाद 1915 में जब गांधीजी भारत लौटे तो भारतीयों में एक नए प्रकार की उमंग और उम्मीद जगी। 1916 में लखनऊ में कांग्रेस के सालाना अधिवेशन में गांधीजी जब शरीक होने पहुंचे तौ बहां उनकी मुलाकात चंपारण के नील किसान और कॉलेज में अध्यापक राजकुमार शुक्ल से हुई। उन्होंने गांधीजी को चंपारण के किसानों की दुर्दशा से अवगत कराया और एक बार चंपारण आने का निमंत्रण दिया। इसके बाद राजकुमार शुक्ल और चंपारण के पीर मोहम्मद अंसारी ( वे एक साप्ताहिक पत्रिका ‘प्रताप’ भी निकालते थे) ने गांधीजी को कई बार नीलहे किसानों की दुर्दशा पर पत्र लिख कर चंपारण की स्थिति के बारे में अवगत कराया। लेकिन लोगों की वेदना, दुखों और अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों का अहसास सही मायने में गांधीजी को पहली बार चंपारण आकर ही हुआ। वहां के लोगों की शक्लों और जिस्मों से झांकता हुआ कंकाल चीख-चीख कर अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी कह रहा था। किसानों की हालत दयनीय थी। दो वक्त की रोटी को लाचार किसानों पास न पहनने को सही से कपड़े होते थे न पेट भर खाना और उसे पर भी उन्हें मजबूर होकर नील की खेती करनी पड़ती थी। इतना ही नहीं, ऊपर से तिनकठिया लगान – ब्याज ने किसानों की कमर तोड़ रखी थी। चंपारण में उस समय नील के करीब 70 कारखाने थे। लगभग पूरा जिला इन कारखानों के चंगुल में जकड़ा था। इसमें भारी मुनाफा देख खेतों को यूरोपीय मालिक अब हर तरह से स्थानीय सामंती वर्ग से करीब छीन चुके थे। चंपारण में जमीन का लगान तो सभी को ही देना होता था लेकिन इसमें भी ऊंची और नीची जाति के लिए भेदभाव था। जमीन का लगान मालिक की जाति के हिसाब से तय होता था। ऊंची जाति वालों को छोटी जाति वालों की तुलना में कम लगान देना पड़ता था। इस समय समाज में कुरीतियां और अंधविश्वास भी अपने चरम पर थे। अंधविश्वासी लोग अपनी समस्याओं को ईश्वरीय देन मानते थे।
राजकुमार शुक्ल के कई अनुरोधों के बाद अंततः गांधी जी माने और 10 अप्रैल, 1917 को दोनों कलकत्ता से पटना पहुंचे। पटना के बाद अगले दिन वे दोनों मुजफ्फरपुर पहुंचे। वहां पर अगले सुबह उनका स्वागत मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष बने जेबी कृपलानी और उनके छात्रों ने किया। शुक्ल जी ने यहां गांधीजी को छोड़कर चंपारण का रुख किया, ताकि उनके वहां जाने से पहले सारी तैयारियां पूरी की जा सकें। मुजफ्फरपुर में ही गांधीजी से राजेंद्र प्रसाद की पहली मुलाकात हुई। यहीं पर उन्होंने राज्य के कई बड़े वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से आगे की रणनीति तय की। इसके बाद कमिश्नर की अनुमति न मिलने पर भी महात्मा गांधी ने 15 अप्रैल को चंपारण की धरती पर अपना पहला कदम रखा। यहां उन्हें राजकुमार शुक्ल जैसे कई किसानों का भरपूर सहयोग मिला। पीड़ित किसानों के बयानों को कलमबद्ध किया गया। इसकी वहां के अखबारों में भरपूर चर्चा हुई जिससे आंदोलन को जनता का खूब साथ मिला। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। इस तरह यहां पिछले 135 सालों से चली आ रही नील की खेती धीरे-धीरे बंद हो गई। साथ ही नीलहे किसानों के शोषण और अत्याचार पर अंकुश लगा।
स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण सत्याग्रह एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की पिछली रणनीति से अलग एक नवीन अहिंसक हथियार था जो भावी राष्ट्रीय आंदोलनों के लिए एक नजीर साबित हुआ
1. चंपारण की घटना ने महात्मा गांधी को सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और वे जनमानस के महात्मा बन गए। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन का मार्गदर्शन किया, बल्कि वे हिंदू-मुस्लिम एकता के भी प्रतीक बन गए। चंपारण सत्याग्रह भारतीय धरती पर गांधीजी के नेतृत्व में पहला जन आंदोलन था।
2. भारत में गांधीजी के सक्रीय सार्वजनिक जीवन की शुरूआत चंपारण से ही हुई जिसमें पहली बार भारत की धरती पर सत्याग्रह और अहिंसा के हथियार दागे गए । अहिंसा की शक्ति और आत्म-बल की दृढ़ता का परीक्षण करने का यह पहला सत्याग्रह था। इसकी सफलता ने भावी आंदोलनों जैसे- असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह आदि कई राष्ट्रीय सत्याग्रहों के अलावे कई किसान आंदोलनों के लिए लोगों में प्रेरणा भरने का काम किया।
3. इसने देश भर में किसानों की समस्या को फिर से संगठित किया। चंपारण के कारण कांग्रेस के एजेंडे में आगे के अधिवेशनों जैसे- फैजपुर सत्र आदि में किसान मुद्दे भी शामिल किए गए
4. इसने राष्ट्रीय कांग्रेस के चरमपंथियों और नरमपंथियों के बीच वैचारिक खाई को खत्म कर नागरिक असहमति का एक नया तरीका शुरू कर उनमें आत्म-बल की दृढ़ता का परीक्षण किया और कांग्रेस को एक मध्यम वर्गीय राजनीतिक दल से एक जन संगठन में बदल दिया। –
5. चंपारण सत्याग्रह ने ग्रामीण लोगों के लिए कल्याणकारी कार्यों को जोड़ा जो पहले कभी नहीं अपनाया गया था। गांधीजी के आग्रह पर भितिहरवा आश्रम जैसे स्थानों पर कई स्कूल (बरहरवा और मधुबनी) खोले गए।
6. चंपारण सत्याग्रह ने एक व्यक्ति से कई नेतृत्व की एक सक्षम दूसरी पंक्ति भी खड़ा किया, जैसे- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, ए.एन. सिन्हा, जे.बी. कृपलानी, जिन्होंने भविष्य में न केवल गांधीजी की सहायता की, बल्कि बाद के आंदोलनों में नेतृत्व प्रदान भी किया।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि चंपारण आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण निर्णायक मोड़ था जहां से भारतीय `किसानों के लिए आशा की किरणें दिखाई देने लगीं। इसने किसानों की समस्याओं को एक निश्चित सीमा तक हल भी किया, फिर भी चंपारण सत्याग्रह के 100 साल से अधिक होने और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ (75वीं वर्षगांठ) मनाने के बाद भी आजाद भारत के किसानों की माली हालत में कोई आशाजनक सुधार नहीं हुआ है। इसलिए आज भी एक सच्चे गांधी की जरूरत है जो संपूर्ण भारत के गरीब और लाचार किसानों की मौजूदा समस्याओं को वैज्ञानिक और मानवीय तरीकों से हल करने के लिए नीति और नीयत में सक्षम हो । बहरहाल, ‘चंपारण सत्याग्रह’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रारंभ होने वाले गांधी युग का प्रथम अध्याय और देश के भावी आंदोलनों का शक्तिपुंज के रूप में हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।
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