Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 3
Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 3
1. जातिवाद के पोषकों द्वारा श्रम विभाजन किसका दूसरा रूप माना जाता है ?
(A) मजदूरी प्रथा
(B) जाति -प्रथा
(C) बन्धुआ मजदूरी
(D) मनुष्य की रुचि
2. जाति-प्रथा किस प्रकार का श्रम विभाजन है ?
(A) प्राकृतिक
(B) अस्वाभाविक
(C) स्वाभाविक
(D) संवैधानिक
3. ‘विष के दाँत’ किस प्रकार की कहानी है?
(A) सामाजिक
(B) ऐतिहासिक
(C) मनोवैज्ञानिक
(D) धार्मिक
4. सेन साहब की नई मोटरकार किस रंग की थी ?
(A) लाल
(B) नीली
(C) सफेद
(D) काली
5. फेड्रिक मैक्समूलर किस पाठ के रचयिता हैं ?
(A) भारत से हम क्या सीखें
(B) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(C) परम्परा का मूल्यांकन
(D) नागरी लिपि
6. नृवंश विद्या का संबंध किससे है ?
(A) वनस्पति विज्ञान
(B) प्राणि विज्ञान
(C) मानव-विज्ञान
(D) अंतरिक्ष विज्ञान
7. लेखक के अनुसार मनुष्य के नाखून किसके जीवंत प्रतीक हैं?
(A) मनुष्यता
(B) सौन्दर्य
(C) सभ्यता
(D) पाश्वीवृत्ति
8. ‘गुणाकर मुले’ का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) महाराष्ट्र
(B) उत्तर प्रदेश
(C) बिहार
(D) मध्य प्रदेश
9. बहादुर निम्न में से किसकी कहानी है ?
(A) आदिवासी बालक की
(B) नेपाली
(C) शहरी बालक की
(D) बिहारी
10. प्रगतिशील आलोचना का विकास होता है
(A) धर्म के ज्ञान से
(B) कला के ज्ञान से
(C) साहित्य की परम्परा के ज्ञान से
(D) इतिहास के ज्ञान से
11. बिरजू महाराज किस घराने के वंशज थे ?
(A) दिल्ली
(B) वाराणसी
(C) लखनऊ
(D) पटना
12. आविन्यों कहाँ का एक मध्ययुगीन ईसाई मठ है?
(A) उत्तरी फ्राँस
(B) दक्षिणी फ्राँस
(C) पूर्वी फ्राँस
(D) पश्चिमी फ्राँस
13. मरी हुई मछली की आँखों में नजर आ रही थी
(A) लालिमा
(B) कालापन
(C) परछाई
(D) श्वेत
14. विस्मिल्ला खाँ एक प्रसिद्ध…..थे।
(A) सितारवादक
(B) सरोदवादक
(C) गिटारवादक
(D) शहनाई वादक
15. आध्यात्मिक शिक्षा से गाँधीजी का क्या अभिप्राय है ?
(A) पुस्तक की शिक्षा
(B) यत्रों की शिक्षा
(C) बुद्धि की शिक्षा
(D) हृदय की शिक्षा
16. ‘नानकदेव’ ने जगत् का सार किसे कहा है ?
(A) धनार्जन
(B) सांसारिक सुख
(C) पूजा-पाठ
(D) हरि-कीर्तन
17. निम्नलिखित में ‘रसखान’ द्वारा रचित ग्रंथ कौन-सा है ?
(A) आनंद-वाटिका
(B) वाटिका
(C) प्रेम-वाटिका
(D) रस-वाटिका
18. घनानंद की कविताओं की भाषा थी
(A) अवधी
(B) ब्रज
(C) खड़ी हिन्दी
(D) पंजाबी
19. क्रिस्तान का क्या अर्थ है ?
(A) रेगिस्तान
(B) सिख
(C) अंग्रेज
(D) इसाई
20. भारतमाता कविता के रचनाकार हैं ?
(A) रामधारी सिंह दिनकर
(B) सुमित्रानंदन पंत
(C) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘नराला’
(D) प्रेमधन
21. ‘जनतंत्र का जन्म’ कविता में कवि ‘रामधारी सिंह दिनकर’ ने कितने सिंहासन तैयार करने की बात की ?
(A) 33 करोड़
(B) 33 लाख
(C) 31 करोड़
(D) 31 लाख
22. हिरोशिमा किस देश में है ?
(A) इटली
(B) फ्रांस
(C) जर्मनी
(D) जापान
23. ‘आत्मजयी’ किसकी रचना है ?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(C) रघुवीर सहाय
(D) कुँवर नारायण
24. ‘हमारी नींद’ कविता किस कविता संग्रह से ली गई है ?
(A) पहल-पुस्तिका
(B) इसी दुनिया में
(C) दुष्चक्र में भ्रष्टा
(D) यामा
25. ‘नलिन विलोचन शर्मा’ का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1918
(B) 1818
(C) 1819
(D) 1916
26. ‘जित जित में निरखत हूँ’ किनकी रचना है ?
(A) अमरकांत
(B) बिरजू महाराज
(C) रामविलास शर्मा
(D) मैक्समूलर
27. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता किस कवि की रचना है ?
(A) रंगप्पा
(B) वीरेन डंगवाल
(C) अज्ञेय
(D) रेनर मारिया रिल्के
28. मंगम्मा का उसकी बहू के साथ किसकी वजह से विवाद था ?
(A) जीवनानंद दास
(B) माँजी
(C) पोते
(D) बेटे
29. ‘ढहते विश्वास’ कहानी में लक्ष्मण कौन है ?
(A) लक्ष्मी का पति
(B) लक्ष्मी का ससुर
(C) लक्ष्मी का बेटा
(D) लक्ष्मी का देवर
30. सीता के कितने बेटे थे ?
(A) 2
(B) 5
(C) 4
(D) 6
31. मंगु को जिस अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है वहाँ के कर्मचारी कैसे हैं?
(A) कठोर स्वभाव के
(B) अनुभवहीन
(C) संवेदनहीन
(D) व्यवहार कुशल
32. ‘नगर’ कहानी के लेखक कौन हैं ?
(A) सुजाता
(B) ईश्वर पेटलीकर
(C) सातकोड़ी होता
(D) साँवर दईया
33. सीता अपने ही घर में कैसा महसूस करती थी
(A) खुशी
(B) आनंद
(C) शांति
(D) घुटन
34. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी किस लेखक द्वारा अनुदित है ?
(A) गोपाल दास नागर
(B) साँवर दइया
(C) सुजाता
(D) सातकोड़ी होता
35. स्वर वर्णों की संख्या कितनी है ?
(A) दस
(B) बारह
(C) ग्यारह
(D) तेरह
36. ‘घ’ का उच्चारण स्थान बताइए।
(A) कंठ
(B) मूर्द्धा
(C) दंत
(D) नासिका
37. निम्नलिखित शब्दों में कौन-सा शब्द योगरूढ़ का उदाहरण है ?
(A) हिमालय
(B) पंचानन
(C) उज्ज्वलता
(D) रसोईघर
38. ‘सोना बहुत चमकीला होता है।’ इस वाक्य में ‘सोना’ कौन-सी संज्ञा है ?
(A) जातिवाचक
(B) भाववाचक
(C) द्रव्यवाचक
(D) समूहवाचक
39. सर्वनाम के कितने भेद होते हैं ?
(A) पाँच
(B) तीन
(C) चार
(D) छ:
40. ‘लीला घर जाएगी’ इसमें कौन-सा वाच्य है ?
(A) कर्तृवाच्य
(B) कर्मवाच्य
(C) भाववाच्य
(D) इनमें से कोई नहीं
41. वर्तमान काल के कितने भेद होते हैं ?
(A) तीन
(B) पाँच
(C) चार
(D) छ:
42. ‘अमृता कलम से लिखती है।’ इस वाक्य में ‘से’ कौन सा कारक है ?
(A) कर्म
(B) करण
(C) सम्प्रदान
(D) अधिकरण
43. ने + अन में कौन-सी संधि है ?
(A) अयादि
(B) गुण
(C) यण
(D) वृद्धि
44. ‘डाली’ का बहुवचन है।
(A) डालीयाँ
(B) डलियाँ
(C) डालियाँ
(D) डालीयाँ
45. (;) इस चिह्न को किस विराम चिह्न के नाम से जाना जाता है ?
(A) अल्पविराम
(B) अर्द्धविराम
(C) विस्मयादिबोधक
(D) योजक चिह्न
46. चाँद का पर्यायवाची शब्द क्या होता है ?
(A) सूर्य
(B) रात्रि
(C) तारे
(D) शशि
47. ‘चन्द्रमुख’ में कौन-सा समास है ?
(A) अव्ययीभाव
(B) तत्पुरुष
(C) कर्मधारय
(D) बहुव्रीहि
48. ‘गुदड़ी का लाल’ मुहावरे का अर्थ बताइए।
(A) गुदड़ी का रंग लाल होना
(B) गुदड़ी में लाल होना
(C) निर्धन परिवार में गुणी का जन्म होना,
(D) गुदड़ी में लाल होना
49. ‘पथ्य’ का क्या अर्थ होता है ?
(A) राजा का भोजन
(B) रोगी का भोजन
(C) भगवान का भोग
(D) गरीब का भोजन
50. नीचे लिखे शब्दों में कौन-सा शब्द शुद्ध है ?
(A) अथिति
(B) समिती
(C) प्रस्थिति
(D) परिस्थिति
51. ‘भारतमाता’ किस कवि की रचना है ?
(A) रामधारी सिंह दिनकर
(B) प्रेमघन
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) कुँवर नारायण
52. ‘पंत जी’ किस समय के कवि है ?
(A) छायावादी
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) आधुनिक
53. प्रेमघन ने ‘रसिक समाज’ की स्थापना कब की ?
(A) 1870
(B) 1872
(C) 1873
(D) 1874
54. ‘रसखान’ के चितचोर कौन है ?
(A) शंकर
(B) राधा
(C) कामदेव
(D) कृष्ण
55. बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कहाँ हुआ था ?
(A) काशी में
(B) दिल्ली में
(C) डुमराँव में
(D) पटना में
56. ‘देवनगरी’ किसे कहा गया है ?
(A) बनारस
(B) मथुरा
(C) हरिद्वार
(D) काशी
57. दधीचि की हड्डी से क्या बना था ?
(A) त्रिशूल
(B) इन्द्र का वज
(C) तलवार
(D) कुछ भी नहीं
58. मैक्समूलर कहाँ के रहनेवाले थे ?
(A) इंगलैंड
(B) जर्मनी
(C) अमेरिका
(D) श्रीलंका
59. पाप्पाति कौन थी ?
(A) वल्लि अम्माल की बहन
(B) वल्लि अम्माल की भतीजी
(C) वल्लि अम्माल की पुत्री
(D) वल्लि अम्माल की पोती
60. मदन ने काशु के कितने दाँत तोड़ दिए थे ?
(A) 4
(B) 3
(C) 2
(D) 1
1. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का है।
(क) जीवन में सत्संगति का बड़ा महत्त्व है। ‘सत्संगति’ का अर्थ है अच्छी संगति। छात्रों को सदैव अच्छी संगति करनी चाहिए, क्योंकि सत्संगति ही वह महान सीढ़ी है जिस पर चढ़कर जीवन की सर्वोत्तम अच्छाइयों को छूआ जा सकता है।
‘सत्संगति’ के संबंध में कहा गया है-—’संगति से गुण होत है संगति से गुण जात’ और ‘संसर्गजाः दोषा:-गुणाः भवन्ति’ जिसका अर्थ है कि संगति से ही दोष-गुण प्रकट होते हैं। अतः, जीवन के सास्वत विकास के लिए जितने भी आवश्यक तत्त्व बतलाए गए हैं, उनमें सुसंगति (अच्छी संगति) को श्रेष्ठ माना गया है। अच्छी संगति करनेवाले बच्चे जीवन के सर्वोत्तम गुण स्वतः सीखते जाते हैं। जीवन का लक्ष्य उन्हें साफ नजर आता है तथा लोक व्यवहार का ज्ञान भी उन्हें प्राप्त होता रहता है। अच्छी संगति में रहनेवाले बच्चे उत्तरोत्तर विकास करते जाते हैं, जबकि बुरी संगति करनेवाले बच्चे अनेक दुर्गुणों के शिकार बनकर शिक्षकों एवं अभिभावकों के लिए सिरदर्द भी बन जाते हैं।
अतः, ऐसी परिस्थिति में हमें चाहिए कि हम घर के अंदर में हों या घर के बाहर, ऐसी संगति में रहें कि हमारे भीतर किसी प्रकार के दुर्गुण न आने पाएँ।
महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा’ में सदैव ‘अच्छी संगति’ पर जोर दिया था। हम जितने भी महापुरुष को देखते हैं, वे महान कैसे बने हैं? इसका मूल कारण संगति का प्रभाव ही रहा है। हम संगति के महत्त्व से इंकार नहीं कर सकते, क्योंकि अच्छी संगति पल-पल हमें बदलने में सक्षम होती है। जबकि बुरी संगति एक ऐसी घुन की तरह है जिनके संस्पर्श से ही अवनति संभावित हो जाती है।
आज जीवन की विभिन्न परिस्थितियाँ बदल गई हैं। विज्ञान के नित नूतन आविष्कार ने हमारे जीवन को सरल बना दिया है तथा अनेकानेक रोगों एवं बीमारियों पर काबू हो पाया है, तथापि ‘सत्संगति’ का महत्त्व चिरंतन शाश्वत सत्य की भाँति हमारे समक्ष ढाल की तरह खड़ा है और हमें यह मानना होगा कि यदि हम अच्छी संगति करते हैं तभी हम सर्वत्र प्रशंसा पाते हैं। सत्य, दया, क्षमा, करुणा, ईमानदारी, परिश्रम करने का गुण आदि तभी हमारे भीतर आ सकते हैं।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- इस पाठ का कोई एक उपयुक्त शीर्षक दें।
उत्तर- शीर्षक—जीवन में ‘सत्संगति’ का महत्त्व।
प्रश्न- अच्छी संगति क्यों जरूरी है ?
उत्तर- जीवन की सर्वोत्तम अच्छाइयों की प्राप्ति के लिए अच्छी संगति जरूरी है।
प्रश्न- अच्छी संगति के बारे में क्या कहा गया है ?
उत्तर- सास्वत विकास के लिए अच्छी संगति श्रेष्ठ माध्यम है। अच्छी संगति से जीवन में सर्वोत्तम गुण स्वतः आ जाते हैं।
प्रश्न- महापुरुष संगति से महान कैसे बने ?
उत्तर- सारे महापुरुष अच्छी संगति से ही महान बने। अच्छी संगति के कारण उनके भीतर सन्निहित सद्गुणों का अपेक्षित विकास हुआ और उन्होंने देश तथा समाज के हित में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
प्रश्न- छात्रों के लिए संगति क्यों प्रभावपूर्ण मानी जाती है ?
उत्तर- छात्रों के लिए अच्छी संगति इसलिए प्रभावपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इससे उनमें सर्वोत्तम गुणों का स्वतः विकास होता है तथा वे लोक व्यवहार एवं अपने जीवन-लक्ष्य से पूर्णतः परिचित होते हैं।
अथवा
(ख) मानवजीवन अनेक जन्मों के संचित पुण्य कर्म से प्राप्त हुआ है। संतों ने इस जीवन को दुर्लभ बतलाया है। यही कारण है कि मनुष्य शरीर को सदैव पवित्र एवं कल्याणकारी कार्यों में लगाए रखने संबंधी हिदायत दी गई है। परोपकार, दान, कष्ट, सहिष्णुता, सदाचरण, धर्म-पालन, ईश्वरभक्ति, प्राणिमात्र के प्रति सेवा-भाव, ईमानदारी, मातृ-पितृ, गुरु-भक्ति एवं अतिथि सत्कार आदि मानवोचित गुण कहे गए हैं। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानंद आदि का उदाहरण हमें सदैव नित कई प्रेरणा एवं ऊर्जा से ओत-प्रोत कर देता है। हम मनुष्य हैं, तो मनुष्य-गुणयुक्त कर्म करने चाहिए तथा पशुताजन्य दुर्गुणों से अपने-आपको बचाए रखना चाहिए। मानवजीवन का परम लाभ यही है कि दूषित न होने दें। आज जबकि हमारे – हम अपने संस्कार तथा सद्विचार चारों ओर सांप्रदायिक शक्तियाँ उठ खड़ी हो गई हैं, ऐसे विषम समय में हमें चाहिए कि हम पौराणिक आदर्शों एवं मान्यताओं को अंगीकार करना सीखें तथा सद्गुणों को अपनाने पर बल दें।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- मानवजीवन को दुर्लभ क्यों बतलाया गया है ?
उत्तर- चूँकि मानवजीवन अनेक जन्मों के संचित पुण्य कर्मों से प्राप्त होता है, अतः इसे दुर्लभ बताया (बतलाया) गया है।
प्रश्न- मानवोचित गुण किसे कहा गया है ?
उत्तर- परोपकार, दान, सहिष्णुता, कष्ट, सदाचार, धर्म-पालन, ईश्वरभक्ति, सच्चाई ( ईमानदारी), सभी प्राणियों के प्रति सेवा-भाव, माता-पिता एवं गुरु की भक्ति तथा अतिथि सत्कार को मानवोचित गुण कहा गया है।
प्रश्न- मानवजीवन का परम लाभ क्या है ?
उत्तर- मानवजीवन का परम लाभ यही है कि हम अपने संस्कार तथा सद्विचार को दूषित न होने दें।
प्रश्न- सद्गुण एवं दुर्गुण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- मनुष्य के ऐसे गुण जिनसे पूरे समाज का कल्याण हो, सद्गुण कहलाते हैं। प्रेम, परोपकार, स्नेह, सच्चाई, ईमानदारी, सेवा-भाव आदि सद्गुण हैं। दुर्गुण सद्गुण के विपरीत भाव हैं। इनसे व्यक्ति और समाज का पतन होता है। क्रोध, वैर, ईर्ष्या, लोभ आदि कई ऐसे दुर्गुण हैं जो पतन के कारक हैं।
प्रश्न- भगवान श्रीराम एवं श्रीकृष्ण से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर- भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण से हमें अपने जीवन में आदर्श-पालन की प्रेरणा मिलती है।
2. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का है।
(क) आज आतंकवाद ने समूचे विश्व को हिलाकर रख दिया है। विश्व शक्ति का दावा करने वाला अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। भारतवर्ष के अधिकांश राज्य भी इससे जुझ रहे हैं। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के सहयोग एवं प्रोत्साहन से भारत में हमेशा हिंसा का तांडव नृत्य चलता रहता है। हम मूकदर्शक बने सीमा पार से प्रायोजित इस आतंकवाद का मुँहतोड़ जवाब भी नहीं दे पाते। प्राकृतिक आपदाओं में हुए जानमाल के नुकसान को तो सरकार, प्रशासन यह कहकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं, कि इसपर मानव का कोई जोर नहीं किन्तु मानव के द्वारा मानव की हत्या के ऐसे सुनियोजित षड्यंत्रों का क्या कोई प्रतिकार अथवा समाधान हमारे कर्णधारों के पास नहीं है? प्रश्न यह उठता है, कि हमारी सरकार और नीति नियंता पुरोधाओं की ऐसी क्या विवशता है कि वे भारतवर्ष में मकड़जाल की तरह फैले इस आतंकवादीरूपी दैत्य का संहार नहीं कर सकते। यदि हमने इसी तरह चुप्पी साधे रखी तो वह दिन दूर नहीं जब शत्रु हमारे धैर्य को कायरता मानकर कभी हमारे घर के अन्दर भी घुसने से परहेज नहीं करेगा। हम कह सकते हैं कि राजनेताओं की दलगत संकीर्णता एवं राजनीतिक स्वार्थभाव से ऊपर उठकर एकजुट होकर कुछ ठोस पहल हेतु प्रयत्न करना चाहिए।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- आतंकवाद विश्व के लिए चुनौती है। कैसे ?
उत्तर- आतंकवाद भारत का ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की समस्या सर्वशक्तिसम्पन्न का दावा करने वाला अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है। आतंकवाद से लगभग सभी देश प्रभावित हैं। इससे निबटना विश्व के लिए चुनौती बन गया है।
प्रश्न- लेखक सरकार और नीति नियंताओं से क्या अपेक्षा करता है ?
उत्तर- लेखक सरकार और नीति नियंताओं से अपेक्षा रखता है कि कभी-न-कभी उस आतंकवाद से लोहा लेने के लिए कटिबद्ध होंगे और उसे उखाड़ फेंकेंगे।
प्रश्न- राष्ट्रहित में राजनेताओं को क्या करना चाहिए ?
उत्तर- राष्ट्रहित में राजनेताओं को दलगत संकीर्णता एवं राजनीतिक स्वार्थभाव से ऊपर उठकर एकजुट होकर आतंकवाद के विरुद्ध कुछ ठोस पहल हेतु प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्न- सुनियोजित और प्रायोजित पदों में प्रयुक्त उपसर्ग बताएँ।
उत्तर- सु और प्र ।
प्रश्न- उपर्युक्त गद्यांश का एक समुचित शीर्षक दें।
उत्तर- आतंकवाद ।
अथवा
(ख) मनुष्य उत्सवप्रिय होते हैं। उत्सवों का एकमात्र उद्देश्य आनंद-प्राप्ति है। यह तो सभी जानते हैं कि मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए आजीवन प्रयत्न करता रहता है। आवश्यकता की पूर्ति होने पर सभी को सुख प्राप्त होता है। पर, उस सुख और उत्सव के आनंद में बड़ा फर्क है। आवश्यकता अभाव सूचित करती है। उससे यह प्रकट होता है कि हममें किस बात की कमी है। मनुष्य जीवन ही ऐसा है कि वह किसी भी अवस्था में यह अनुभव नहीं कर सकता कि अब उसके लिए कोई आवश्यकता नहीं रह गई है। एक के बाद दूसरी वस्तु की चिंता उसे सताती ही रहती है। इसलिए, किसी एक आवश्यकता की पूर्ति से उसे जो सुख होता है, वह अत्यंत क्षणिक होता है, क्योंकि तुरंत ही दूसरी आवश्यकता उपस्थित हो जाती है। उत्सव में हम किसी बात की आवश्यकता का अनुभव नहीं करते। यही नहीं, उस दिन हम अपने काम-काज छोड़कर विशुद्ध आनंद की प्राप्ति करते हैं। यह आनंद जीवन का आनंद है, काम का नहीं।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- मनुष्य किसलिए आजीवन प्रयत्न करता रहता है ?
उत्तर- मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आजीवन प्रयत्न करता रहता है।
प्रश्न- उत्सवों का एकमात्र उद्देश्य क्या है ?
उत्तर- उत्सवों का एकमात्र उद्देश्य आनंद-प्राप्ति होता है।
प्रश्न- मनुष्य को एक के बाद दूसरी चिंता क्यों सताती रहती है ?
उत्तर- मनुष्य अभावों में जीता है। एक अभाव की पूर्ति होते ही दूसरा अभाव अपनी पूर्ति की माँग करने लगता है। उसे उसकी पूर्ति की चिंता सताने लगती है।
प्रश्न-आवश्यकता पूर्ति का सुख क्षणिक क्यों होता है ?
उत्तर- आवश्यकता पूर्ति का सुख क्षणिक होता है, क्योंकि एक आवश्यकता की पूर्ति से प्राप्त सुख के पश्चात दूसरी आवश्यकताओं का जन्म होता है। मनुष्य लगातार उनकी श्रृंखला में फँसकर स्थायी सुख प्राप्त नहीं कर पाता।
प्रश्न-उत्सव में हम कैसा महसूस करते हैं ?
उत्तर- उत्सव में हम किसी बात की आवश्यकता का अनुभव नहीं करते। यही नहीं, उस दिन हमं अपने काम-काज छोड़कर विशुद्ध आनंद की प्राप्ति करते हैं।
3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
(क) सबका साथ, सबका विकास
(i) भूमिका (ii) एकजुटता
(iii) हमारा कर्त्तव्य (iv) असहिष्णुता
(v) उपसंहार
(क) सबका साथ, सबका विकास
भूमिका : माननीय श्री प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का नारा है “सबका साथ, सबका विकास”। इस नारे के पीछे राष्ट्रीय एकता ही एक मात्र अर्थ है जिसे देश को समझने की जरुरत है। मोदी जी ने अपने भाषण में भी यह बात कई बार कई तरह से कही है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि देश में कई सरकारे आयेंगी और जायेंगी, लेकिन देश वही रहेगा, उसके नागरिक वही होंगे। इसका अर्थ हम यही लगा सकते हैं कि राजनैतिक विचार तो सदैव पार्टी के साथ बदलते हैं लेकिन देश की जनता हमेशा वही होती है इसलिए देश को एकजुट होकर रहना जरुरी है। हम | कितना ही कह दे, पर देश के विकास के लिए, अपने विकास के लिए, हम सभी धर्मो के लोगो को एक-दुसरे पर निर्भर करना पड़ता है, इस प्रकार हम सभी का एक ही धर्म होना चाहिए वो है राष्ट्र धर्म। तभी संभव होगा “सबका साथ, सबका विकास”।
एकजुटता : भारत को धर्म के नाम पर बाँट कर कई राजनैतिक रोटियाँ सिकती आई है, लेकिन वास्तव में भारत चंद हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई से नहीं बल्कि सवा सौ करोड़ देशवासियों से मिलकर बना है और इसका विकास तब ही संभव है, जब ये सवा सौ करोड़ एक-दुसरे का साथ दे और अपनी एकता की शक्ति को समझे। भारत एक ऐसा देश है जिसे सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है और इस देश का लोकतंत्र तब ही विकास करेगा जब उन में एकता का भाव निहित होगा। यह एक ऐसा देश है जिसके नागरिक पूरी दुनियाँ में बसे हुए हैं और इस देश में युवा प्रतिशत अन्य देशों की तुलना में कई अधिक है। यह सभी बिंदु हमारे देश की शक्ति है लेकिन यह शक्ति तब ही सकारात्मक होगी, जब यह शक्तियाँ एक होंगी।
हमारा कर्त्तव्य : सबका साथ सबका विकास का अर्थ केवल धार्मिक धरातल पर ही एकता नहीं हैं, इसका अर्थ हैं हर तरह से एक दुसरे का सहयोग देना। स्वामी विवेकानंद जी के गुरु, महर्षि राम कृष्ण परमहंस ने बहुत ही सुंदर शब्द कहे हैं कि जिस देश के लोग भूखे सो रहे हैं, उस देश की पढ़ी लिखी आवाम गद्दार हैं। यह वाक्य हमें सीख देता है कि देश के हर एक व्यक्ति के जीवन के सुख दुःख की जिम्मेदारी हम सभी को लेनी होगी। एक पढ़े लिखे व्यक्ति का कर्तव्य है कि वो इसका लाभ देश कल्याण में लगाये। अपने साथ औरों के विकास के लिए उत्तरदायी बने ।
असहिष्णुता : आज देश में एक नए शब्द असहिष्णुता ने जन्म लिया है जिसने देश में काफी उथल पुथल मचा रखी है जो कहीं न कहीं देश को फिर से कई हिस्सों में तोड़ रहा है, पहले देश में अंग्रेजो ने फुट डालो और राज करो के सिद्धांत पर देश को विखंड किया और फायदा उठाया और अब कई राजनैतिक दल इस असहिष्णुता के शब्द के साथ अपनी रोटी सेक रहे हैं। इस एक असहिष्णुता के शब्द के साथ वे देश को आपस के तोड़ रहे हैं और देश के विकास में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। यह वही दल हैं जो केवल स्वहित में विश्वास रखते हैं जिनमे देश के विकास के प्रति को ललक एवं उत्साह नहीं हैं ।
उपसंहार : सबका साथ, सबका विकास यह नारा इस असहिष्णुता के शब्द के विरोध में खड़ा सच हैं क्यूँकि यह सत्य है कि देश तब तक आगे नहीं बढ़ सकता, जब तक उसमें एकता न हो। कौमी होना केवल निजी हित को दिखाता है एक कौमी सोच कभी विकास की तरफ अग्रसर नहीं हो सकती। यह सोच व्यक्ति को अपाहिज करती है, संकीर्ण विचारधारा देती है और ऐसा व्यक्ति न स्वयं खुशं रह सकता है और ना राष्ट्रहित में अपना योगदान दे सकता है।
(ख) संचार क्रांति
(i) भूमिका (ii) संचार क्रांति का स्वरूप
(iii) संचार क्रांति से लाभ (iv) निष्कर्ष
(ख) संचार क्रांति
भूमिका : वर्तमान का दौर संचार क्रांति का दौर है। संचार क्रांति की इस प्रक्रिया में जनसंचार माध्यमों के भी आयाम में परिवर्तन हुए हैं। आज की वैश्विक अवधारणा के अंतर्गत सूचना एक हथियार के रूप में परिवर्तित हो गयी है।
संचार क्रांति का स्वरूप : आज का सूचना जगत गतिमान हो गया है। इसका व्यापक प्रभाव जनसंचार माध्यमों पर पड़ा है। पारंपरिक संचार माध्यमों, समाचार पत्र, रेडियो और टेलिविजन की जगह वेब मीडिया ने ले ली है। वेब पत्रकारिता आज समाचार पत्र पत्रिका का एक बेहतर विकल्प बन चुका है। न्यू मीडिया, ऑनलाइन मीडिया साइबर जर्नलिज्म और वेब जर्नलिज्म जैसे कई नामों से वेब पत्रकारिता को जाना जाता है। वेब पत्रकारिता प्रिंट और ब्रॉडकास्टिंग मीडिया का मिला-जुला रूप है। यह टेक्स्ट, पिक्चर्स, ऑडियो और वीडियो के जरिए स्क्रीन पर हमारे सामने है।
संचार क्रांति से लाभ : भारत में वेब पत्रकारिता को लगभग एक दशक बीत चुका है। हाल ही में आए ताजा आँकड़ों के अनुसार इंटरनेट के उपयोग के मामले में भारत तीसरे पायदान पर आ चुका है। आधुनिक तकनीक के जरिए इंटरनेट की पहुँच घर-घर हो गई है। युवाओं पर इसका प्रभाव अधिक दिखाई देता है। वेब पत्रकारिता के बढ़ते विस्तार के कारण ना मालूम कितने लोगों को रोजगार मिल रहा है। मीडिया के विस्तार ने वेब डेवलपरों एवं वेब पत्रकारों की माँग को बढ़ा दिया है। वेब पत्रकारिता किसी अखबार को प्रकाशित करने और किसी चैनल को प्रसारित करने से अधिक समता माध्यम है।
संचार क्रांति से हानि : मानव के लिए संचार क्रांति कितनी ही उपयोगी क्यों न हो इससे अन्य जानवरों को काफी हानि उठानी पड़ रही है। फोन के रेडिएशन्स से प्राणियों की संख्या दिनानुदिन कम हो रही है। चिड़ियों की रेडिएशन से मौत हो रही है। मोबाइल पार्ट्स खुले में हम फेंक देते हैं जब मोबाइल खराब हो जाता है।
निष्कर्ष : संचार क्रांति की हानि तो अनेक हैं किन्तु लाभ भी तो अनेकानेक हैं। फिर बदलते समय के साथ हमें भी तो परिवर्तन के लिए तैयार रहना ही पड़ेगा। किसी भी सफलता के लिए कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ती है। अतः तमाम खतरों के बावजूद संचार क्रांति से हम अब अछूते नहीं रह सकते।
(ग) वन संरक्षण
(i) प्रस्तावना (ii) वनों का प्रत्यक्ष योगदान
(iii) वनों का अप्रत्यक्ष योगदान (iv) उपसंहार
(ग) वन संरक्षण
प्रस्तावना : वन मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं, किंतु सामान्य व्यक्ति इसके महत्त्व को नहीं समझ पा रहा है। जो व्यक्ति वनों में रहते हैं या जिनकी जीविका वनों पर आश्रित हैं वे तो वनों के महत्त्व को समझते हैं, लेकिन जो लोग वनों में नहीं रहे हैं वे, तो इन्हें केवल प्राकृतिक शोभा का साधन मानते हैं, पर वनों का मनुष्यों के जीवन से गहरा संबंध है। किसी भी देश की समृद्धि में वन अति महत्वपूर्ण हैं।
वनों का प्रत्यक्ष योगदान : —मनोरंजन का साधन- वन मानव को सैर-सपाटे के लिए रमणीक क्षेत्र प्रस्तुत करते हैं। वृक्षों के अभाव में पर्यावरण शुष्क हो जाता है और सौंदर्य नष्ट हो जाता है। वृक्ष स्वयं सौंदर्य की सृष्टि करते हैं। ग्रीष्मकाल में बहुत बड़ी संख्या में लोग पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा करके इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं।
प्रचुर फलों की प्राप्ति—वन प्रचुर मात्रा में फलों को प्रस्तुत करके मानव का पोषण करते हैं। अनेक ऋषि-मुनि और वनवासी वनों में रह कर कंद-मूल फलों पर अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।
जीवनोपयोगी जड़ी—बूटियों का भंडार–वन अनेक जीवनोपयोगी – जड़ी-बूटियों का भंडार है। वनों में ऐसी अनेक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, जिनसे अनेक असाध्य रोगों का निदान संभव हो सका है।
वन्य पशु-पक्षियों को संरक्षण—पशु-पक्षियों की सौंदर्य की दृष्टि से अपनी उपयोगिता है। वन अनेक वन्य पशु-पक्षियों को संरक्षण प्रदान करते हैं। वे हिरन, नीलगाय, भालू, शेर, चीता आदि वन्य पशुओं की क्रीड़ास्थली हैं। ये पशु वनों में स्वतंत्र विचरण करते हैं, भोजन प्राप्त करते हैं और संरक्षण पाते हैं। गाय, भैंस, बकरी, भेड़ आदि पालतू पशुओं के लिए भी वन विशाल चरागाह प्रदान करते हैं।
वनों का अप्रत्यक्ष योगदान : —वर्षा – भारत एक कृषि प्रधान देश है। सिंचाई के अपर्याप्त साधनों के कारण वह अधिकांशतः मानसून पर निर्भर रहता है। कृषि की मानसून पर निर्भरता की दृष्टि से वनों का बहुत महत्व है। वन वर्षा में सहायता करते हैं। इन्हें वर्षा का संचालन कहा जाता है। इस प्रकार वनों से वर्षा होती है और वर्षा से वन बढ़ते हैं।
भूमि कटाव पर रोक—वनों के कारण वर्षा का जल मंद गति से प्रवाहित होता है। अतः भूमि का कटाव कम होता है। वर्षा के अतिरिक्त जल को वन सोख लेते हैं और नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करके भूमि के कटाव को रोकते हैं, फलस्वरूप भूमि ऊबड़-खाबड़ नहीं हो पाती तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
बाढ़ नियंत्रण में सहायता—वृक्ष की जड़ें वर्षा के अतिरिक्त जल को सोख लेती हैं, जिनके कारण नदियों का जल-प्रवाह नियंत्रित रहता है। इससे बाढ़ की स्थिति से बचाव हो जाता है।
उपसंहार : –निस्संदेह वन हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं, इसलिए वनों का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए जनता और सरकार का सहयोग अपेक्षित है। बड़े खेद का विषय है कि एक ओर तो सरकार वनों के संवर्धन के लिए विभिन्न आयोगों और निगमों की स्थापना कर रही है, तो दूसरी ओर वह कुछ स्वार्थी तत्त्वों के हाथों में खेल कर केवल धन के लाभ भी आशा से अमूल्य को नष्ट कराती जा रही है। आज मध्य प्रदेश में केवल 18 प्रतिशत वन रह हैं, इसलिए आवश्यक है कि सरकार वन संरक्षण नियमों का कड़ाई से पालन कर भावी प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा करें।
(घ) आतंकवाद
(i) भूमिका (ii) इसके कई रूप
(iii) धार्मिक उन्माद से प्रेरित (iv) विरोध
(v) उपसंहार
(घ) आतंकवाद
भूमिका : आतंकवाद नागरिकों, सशस्त्र सैनिकों या राज्य के विरुद्ध लोगों द्वारा अपने वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जानेवाला बलपूर्वक एवं गैरकानूनी तरीका है। आतंकवादी वर्तमान शासन व्यवस्था एवं शांति को उखाड़ फेंकने एवं वांछित राजनीतिक परिवर्तन के लिए विस्फोट, अपहरण, आक्रमण, हत्या जैसे हिंसात्मक आपराधिक गतिविधियों का सहारा लेते हैं।
इसके कई रूप : आज पूरा विश्व किसी-न-किसी रूप में आतंकवाद से त्रस्त है। हमारे देश में भी तथाकथित आतंकवादी एवं विद्रोही गुटों के अमानवीय कृत्यों ने अर्थव्यवस्था एवं विकास को बुरी तरह से प्रभावित किया है। आजादी के कुछ वर्षों के पश्चात से ही हमारा देश आतंकवाद के कई रूपों से त्रस्त रहा है। देश की सीमा पर बाहरी, घुसपैठिए आतंकवाद ने कहर बरपाया है तो देश के भीतर नक्सलवादी आतंकवाद ने जीना मुहाल किया है। देश का प्रत्येक राज्य आतंकवाद की अग्नि में झुलस रहा है। आतंकवाद कभी अर्थव्यवस्था की नगरी मुंबई को, कभी राजकाज के संचालन केंद्र संसद को तो कभी सार्वजनिक स्थल पर आम जन को अपना निशाना बनाता है।
धार्मिक उन्माद से प्रेरित : वर्तमान आतंकवाद का सबसे वीभत्स, घृणित एवं भयानक पहलू यह है कि इसमें अधिकतर लोग धर्म और पंथ से प्रेरित होते हैं। आतंकवाद शासन तथा व्यवस्था दोनों के लिए एक गंभीर समस्या है, जो शासन को विघटन की ओर ले जा रहा है। हत्या, यातना, लूटपाट, फिरौती आदि घटनाएँ आतंक और भय का वातावरण पैदा करती हैं। आतंकवादी आतंक तथा दहशत पैदा करने के लिए स्त्रियों, बच्चों एवं नागरिकों को मौत के घाट उतार देते हैं ।
विरोध : कुल मिलाकर कहें तो आतंकवाद मानवीय मूल्यों की पूर्णतया अवहेलना करता है। यह विश्व क्षितिज पर तेजी से उभर रहा बदनुमा दाग है, जिसे नेस्तनाबूद नहीं किया गया तो मानवता के विरुद्ध यह कालिमा बढ़ती ही जाएगी। इसलिए, हमारा देश संकल्पित है कि वह सभी जगहों पर सभी प्रकार के आतंकवाद का विरोध करेगा। इस संग्राम में इंदिरा गाँधी एवं राजीव गाँधी की कुर्बानी हमें तथा हमारी आनेवाली पीढ़ियों को आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए सदैव प्रेरित करती रहेगी।
उपसंहार : आतंकवाद सदैव गैरकानूनी, अमानवीय एवं निंदनीय कृत्य है। आज के दौर में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रसार के कारण आतंकवाद और भी घातक बनता जा रहा है। आतंकवादियों द्वारा रासायनिक, जैविक, नाभिकीय अस्त्रों को प्राप्त करना विश्व के लिए एक महान विपदा बन गई है।
(ङ) तकनीकी शिक्षा का महत्त्व
(i) भूमिका (ii) तकनीकी शिक्षा का अर्थ
(iii) महत्त्व (iv) उपसंहार
(ङ) तकनीकी शिक्षा का महत्त्व
भूमिका : शिक्षा बिना मनुष्य पशु के समान है। वस्तुतः शिक्षा ही मनुष्य की संभावनाओं को उजागर करती है। इसके द्वारा ही मनुष्य का अपना विकास तो होता ही राष्ट्र भी विकसित होता और उन्नति की ओर अग्रसर होता। शिक्षा के विभिन्न चरण हैं। पहला चरण है साक्षरता, दूसरा चरण है पठन-पाठन के साथ समझदारी का विकास, तीसरा चरण है। विशेष शिक्षा इस विशेष शिक्षा के दो रूप हैं—पारम्परिक और तकनीकी शिक्षा।
तकनीकी शिक्षा का अर्थ : तकनीकि शिक्षा का अर्थ है किसी कला या शिल्प का सर्वांगीण ज्ञान। यों तो प्रत्येक क्षेत्र में विशेष ज्ञान अपेक्षित है किन्तु तकनीकी शिक्षा से चिकित्सा, इंजीनियरिंग, प्रबंधन, सूचना, संचार, पत्रकारिता, नाभिकीय ऊर्जा, बायोटेक्नोलॉजी की शिक्षा का ही बोध होता है। पहले यह क्षेत्र सीमित था किन्तु ज्ञान के प्रसार ने और संसार के सिमट जाने से तकनीकी शिक्षा आज की आवश्यकता है।
महत्त्व : भारत की आबादी आज एक अरब से ज्यादा हो चुकी है। इतनी बड़ी आबादी के लिए भोजन, वत्र और आवास का प्रबंध बहुत जरूरी है। जमीन बढ़ाई नहीं जा सकती, अतः अधिकाधिक उत्पादन की विधि खोजनी होगी और इसके लिए कृषि का तकनीकी ज्ञान चाहिए। साथ ही लोगों के स्वास्थ्य के लिए चिकित्सक चाहिए और इसके लिए चिकित्सा विज्ञान (डाक्टरी) की शिक्षा जरूरी है। इसी तरह सड़क, बिजली, परिवहन आदि के लिए इंजीनियर चाहिए। बड़े-बड़े उद्योगों के लिए कुशल पंधक, शोधकार्यों के लिए वैज्ञानिकों, तकनीशियनों की बहुत जरूरत होगी।
उपसंहार : तात्पर्य यह है कि तकनीकी शिक्षा में उदासीनता से हमारी प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। यह अच्छी बात है कि अपने देश में इस ओर ध्यान दिया जा रहा है और महाविद्यालयों/विद्यालयों में इस प्रकार की शिक्षा की शुरुआत की गई है। किन्तु अभी भी तकनीकी शिक्षा का ठोस ढाँचा या संरचना तैयार नहीं हुई है। सरकार को और शिक्षण संस्थानों को इस पर विशेष ध्यान देना होगा, अन्यथा पुल बनते ही गिर जाएँगे, डॉक्टर की कैंची मरीज के पेट में रह जाएगी, मोटरगाड़ियाँ बिना ब्रेक के बन जाएँगी, दवा जहर बन जाएगी, अखबारों में रोग के बदले भोग छपेगा। मजबूत ढाँचा न होने से प्रगति के बदले अवनति होगी। अतएव, तकनीकी शिक्षा के पहले इसका सुदृढ़ ढाँचा तैयार करना चाहिए तभी इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
4 . प्रश्न- दो छात्रों के बीच परीक्षा की तैयारी को लेकर संवाद लिखें।
उत्तर- गोपीचन्द—नमस्ते रामनाथ भाई !
रामनाथ—आओ, आओ गोपीचन्द !
गोपीचन्द—पढ़ाई चल रही है। परीक्षा जो आ गई।
रामनाथ—वह तो आनी ही है। पढ़ोगे तो परीक्षा देनी ही होगी। इसकी क्या चिन्ता ?
गोपीचन्द—तुम्हारी बात और है। मुझे तो बड़ी चिन्ता हो रही है। गणित पल्ले ही नहीं पड़ रहा है। लगता है, अंग्रेजी लेकर बैठ जाएगी।
रामनाथ—क्यों! तुम्हारे गणित के शिक्षक बढ़िया नहीं पढ़ाते? हमारे प्रसाद साहब तो बेजोड़ हैं।
गोपीचन्द—सिंह साहब तो पूछो तो गरम हो जाते हैं। कहते हैं कहाँ ध्यान रहता है? क्या बताऊँ ।
रामनाथ—यह तो गलत बात है। प्रधानाचार्य को यह समस्या बतानी चाहिए।
गोपीचन्द—लेकिन वे कुछ करेंगे तब तक तो कबाड़ा हो जाएगा। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता, रामनाथ भाई ।
रामनाथ—धीरज से काम लो । निरन्तर अभ्यास से इसकी गुत्थियाँ सुलझती हैं। देखना, कुछ ही दिनों में कहाँ पहुँच जाते हो।
गोपीचन्द—तुम्हारा भला हो भैया! और अंग्रेजी का क्या होगा?
रामनाथ—उसकी भी चिन्ता न करो । मेरे अरुण भैया हैं, न! वे अंग्रेजी पढ़ा देंगे।
अथवा
प्रश्न- मुहल्ले में फैले डेंगू के प्रकोप के लिए नगरपालिका के मेयर के पास समुचित उपाय करने के लिए एक आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
मेयर
नगरपालिका, बिहारशरीफ
विषय : मुहल्ले में फैले डेंगू के प्रकोप के संबंध में।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपको सूचित कर रहा हूँ कि मेरे मुहल्ले रामचन्द्रपुर में गंदगी का अंबार लगा है। इससे मक्खियाँ और मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। मच्छरों के काटने से मुहल्ले में डेंगू के मरीज बढ़ रहे हैं।
अतः आपसे नम्र निवेदन है कि मुहल्ले में फैले डेंगू के प्रकोप से मुहल्लेवासियों को बचाने हेतु सम्यक् कार्रवाई कर परम यश के भागी बनें।
भवदीय
नवीन कुमार
5. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें।
प्रश्न- भारत किस प्रकार अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है? स्पष्ट करें।
उत्तर- भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में एक है। यहाँ के चिंतन और आचरण में आज भी प्राचीन संस्कृति के रंग वर्तमान हैं। भारत की संस्कृति ठहरी हुई संस्कृति नहीं है, यह सतत विकासशील है। भारतीय संस्कृति के इसी विकासशील स्वरूप में भविष्य की अनेक संभावनाएँ वर्तमान हैं। भारत से परिचित होने का अर्थ है इसकी संस्कृति की प्राचीन सुवास से परिचित होना तथा इसके सतत विकासशील स्वरूप के कारण भविष्य की संभावनाओं से परिचित होना। इसी अर्थ में मैक्समूलर ने कहा है कि भारत अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है।
प्रश्न- परम्परा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है, और क्यों ?
उत्तर- जो लोग (ऐसे साहित्यकार) रूदियों के अनुगामी नहीं हैं तथा क्रांतिकारी साहित्य की रचना के माध्यम से युग परिवर्तन की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए साहित्य की परंपरा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।
प्रश्न- मछली और दीदी में क्या समानता है? स्पष्ट करें।
उत्तर- जिस तरह मछली बेजुबान होती है, अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पाती, उसी तरह दीदी भी बेजुबान है। वह अपनी अंतर्व्यथा प्रकट नहीं कर पाती।
प्रश्न- कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर- कृष्ण की मदमाती आँखें बरबस सभी को आह्वादित कर देती है। राधिका एवं अन्य गोप बालाएँ कृष्ण के प्रेम रस के वशीभूत हो जाती हैं। वे उससे अलग रहना चाहती हैं। फिर भी वे अलग नहीं रह पाती हैं। वस्तुतः चित्तचोर का अभिप्राय हृदय को चुरानेवाले से है। श्रीकृष्ण के संपर्क में आनेवाली गोप बालाएँ लोक मर्यादाओं को तोड़ देती हैं। गोप बालाएँ श्रीकृष्ण से सावधान रहते हुए भी असावधान हो जाती हैं। अपनी मन की जिज्ञासा को प्रकट करने के लिए वे कुछ कहना चाहती है।
प्रश्न- कवि किसके बीच अँधेरे में होने की बात करता है? आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- कवि जीवनानंद दास शाम के अँधेरे में अपने घर लौटते सारसों के बीच होने की बात करता है। कवि में बंगाल की सुरम्य प्रकृति के प्रति अनन्य अनुराग भाव है। वह इसी अनन्य अनुराग भाव के कारण सारसों के बीच अपने घर लौटने की अभिलाषा रखता है।
प्रश्न- लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों ?
उत्तर- लेखक-दृष्टि में सच्चे भारत का दर्शन कोलकाता, मुंबई, मद्रास या ऐसे शहरों में नहीं हो सकता है। सच्चे भारत का दर्शन एकमात्र भारत के नागरिक ग्रामवासियों के बीच ही हो सकता है। भारत गाँवों का देश है, किसानों का देश है। अतः भारतीय आत्मा का सही वास गाँवों में ही है। इसलिए सच्चे भारत का दर्शन निश्छल, निर्मल, निष्कलुष ग्रामीणों के बीच ही संभव है।
प्रश्न- कवि किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर- कवि राम नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम नाम के बिना व्यतीत होनेवाला जीवन केवल विष का माँग करना है।
प्रश्न- ‘ढहते विश्वास’ पाठ के आधार पर गुणनिधि का परिचय दीजिए |
उत्तर- गुणनिधि लक्ष्मी (‘ढहते विश्वास’ शीर्षक कहानी की नायिका) के पड़ोस का पढ़ाकू लड़का था। उसमें अपने गाँव के प्रति विशेष प्रेम था। कटक से उच्च शिक्षा प्राप्तकर वह अपने गाँव लौटा था। उसमें समाज सेवा की भावना थी। गाँव में बाढ़ आने पर उसने ग्रामीणों की रक्षा के लिए दिन-रात मेहनत की। लक्ष्मी के शब्दों में वह पढ़लिखकर भी नालायक नहीं था। वह सभ्य तो था ही, सुसंस्कृत भी था।
6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लिखिए–
प्रश्न- बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है ?
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तब वे विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे। थोड़ी देर के लिए उनकी शहनाई का प्याला उस दिशा की ओर घुमा दिया जाता था। बिस्मिल्ला खाँ के भीतर की कवि आस्था संगीतमय होकर बाबा विश्वनाथ और बालाजी के श्रीचरणों में समर्पित होने लगती थी। बिस्मिल्ला खाँ के लिए इस धरती पर कहीं जन्नत (स्वर्ग) है तो वह है शहनाई और काशी में। काशी से बाहर बिस्मिल्ला खाँ के उपर्युक्त आस्थापूर्ण आचरण से हमें एक महत्त्वपूर्ण सीख मिलती है और वह सीख है कि हमें सांप्रदायिक भेदभाव से मुक्त होकर सच्चा इंसान बनना चाहिए।
प्रश्न- कवि प्रेम मार्ग को ‘अति सूधो’ क्यों कहते हैं? इस मार्ग की क्या विशेषता है ?
उत्तर- कवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताए हैं। ये कहते हैं कि प्रेम मार्ग पर चलना सरल है। इसपर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेम पथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्त की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है, लेने की अपेक्षा लेशमात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक नि:संकोच भाव से, सरलता से, सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है।
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