Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 2

Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 2

 

1. डॉ० अम्बेदकर के अनुसार बेरोजगारी का प्रमुख कारण क्या है ?
(A) अशिक्षा
(B) जाति प्रथा  
(C) जनसंख्या
(D) दहेज प्रथा
2. नलिन विलोचन शर्मा का जन्म कब हुआ था ?
(A) 18 फरवरी, 1926 ई० को
(B) 18 फरवरी, 1916 ई० को
(C) 18 फरवरी, 1917 ई० का
(D) 18 फरवरी, 1906 ई० को
3. ‘भारत से हम क्या सीखें’ शीर्षक पाठ साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(A) कहानी
(B) यात्रा वृत्तांत
(C) भाषण
(D) रिपोर्ताज
4. ‘प्रेम की पीर के कवि’ किस कवि को कहा जाता है ? 
(A) रसखान को
(B) घनानंद को 
(C) प्रेमघन को
(D) गुरुनानक को
5. ‘उर्वशी’ के रचनाकार कौन हैं? 
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) अज्ञेय
(C) दिनकर    
(D) कुँवर नारायण
6. ‘पेड़ पर कमरा’ किसकी रचना है? 
(A) विनोद कुमार शुक्ल
(B) अशोक वाजपेयी
(C) अंमरकांत
(D) यतीन्द्र मिश्र
7. मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति किस भाषा में है?
(A) प्राकृत
(B) अपभ्रंश
(C) संस्कृत
(D) हिन्दी
8. रुपये खाने का प्रपंच किसने रचा था ?
(A) कहानीकार के मित्र ने
(B) कहानीकार के भाई ने
(C) कहानीकार के रिश्तेदार ने
(D) कहानीकार के साले ने
9. घनानंद की भाषा क्या है ? 
(A) अवधी
(B) ब्रजभाषा 
(C) प्राकृत
(D) पाली
10. विरजू कितने साल के थे, जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी ?
(A) 8 साल के
(B) 9½ साल के  
(C) 10 साल के
(D) 7½ साल के
11. शंभु महाराज बिरजू महाराज के कौन थे ? 
(A) मौसा
(B) भाई
(C) पिता
(D) चाचा
12. कार्बूसियन (ईसाई) सम्प्रदाय किस पर विश्वास करता है?
(A) मार-पीट में
(B) झगड़ा में
(C) फँसाने में
(D) मौन में
13. ‘मछली’ है
(A) कहानी
(C) शिक्षाशास्त्र
(B) निबंध
(D) ललित निबंध
14. ‘नालिन विलोचन शर्मा का जन्म कहाँ हुआ था ?
(A) दिल्ली
(B) कलकत्ता
(C) पटना
(D) उत्तर प्रदेश
15. गाँधीजी के अनुसार शिक्षा सहायक होती है 
(A) शरीर के विकास में
(B) बुद्धि के विकास में “
(C) शरीर, बुद्धि और आत्मा के विकास में 
(D) आत्मा के विकास में
16. सिख धर्म के पाँचवें गुरु कौन थे ?
(A) गुरुनानक
(B) अर्जुन देव
(C) गुरुअंगद
(D) गुरुराम दास
17. ‘रसखान’ किस काल के कवि हैं?
(A) आदिकाल
(B) रीतिकाल
(C) आधुनिककाल
(D) भक्तिकाल
18. कवि घनानंद ने किस मार्ग को सबसे सरल कहा है ?
(A) कर्मपंथ को
(B) साधना के मार्ग को
(C) प्रेममार्ग को
(D) ज्ञानमार्ग को
19. प्रेमघन साहित्य सम्मेलन के किस अधिवेशन के सभापति बने 
(A) मिर्जापुर के
(B) कलकत्ता के
(C) काशी के
(D) दिल्ली के
20. सुमित्रानंदन पंत को किस रचना पर ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है?
(A) चिदम्बरा
(B) सत्यकाम
(C) लोकायतन
(D) स्वर्ण किरण
21. जनतंत्र में, कवि के अनुसार राजदण्ड क्या होंगे? 
(A) ढाल और तलवार
(B) फूल और भौरे
(C) फॉवड़े और हल  
(D) बाघ और भालू
22. ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता में निकलने वाला सूरज क्या है 
(A) खगोलीय पिंड
(B) प्रशंसित व्यक्ति
(C) प्रचंड क्रोध
(D) अणुबम
23. कवि के अंदेशों में कौन था ? 
(A) एक जानी- दुश्मन
(B) एक नेता
(C) एक संन्यासी
(D) एक दोस्त
24. कविता में देवी जागरण कहाँ हुआ? 
(A) बाजार में
(B) गरीब बस्तियों में
(C) शहर में
(D) कस्बे में
25. बच्चा कहाँ आकर ठमक जाता है ?
(A) ‘ख’ पर
(B) ‘ग’ पर
(C) ‘घ’ पर
(D) ‘ङ’ पर
26. ‘रूपसा’ क्या है?
(A) बंगाल की नदी
(B) बंगाल की एक सुन्दर स्त्री
(C) बंगाल का मंदिर
(D) बंगाल की चौराह्य
27. भगवान की कृपा दृष्टि कहाँ विश्राम करती थी ?
(A) कवि के भाल पर
(B) कवि के ओठों पर
(C) कवि के नयनों पर
(D) कवि के कपोलों पर
28. मंगम्मा अपना पैसा किसके पास रखना चाहती है ?
(A) बेटे के पास
(B) माँ जी के पास
(C) थानेदार के पास
(D) रंगप्पा के पास
29. ‘मछली’ शीर्षक कहानी किस कहानी संकलन से ली गयी है? 
(A) पेड़ पर कमरा
(B) महाविद्यालय
(C) शहर अब भी संभावना है
(D) थोड़ी सी जगह
30. माँ कहानी किस लेखक द्वारा रचित है?
(A) श्रीनिवास
(B) सातकोड़ी होता
(C) ईश्वर पेटलीकर   
(D) सुजाता
31. ‘माँ’ कहानी का मुख्य पात्र कौन है ? 
(A) लक्ष्मी
(B) सीता
(C) कुसुम
(D) मंगु
32. लम्बी कतार देखकर वल्लि अमाल को किस पर गुस्सा आया ?
(A) डॉक्टर पर
(B) मृत पति पर 
(C) बेटी पर
(D) श्रीनिवास पर
33. ‘नगर’ कहानी किस भाषा से अनुदित है?
(A) उड़िया
(B) तमिल
(C) गुजराती
(D) कन्नड़
34. ‘धरती कब तक घूमेगी’ शीर्षक कहानी का कहानीकार कौन है ?
(A) श्री निवास
(B) सुजाता
(C) साँवर दइया 
(D) सातकोड़ी होता
35. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कहानी में किसकी प्रधानता दी गई है?
(A) नारी
(B) पुरुष
(C) बच्चों
(D) बहू
36. देवनागरी लिपि का विकास किस लिपि से हुआ ?
(A) ब्राह्मी
(B) खरोष्ठी
(C) रोमन
(D) गुरुमुखी
37. हिन्दी में अन्तःस्थ वर्ण की संख्या कितनी है?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
38. निम्नलिखित शब्दों में समूहवाचक संज्ञा है
(A) सभा
(B) मानवता
(C) आदमी
(D) चावल
39. ‘पंतजी’ छायावादी कवियों में महान थे रेखांकित शब्द का संज्ञा बताएँ
(A) समूहवाचक संज्ञा
(B) द्रव्यवाचक संज्ञा
(C) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(D) जातिवाचक संज्ञा
40. कवि का स्त्रीलिंग है 
(A) कविइत्री
(B) कवित्री
(C) कवयित्री
(D) कवियित्री
41. से पत्ते गिरते हैं’ इन वाक्य में ‘से’ किस कारक का चिह्न है ?
(A) कर्म
(B) करण
(C) अपादान 
(D) अधिकरण
42. ‘आदर’ का विशेषण होगा
(A) आदरपूर्वक
(B) आदरकारी
(C) आदरणीय
(D) आदरीय
43. ‘प्रख्यात’ में प्रयुक्त उपसर्ग है
(A) प्र 
(B) त
(C) प्रत्यु
(D) इनमें से कोई नहीं
44. निश्चल का सन्धि-विच्छेद क्या होगा ? 
(A) नी: + चल
(B) निश् + चल
(C) निस् + चल
(D) निः + चल
45. लम्बोदर शब्द किस समास का उदाहरण है ?
(A) इन्द्र
(B) द्विगु
(C) बहुव्रीहि
(D) कर्मधारय
46. ‘विकास’ शब्द का विलोम क्या होता है?
(A) परिहास
(B) ह्रास
(C) निवाश
(D) उल्लास
47. ‘हाथ-पाँव फूलना’ का अर्थ होता है ? 
(A) थक जाना
(B) अधिक चलना
(C) घबरा जाना
(D) कड़ी मेहनत करना
48, करना’ मुहावरे का अर्थ बताइए। 
(A) मुकर जाना
(B) चुप हो जाना
(C) अलग हो जाना
(D) दूर होना
49. निम्नलिखित शब्दों में कौन-सा शब्द शुद्ध है ?
(A) क्रिप
(B) कृर्पा
(C) कृिपा
(D) कृपा 
50. निम्नलिखित वाक्यों में कौन-सा वाक्य शुद्ध है ? 
(A) यह बालक कहाँ जा रहे हैं?
(B) बच्चा का क्या समाचार है?
(C) फूलों की एक माला ला दीजिए। 
(D) लता दो चिट्ठी लिखी।
51. मंगम्मा क्या बेचती थी ?
(A) दूध
(B) दही 
(C) घी
(D) मक्खन
52. बच्चा कहाँ आकर थमक जाता है?
(A) ‘ख’ पर
(B) ‘क’ पर
(C) ‘घ’ पर
(D) ‘ङ’ पर 
53. दिक् + गज कौन सी संधि है ?
(A) स्वर
(B) विसर्ग
(C) व्यंजन 
(D) दीर्घ
54. विरजू महाराज किस घराने से थे ? 
(A) दिल्ली
(B) बम्बई
(C) वाराणसी
(D) लखनऊ
55. टेनीसन कौन थे ?
(A) अंग्रेज कवि
(B) देशद्रोही
(C) देशभक्त
(D) प्रधानमंत्री
56. ‘जीवनदायक’ कौन-सा विशेषण है ?
(A) गुणवाचक
(B) भाववाचक
(C) जातिवाचक
(D) इनमें से कोई नहीं
57. विशेषण के मुख्यतः कितने भेद हैं?
(A) चार
(B) तीन
(C) पाँच
(D) दो
58. विस्मिल्ला खाँ का जन्म कब हुआ था ?
(A) 1960 ई०
(B) 1916 ई०
(C) 1917 ई०
(D) 1918 ई०
59. ‘पीताम्बर’ का संधि-विच्छेद है 
(A) पीता + म्बर
(B) पीता + अम्बर
(C) पीत+म्बर
(D) पीत + अम्बर 
60. ‘स्वदेशी’ पाठ के लेखक हैं 
(A) प्रेमघन
(B) घनानंद
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) अनामिका
1. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का है।
(क) अपने जीवन के अंतिम वर्षों में डॉ० सच्चिदानंद सिन्हा की उत्कट अभिलाषा थी कि सिन्हा लाइब्रेरी के प्रबंध की उपयुक्त व्यवस्था हो जाए। ट्रस्ट पहले से मौजूद था, लेकिन आवश्यकता यह थी कि सरकारी उत्तरदायित्व भी स्थिर हो जाए। ऐसा मसविदा तैयार करना कि जिसमें ट्रस्ट का अस्तित्व भी न टूटे और सरकार द्वारा संस्था की देखभाल और पोषण की भी गारंटी मिल जाए, जरा टेढ़ी खीर थी। एक दिन एक चाय-पार्टी के दौरान सिन्हा साहब मेरे (जगदीशचंद्र माथुर ) पास चुपके से आकर बैठ गए। 1949 की बात है। मैं नया-नया शिक्षा सचिव हुआ था, लेकिन सिन्हा साहब की मौजूदगी में मेरी क्या हस्ती? इसलिए, जब मेरे पास बैठे और जरा विनीत स्वर में उन्होंने सिन्हा लाइब्रेरी की दास्तान कहनी शुरू की तो मैं सकपका गया। मन में सोचने लगा कि जो सिन्हा साहब मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और गवर्नर तक से आदेश के स्वर में सिन्हा लाइब्रेरी जैसी उपयोगी संस्था के बारे में बातचीत कर सकते हैं, वह मुझ जैसे कल के छोकरे को क्यों सर चढ़ा रहे हैं। उस वक्त तो नहीं, किंतु बाद में गौर करने पर दो बातें स्पष्ट हुईं । एक तो यह कि मैं भले ही समझता रहा हूँ कि मेरी लल्लो-चप्पो हो रही है, किंतु वस्तुतः उनका विनीत स्वर उनके व्यक्तित्व के उस साधारणतया अलक्षित और आर्द्र पहलू की आवाज थी, जो पुस्तकों तथा सिन्हा लाइब्रेरी के प्रति उनकी भावुकता के उमड़ने पर ही मुखरित होता था।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें— 
प्रश्न- सिन्हा साहब लाइब्रेरी के लिए कैसा मसविदा तैयार करना चाहते थे?
उत्तर- सिन्हा साहब लाइब्रेरी के लिए ऐसा मसविदा तैयार करना चाहते थे जिसमें ट्रस्ट का अस्तित्व भी मौजूद रहे और सरकार द्वारा संस्था की देखभाल तथा पोषण की गारंटी भी मिल जाए।
प्रश्न- माथुर साहब क्यों सकपका गए ?
उत्तर- एक दिन एक चाय पार्टी के दौरान सच्चिदानंद सिन्हा साहब माथुर साहब के पास चुपके से आकर बैठ गए। सिन्हा साहब जैसे महान व्यक्ति को अपने पास बैठा देखकर तथा उनसे लाइब्रेरी की दास्तान सुनकर माथुर साहब सकपका गए ।
प्रश्न- सिन्हा साहब किनके साथ और किसलिए आदेशात्मक स्वर में बात कर सकते थे ?
उत्तर- सिन्हा साहब मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और गवर्नर तक से आदेशात्मक स्वर में सिन्हा लाइब्रेरी जैसी उपयोगी संस्था के बारे में बातचीत कर सकते थे।
प्रश्न- माथुर साहब जिसे लल्लो-चप्पो समझते थे, वह वास्तव में क्या था? 
उत्तर- माथुर साहब जिसे लल्लो-चप्पो समझते थे, वास्तव में वह उनके व्यक्तित्व के अलक्षित आर्द्र पहलू का सूचक था, जो लाइब्रेरी के प्रति उनकी भावुकता के कारण यदा-कदा मुखरित हो उठता था।
प्रश्न- कब और कौन नया-नया शिक्षा सचिव हुए थे? 
उत्तर- जगदीशचंद्र माथुर 1949 में नए शिक्षा सचिव हुए थे।
                                                                              अथवा
(ख) एक गुरुकुल था । विशाल और प्रख्यात । उसके आचार्य भी बहुत विद्वान थे। एक दिन आचार्य ने सभी छात्रों को आँगन में एकत्रित किया और उनके सामने एक समस्या रखी कि उन्हें अपनी कन्या के विवाह के लिए धन की आवश्यकता है। कुछ धनी परिवार के बालकों ने अपने घर से धन लाकर देने की बात कही। किंतु, गुरुजी ने कहा कि इस तरह तो आपके घर वाले मुझे लालची समझेंगे। लेकिन, फिर गुरुजी ने एक उपाय बताया कि सभी विद्यार्थी चुपचाप अपने-अपने घरों से धन लाकर दें, मेरी समस्या सुलझ जाएगी। लेकिन, यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए। सभी छात्र तैयार हो गए। इस तरह गुरुजी के पास धन आना शुरू हो गया । लेकिन, एक बालक कुछ नहीं लाया। गुरुजी ने उससे पूछा कि क्या उसे गुरु की सेवा नहीं करनी है ? उसने उत्तर दिया, “ऐसी कोई बात नहीं है गुरुजी, लेकिन मुझे ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहाँ कोई देख न रहा हो ।” गुरुजी ने कहा, “कभी तो ऐसा समय आता होगा जहाँ कोई न देख रहा हो ।” गुरुजी का भी ऐसा ही आदेश था। तब वह बालक बोला, “गुरुदेव ठीक है, पर ऐसे स्थान में कोई रहे न रहे; मैं तो वहाँ रहता हूँ। कोई दूसरा देखे न देखे मैं स्वयं तो अपने कुकर्मों को देखता हूँ।” आचार्य ने गले लगाते हुए कहा, “तू मेरा सच्चा शिष्य है। क्योंकि, तूने गुरु के कहने पर भी चोरी नहीं की। यह तेरे सच्चे चरित्र का सबूत है।” तू ही मेरी कन्या का सच्चा और योग्य वर है। अपनी कन्या का विवाह उससे कर दिया। विद्या ऊँचे चरित्र का निर्माण करती है और उन्नति के शिखर पर ले जाती है।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—  
प्रश्न- आचार्य ने अपने शिष्यों को बुलाकर क्या कहा ? 
उत्तर- आचार्य ने अपने शिष्यों को बुलाकर कहा कि मुझे अपनी कन्या के विवाह के लिए धन चाहिए। तुम सभी चुपचाप अपने-अपने घर से धन लाकर दोगे, तो मेरी समस्या सुलझ जाएगी।
प्रश्न- कुछ न ला सकनेवाले शिष्य पर आचार्य क्यों प्रसन्न हुए ? 
उत्तर- कुछ न ला सकनेवाले शिष्य पर आचार्य इसलिए प्रसन्न हुए, क्योंकि वह आत्मज्ञानी और सच्चरित्र था।
प्रश्न- आचार्य को किस धन की खोज थी ? वह उन्हें किस रूप में मिला ?
उत्तर- आचार्य को चरित्र धन की खोज थी। उन्हें यह धन उस शिष्य के रूप में प्राप्त हुआ जिसने अपने आचार्य की बात न मानकर अपनी आत्मा के आदेश का पालन किया।
प्रश्न- गुरुकुल के आचार्य किस प्रकार के व्यक्ति थे? 
उत्तर- गुरुकुल के आचार्य आत्मज्ञानी, सच्चरित्र और विद्वान थे।
प्रश्न- लोग उन्नति के शिखर पर कैसे पहुँचते हैं? 
उत्तर- लोग विद्या और सात्त्विक चरित्र के माध्यम से उन्नति के शिखरं पर पहुँचते हैं।
2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें—
(क) विश्वविद्यालय कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो समाज से काटकर अलग की जा सके। समाज दरिद्र है, तो विश्वविद्यालय भी दरिद्र होंगे; समाज कदाचारी है, तो विश्वविद्यालय भी कदाचारी होंगे और समाज में अगर लोग आगे बढ़ने के लिए गलत रास्ते अपनाते हैं, तो विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र भी सही रास्तों को छोड़कर गलत रास्ते पर अवश्य चलेंगे। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में जो अशांति फैली है, जो भ्रष्टाचार फैला है, वह सब-का-सब समाज में फैलकर यहाँ तक पहुँचा है। समाज में जब सही रास्तों का आदर था, ऊँचे मूल्यों की कद्र थी, तब कॉलेजों में भी शिक्षक और छात्र गलत रास्ते पर कदम रखने से घबराते थे। लेकिन, अब समाज ने विशेषतः राजनीति ने, ऊँचे मूल्यों की अवहेलना कर दी और अधिकांश लोगों के लिए गलत रास्ते ही सही बन गए तो फिर उसका प्रभाव कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर भी पड़ना अनिवार्य हो गया। छात्रों की अनुशासनहीनता की जाँच करनेवाले लोग परिश्रम तो खूब करते हैं, किंतु असली बात बोलने में घबराते हैं। सोचने की बात यह है कि पहले के छात्र सुसंयत क्यों थे? अब वे उच्छृंखल क्यों हो रहे हैं? किसने किसको खराब किया है ? चाँद ने सितारों को बिगाड़ा है या सितारों ने मिलकर चाँद को खराब कर दिया ?
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- समाज से काटकर किसको अलग नहीं किया जा सकता ? 
उत्तर- विश्वविद्यालय को समाज से काटकर अलग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न- विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र कब गलत रास्ते पर चलेंगे ? 
उत्तर- विश्वविद्यालय की दरिद्रता और कदाचारिता समाज की दरिद्रता और कदाचारिता पर निर्भर है। यदि समाज के लोग आगे बढ़ने के लिए गलत रास्ते अपनाते हैं, तो विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र भी गलत रास्तों पर चलेंगे।
प्रश्न-कब शिक्षक और छात्र गलत रास्ते पर कदम रखने से घबराते थे ? 
उत्तर- समाज में जब सही रास्तों का आदर था तथा उच्च मूल्यों की कद्र थी तब कॉलेजों में भी शिक्षक और छात्र गलत रास्तों पर कदम रखने से घबराते थे।
प्रश्न-कौन असली बात बोलने से घबराते हैं ? 
उत्तर- छात्रों की अनुशासनहीनता की जाँच करनेवाले लोग असली बात बोलने में घबराते हैं।
प्रश्न-उपर्युक्त गद्यांश का एक समुचित शीर्षक दें।
उत्तर- शिक्षा, समाज एवं राजनीति में नैतिक मूल्यों की अवहेलना
                                                                     अथवा 
(ख) प्राचीनकाल में बोपदेव नामक एक बालक था। वह पढ़ने में बेहद कमजोर था। उसे अपना पाठ कभी भी ठीक से याद नहीं हो पाता था। इसलिए, रोज उसे अपने गुरु से डाँट खानी पड़ती थी। धीरे-धीरे उसे अपने मूर्ख और मंदबुद्धि होने का विश्वास हो गया। कोई भी परीक्षा पास नहीं कर पाने के कारण गुरुजी ने उसे विद्यालय से निकाल दिया। वह बेहद उदास मन से अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते में उसे जोरों की प्यास लगी। वह पानी पीने नजदीक के कुएँ पर गया। वहाँ पर उसने देखा कि गाँव की स्त्रियाँ जल भर रही हैं। अचानक उसकी नजर कुएँ के किनारे घिसे पत्थरों पर गई, जहाँ यत्र-तत्र गड्ढे जैसे बने दिख रहे थे। उसने उन स्त्रियों से उन निशानों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि रस्सी के बार-बार आने-जाने से यह पत्थर घिस गया है और उन पर निशान पड़ गए हैं। बोपदेव ने सोचा यदि कोमल रस्सी से कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं तो नित्य और निरंतर अभ्यास से वह भी परीक्षा में सफल हो सकता है तथा उसकी अज्ञानता नष्ट हो सकती है। यह सोचकर उसने दृढनिश्चय किया और वापस गुरुजी के पास चला गया। उसने खूब मन लगाकर पढ़ना शुरू किया। वह कठोर परिश्रम करने लगा। अंततः, वह परीक्षा में सफल हुआ।
अब उसके गुरुजी भी उस पर बहुत प्रसन्न थे। निरंतर परिश्रम से वह आगे चलकर एक बहुत बड़ा विद्वान बना तथा जगतप्रसिद्ध हुआ।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न-बोपदेव को गुरुजी से रोज क्यों डॉट खानी पड़ती थी ? 
उत्तर- बोपदेव पढ़ने में बेहद कमजोर था। उसे कभी भी अपना पाठ ठीक से याद नहीं हो पाता था, अतः उसे अपने गुरुजी से रोज डाँट खानी पड़ती थी।
प्रश्न-बोपदेव को कहाँ से सीख मिली ?
उत्तर- बोपदेव को कुएँ के किनारे घिसे पत्थरों से सीख मिली ।
प्रश्न-बोपदेव आगे चलकर कैंसा व्यक्ति बन गया ? 
उत्तर- बोपदेव आगे चलकर विश्वप्रसिद्ध विद्वान हुआ।
प्रश्न-बोपदेव ने क्या सोचकर सफलता प्राप्त किया ? 
उत्तर- बोपदेव ने सोचा यदि कोमल रस्सी से कठोर पत्थर पर निशान पड़ सकते हैं तो नित्य और निरंतर अभ्यास से वह भी परीक्षा में सफल हो सकता है तथा उसकी अज्ञानता नष्ट हो सकती है।
प्रश्न-उपर्युक्त गद्यांश का एक उचित शीर्षक दें।
उत्तर-  शीर्षक- निरंतर अभ्यास सफलता की कुंजी है।
3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें। 
(क) मेरा प्रिय खेल
(i) प्रस्तावना                     (ii) फुटबॉल
(iii) लाभ                         (iv) निष्कर्ष
                                                                  (क) मेरा प्रिय खेल
प्रस्तावना : यूँ तो कई प्रकार के खेल भारत में प्रचलित हैं। इनमें प्रमुख खेल हैं— फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन तथा क्रिकेट। इस समय क्रिकेट का खेल भारत में भी प्रचलित है। आजकल क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हो गया है, फिर भी, यह खेल खर्चीला तथा उबाऊ है। इसमें समय की व्यर्थ बर्बादी होती है। इसलिए मैं फुटबॉल खेल को ही पसंद करता हूँ।
फुटबॉल: फुटबॉल के खेल में खिलाड़ी खेल-खेल में ही जीवन के संघर्षों और उतार-चढ़ाव से भली-भाँति परिचित हो जाता है। खेल के आरंभ से अंत तक उसका मन आशा और निराशा के डोले पर झूलता रहता है। कभी विजय उसे सामने दिख पड़ती है, तो कभी आती हुई विजय झट आँखों से ओझल हो जाती है। पर, वह कभी निराश नहीं होता। निष्काम कर्मयोगी के समान अपने खेल में ही जुटा रहता है। स्पष्ट है कि ऐसा व्यक्ति जीवन के संघर्षों और उतार-चढ़ाव से भयभीत न होकर डटकर उनका सामना करेगा।
लाभ : फुटबॉल खेल से सहयोग और दलीय अनुशासन की भावना प्रत्येक खिलाड़ी में स्वतः आ जाती है। इसके बिना खेल का चल सकना ही संभव नहीं है। खेल के मैदान में खिलाड़ी अपनी स्वतंत्र सत्ता को भूल जाता है। उसके सामने दल के सम्मान की रक्षा मुख्य ध्येय बन जाता है। खेल में किसी एक खिलाड़ी की जीत या हार नहीं होती, जीत या हार पूरी टीम की होती है। अपनी टीम से अलग खिलाड़ी का कोई अस्तित्व नहीं। सहयोग और अनुशासन की यह भावना ‘क्लास रूम’ से नहीं पैदा की जा सकती है।
निष्कर्ष : फुटबॉल खेल के द्वारा विद्यार्थियों के जीवन में ऐसी भावना पनपायी जा सकती है जिसे अंग्रेजी में ‘स्पोर्टसमेन्स स्पीरिट’ कहते हैं। खेल के प्रारंभ से अंत तक खिलाड़ी पूरी तन्मयता के साथ खेलता है। वहाँ की जय-पराजय को जीवन की जय-पराजय से भी अधिक सत्य मानकर अपनी टीम को विजय श्री दिलाने में वह अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। क्षणभर के लिए वह ऐसा नहीं समझता कि वह खेल-खेल रहा है। पर, खेल खत्म होते ही वह अपनी जय-पराजय को भूलाकर अपने विरोधी दल के सदस्यों से घनिष्ठ मित्रों की भाँति दिल खोलकर मिलता है। जीवन भी एक खेल का मैदान है। यहाँ भी सफलता पाने के लिए ऐसी ही ‘स्पीरिट’ की आवश्यकता है।
(ख) दहेज प्रथा
(i) भूमिका                       (ii) प्राचीन, वर्तमान स्वरूप और आधार
(iii) दहेज का परिणाम       (iv) सामाजिक कलंक
(v) उपसंहार
                                                                 (ख) दहेज प्रथा
भूमिका : दहेज प्रथा भारतीय जनता और समाज के माथे पर कलंक का सबसे बड़ा टीका है। इस दैत्य ने न जाने कितनी युवतियों को कुंवारी रहने पर मजबूर किया है, कितने घरों को बर्बाद किया है और न जाने कितनी कन्याएँ इसकी बलिवेदी पर जल मरी हैं।
प्राचीन, वर्तमान स्वरूप और आधार : वस्तुतः दहेज उसे कहते हैं जो पुत्री के विवाह में पिता की ओर से उपहार के रूप में दिया जाता है। पहले यह यौतुक कहा जाता था, आज इसे दहेज कहते हैं। इन दिनों इसके स्वरूप में जरा अन्तर हो गया है। पहले यह दहेज बाध्यता नहीं थी लेकिन इन दिनों दहेज बाध्यता है और दहेज के तय हो जाने पर ही विवाह किया जाता है। इस दहेज का आधार है लड़के के पिता की सम्पत्ति, लड़के की शिक्षा, नौकरी। इस पर यदि लड़का सुन्दर और गुणवान हो तो क्या कहना हो तो क्या कहना — जैसे सोने में सुहागा | लीजिए, जितना दहेज आप लेना चाहते हैं। लगवाइए बोली । बहुत से लोग तो अपने बच्चों को इसीलिए पढ़ाते हैं कि अधिक दहेज मिलेगा। आज दशा यह है कि दहेज निश्चित है। मजिस्टेट, डॉक्टर, इन्जीनियर, किरानी, चपरासी सबके भाव निश्चित हैं। सच्ची बात तो यह है कि दहेज अब प्रेम का उपहार नहीं, प्रतिष्ठा का सूचक है। जिसके पुत्र को जितना अधिक दहेज मिलता है, वह उतना ही अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है।
दहेज का परिणाम : इस दहेज प्रथा के चलते ही आज समाज में अनमेल विवाह होने लगे हैं, कितनी कन्याएँ कुंवारी रह जाती हैं और कितनी अनैतिक पेशे में चली जाती हैं। लड़कियों के रूप और गुण की तो कोई कीमत ही नहीं रह गई। जिनका विवाह होता भी है, उनमें भी अनेक, कम दहेज लाने के कारण जलाकर मार दी जाती हैं या ऐसी प्रताड़ना दी जाती है कि वे आत्महत्या कर लेती हैं और पुनः लड़के का धूम-धाम से विवाह रचाया जाता है। ऐसे समाचार प्रायः रोज सुनने और पढ़ने को मिलते हैं।
सामाजिक क कलं: वस्तुतः यह सामाजिक कलंक है। आज देश के इस कलंक को मिटाने की जरूरत है। यह ठीक है कि इसे मिटाने के लिए उपदेश दिए जाते हैं लेकिन ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ की भांति यह रोग बढ़ता ही गया है। सरकार ने भी कानून बनाए है जरूर लेकिन कानून से ही सिर्फ कुछ होने वाला नहीं है। लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक है। इसके बिना कानून सिर्फ किताबों में रह जाएगा और आज तक यही हुआ है।
उपसंहार : इस प्रथा को दूर करने के लिए नवयुवक-नवयुवतियों को ही आगे आना पड़ेगा और यह प्रण करना होगा कि वे दहेज न लेंगे और न देंगे, तभी यह कुरीति रुकेगी और नहीं तो यह दानव भारतीय समाज को एक दिन खोखला बनाकर छोड़ेगा। परिणाम होगा कि अनीतियाँ, व्यभिचार और हत्या तथा आत्महत्या के दलदल में फँसा यह भारतीय समाज रसातल को चला जाएगा।
(ग) वृक्षारोपण
(i) भूमिका                  (ii) वृक्ष की महत्ता
(iii) लाभ                   (iv) कटाई की प्रतिपूर्ति
(v) उपसंहार
                                                                        (ग) वृक्षारोपण
भूमिका : वृक्ष हमारे लिए, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वह हमेशा चौकन्ना रहकर हमारी रक्षा के लिए तत्पर रहता है। इसके महत्त्व का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता है। वृक्ष जन्म लेने से लेकर मृत्योपरांत हमारे उपयोग में आता है लेकिन हमलोगों को भी उसकी महत्ता समझनी चाहिए। भोजन के लिए फल, जलावन की लकड़ी, घर निर्माण के लिए लकड़ी, बिछावन के लिए लकड़ी यहाँ तक कि बूढ़े का सहारा भी एक लकड़ी ही है। जीवन के लिए शुद्ध हवा भी तो वृक्ष ही देता है।
वृक्ष की महत्ता : यदि पूरी धरती को मरुस्थल हो जाने से बचाना है तो हमें वृक्ष लगाना चाहिए। अंधाधुंध हम उसे काटते जा रहे हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते जा रहे हैं, लेकिन वृक्ष लगाना भी है इसपर किसी का ध्यान नहीं है। कल-कारखानों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और मोनोक्साइड गैसें वायु में घुलकर हमारे जीवन को निगलने के लिए सुरसा की तरह मुँह फैलाए जा रही है। जीवन शक्ति प्रदान करने वाली ऑक्सीजन घटते-घटते इतना कम हो जाएगी कि दम घुटकर जीव मर जाएगा। प्रकृति पर नियंत्रण और जीवन शक्ति को बनाए रखने के लिए वृक्ष लगाना आवश्यक हो गया है। इसकी महत्ता को हम नकार नहीं सकते।
लाभ : आज हमें मीठे पानी का स्रोत उपलब्ध है। यह तभी तक है, जब तक वन हैं। शुद्ध वायु, मीठे फल आवश्यक लकड़ियाँ, जड़ी-बूटी, औषधीय पौधे, पशुओं की दुर्लभ प्रजातियाँ, रंग-बिरंगी चिड़ियाँ और उन पशुओं और पक्षियों से प्राप्त होने वाले खाल-बाल, पंख सब हमारे लिए आवश्यक वस्तुओं के निर्माण में काम आते हैं, 1952 में सरकार ने ‘वन नीति’ बनाई थी। वन महोत्सव मनाए गए।
कटाई की प्रतिपूर्ति : अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कटाई की जगह रोपाई को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के लिए अनाज के खेत की भी आवश्यकता है लेकिन यदि हमारी इच्छा शक्ति मजबूत होगी तो हम बंजर में भी वृक्ष उगा सकते हैं। सड़कों के किनारे, नदियों, नालों और नहरों के किनारे-किनारे यदि योजनाबद्ध ढंग से वृक्ष लगाए जाएँ, तो कटे वृक्षों की प्रतिपूर्ति हो सकती है और जीवन बच सकता है।
उपसंहार : वृक्षारोपण आवश्यक है, क्योंकि मानव जीवन में मौन खड़ा रहकर यह जीवन और आनंद प्रदान करता है। यह मौसम के संतुलन को बनाए रखता है जिससे सर्दी-गर्मी बरसात समय पर होती है। जीवन देने के साथ ही प्राकृतिक सौन्दर्य में भी वृद्धि करता है। अतः यह समझकर वृक्षारोपण करना चाहिए कि “एक वृक्ष सौ पुत्र समान।”
(घ) छात्र और शिष्टाचार
(i) शिष्टाचार का अर्थ                  (ii) आधुनिक युग : शिष्टाचार रहित
(iii) अशिष्ट छात्र                       (iv) निष्कर्ष
                                                         (घ) छात्र और शिष्टाचार
शिष्टाचार का अर्थ : ‘शिष्टाचार’ का अर्थ होता है—सदाचार आचरण में सत्य की प्रतिष्ठा ही सदाचार है। विनम्रता सदाचार का भूषण है। छात्रों के संदर्भ में शिष्टाचार की व्याख्या करते हुए कहा जा सकता है कि छात्रों में अपने आचरण के प्रति सात्त्विक निष्ठा होनी चाहिए। दूसरों के प्रति छात्रों का व्यवहार विनम्रतापूर्ण होना चाहिए। विनम्रता और सत्य को छोड़कर छात्र कभी वास्तविक ज्ञानार्जन नहीं कर सकते। ज्ञान का अर्थ, शास्त्रों को याद करना नहीं होता, शास्त्रों के आदेशों को अपने आचरण में उतारना होता है। जिसके पास अहंकार होता है, वह शास्त्रों को याद कर सकता है, पर उनके आदर्शों को अपने आचरण में नहीं उतार सकता। इस कथन में कोई अत्युक्ति नहीं कि विनम्रता के अभाव में ज्ञानार्जन असंभव है। विद्या विनम्रता देती है, तो विनम्रता विद्या के प्रति निष्ठा पैदा करती है।
आधुनिक युग ; शिष्टाचार रहित: छात्र के शिष्टाचार का सीधा अर्थ है कि उसमें (छात्र में) अपने अध्ययन और गुरुजनों के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। उसे यह समझना चाहिए कि अध्ययन करना उसका प्रथम कर्तव्य है। अध्ययन के प्रति उसमें कभी शिथिलता नहीं होनी चाहिए। छात्र का यह कर्तव्य है कि वह जो कुछ पढ़े, दत्तचित्त होकर पढ़े और अपने पाठ के प्रत्येक पक्ष को विस्तार और सूक्ष्मता से जानने का प्रयास करे। इस कार्य में गुरुजन उसके पथ-प्रदर्शक सिद्ध हो सकते हैं। पर, इसके लिए शर्त है। शर्त यह है कि छात्र को अपने गुरुजनों के प्रति अपार श्रद्धा, भक्तिभाव और निश्छल समर्पण रखना होगा। छात्र की श्रद्धा और निश्छल समर्पण में ऐसा बल होता है कि गुरुजन उसे अपना सारा ज्ञान देने को समुद्यत हो जाते हैं। विनम्रता वह चंद्रकिरण है जो विद्या की संपुटित (बंद) कुमुदिनी को स्फुटित कर देती है। छात्र को चाहिए कि वह अपने गुरुजनों के प्रति ऐसा श्रद्धापूर्ण व्यवहार रखे कि गुरुजन अपनी सारी ज्ञानगरिमा उसके अंतर्मन में उड़ेलने को तैयार हो जाएँ।
अशिष्ट छात्र : आधुनिक युग में गुरु-शिष्य की पवित्र परंपरा का सर्वथा लोप हो गया है। न तो छात्रों में गुरुओं के प्रति श्रद्धा रह गई है और न तो गुरुओं में छात्रों के प्रति स्नेहभाव। आज ज्ञान सूचनासंग्रहमात्र रह गया है। आज ज्ञान में आत्मा की दीप्ति नहीं, तथ्यसंग्रह की प्रवृत्ति है। यही कारण है कि छात्र गुरुओं से आत्मा के स्तर पर नहीं जुड़ पाते और गुरु छात्रों से आत्मिक स्तर पर संबद्ध नहीं हो पाते। गुरु-शिष्य के संबंध में आज आत्मा गायब है। अतः शिष्यों में केवल आचरण रह गया है, आचरण से शिष्टता कोसों दूर हो गई है।
निष्कर्ष : छात्रों का विनम्र व्यवहार (शिष्टाचार) अपने माता-पिता, गुरुजन और अध्ययन के प्रति होना चाहिए। उनका शिष्ट आचरण अपने पूरे वातावरण, प्रकृति और पड़ोसियों के साथ भी होना चाहिए; क्योंकि उनके अध्ययन की पूर्णता में इनका भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
(ङ) दीपावली
(i) भूमिका                                                     (ii) मनाने का समय एवं ढंग
(iii) पर्व मनाने के पीछे की कथाएँ एवं मान्यताएँ    (iv) साफ-सफाई एवं पर्यावरण शुद्धि का पर्व
(v) पटाखों से हानि                                          (vi) उपसंहार
                                                                (ङ) दीपावली
भूमिका : दीपावली ज्योति का पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को यह पर्व उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। दीपों की जगमग रोशनी अमावस्या के घनघोर अंधकार को समाप्त कर देती है। किसी को भी अमावस्या की घनेरी रात का आभास तक नहीं होता।
मनाने का समय एवं ढंग : इस पर्व पर घर-घर लक्ष्मी और गणेश की पूजा होती है। हिंदुओं में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि दीपावली की रात घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है, अतः देर रात तक लोग अपने-अपने घरों के सारे दरवाजे खोलकर रखते हैं। दीवाली के दिन हलवाई और आतिशबाजी की दुकानों पर विशेष भीड़ होती है।
पर्व मनाने के पीछे की कथाएँ एवं मान्यताएँ : दीपावली मनाए जाने के पीछे ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक तथा वैज्ञानिक कारण हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए थे। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन ब्रज की जनता को इंद्र के क्रोध से बचाया था। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंहजी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। अतः, इस रात गुरुद्वारों को विशेष रूप से दीपपंक्तियों से सजाया जाता है। इस रात गुरुद्वारों की शोभा देखते ही बनती है।
साफ-सफाई एवं पर्यावरण शुद्धि का पर्व : दीपावली वर्षाऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है। लोग अपने-अपने घरों और दुकानों की सफाई करवाते हैं ताकि वर्षाऋतु की सीलन, उस सीलन से उत्पन्न कीड़े-मकोड़े और तरह-तरह के कीटाणु और रोगाणु नष्ट हो जाएँ। मिट्टी के घरों को गोबर से पोतने और ईंट के मकानों में चूने की पुताई करने के पीछे यही उद्देश्य होता है कि हानिकारक कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जाएँ।
पटाखों से हानि : पटाखे और आतिशबाजी पर अधिक खर्च करना किसी भी तरह ठीक नहीं। इससे पारिवारिक बजट पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है और वायु तथा ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि होती है। असावधानीपूर्वक पटाखे चलाने से. कभी-कभी दुर्घटना भी हो जाती है। बच्चों को अभिभावकों की देखरेख में ही पटाखे चलाने चाहिए।
उपसंहार : इस पर्व के दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि जिस तरह हम बाहर के अंधकार को परास्त करते हैं, उसी तरह अपने भीतर के अंधकार को भी परास्त करें। दीपावली की खुशी पूरे समाज की खुशी है। इसे परिवार, जाति या अमीरों तक सीमित रखना इसकी आत्मा के विपरीत है।
4. प्रश्न-  प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास करने पर दो मित्रों का संवाद लिखें।
उत्तर- मित्र-1—कहो भाई सुरेश ! तुम तो मैट्रिक परीक्षा पास कर गए।
मित्र-2—तुम भी तो पास कर गए।
मित्र-1—हाँ, 90% अंक ही तो आए ।
मित्र-2—मुझे 91% अंक आए।
मित्र- 1—मैं अभियंता बनना चाहता हूँ। और तुम ?
मित्र- 2—मैं जीव विज्ञान का छात्र हूँ। मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ।
मित्र-1—डॉक्टर बनना बड़ा कठिन है।
मित्र- 2—लेकिन पढ़नेवाले ही तो डॉक्टर बनते हैं।
मित्र-1—हाँ। पूरी शांति के साथ शत-प्रतिशत अंक लाओगे तभी यह संभव है। नहीं तो कंपाउण्डर-नर्स भी नहीं बन पाओगे।
मित्र-2—मुझे अपने पर भरोसा है।
मित्र-1—अच्छा तो चलता हूँ। अलबिदा ।
मित्र-2—फिर कल मिलेंगे। अलविदा।
                                                                       अथवा
प्रश्न- अपने मित्र के पास एक पत्र लिखें जिसमें विद्यालय में आयोजित की गई विज्ञान प्रदर्शनी का वर्णन हो । 
उत्तर-                                                                                                                                      परीक्षाभवन
                                                                                                                                         दिनांक : 05.02.2023
प्रिय मित्र राघव,
नमस्कार
तुम्हारा पत्र मिला। समाचार मालूम हुआ। यहाँ मै कुशल हूँ, तुम्हारे पत्र का जबाव देर से दे रहा हूँ इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। देर का कारण हमारे बिद्यालय में आयोजित विज्ञान प्रदर्शनी थी। हमारे विद्यालय में प्रधानाचार्य के निर्देशन में हमलोगों ने विज्ञान प्रदर्शनी लगाई। इस प्रदर्शनी में विज्ञान के तथ्यों को हमने रोचक ढंग से प्रदर्शित किया हमारे इलाके के लगभग बीस विद्यालयों के छात्र एवं शिक्षक ने इसे सराहा। अंतिम दिन शिक्षा मंत्री ने अपने धन्यवाद ज्ञापन से प्रदर्शनी को सम्पन्न कराया।
                                                                                                                                                तुम्हारा मित्र
                                                                                                                                                   आकाश
5. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें। 
प्रश्न- सेन दम्पती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी ? 
उत्तर- सेन-दंपत्ति को खोखा में इंजीनियर होने के लक्षण दिखाई पड़ते थे और उन संभवनाओं के लिए खोखा को तकनीकि प्रशिक्षण दी जा रही थी। सेन-दंपत्ति ने इंतजाम किया था कि दो एक घंटे के लिए कारखाने का बढ़ई-मिस्त्री उसके साथ ठोक-पीट किया करें। वे उस बच्चे को प्रारंभ
से ही औजारों से वाकिफ कराने का प्रबंध कर दिये थे। खोखा को स्कूल की सामान्य शिक्षा से अलग रखकर अपने ढंग से ट्रेंड किया जा रहा है।
प्रश्न-  देवनागरी लिपि में कौन-सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ? 
उत्तर- देवनागरी लिपि में हिंदी हिंदी की विविध बोलियाँ, नेपाली (खसकुरा), नेवारी एवं मराठी भाषाएँ लिखी जाती हैं।
प्रश्न- बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो वह क्या करते थे?
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तब वे विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते थे। थोड़ी देर के लिए उनकी शहनाई का प्याला उस दिशा की ओर घुमा दिया जाता था। बिस्मिल्ला खाँ के भीतर की कवि आस्था संगीतमय होकर बाबा विश्वनाथ और बालाजी के श्रीचरणों में समर्पित होने लगती थी। बिस्मिल्ला खाँ के लिए इस धरती पर कहीं जन्नत (स्वर्ग) है तो वह है शहनाई और काशी में।
प्रश्न- कवि नाम-कीर्तन के आगे किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करते हैं? 
उत्तर- कवि गुरुनानक कहते हैं कि राम-नाम कीर्तन ही एकमात्र सुकर्म है और सारे कर्म व्यर्थ हैं। डंड, कमंडल, चोटी और जनेऊ धारण करने तथा विभिन्न तीर्थों का भ्रमण करने से जीवन में शांति नहीं मिल सकती। राम-नाम तथा भजन के बिना ये सारे कर्म व्यर्थ हैं। राम-नाम का कीर्तन ही शांति प्रदान कर सकता है और यही कर्म सार्थक कर्म है।
प्रश्न- कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं ? और वे कहाँ मिलेंगे ? 
उत्तर- आज के देवता भारत की 33 करोड़ जनता है। भारत के जनतंत्र का देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ता नजर आ जाएगा। वह देवता खेतों-खलिहानों में मिल जाएगा।
प्रश्न- मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ? 
उत्तर- हिरोशिमा में परमाणु बम के विस्फोट से रोशनी पैदा हुई तो सभी मनुष्य, घास, पेड़-पौधे राख हो गए। मानव-जन की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ी थी। सभी चिथड़े-चिथड़े होकर व्योम में फैल गए थे। आगे मानव-जन बचें ही नहीं, सब भाप बनकर उड़ गए। छायाएँ अभी लिखी है—झुलसे हुए पत्थरों पर और उजड़ी सड़क के धरातल पर ।
प्रश्न- अपने बेटों का घर छोड़ने के बाद सीता को कैसा अनुभव हुआ ? 
उत्तर- अपने बेटों के दमघोंटू वातावरण से पूर्ण घरों को छोड़ने के बाद सीता को मुक्ति के आनंद का अनुभव हुआ।
प्रश्न- कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में क्यों संदेह करता है ? 
उत्तर- कवि अगले जन्म में अपने मनुष्य होने का संदेह करता है क्योंकि जीविका के कारण मनुष्य अपनी मातृभूमि के साहचर्य से दूर चला जाता है। वह विभिन्न पक्षियों के रूप में जन्म लेने को इच्छुक है जिससे वह अपने प्रदेश के साहचर्य का सुख प्राप्त कर सकेगा। कवि बंगाल की सुंदर प्रकृति से अतिशय प्रेम करता है। इसी कारण वह अगले जन्म में अपने मनुष्य होने में संदेह करता है।
6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लिखिए–
प्रश्न- सप्रसंग व्याख्या कीजिए—’राम नाम बिनु अरूज्ञि मरै’ की व्याख्या करें। 
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक के द्वारा लिखित “राम नाम बिनु निर्गुण जग जनमा” शीर्षक से उद्धत है। गुरुनानक निर्गुण, निराकार ईश्वर के उपासक तथा हिंदी की निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं। यहाँ राम नाम की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं। प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में निर्गुणवादी विचारधारा के कषि गुरुनानक राम नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उजागर सच्चे हृदय से किये हैं। कवि कहते हैं कि राम नाम का अध्ययन संध्या वंदन, तीर्थाटन, रंगीन वस्त्र धारण यहाँ तक कि जटा जूट बढ़ाकर इधर-उधर घूमना ये सभी भक्ति-भाव के बाह्याडम्बर है। इससे जीवन सार्थक कभी भी नहीं हो सकता है। रामनाम की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक मानवीय मूल चेतना का उजागर नहीं हो सकता है। राम नाम के बिना बहुत से सांसारिक कार्यों में उलझ कर व्यक्ति जीवन लीला समाप्त कर लेता है।
प्रश्न- लेखक आविन्यों क्या लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहें? लेखक की उपलब्धि क्या रही?
उत्तर- लेखक आबिन्यों में उन्नीस दिनों तक रहे। वे वहाँ अपने साथ हिंदी का टाइपराइटर, तीन-चार पुस्तकें और कुछ संगीत के टेप्स ही ले गए थे। यह लेखक के जीवन का पहला अवसर था जब वे सांसारिक उलझनों से एकदम मुक्त थे। वे उस निपट एकांत में अपने में और लेखन में डूबे रहे। लेखक की उपलब्धि यही रही कि उन्होंने उनीस दिनों में पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य रचनाएँ लिखीं।
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