Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 5
Bihar Secondary School Sample Paper Solved | BSEB Class 10th Sample Sets with Answers | Bihar Board class 10th Sample Paper Solved | Bihar Board Class 10th hindi Sample set – 5
1. श्रम विभाजन और जाति प्रथा के लेखक कौन हैं ?
(A) मैक्समूलर
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) महात्मा गाँधी
(D) भीम राव अम्बेडकर
2. ‘बी०आर० नारायण’ ने किस कहानी का अनुवाद किया है ?
(A) ढहते विश्वास
(B) दही वाली मंगम्मा
(C) नगर
(D) माँ
3. ‘भारत से हम क्या सीखें’ गद्य पाठ का जर्मन भाषा से हिन्दी भाषा में भाषान्तरण किसने किया?
(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(B) अमृतलाल नागर
(C) मैक्समूलर
(D) भवानी शंकर त्रिवेदी
4. पहले दक्षिण भारत की नागरी लिपि क्या कहलाती थी ?
(A) नंदिनागरी
(B) कोंकणी
(C) ब्राह्मी
(D) सिद्धम
5. देवताओं के राजा इन्द्र का वज्र किस मुनि की हड्डियों से बना है ?
(A) नारद मुनि
(B) दधीचि
(C) राधे-श्याम
(D) कपिल मुनि
6. हिन्दी भाषा की लिपि है ?
(A) ब्राह्मी लिपि
(B) रोमन
(C) गुरुमुखी
(D) देवनागरी
7. अमरकांत की कौन-सी कहानी अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत हुई थी ?
(A) मौत का नगर
(B) देश के लोग
(C) डिप्टी कलक्टरी
(D) कुहासा
8. ‘परम्परा का मूल्याकंन’ साहित्य की कौन-सी विधा है ?
(A) कहानी
(B) निबंध
(C) जीवनी
(D) रिपोर्ताज
9. “हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक” अकादमी कहाँ है ?
(A) दिल्ली
(B) आगरा
(C) मुम्बई
(D) कलकत्ता
10. संतु का बाल कौन सँवारा था ?
(A) दीदी
(B) पिताजी
(C) माँ
(D) भाई
11. आविन्यों पाठ के लेखक कौन हैं ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) अमृतलाल नागर
(C) अशोक वाजपेयी
(D) यतीन्द्र मिश्र
12. आविन्यों किस नदी के किनारे बसा है ?
(A) टोन
(B) सोन
(C) रोन
(D) अमेजन
13. ‘मछली’ कहानी में किस वर्ग का चित्रण है ?
(A) उच्चवर्गीय परिवार
(B) मध्य वर्गीय परिवार
(C) निम्नमध्य वर्गीय परिवार
(D) निम्न वर्गीय परिवार
14. शहनाई वनाने के लिए किस घास का प्रयोग किया जाता है ?
(A) बाँस
(B) दूब
(C) नरकट
(D) गिरहकट
15 . “द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद मनुष्य की चेतना को आर्थिक सम्बन्धों से प्रभावित मानते हुए उसकी सापेक्ष स्वाधीनता स्वीकार करता है।”यह पंक्ति किस शीर्षक पाठ की है ?
(A) शिक्षा और संस्कृति
(B) आविन्यों
(C) परम्परा का मूल्यांकन
(D) नौबतखाने में इबादत
16. गुरुनानक की रचनाओं के संग्रह का क्या नाम है ?
(A) वाहे गुरु
(B) गुरु ग्रंथ साहिब
(C) नानकाना साहिब
(D) फतह साहिब
17. कौन सी कृति रसखान की नहीं है ?
(A) प्रेम-फुलवारी
(B) प्रेम वाटिका
(C) अष्टधाम
(D) सुजान रसखान
18. घनानंद किस काल के कवि थे ?
(A) आदिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) रीतिकाल
(D) आधुनिक काल
19. प्रेमघनजी अपना आदर्श किसे मानते थे ?
(A) राजा हरिश्चन्द्र
(B) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(C) अमरकांत
(D) रामविलास शर्मा
20. भारतमाला कविता कवि के किस काव्यग्रंथ से संकलित है ?
(A) ग्राम्या
(B) रश्मि
(C) यामा
(D) उच्छवास
21. ‘रामधारी सिंह दिनकर’ के अनुसार जनतंत्र के देवता कौन है ?
(A) नेता
(B) राजा
(C) किसान-मजदूर
(D) मंत्री-विधायक
22. जापान के ‘हिरोशिमा’ नामक नगर पर अणु बम किसने गिराया था ?
(A) रूस
(B) चीन
(C) पोलैण्ड
(D) अमेरिका
23. कुँवर नारायण को निम्न में से कौन-सा पुरस्कार प्राप्त है ?
(A) ज्ञान पीठ
(B) लोहिया सम्मान
(C) पद्म श्री
(D) पद्म विभूषण
24. ‘मित्र- ‘मिलन’ शीर्षक कहानी संग्रह किसकी रचना है ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(C) रामविलास शर्मा
(D) अमरकांत
25. ‘ढहते विश्वास’ कहानी में किस राज्य को बाढ़ और सूखा से प्रभावित दिखाया गया है ?
(A) उड़ीसा
(B) बिहार
(C) कर्नाटक
(D) बैंगलोर
26. ‘ढहते विश्वास’ कहानी में क़ौन स्वयंसेवी दल के साथ वाँध की मरम्मत में लगा था ?
(A) लक्ष्मण
(B) गुणनीधि
(C) अच्युत
(D) कोई नहीं
27. ‘माँ’ कहानी किस लेखक द्वारा रचित है ?
(A) सुजाता
(B) श्री निवास
(C) ईश्वर पेटलीकर
(D) सुजाता
28. मंगु किस कहानी की पात्रा है ?
(A) दही वाली मंगम्मा
(B) नगर
(C) माँ
(D) धरती कब तक घूमेगी
29. नगर किस भाषा की कहानी है ?
(A) उड़िया
(B) कन्नड़
(C) तमिल
(D) गुजराती
30. ‘साँवर दइया’ किस भाषा के कहानीकार हैं ?
(A) गुजराती
(B) राजस्थानी
(C) उड़िया
(D) कन्नड़
31. ‘धरती कब तक घूमेगी’ कैसी कहानी है ?
(A) धार्मिक
(B) राजनीतिक
(C) आंचलिक
(D) सामाजिक
32. ‘हमारी नींद’ में ‘नींद’ किसका प्रतीक है ?
(A) पागलपन
(B) मदहोशी
(C) बेहोशी
(D) गफलत
33. ‘लौटकर आऊँगा फिर’ कविता में किस फसल के खेत की चर्चा की गई है ?
(A) धान
(B) गेहूँ
(C) जौ
(D) बाजरा
34. ‘वनलता सेन’ किसका काव्य संकलन है ?
(A) अज्ञेय
(B) रामधारी सिंह दिनकर
(C) जीवनानंद दास
(D) प्रेमधन
35. ‘मेरे विना तुम प्रभु कविता में भगवान की कृपा दृष्टि कहाँ विश्राम करती थी ?
(A) कवि के माथे पर
(B) होठों पर
(C) नयनों-फलकों पर
(D) कवि के कपोलों पर
36. “अक्षर ज्ञान” खालिस वेचैनी किसकी है ?
(A) खरगोश
(B) गिलहरी
(C) कबूतर
(D) तोता
37. मूल ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं हो सकते उसको क्या कहते हैं ?
(A) शब्द
(B) वर्ण
(C) वाक्य
(D) वाच्य
38. जेठानी का पुँल्लिंग रूप क्या होगा ?
(A) जठर
(B) जेठ
(C) जेठा
(D) ज्येष्ठ
39. ‘वह जन्म से भिखारी है’ इस वाक्य में ‘से’ कौन कारक कौन-सी की विभक्ति है ?
(A) आपादान
(B) सम्प्रदान
(C) संबंध
(D) करण
40. ‘मोहन घर पहुँच गया’ में ‘पहुँच गया’ किस प्रकार की क्रिया है ?
(A) द्विकर्मक
(B) प्रेरणार्थक
(C) पूर्वकालिक
(D) संयुक्त
41. अव्यय के कितने भेद होते हैं ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
42. ‘मैं रोटी खाता हूँ’ यह वाक्य किस वाच्य में है ?
(A) कर्तृवाच्य
(B) कर्मवाच्य
(C) भाववाच्य
(D) कोई नहीं
43. ‘अनादि’ में कौन-सा समास है ?
(A) कर्मधारय
(B) बहुव्रीहि
(C) अव्ययीभाव
(D) नञ् तत्पुरुष
44. भूतकाल के कितने भेद होते हैं ?
(A) चार
(B) पाँच
(C) छ:
(D) तीन
45. निम्न में कौन सा शब्द तद्भव है ?
(A) पुत्र
(B) चाय
(C) पलंग
(D) कीमत
46. उद्गम के आधार पर शब्द के कितने भेद होते हैं ?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) दो
47. स्वागत का सही संधि-विच्छेद क्या है ?
(A) स्व + आगत
(B) स्वा + अगत
(C) सु + आगत
(D) स्वा + अगत
48. ‘टन वोल जाना’ मुहावरे का सही अर्थ है
(A) घंटी बजाना
(B) जोर से बोलना
(C) मर जाना
(D) टन-टन बोलना
49. अलंकार के कितने भेद होते हैं ?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) दो
50. ‘लम्वोदर’ में कौन-सा समास है ?
(A) अव्ययीभाव
(B) तत्पुरुष
(C) इंद्र
(D) बहुव्रीहि
51. कत्थक और एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं ?
(A) रामविलास शर्मा
(B) अमरकांत
(C) बिरजू महाराज
(D) महात्मा गाँधी
52. विरजू महराज के गुरु कौन थे ?
(A) अम्मा
(B) बाबूजी
(C) चाचाजी
(D) दादाजी
53. ‘ला शत्रुज’ क्या है
(A) नगर
(B) गाँव
(C) ईसाई मठ
(D) विद्यालय
54. मछली पाठ के लेखक कौन है ?
(A) रामधारी सिंह दिनकर
(B) विनोद कुमार
(C) प्रेमचंद
(D) अम्बेदकर
55. पिकासो क्या थे ?
(A) कवि
(B) चित्रकार
(C) नाटककार
(D) उपन्यासकार
56. ‘मछली’ किस प्रकार की कहानी है ?
(A) सामाजिक
(B) मनोवैज्ञानिक
(C) ऐतिहासिक
(D) वैज्ञानिक
57. ‘सरस्वती का पर्यायवाची शब्द है
(A) ब्रह्मा
(B) शारदा
(C) विष्णु
(D) लक्ष्मी
58. ‘अनुसरण’ में कौन-सा उपसर्ग है ?
(A) अ
(B) अन
(C) अनु
(D) अऊ
59. ‘कान देना’ मुहावरे का अर्थ है
(A) सावधान होना
(B) प्रतीक्षा करना
(C) ध्यान देना
(D) बहकाना
60. शुद्ध है
(A) उच्छास
(B) उच्छ्वास
(C) उच्छवास
(D) उछ्वास
1. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का है।
(क) राजनीतिक दृष्टि से हिंदी साहित्य का ‘आदिकाल’ विदेशी आक्रमणों तथा राजनीतिक अस्थिरता का काल है। इस काल को ‘वीरगाथाकाल’ तथा ‘सिद्ध-सामंतकाल’ भी कहा गया है। इस काल में वीरगाथाओं के अतिरिक्त धार्मिक शिक्षा, जैनकाव्य, शृंगारकाव्य, सामान्य लोकाचारपरक कृतियाँ एवं मुक्तक गीतों की परंपरा भी मिलती है। इस काल के शृंगारकाव्य में ‘वसंतविलास’ नामक कृति का उल्लेख किया जाता है। इस काल की मुख्य रचनाओं के दो रूप मिलते हैं— प्रबंधकाव्य का साहित्यिक रूप तथा वीरगाथा का सहज रूप। चंदबरदाई रचित ‘पृथ्वीराजरासो’ इस काल की प्रमुख प्रबंधात्मक कृति है। इसके अतिरिक्त इस काल में जगनिक द्वारा लिखा गया ‘आल्हाखंड’, गोरखनाथ की बानियाँ, चौरासी सिद्धों के दोहे और गीत, विद्यापति के गीत, खुसरो की पहेलियाँ एवं भाँति-भाँति काल के जैन चरितकाव्य मिलते हैं। इस काल की अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ हैं विजम्लालरासो, हम्मीररासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, बीसलदेवरासो आदि। इस काल में संस्कृत के वर्णवृत्तों के समानांतर मात्रिक छंदों का विकास हुआ। इस काल की कविता की भाषा ओजगुण प्रधान थी। इसमें अपभ्रंश से विकसित पुरानी हिंदी का रूप मिलता है। छप्पय, दोहा, गीत (आल्हा), पद्धरिया, त्रोटक आदि इस युग के प्रमुख छंद हैं। इस काल में गीत भी कविता की एक विशेष विधा बन गया जो सीधे लोककंठ से आई थी । इस काल में विरहकाव्य भी लिखा गया ।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- हिंदी साहित्य का ‘आदिकाल’ राजनीतिक दृष्टि से कैसा काल है?
उत्तर- हिंदी साहित्य का ‘आदिकाल’ राजनीतिक दृष्टि से विदेशी आक्रमणों तथा राजनीतिक अस्थिरता का काल है।
प्रश्न- ‘आदिकाल’ के अन्य नाम कौन-से हैं ?
उत्तर- ‘आदिकाल’ के अन्य नाम है— ‘वीरगाथाकाल’ तथा ‘सिद्ध-सामंतकाल’ ।
प्रश्न- ‘आदिकाल’ में रचित ‘वसंतविलास’ कैसा काव्य है ?
उत्तर-‘आदिकाल’ में रचित ‘वसंतविलास’ शीर्षक काव्य शृंगारकाव्य है।
प्रश्न-चंदबरदाई तथा जगनिक द्वारा रचित कृतियों के नाम बताएँ ।
उत्तर- चंदबरदाई ने ‘पृथ्वीराजरासो’ तथा जगनिक ने ‘आल्हाखंड’ लिखा।
प्रश्न- इस काल की भाषा का विकास किस भाषा से हुआ है ?
उत्तर- इस काल की भाषा (प्राचीन हिंदी) का विकास अपभ्रंश भाषा से हुआ।
अथवा
(ख) कहानी अपनी कथावृत्ति के कारण संसार की प्राचीनतम विधा है। गल्प, कथा, आख्यायिका, कहानी इन अनेक नामों से आख्यात विख्यात कहानी का इतिहास विविध कोणीय है। युगांतर के साथ कहानी में परिवर्तन हुए हैं और इसकी परिभाषाएँ भी बदली हैं। कहानी का रंगमंचीय संस्करण है एकांकी। इसी तरह, उपन्यास का रंगमंचीय संस्करण है नाटक। लेकिन, उपन्यास और कहानी अलग-अलग हैं। कहानी में एकान्वित प्रभाव होता है, उपन्यास में समेकित प्रभावान्विति होती है। कहानी को बुलबुला और उपन्यास को प्रवाह माना गया है। कहानी टॉर्चलाइट है, किसी एक बिंदु या वस्तु को प्रकाशित करती है। उपन्यास दिन के प्रकाश की तरह शब्दों को समान रूप से प्रकाशित करता है। कहानी में एक ओर एक घटना ही होती है। उपन्यास में प्रमुख और गौण कथाएँ होती हैं। कहानी ध्रुपद की तान की तरह है, आरंभ होते ही समाप्ति का सम-विषम उपस्थित हो जाता है। उपन्यास शास्त्रीय संगीत का आलाप है। आलाप में आधी रात गुजर जाती है। कुछ लोग दर्शक दीर्घा में सो जाते हैं, कुछ घर लौट जाते हैं। पर, कहानी शुरू हो गई तो पढ़नेवाले को खत्म तक पहुँचाने को लाचार कर देती है चाहे परोसा हुआ खाना ठंडा हो या डाकिया दरवाजे पर खड़ा हो, कहानी प्रमुख हो जाती है। उपन्यास पुस्तक से निकलकर पाठक के साथ शौचालय, शयनकक्ष, सड़क, चौराहा सर्वत्र चलने लगता है।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न-उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक दें।
उत्तर- उपन्यास और कहानी में अंतर
प्रश्न- ‘कहानी’ अन्य किन नामों से प्रचलित है?
उत्तर- कहानी के अन्य नाम हैं— गल्प, कथा, आख्यायिका आदि।
प्रश्न- कहानी और उपन्यास में मुख्य अंतर क्या है ?
उत्तर- कहानी और उपन्यास में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं- कहानी में एकान्वित प्रभाव होता है तथा उपन्यास में समेकित प्रभावान्विति । कहानी बुलबुला है, तो उपन्यास प्रवाह। कहानी टॉर्चलाइट है, तो उपन्यास दिन का प्रकाश | कहानी में एक ही कथा होती है, पर उपन्यास में प्रधान कथा के साथ प्रासंगिक कथाएँ भी होती हैं। कहानी ध्रुपद की तान है तो उपन्यास शास्त्रीय संगीत का आलाप ।
प्रश्न- उपन्यास पुस्तक से निकलकर पाठक के साथ कहाँ-कहाँ चलने लगता है ?
उत्तर- उपन्यास पुस्तक से निकलकर शौचालय, शयनकक्ष, सड़क, चौराहा – सर्वत्र चलने लगता है।
प्रश्न- कहानी पाठक को किस प्रकार लाचार कर देती है ?
उत्तर- यदि कोई पाठक कहानी पढ़ना शुरू करता है, तो वह पूरी कहानी पढ़ने के लिए विवश हो जाता है।
2. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का है।
(क) बंगाल तथा बिहार के नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी । विशेषकर बिहार में नीलहे गोरों द्वारा तीनकठिया व्यवस्था प्रचलित की गयी थी, जिसमें किसानों को अपनी भूमि के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करनी होती थी। यह सामान्यतः सबसे उपजाऊ भूमि होती थी। किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी। यद्यपि 1908 ई० में तीनकठिया व्यवस्था में कुछ सुधारे जाने की कोशिश की गई थी, परन्तु इससे किसानों की गिरती हुई हालत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। बागान मालिक किसानों को अपनी उपज एक निश्चित धन राशि पर केवल उन्हें ही बेचने के लिए बाध्य करते थे और यह राशि बहुत ही कम होती थी। इस समय जर्मनी के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन करना शुरू कर दिया था जिसके परिणाम स्वरूप विश्व के बाजारों में भारतीय नील की माँग गिर गई। चम्पारण के अधिकांश बागान मालिक यह महसूस करने लगे कि नील के व्यापार में अब उन्हें अधिक मुनाफा नहीं होगा। इसलिए मुनाफे को बनाये रखने के लिए उन्होंने अपने घाटों को किसानों पर लादना शुरू कर दिया। इसके लिए जो रास्ते उन्होंने अपनाए उसमें किसानों से यह कहा गया कि यदि वे उन्हें एक बड़ा मुआवजा दे दें तो किसानों को नील की खेती से मुक्ति मिल सकती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने लगान में अत्यधिक वृद्धि कर दी।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न-नील उत्पादक किसानों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर- नील उत्पादक किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
प्रश्न- किसान नील की खेती क्यों नहीं कराना चाहते थे ?
उत्तर- तीनकठिया व्यवस्था के कारण आर्थिक स्थिति जर्जर हो रही थी, अतः खेती नहीं करना चाहते थे ।
प्रश्न-1908 ई० में क्या सुधार लाने की कोशिश की गई थी ?
उत्तर- 1908 में तीनकठिया व्यवस्था में सुधार लाने की कोशिश की गई ।
प्रश्न-कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन किसने शुरू कर दिया था ?
उत्तर- जर्मन वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन शुरू कर दिया था।
प्रश्न-चम्पारण के बागान मालिक क्या महसूस करने लगे ?
उत्तर- चम्पारण के बागान मालिक महसूस करने लगे।
अथवा
(ख) पुरुषार्थी एवं श्रमशील व्यक्ति ही संसार में अपने अस्तित्व की रक्षा करने में सफल हो सकता है। ‘वीरभोग्या वसुंधरा’ का ध्येय मंत्र ही मानवमात्र को उसके निर्धारित लक्ष्य तक पहुँचाने में सशक्त संबल है। अपने जीवन की संघर्षमय यात्रा में प्रत्येक व्यक्ति को अनेकानेक विघ्न-बाधाओं व विपत्तियों से दो-चार होते हुए निरंतर कर्म पथ पर अग्रसर होना होता है। कर्मरत मनुष्य देर-सबेर अपने अभीष्ट की प्राप्ति कर ही लेता है, जबकि कर्मभीरु या कामचोर व्यक्ति भाग्य को कोसता हुआ सदैव दुखी या कुंठित रहता है। अपना बहुमूल्य समय और कई सुअवसर खोकर भाग्यवादी व्यक्ति कभी भी अपनी मनोरथसिद्धि नहीं कर पाता, जबकि अनवरत संघर्ष एवं कर्म के मार्ग में संलग्न कर्मवीर को आत्मसंतोष तो बन जाता है।होता ही है, वह पूरे समाज के लिए भी एक आदर्श प्रतिमूर्ति वास्तव में अपने सपनों को साकार करने के लिए व्यक्ति को पुरुषार्थ का मार्ग आवश्यक रूप से चुनना पड़ता है। अपने पौरुष के द्वारा परिश्रमी व्यक्ति अपने भाग्य की रेखाओं को भी अपने अनुकूल बना लेता है। ‘भाग्यं फलति सर्वत्रं न क्रिया न च पौरुषम्’ उक्ति से कर्महीन व्यक्ति अपना बचाव नहीं कर सकता, क्योंकि कर्म की प्रेरणा देनेवाली गीता – योग, ज्ञान और कर्म में तल्लीन रहने की सीख देती है। यह सार्वभौम सत्य है कि पुरुषार्थ एवं कर्मपरायण के द्वारा ही जीवन में चतुर्थ वर्ग अर्थ, धर्म, काम, मोक्षादि फलों की प्राप्ति संभव है। इसलिए, व्यक्ति को जीवन में प्रमाद और आलस्य त्यागकर अनवरत कर्म पथ से संलग्न होना चाहिए।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें—
प्रश्न- अपने अस्तित्व की रक्षा करने में कैसा व्यक्ति सफल हो सकता है ?
उत्तर- जो व्यक्ति श्रमशील और पुरुषार्थी है, वही संसार में अपने अस्तित्व की रक्षा करने में सफल हो सकता है।
प्रश्न- इस पृथ्वी को कैसा व्यक्ति भोग सकता है ?
उत्तर- वीर ही इस पृथ्वी को भोग सकता है। कहा भी गया है— ‘वीरभोग्या वसुंधरा’।
प्रश्न-भाग्यवादी लोगों की आकांक्षाएँ पूर्ण क्यों नहीं हो पातीं ?
उत्तर- भाग्यवादी लोगों की आकांक्षाएँ पूर्ण नहीं हो पातीं, क्योंकि वे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा नं कर भाग्य पर भरोसा करते हैं।
प्रश्न- लक्ष्य प्राप्ति के बाद कर्मवीर को समाज से क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर- लक्ष्य प्राप्ति के बाद कर्मवीर को समाज से सम्मान प्राप्त होता है और वह समाज में आदर्श की प्रतिमूर्ति बन जाता है।
प्रश्न- कर्म का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर- हमारे जीवन में कर्म का अत्यधिक महत्त्व है। निरंतर कर्म करने से हम अपनी किसी भी आकांक्षा (अभिलाषा) की प्राप्ति कर सकते हैं।
3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
(क) 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)
(i) भूमिका (ii) पृष्ठभूमि
(iii) विशेषता (iv) कार्यक्रम
(v) उपसंहार
(क) 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)
भूमिका : गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) का भारतवासियों के जीवन में महत्त्वूपर्ण स्थान है। सदियों की गुलामी से त्रस्त देशभक्तों ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्रता का शंखनाद किया। लाखों के बलिदान के पश्चात् दासता से मुक्ति मिली और गणतंत्र की स्थापना इसी दिन हुई।
पृष्ठभूमि : स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान अनेक नाजुक क्षण आए। किंतु गाँधीजी ने स्वाधीनता संग्राम को नया आयाम दिया। इसी बीच सन् 1929 ई० में पवित्र रावी के तट पर, लाहौर अधिवेशन में तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पं० जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की घोषण की। तभी से उस दिन (26 जनवरी) स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा। किन्तु 1947 ई० में आजादी के बाद जब संविधान बना और वयस्क मताधिकार अंगीकृत हुआ तो 26 जनवरी गणतंत्र । दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
विशेषता : भारत में इस दिन का उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान है जितना कि होली, दीपावली का हिन्दुओं के लिए, क्रिसमस का ईसाइयों के लिए तथा ईद, मुहर्रम, मुसलमानों के लिए। 26 जनवरी के दिन देश के सभी राज्यों की राजधानियों में बड़ी धूमधाम से विशेष समारोह आयोजित होते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति राष्ट्रध्वज फहराते हैं और सेना की टुकड़ियाँ सलामी देती हैं। फिर रंगारंग झाँकियाँ निकलती हैं जिनमें देश की प्रगति की झलक होती है। समाज और सेना के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य करने वालों के लिए पद्म अलंकारों की घोषणा होती है और बहादुर बच्चे एवं सैनिक सम्मानित किए जाते हैं।
कार्यक्रम : राज्यों की राजधानियों में राज्यपाल ध्वजारोहण करते हैं और सैनिक टुकड़ियाँ, छात्रवाहनियाँ सलामी देती हैं। रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। राष्ट्रसेवा के लिए व्रत लिया जाता है।
उपसंहार : अतः हमें सतत् ध्यान रखना चाहिए। इस पवित्र तिथि का उद्देश्य कभी भी धूमिल न होने पावे और हम अपने गणतंत्र की बागडोर वैसे सच्चे प्रतिनिधि को ही सौंपें जिनसे देश का कल्याण हो ।
(ख) राष्ट्रीय एकता
(i) भूमिका (ii) देश का भौगोलिक स्वरूप
(iii) संविधान में स्थिति (iv) जातिवाद प्रभाव
(v) उपसंहार
(ख) राष्ट्रीय एकता
भूमिका : “जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह मनुज नहीं, पशु है, और मृतक समान है।” राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ प्रत्येक भारतीय को राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत कर देती हैं।
देश का भौगोलिक स्वरूप : भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। इसका भौगोलिक क्षेत्र विशाल एवं विस्तीर्ण है। जलवायु, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, बात व्यवहार की जितनी विविधता भारत में है, उतनी अन्यत्र दुर्लभ है। यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। उत्तर भारत में आर्य भाषाएँ बोली जाती हैं, तो दक्षिण भारत में द्रविड़ भाषाएँ। इन दोनों प्रकार की भाषाओं में इतना अंतर है कि हिंदी-भाषी तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम भाषा को नहीं समझ पाते और दक्षिण भाषा-भाषी छत्तीसगढ़ी, अवधी, गढ़वाली, ब्रजभाषा आदि हिंदी की उपभाषाएँ नहीं समझ पाते। महाराष्ट्र में मराठी, बंगाल में बैंगला तथा असम में असमिया भाषा बोली जाती है। यहाँ अनेक बोलियाँ और उपबोलियाँ बोली जाती हैं। विभिन्न बोलियों और उपबोलियों की लोकनाट्य कृतियाँ और लोकगीत अलग-अलग हैं। विभिन्न क्षेत्रों में लोकनृत्यों की छटा भी अलग-अलग है। चित्रकला, संगीतकला तथा साहित्य में भी क्षेत्रों के अनुसार विभिन्नता लक्षित होती है। यहाँ विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जातियों, वर्गों तथा आचार-निष्ठाओं के लोग रहते हैं।
संविधान में स्थिति : भारत राज्यों का संघ है। यहाँ संसदीय प्रणाली की सरकार है। संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य कहा गया है, जो भारतीय एकता का मूल आधार है। संविधान में संपूर्ण भारत के लिए एकसमान नागरिकता की व्यवस्था की गई है। संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 51’क’ में नागरिकों के कर्तव्य के संबंध में कहा गया है कि इन्हें धर्म, भाषा और क्षेत्रीय तथा वर्ग-संबंधी भिन्नताओं को भुलाकर सद्भाव और भ्रातृत्व की भावना को प्रोत्साहन देना चाहिए।
जातिवाद प्रभाव : धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि की संकीर्णता की तरह ही जातिवादी संकीर्णता ने भी भारतीय एकता को बुरी तरह प्रभावित किया है। भारतीय नागरिकों का यह कर्तव्य बनता है कि ये उपरिकथित संकीर्णताओं को भूलकर देश की एकता एवं अखंडता को मजबूत करने का प्रयास करें। इसी से देश समृद्ध और विकसित हो सकेगा।
उपसंहार : देश के प्रत्येक नागरिक को देशहित में सोचना चाहिए। देश के आगे धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा और क्षेत्रविशेष का महत्त्व नहीं होता। प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह अलगाववादी तत्त्वों के प्रति सावधान रहे और देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर हो
(ग) सरस्वती पूजा
(i) भूमिका (ii) ज्ञान की देवी
(iii) विविध कार्यक्रम (iv) विसर्जन
(v) उपसंहार
(ग) सरस्वती पूजा
भूमिका : शास्त्रों में वीणावादिनी माँ सरस्वती की वन्दना विद्या का अधिष्ठात्री देवी के रूप में की गई है। वीणावादिनी की वन्दना के बिना तो प्रज्ञा का प्रकाश प्रस्फुटित हीं नहीं हो सकता। अतः विद्या के साधन और अराधक युग-युग से जगजननी माँ वीणावादिनी की उपासना करते रहे हैं। क्यों विद्या के बिना बुद्धि को वर्तिका नहीं चलती और बुद्धि के बिना विवेक का विलुप्त वैभव हस्तगत नहीं होता है। सरस्वती पूजा माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ती है। इसे वसन्त पंचमी भी कहा जाता है। इसी दिन वसुन्धरा पर ऋतुराज वसन्त का आगमन होता है। चारो ओर चहल-पहल लगता है। पूजा के मोहक मंत्र, धूप, दीप और हवन से वातावरण सुरभित और पावन हो जाता है वन्दना के पश्चात प्रसाद का वितरण होता है।
ज्ञान की देवी : माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता हैं। उनकी पूजा बड़े उत्साह से और सम्मान के साथ की जाती है। देवी को विद्यादायिनी और हंसवासिनी कहा जाता जाता है। सरस्वती देवी विद्या की देवी मानी जाती हैं। सभी लोग इनका पूजा करते हैं।
विविध कार्यक्रम : स्कूल में बहुत हर्षोल्लास के साथ माँ सरस्वती देवी की पूजा की जाती हैं। इसमें देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। उसके बाद पूजा और आरती की जाती है। इस दिन माँ सरस्वती देवी का शृंगार किया जाता है और उनके चरणों में गुलाल भी अर्पण किया जाता है।
सरस्वती पूजन के दिन स्कूल और कॉलेज में विविध कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। छोटे या बड़े लोग के डांस और विविध मनोरंजन पर कार्यक्रम किये जाते हैं। इस दिन बहुत सारे गाने बजाये जाते हैं और उसपे डांस किया जाता है।
विसर्जन : दूसरे दिन माता की प्रतिमा का विसर्जन होता है। वाजे-गाजे के साथ माता की प्रतिमा को लोग कन्धे, बैलगाड़ी या ट्रक पर सजाकर ले चलते हैं। लोग एक-दूसरे को रंग- अबीर फेकते हैं और पवित्र स्थान पर लगाकर विषर्जन करते हैं। तब लोग घर लौटते हैं। वसंत पंचमी से होली तक गाँव-गाँव में फगुआ की धूम रहती है।
विद्यार्थियों की विशेष रूप से माँ वीणा वादिनी की पूजा भक्ति-भाव के साथ करनी चाहिए। माँ की कृपा-दृष्टि के बिना विनम्र की विभावरी व्यतीत नहीं हो पाती। अज्ञान भी कुहेलिका अन्तर्धान नहीं हो सकती है और ज्ञान की गंगा की लालित लहरी नहीं लहरा सकती और न आकंठ लोग लिप्त लोगों की अतृप्त लिप्सा ही तृप्त हो पाती है। माता की अनुकम्पा से प्रज्ञा की अरुणिमा प्रस्फुटित होती है।
उपसंहार : अतः सरस्वती माता की पूजा अर्चना आज के अशांत उत्पीड़ित और दिग्भ्रान्त मानव के लिए अति अनिवार्य है। कवि तो सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए माँ से प्रार्थना करता है। जड़ता जाल में अपाद मस्तक आबद्ध मानव की मुक्ति हो जाती है।
(घ) युवा पीढ़ी और नशीले पदार्थ
(i) भूमिका (ii) युवाओं पर दुष्प्रभाव
(iii) नशे के प्रकार (iv) सामाजिक बुराई
(v) उपसंहार
(घ) युवा पीढ़ी और नशीले पदार्थ
भूमिका : अनादि काल से नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता रहा है। कहते हैं कि देवता भी सोमरस पीया करते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि तब वह शक्तिवर्धक के रूप में ग्रहण किया जाता था। अनेक प्रकार की प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ भी हैं जो नशा प्रदान करती हैं जिसे अनुभवी वैद्य जानते-पहचानते हैं। नयी युवा पीढ़ी ने अपनी जिन्दगी में इन नशीले पदार्थों का सेवन जिस प्रकार करना शुरू कर दिया है उससे उसका भविष्य तो अंधकारमय होता ही है, देश का भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है। इससे नैतिकता, मूल्य, मानवता सबके सब नष्ट होते जा रहे हैं। पाश्चात्य देशों की विकसित अर्थव्यवस्था की उपज यह भटकाव, मादक पदार्थों से जीवन प्रेम को नष्ट करता हुआ विकासशील देशों में पहुँचा है।
युवाओं पर दुष्प्रभाव : पीनेवाले को पीने का बहाना चाहिए। कोई गम भुलाने को पीता है कोई पीने को मजबूर है। आज की युवा पीढ़ी काफी चिंताग्रस्त रह रही है। प्रकृति से दूर होती जा रही है। चिंता चिता से बढ़कर है। उसे यह समझ नहीं है। बुरी संगति और अपनी इच्छाओं को बढ़ा लेना ही इसका मुख्य कारण है। लेकिन अनेक प्रकार के नशीले पदार्थों के सेवन से युवाओं का शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और नैतिक पतन हो रहा है।
नशे के प्रकार : देश में उपजनेवाले या उत्पादित तथा विदेश से आयातित नशीले पदार्थ अनेक प्रकार के हैं। गाँजा, भाँग और तम्बाकू खेतों में उगाए जाते हैं। स्प्रीट मिश्रित अनेक शराब नशीले पदार्थ के रूप में बाजारों में उपलब्ध हैं। कारखानों में नशीले पदार्थों के मिश्रण से अनेक दर्द निवारक और खाँसी की दवा बनती है। शक्तिवर्धक (टॉनिक) भी नशीले पदार्थयुक्त हैं। वहीं, हेरोईन, ब्राउन सुगर, हशीश, मारफीन, स्मैक, चरस, अफीम, डमेरौल आदि का प्रयोग खूब बढ़ता जा रहा है जो मारक है।
सामाजिक बुराई : आज नशीले पदार्थों का सेवन स्कूली छात्र/छात्राओं, छोटे-छोटे बच्चे और युवा खुलकर करने लगे हैं। सरकार को अच्छी-खासी राजस्व की उगाही लाइसेंसी दुकानों से मिल रही है। लेकिन नशा करने वाले युवा सदैव हानि में रहते हैं। जब कोई व्यक्ति नशा ले लेता है तो मान-मर्यादा का ख्याल भूल जाता है। मन से शर्म, संकोच सामाजिकता का भय समाप्त हो जाता है। नशा की पूर्ति के लिए युवा वर्ग चोरी डकैती, हत्या, लूट और अपहरण आदि घृणित कार्य को अंजाम देने से भी नहीं हिचकता है।
उपसंहार : आज युवा पीढ़ी को नैतिक शिक्षा दिए जाने की आवश्यकता है। प्रचार-प्रसार के विभिन्न माध्यमों से ऐसे अनेक कार्यक्रम चलाए जाएँ जिससे स्वस्थ मनोरंजन हों। उन युवाओं के साथ अपनत्व और पेमपूर्ण व्यवहार का स्वस्थ वातावरण तैयार किए जाएँ। माता-पिता को अधिक जिम्मेवारी लेने की अनिवार्य आवश्यकता है।
(ङ) हमारे प्रिय नेता महात्मा गाँधी
(i) भूमिका (ii) जीवन-वृत दक्षिण अफ्रीका में गाँधी
(iii) स्वतंत्रता आन्दोलन में नेता (iv) सामाजिक कार्य
(v) मानवता के पुजारी (vi) मृत्यु
(ङ) हमारे प्रिय नेता महात्मा गाँधी
भूमिका : सत्य, अहिंसा, त्याग और सहनशीलता की मूर्ति महात्मा गाँधी ने गरीबों और आतंजनों को इज्जत दिलाई है, इससे भारत ही नहीं, पूरा संसार उनका ऋणी है और रहेगा।
जीवन-वृत्त-दक्षिण अफ्रीका में गाँधी : महात्मा गाँधीजी का पूरा नाम था – मोहनदास करमचन्द गाँधी। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. को गुजरात प्रांत के काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ। इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। गाँधीजी की आरंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। राजकोट से हाई स्कूल की परीक्षा में सफल होने के बाद ये इंग्लैंड गए और सन्, 1891 ई० में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर गाँधीजी ने मुम्बई में बैरिस्ट्री शुरू की। कुछ दिन यहाँ वकालत करने के बाद एक गुजराती व्यापारी का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहाँ के भारतीयों पर अंग्रेज बहुत जुल्म करते थे। उनकी बस्तियाँ अलग थीं, होटल अलग थे। काले लोग अंग्रेजों के साथ रेल के डिब्बे में बैठ नहीं सकते थे। गाँधीजी ने इस जुल्म का विरोध अहिंसात्मक ढंग से करना शुरू किया। अंग्रेजों ने इन्हें अनेक यातनाएँ दीं – इन्हें ट्रेन से उतार दिया, मारा-पीटा और एक बार तो इनके दाँत भी तोड़ दिए। लेकिन गाँधीजी ने लड़ाई जारी रखी। हार कर अंगेजों को भारतीयों को अनेक सुविधाएँ देनी पड़ीं। गाँधीजी का नाम सारी दुनिया में मशहूर हो गया।
भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन के एकछत्र नेता : सन् 1915 ई० में गाँधीजी भारत लौटे और साबरमती में आश्रम बनाकर रहने और स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगे। चम्पारण के लोग गाँधीजी से मिले और अपना दुखड़ा रोया। चम्पारण के किसानों को जबरन नील उपजाना होता था और न उपजाने पर तरह-तरह की यातनाएँ सहनी पड़ती थीं। गाँधीजी चम्पारण आए और यहाँ नीलहे गोरों के विरुद्ध सत्याग्रह किया। अंत में चम्पारण के लोगों को उनका हक मिला। फिर तो काँग्रेस ने अपनी बागडोर गाँधीजी को सौंप दी। सारा देश उनके इशारे पर नाचने लगा। जहाँ कहीं अन्याय और जुल्म होता था, गाँधीजी जनता के साथ खड़े हो जाते थे। अनेक बार वे जेल गए। अंत में सन् 1942 ई० में गाँधीजी ने नारा दिया – अंग्रेजों भारत छोड़ो। क्रुद्ध अंग्रेजों ने बहुत से लोगों को मौत के घाट उतार दिए और लाखों को जेल भेजा। लेकिन गाँधीजी के साथ देश, अहिंसक रहकर, अंग्रेजों से लड़ा। अंग्रेजों को झुकना पड़ा और 15 अगस्त, 1947 ई० को देश आजाद हो गया। देश ने इन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से अभिहित किया।
सामाजिक कार्य : गाँधीजी में सेवा-भावना कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने देशवासियों में स्वदेशी भावना जागृत की, लघु उद्योगों के उत्थान पर जोर दिया। वे देश में गरीब, अछूत, रोगी सबकी भलाई चाहते थे। वे चाहते थे कि हिन्दूमुसलमान आपस में मिलकर रहें। गाँधीजी अछूतों और हरिजनों को हक दिलाने में सदा आगे रहे। इनकी मृत्यु पर आइंस्टीन ने कहा – भावी पीढ़ियाँ मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस एक ऐसा आदमी भी हुआ।
मृत्यु : 30 जनवरी, 1948 ई० को नाथूराम गोडसे ने इन्हें गोली मार दी।
उपसंहार : गाँधीजी आज भारत ही नहीं, सारे संसार के पथ-प्रदर्शक के रूप में समादृत हैं।
4. प्रश्न- मुहल्ले की सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करने के लिए नगरपालिका के मैयर के पास एक आवेदन पत्र लिखें।
उत्तर-
सेवा में,
मेयर
नगरपालिका, बिहारशरीफ (जिला : नालंदा)
विषय: मुहल्ले की सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करने के संबंध में। आप भली-भाँति जानते हैं कि बिहारशरीफ एक घनी आबादी वाला नगर है। इसमें एक के बाद एक गलियाँ हैं। ये गलियाँ एक-दूसरे के साथ इस तरह सटी हुई हैं कि बाहर से आनेवाला व्यक्ति दिन में भी धोखा खा जाता है। रात के अंधेरे में तो यह कठिनाई और भी बढ़ जाती है। इस क्षेत्र में प्रकाश की व्यवस्था बहुत कम है। रोशनी का प्रबंध केवल सड़क पर है। अधिकांश क्षेत्रों में प्रायः रात के समय अंधेरा रहता है। अंधेरे में चोर-उच्चके भी सक्रिय रहते हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि प्रत्येक गली में प्रकाश की व्यवस्था कराएँ ।
आशा है आप मेरी प्रार्थना पर विचार करेंगे।
भवदीय
विकास कुमार
अथवा
प्रश्न- सत्संगति का महत्त्व बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए।
उत्तर-
राजेद्र नगर, पटना
12.01.2023
प्रिय मित्र राकेश
यथोचित
आशा नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम सकुशल होगे। अजीत कह रहा था कि तुम हॉस्टल के बाहर के लड़कों के साथ रहते हो। यह ठीक नहीं है। अच्छे लोगों के साथ रहो। सत्संगति से अच्छी आदतें सीखने को मिलती हैं। सत्संगति के कारण ही तुलसीदास, विवेकानंद जैसे महापुरुष महान बने हैं। अच्छा दोस्त वह नहीं जो कुसंगति प्रदान करे। अच्छा वह दोस्त है जो अपने साथी को सत्संगति का महत्त्व समझाए।
अतः तुम सत्संगति करो। यही तुम्हारे लिए ठीक रहेगा। अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाओ और बातें अगले पत्र में होंगी।
तुम्हारा दोस्त
विकास
5. प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग शब्दों में दें।
प्रश्न- स्वाधीनता शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताते हैं ?
उत्तर- लेखक कहते हैं कि स्वाधीनता शब्द का अर्थ है कि अपने ही अधीन रहना क्योंकि यहाँ के लोगों ने अपनी आजादी के जितने भी नामकरण किये उनमें स्वतंत्रता, स्वराज, स्वाधीनता उनमें स्वबंधन आवश्यक है।
प्रश्न- अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पहली बार दिखे बहादुर की उम्र बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका रंग, मुँह एवं शरीर ठिगना चकइठ था। वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहना था ।
प्रश्न- बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसे मानते थे ?
उत्तर- बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को मानते थे। उनकी माँ ही उनकी गुरुआइन भी थीं। बिरजू महाराज अपनी माँ से ही अपने नृत्य के संबंध में पूछा करते थे और अपनी माँ की राय को अत्यधिक महत्त्व देते थे। उनकी नजरों में उनकी माँ एक जज की हैसियत रखती थीं।
प्रश्न- हरिरस से कवि ‘गुरु नानक’ का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-हरिरस से कवि का तात्पर्य राम-नाम-कीर्तन से प्राप्त होनेवाला आनंद है। भले ही किसी को गुरु का अनुग्रह प्राप्त हुआ हो, पर भगवान की नाम-महिमा के गायन से प्राप्त होनेवाला आनंद तो भक्त गुरु नानक के ही भाग्य में है।
प्रश्न- ‘स्वदेशी’ कविता में नेताओं के बारे में कवि की क्या राय है ?
उत्तर- नेताओं के संबंध में कवि व्यंग्यात्मक शैली में कहता है कि जो अपनी ढीली- ढीली धोती को नहीं सँभाल सकते, भला उनसे देश कैसे सँभलेगा! यदि हम ऐसे नेताओं से देश के विकास की बात सोचते हैं, तो यह हमलोगों की खामखयाली (नासमझी) है। जो अपने को नहीं सँभाल सकते, वे देश को सँभालेंगे, ऐसा सोचना बुद्धि के विपरीत विचार करने जैसी बात है।
प्रश्न- ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता में शानदार लबादा किसका गिर जाएगा, और क्यों ?
उत्तर- भक्त का अस्तित्व अगर भगवान से है तो भगवान की सत्ता भक्त द्वारा शोभायमान है। ईश्वरीय महिमारूपी शानदार आवरण जो ईश्वर । से लिपटा हुआ है, भक्त द्वारा महिमा स्वीकारने, उसमें भक्तिरूपी जीवन प्राण देने से ही बना है। अतः, भक्त के बिना प्रभु भक्तिरूपी लबादा से विहीन हो जाएँगे।
प्रश्न- पाप्पाति कौन थी, और वह शहर क्यों लाई गई थी ?
उत्तर- पाप्पाति मूनांडिप्पट्टि गाँव की वल्लि अम्माल (वल्लियम्मा) की बारह वर्षीया पुत्री थी। उसकी तबीयत खराब थी। अतः, बड़े अस्पताल में दिखाने के लिए वह शहर लाई गई थी।
प्रश्न- मंगम्मा का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर- मंगम्मा अपने छोटे से परिवार की स्वामिनी है। वह वात्सल्यमयी है। वह अपने पोते को बहुत प्यार करती है। वह पतित्यक्ता है। उसमें जीवन के प्रति एक प्रकार की ऊब भी है और एक प्रकार का आकर्षण भी। उसमें लोकजीवन के सारे संस्कार वर्तमान हैं। उसमें अपने परिवार के प्रति अतिशय लगाव है। वह स्वाभिमानी है। अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए ही वह अपने बहू-बेटा से अलग हो जाती है।
6. निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर लिखिए
प्रश्न- मैक्समूलर की दृष्टि में भारत के सच्चे दर्शन कहाँ और क्यों हो सकते हैं ?
उत्तर- लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कलकत्ता (कोलकाता), बंबई (मुंबई), मद्रास (चेन्नई) आदि शहरों में नहीं, इसके गाँवों में हो सकते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी संस्कृति कृषि से जुड़ी है। अतः यदि हम भारत के दर्शन करना चाहते हैं तो हमें इसके गाँवों के दर्शन करने होंगे। गाँवों में ही भारत की आत्मा का निवास है। भारतीय आत्मा एवं भारतीय संस्कृति से परिचित होना ही भारतीय दर्शन का उद्देश्य है। लेखक ने भारत को सर्वाधिक संपन्न और सौंदर्य से परिपूर्ण देश का दर्जा दिया है। मैक्समूलर की दृष्टि में भारत प्रत्येक दृष्टि से संपन्न है। भारत ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश है। यहाँ की प्रकृति ऐसी है मानो भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर गई हो । भारतीय साहित्य में अंतरतम को परिपूर्ण, अधिक सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी और मानवीय बनाने, अगला जीवन एवं शाश्वत जीवन में सुधार लाने की अद्भुत क्षमता है। अतः मैक्समूलर ने भारतीय साहित्य को पढ़ने की सलाह दी है।
प्रश्न- सप्रसंग व्याख्या कीजिए’—
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सो गया’
पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हिंदी साहित्य के प्रयोगवादी कवि तथा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कवि ‘अज्ञेय’ के द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से उद्धृत है।
प्रस्तुत व्याख्या अंश में कहां जा रहा है कि मानव जो अपने आपको प्रबुद्ध वर्ग की संज्ञा देता है वही कभी-कभी दूसरों के लिए बनाये गये जाल में स्वयं उलझकर रह जाता है। प्रकृति पर नियंत्रण करने का होड़ मानव की बचपना स्पष्ट दिखाई पड़ने लगती है। यही स्थिति हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद देखने को मिली । मानव बम रूपी सूरज का निर्माण कर अपने आपको ब्राह्माण्ड का नियामक समझ लिया था लेकिन वही विस्फोट मानव को ही भाप बनाकर सोख लिया। अर्थात वही विस्फोट मानव के लिए अभिशाप बन गया।
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