प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी (Launch Vehicle Technology)

प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी (Launch Vehicle Technology)

उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करने के लिये रॉकेट/उपग्रह प्रक्षेपण यान की आवश्यकता होती है। यह यान तेज़ गति से यात्रा करके पूर्व निर्धारित कक्षा में उपग्रह को स्थापित कर देता है। प्रक्षेपण यान न्यूटन की गति के तीसरे नियम के आधार पर काम करते हैं। प्रक्षेपण यान में प्रणोदक (प्रक्षेपण यान का ईंधन) के दहन द्वारा उत्पन्न गैसें नीचे की ओर गति करती हैं, जिसकी प्रतिक्रिया में प्रक्षेपण यान ऊपर की ओर गति करता है। इसके साथ-साथ यान दहन के लिये आवश्यक ऑक्सीकरण एजेंट भी अपने साथ लेकर चलता है। प्रणोदक का चुनाव उसकी प्रति इकाई द्रव्यमान ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता, आयतन और संग्रहण तथा परिवहन की सुविधा के आधार पर किया जाता है। सामान्यतः द्रव प्रणोदक, ठोस प्रणोदकों की अपेक्षा प्रति इकाई द्रव्यमान अधिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। हाइड्रोजन प्रति इकाई द्रव्यमान सर्वाधिक ऊर्जा प्रदान करता है, लेकिन इसका भंडारण और प्रयोग तकनीक काफी जटिल है। इसके उलट ठोस प्रणोदकों का भंडारण और प्रयोग आसान होता है। सामान्य रूप से प्रक्षेपण यान में कई चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में भिन्न या समान ईंधन का प्रयोग किया जा सकता है। सबसे निचले चरण में प्रायः ठोस प्रणोदक का उपयोग किया जाता है।
नोट: प्रणोदक (Propellant): रॉकेट के ईंधन के रूप में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों को तकनीकी भाषा में ‘प्रणोदक’ कहा जाता है।
निर्धारित कक्षा में उपग्रह स्थापित करने के लिये प्रक्षेपण स्थल का चुनाव भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिये निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है
  प्रक्षेपण स्थल आबादी वाले क्षेत्रों से दूर और समुद्र के समीप होने चाहिये। उल्लेखनीय है कि अधिकांश प्रक्षेपण स्थल पूर्वी तटों पर बनाए गए हैं क्योंकि पश्चिम की ओर महाद्वीपीयता तुलनात्मक रूप से अधिक है। अपवादस्वरूप, कजाकिस्तान का बैकानूर प्रक्षेपण स्थल पश्चिम की ओर है क्योंकि पश्चिम में अवसंरचनात्मक विकास तुलनात्मक रूप से कम हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में शीत युद्ध के दौरान अमेरिका को भ्रम में रखने के लिये भी रूस द्वारा पश्चिम में प्रक्षेपण स्थल चुनना उचित माना गया।
प्रक्षेपण स्थल को भूमध्य रेखा के निकट रखा जाता है, ताकि भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में उपग्रह को प्रवेश कराने में कम ऊर्जा खर्च हो। (ध्यातव्य है कि गुरुत्वाकर्षण का सबसे कम मान भूमध्य रेखा पर ही रहता है।)
चूँकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर गति करती है, इसलिये उपग्रहों को पूर्व की ओर प्रक्षेपित किया जाता है, जिससे वे पृथ्वी की गति ग्रहण कर सकें। यदि उपग्रहों को पश्चिम की तरफ प्रक्षेपित किया जाए तो उन्हें कक्षा में स्थापित करने में काफी ऊर्जा खर्च करनी पड़ेगी।
प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी में तकनीक के विकास का मूल्यांकन मुख्यतः दो आधारों पर किया जाता है
1. रॉकेट कितनी ऊँचाई तक जाने में सक्षम है। 
2. रॉकेट कितने भारी उपग्रह को ढोने में सक्षम है।

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