कोशिका : संरचना एवं कार्य (Cell: Structure and Functions)

कोशिका : संरचना एवं कार्य (Cell: Structure and Functions)

कोशिका : संरचना एवं कार्य (Cell: Structure and Functions)

लैटिन भाषा में Cell (कोशिका) शब्द का अर्थ ‘छोटा कमरा’ है। कोशिका समस्त जीवों (जन्तु तथा पादपों) की आधारभूत संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। कोशिकाओं की तुलना ईंटों से की जा सकती है। जिस प्रकार ईंटों को जोड़कर भवन का निर्माण किया जाता है, उसी प्रकार विभिन्न कोशिकाएँ एक-दूसरे से जुड़कर प्रत्येक सजीव के शरीर का निर्माण करती हैं।
कोशिका की खोज (Discovery of Cell)
कोशिका की खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट हुक ने सन् 1665 में स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कॉर्क की पतली स्लाड्स में की थी। हुक द्वारा देखी गई बक्सेनुमा संरचनाएँ वास्तव में मृत कोशिकाएँ थी । ल्यूवेनहॉक (1674) ने सबसे पहले उन्नत सूक्ष्मदर्शी की सहायता से तालाब के जल में स्वतन्त्र रूप से जीवित कोशिकाओं का पता लगाया था।
कोशिकाओं की आकृति एवं आकार (Shape and Size of Cells)
कोशिका विभिन्न आकृतियों व आकार की हो सकती हैं। विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ विभिन्न जीवों या एक ही जीव के विभिन्न अंगों में पायी जा सकती हैं।
सामान्यतया कोशिका गोल, लम्बी होती है परन्तु कुछ कोशिकाएँ बहुत लम्बी तथा किनारों पर नुकीली होती हैं। कोशिकाओं में विभिन्नता उनके कार्य के अनुसार पायी जाती हैं। कुछ स्थितियों में, कोशिका की आकृति कम या ज्यादा स्थिर हो सकती है उसके प्रकार के अनुसार। उदाहरण तन्त्रिका कोशिका की विशिष्ट आकृति ।
जीवों में कोशिकाओं की संख्या (Number of Cells in Living Organisms) 
सभी जीव कोशिकाओं के बने होते हैं। एक कोशिका स्वयं में ही सम्पूर्ण जीव हो सकती है, ऐसे जीव एककोशिकीय जीव (unicellular organisms ) कहलाते हैं। उदाहरण अमीबा, क्लैमाइडोमोनास, पैरामीशियम तथा बैक्टीरिया | इसके अतिरिक्त बहुकोशिकीय जीवों में अनेक कोशिकाएँ एक साथ मिलकर विभिन्न कार्यों को पूरा करती हैं तथा अंगों का निर्माण करती हैं। उदाहरण फंजाई ( कवक), पादप, जन्तु । प्रत्येक बहुकोशिकीय जीव एक कोशिका से ही उत्पन्न हुआ है। कोशिका विभाजित होकर अपने जैसी बहुत कोशिकाएँ बनाती हैं, जो वृद्धि करती हैं। कुछ बहुकोशिकीय जीव विविध प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। कोशिकाएँ अपनी आकृति एवं आकार के कारण विभिन्न प्रकार की होती हैं, जो कुछ बहुकोशिकीय जीवों में एक साथ भी पायी जाती हैं।
उदाहरण मानव शरीर में रुधिर कोशिकाएँ, चिकनी पेशी कोशिकाएँ, तंत्रिका कोशिकाएँ, अण्डाणु, शुक्राणु, अस्थि कोशिकाएँ, वसा कोशिकाएँ पायी जाती हैं।
कोशिका सिद्धान्त (Cell Theory)
कोशिका सिद्धान्त जीव विज्ञान के अधिकांश सामान्यीकरणों में से एक है। दो जीव वैज्ञानिकों एम श्लाइडेन (जर्मन वनस्पति शास्त्र) ने 1838 में तथा टी श्वान (ब्रिटिश जन्तु शास्त्र) ने 1839 में अपने पत्र (जन्तु तथा पौधों की संरचना और विकास की समानता पर सूक्ष्म जाँच) द्वारा कोशिका सिद्धान्त को आगे प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, सभी पौधे तथा जन्तु कोशिकाओं से बने हैं और वे जीवन की मूलभूत इकाई हैं। यह कोशिकाओं के गुणों का भी वर्णन करती है। कोशिकाओं का अध्ययन कोशिका विज्ञान कहलाता है।
यह सिद्धान्त इस बात की व्याख्या नहीं कर सका कि नई कोशिकाओं की रचना किस प्रकार हुई थी। रूडोल्फ विरकोव ने 1855 में कोशिका सिद्धान्त को आगे बढाया। उन्होंने बताया कि कोशिकाएँ विभाजित होती हैं तथा नई कोशिकाएँ पूर्ववर्ती कोशिकाओं से बनती हैं। उन्होंने श्लाडन तथा श्वान की परिकल्पना को संशोधित किया तथा कोशिका सिद्धान्त को एक अन्तिम रूप दिया।
आज वर्णित होने वाले कोशिका सिद्धान्त के अनुसार
(i) सभी जीव एक या अधिक कोशिकाओं से बने होते हैं।
(ii) कोशिका जीवन की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
(iii) प्रत्येक कोशिका एक पूर्ववत् कोशिका से उत्पन्न हुई है।
◆ विषाणु कोशिका सिद्धान्त का पालन नहीं करते हैं ।
कोशिका संरचना ( Cell Structure )
1940 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज से कोशिका की जटिल संरचना का पता लगाया गया। सूक्ष्मदर्शी से कोशिका का अध्ययन करने पर कोशिका की संरचना तीन भागों में विभाजित दिखाई पड़ती है
(i) प्लाज्मा झिल्ली (Plasma Membrane )
(ii) केन्द्रक (Nucleus )
(iii) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
ये तीनों भाग अपने वातावरण से क्रिया कर विभिन्न कार्य करते हैं। पादपों में प्लाज्मा झिल्ली के बाहर एक दृढ़ कोशिका भित्ति भी पाई जाती है।
कोशिका भित्ति (Cell Wall)
कोशिका भित्ति मजबूत, अजीवित, लचीली परत होती है, जो प्लाज्मा झिल्ली के बाहर उपस्थित होती है। यह पादप कोशिकाओं को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करती है क्योंकि सेलुलोज एक जटिल कार्बोहाइड्रेट है। यह कोशिका की रक्षा करती है।
कोशिका भित्ति मुख्यतया पादप, कवक, जीवाणु, शैवाल में पायी जाती है परन्तु यह जन्तु व प्रोटोजोआ में अनुपस्थित होती है।
जीवों के आधार पर कोशिका भित्ति निम्न प्रकार की होती है
◆ जीवाणु कोशिका भित्ति पेप्टाइडोग्लाइकेन्स की बनी होती है।
◆ कवक कोशिका भित्ति ग्लूकोसेमीन बहुलक की बनी होती है।
◆ शैवाल कोशिका भित्ति ग्लाइकोप्रोटीन व पॉलीसैकेराइड की बनी होती है।
◆ पादप कोशिका भित्ति सेलुलोज की बनी होती है।
कोशिका भित्ति की संरचना (Structure of Cell Wall) 
कोशिका भित्ति निम्न तीन परतों की बनी होती है
कोशिका भित्ति के कार्य (Functions of Cell Wall)
(i) अधिक कोशिकीय दाब होने पर, कोशिका भित्ति, कोशिका को फटने से बचाती है।
(ii) यह कोशिका की बाहरी वातावरण में होने वाले अधिक परिवर्तनों से रक्षा करती है, जोकि जन्तु कोशिका में कम होती है।
प्लाज्मा झिल्ली अथवा कोशिका झिल्ली (Plasma Membrane or Cell Membrane) 
प्रत्येक कोशिका एक बाहरी परत से घिरी होती है, जो उसे बाहरी वातावरण से अलग रखती है, उसे प्लाज्मा झिल्ली कहते हैं।
यह लचीली होती है, जो कार्बनिक अणुओं जैसे लिपिड तथा प्रोटीन की बनी होती है। संरचनात्मक रूप से यह पतली लचीली अर्धपारगम्य या चयनात्मक पारगम्य होती है। कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक बन्द होते हैं। विषाणु को छोड़कर यह जन्तु पादप, प्रोकैरियोटिक व कवक कोशिका में होती है।
प्लाज्मा झिल्ली के कार्य (Functions of Cell Wall)
(i) यह कोशिका का आकार बनाने में सहायता करती है तथा कोशिका को यांत्रिक सहारा (mechanical support) भी देती है।
(ii) प्लाज्मा झिल्ली अर्द्धपारगम्य (semipermeable) होती है, अतः यह कुछ पदार्थों का आवागमन करती है सभी का नहीं। इसलिए इसे वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली तथा चयनात्मक पारगम्य झिल्ली (selectively permeable membrane) भी कहते हैं ।
(iii) इसके लचीले गुण के कारण एककोशिकीय जीव वातावरण से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इस प्रक्रिया को एन्डोसाइटोसिस (endocytosis) कहते हैं। उदाहरण अमीबा में भोजन अधिग्रहण।
(iv) यह कोशिकीय कंकाल संरचनाओं को जुड़ने का आधार भी देती है।
(v) यह कोशिका आसंजक, आयन पारगम्यता व कोशिका सिग्नलिंग जैसे अन्य कार्य भी करती है।
केन्द्रक (Nucleus)
केन्द्रक की खोज सन् 1831 में रॉर्बट ब्राउन ने की थी। केन्द्रक कोशिका के मध्य में पाया जाता है, जो गोलाकार अथवा अण्डाकार होता है। यदि कोशिका को आयोडीन विलयन, सैफ्रॉनिक या मेथलीन ब्लू विलयन से रंगा जाए, तो केन्द्रक गहरे रंग का कोशिका के मध्य में पाया जाता है। इसे कोशिका का मस्तिष्क माना जाता है। केन्द्रक के विभिन्न भाग निम्न हैं
(i) केन्द्रक झिल्ली (Nuclear Membrane)
केन्द्रक, कोशिकाद्रव्य से केन्द्रक झिल्ली द्वारा पृथक रहता है। केन्द्रक चारों ओर से दोहरी केन्द्रक झिल्ली (nuclear membrane) से घिरी होती है, जो वसा (fats) व प्रोटीन (protein) की बनी होती है। केन्द्रक की दो झिल्ली के मध्य तरल भरा एक स्थान होता है। केन्द्रक झिल्ली में छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं, जिन्हें केन्द्रक छिद्र (nucleopore) कहते हैं। इन छिद्रों द्वारा कोशिकाद्रव्य केन्द्रक के अन्दर या बाहर जाता है। केन्द्रक की बाहरी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका से जुड़ी होती है।
(ii) केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm )
केन्द्रक के अन्दर एक गाढ़ा द्रव्य भरा रहता है, जिसे केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। केन्द्रकद्रव्य कुछ अम्लीय होता है, जिसे केन्द्रक सैप (nuclear sap) भी कहते हैं। इसमें केन्द्रिका व गुणसूत्र पाये जाते हैं। यह प्रोटीन, फॉस्फोरस व न्यूक्लिक अम्ल का बना होता है।
(iii) केन्द्रिका (Nucleolus )
केन्द्रक के अन्दर एक छोटी, गोलाकार संरचना होती है, जिसे केन्द्रिका (nucleolus) कहते हैं। यह झिल्ली द्वारा घिरी नहीं रहती है। कुछ यूकैरियोट जीवों में एक से ज्यादा या 4 तक भी केन्द्रिका पायी जाती हैं। यह स्रावी कोशिकाओं (secretory cells) में पायी जाती है। यह RNA का संश्लेषण करती है। केन्द्रका कोशिका विभाजन में विशेष महत्त्व रखती है।
केन्द्रक तरल (Nuclear Matrix)
यह अम्लीय प्रोटीन का पतला जाल है, जो क्रोमेटिन के लिए स्केफोल्ड का कार्य करता है। क्रोमेटिन, आनुवंशिक DNA तन्तु है, जिसे रंजक के द्वारा रंगने के कारण क्रोमेटिन कहते हैं। यह मुख्यतया हिस्टोन्स DNA व RNA की प्रोटीन) का बना होता है। क्रोमेटिन में DNA मुख्यतया जीवों के आनुवंशिकी लक्षणों के लिए जिम्मेदार होता है।
(iv) गुणसूत्र (Chromosomes)
केन्द्रक में गुणसूत्र पाये जाते हैं, जिन्हें वंशागति के लिए उत्तरदायी माना जाता है। गुणसूत्र कोशिका विभाजन के पहले तथा बाद में लम्बे धागे नुमा दिखाई देते हैं, जिन्हें क्रोमेटिन कहते हैं। कोशिका विभाजन के समय ये कुछ संकुचित हो जाते हैं तथा गुणसूत्र बनाते हैं।
गुणसूत्र में आनुवंशिक गुण पाये जाते हैं। गुणसूत्र DNA तथा हिस्टोन प्रोटीन के बने होते हैं। DNA अणु में कोशिका के निर्माण व संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएँ होती हैं। DNA के क्रियात्मक खण्ड को जीन कहते हैं। प्रोकैरियोट जीवों में केन्द्रक का क्षेत्र बहुत कम स्पष्ट होता है, जो केन्द्रक झिल्ली से विहीन होता है। इस अस्पष्ट केन्द्रक क्षेत्र में केवल क्रोमेटिन होता है।
जीन जनक से सन्तान तक आनुवंशिक लक्षणों को ले जाते हैं। अतः इन्हें जीव का आनुवंशिक वाहन कहते हैं।
कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
कोशिकाद्रव्य एक तरल पदार्थ है, जो कोशिका झिल्ली से घिरा रहता है । यूकैरियोट्स में यह केन्द्रक झिल्ली व प्लाज्मा झिल्ली के मध्य का भाग होता है। जीवद्रव्य शब्द 1839 में पुरकिन्जे नामक वैज्ञानिक ने दिया था। कोशिकाद्रव्य में बहुत से अकार्बनिक पदार्थ (खनिज, लवण तथा जल) एवं कार्बनिक पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा) पाए जाते हैं। कोशिकाद्रव्य में कोशिकांग भी पाए जाते हैं, जो विशिष्ट कार्य करते हैं।
कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक को मिलाकर जीवद्रव्य (protoplasm) कहते हैं। कोशिकाद्रव्य में कोशिकांग, रिक्तिका (vacuole) एवं तरल पदार्थ होते हैं। जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है। यूकैरियोट में कोशिका के केन्द्रक के चारों ओर के द्रव्य को कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) तथा केन्द्रक के अन्दर के तरल को केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। प्रोकैरियोट में प्लाज्मा झिल्ली के अन्दर के द्रव्य को जीवाणु कोशिकाद्रव्य कहते हैं।
(i) कोशिकातरल (Cytosol)
यह कोशिकाद्रव्य तरल है, जो झिल्लियों द्वारा छोटे-छोटे खण्डों में बँटा रहता है, जैसे माइटोकॉण्ड्रिया का मैट्रिक्स उसके बाहरी तथा आन्तरिक खण्डों को अलग-अलग रखता है।
(ii) कोशिकांग (Cell Organelles)
प्रत्येक कोशिका में कुछ विशिष्ट भाग होते हैं, जिन्हें कोशिकांग कहते हैं। विभिन्न कोशिकांग विशिष्ट कार्य करते हैं जैसे कोशिका के अन्दर नये पदार्थ बनाना, अपशिष्ट पदार्थों को साफ करना, आदि। विभिन्न प्रकार के कोशिकांग होते हैं उदाहरण अन्तःप्रद्रव्यी जालिका, गॉल्जी उपकरण, लाइसोसोम, माइटोकॉण्डिया, लवक व रिक्तिका, आदि विशिष्ट कार्य करते है।
कोशिका में कोशिकांग निम्नलिखित हैं
(a) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum)
इसकी खोज एल्बर्ट क्लैउड व कीथ पॉर्टर ने की थी। यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीयुक्त नलिकाओं तथा शीट का बहुत बड़ा तन्त्र पाया जाता हैं, जिसे अन्तःप्रद्रव्यी जालिका कहते हैं। इनकी संरचना प्लाज्मा झिल्ली जैसी होती है अर्थात् वसा व प्रोटीन की बनी होती है। ये लम्बी नलिकाओं अथवा गोल थैलों की तरह दिखाई देती हैं। यह दो प्रकार की होती हैं
◆ कुछ प्रोटीन तथा वसा कोशिका झिल्ली को बनाने में सहायता करती है। इसे झिल्ली जीवात् जनन (membrane biogenesis) कहते हैं।
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के कार्य (Functions of Endoplasmic Reticulum )
यह विभिन्न कार्य करती है
◆ कोशिकाद्रव्य तथा केन्द्रक के मध्य पदार्थों (मुख्यतया प्रोटीन) के परिवहन (transport) के लिए नलिका के रूप में कार्य करती है।
◆ कोशिका की जैव-रासायनिक क्रियाओं के लिए कोशिकाद्रव्यी ढाँचे का कार्य भी करती है।
◆ कशेरुकी के यकृत में चिकनी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका विष तथा दवा को निराविषीकरण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
◆ कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट एवं केन्द्रक झिल्ली के निर्माण में भाग लेती है।
माइक्रोबॉडीज़ (Microbodies)
ये सूक्ष्म कोशिकांग होते हैं, जो एकल झिल्ली से घिरे रहते हैं। यह ऑक्सीजन का अवशोषण कर श्वसन में सहायता करते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
(a) परऑक्सीसोम (Peroxysomes) ये अन्त: प्रद्रव्यी जालिका से उत्पन्न हुए माने जाते हैं। इनमें परऑक्सिन नामक प्रोटीन होती है, जो कोशिकाद्रव्य तथा अन्तः प्रद्रव्यी जालिका से पदार्थ लेती है।
(b) ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysomes) ये विशिष्ट परऑक्सीसोम होते हैं क्योंकि इनमें ग्लाइऑक्सेलेट क्रिया तथा वसीय अम्लों के B-ऑक्सीकरण के लिए एन्जाइम होते हैं।
(b) गॉल्जी उपकरण (Golgi Complex)
गॉल्जीकाय की खोज सर्वप्रथम कैमिलो गॉल्जी ने 1898 में उल्लू एवं बिल्ली की तन्त्रिका कोशिका में की थी। यह एक झिल्लीयुक्त पुटिका है, जो एक-दूसरे के ऊपर समान्तर रूप से दिखाई देती है। इन्हें थैलियाँ (cisternae) कहते हैं। झिल्ली तन्त्र के एक भाग को अन्तः प्रद्रव्यी जालिका तथा एक भाग को गॉल्जी उपकरण बनाता है। पादप कोशिका में यह मुड़ी हुई पुटिका के रूप में दिखाई देती है, जिन्हें डिक्टियोसोम (dictyosomes) कहते हैं। थैलियों के सिरे पर छोटी-छोटी थैलीनुमा पुटिकाएँ (vesicles) पायी जाती हैं। यह लाल रुधिर कणिकाओं एवं प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में अनुपस्थित होती हैं।
गॉल्जी उपकरण के कार्य (Function of Golgi Complex)
◆ यह अन्तः प्रद्रव्यी जालिका में बने पदार्थों, जैसे प्रोटीन, वसा आदि को पैक करती है।
◆ यह पैक किए हुए पदार्थ को कोशिका के अन्दर तथा बाहर करती है।
◆ कुछ परिस्थितियों में यह सामान्य शक्कर से जटिल शक्कर भी बनाती है।
◆ यह लाइसोसोम भी बनाती है।
◆ कोशिका विभाजन के समय यह कोशिका प्लेट बनाने में भी सहायता करती है।
(c) लाइसोसोम (Lysosomes)
यह 1955 में डी ड्यूव द्वारा खोजी गई थी। लाइसोसोम को क्योंकि यह कोशिकीय उपापचय में व्यवधान के कारण फटने पर अपनी ही कोशिकाओं को पाचित कर देते हैं इसलिए इसे ‘आत्महत्या की थैली/आत्मघाती थैली’ भी कहते हैं। लाइसोसोम में झिल्ली से घिरी संरचना होती है, जिनमें पाचक एन्जाइम (digestive enzyme) पाए जाते हैं, जिनका निर्माण खुरदरी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (RER) से होता है। यह कोशिका के टूटे-फूटे भागों व अपशिष्ट पदार्थों (waste substances) को पाचित करके कोशिका को साफ करती है; उदाहरण बैक्टीरिया, पुराने अंगक।
लाइसोसोम के कार्य (Functions of Lysosomes)
◆ लाइसोसोम द्वारा अन्तः व बाह्य कोशिकीय पाचन होता है अर्थात् अन्तः कोशिकीय पाचन में यह अन्तःपाचन द्वारा अपना भोजन तथा बाह्य कोशिकीय पाचन में यह बाहरी वातावरण में पाचक रस (digestive juice) स्रावित करता है।
◆ यह बेकार कोशिकाओं को बाहर निकालता है तथा उन्हें नई कोशिकाओं से बदलता है अर्थात् यह मृत कोशिकाओं को तोड़ता है।
◆ बाहरी पदार्थ जैसे विषाणु तथा जीवाणु को पाचित कर कोशिका की रक्षा करती है।
(d) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)
इसकी खोज 1880 में रिचर्ड आल्टमैन द्वारा की गई थी तथा बेन्ड़ा द्वारा इसे “बायोब्लास्ट” कहा था। इसे कोशिका का बिजलीघर (powerhouse of cell) कहा जाता है। यह दोहरी बिजली से घिरा होता है, जिसकी बाहरी झिल्ली छिद्रित होती है। माइटोकॉण्ड्रिया की दोनों झिल्लियों के बीच के स्थान को माइटोकॉण्ड्रियल गुहा कहते हैं। इसकी आन्तरिक झिल्ली में अन्दर की ओर अंगुली जैसी संरचनाएँ निकली होती हैं, जिन्हें वलय (cristae) कहते हैं। ये प्रायः जन्तु कोशिका में अधिक पाए जाते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया में अपने स्वयं के DNA व राइबोसोम होते हैं, जो अपनी प्रोटीन का निर्माण करते हैं। यह कोशिका द्वारा प्रयोग में आने वाली ऊर्जा के प्रकार अर्थात् ATP (Adenosine triphosphate) का निर्माण करती है। यह कोशिकीय श्वसन का मुख्य अंग है, जो ऊर्जा उत्पन्न करता है।
यह वृद्धि, कोशिका विभाजन व कोशिका मृत्यु (apoptosis) जैसे अन्य कार्यों में भी सम्मिलित होता है। लेकिन माइटोकॉण्ड्रिया पूर्णतः स्वतन्त्र नहीं है क्योंकि इसकी कार्यिकी व संरचना केन्द्रक द्वारा तथा कोशिकाद्रव्य द्वारा संचालित होती है। अतः इसे अर्द्धस्वयात् (semiautonomous organelle) कोशिकांग कहते हैं।
माइटोकॉण्ड्रिया के कार्य (Functions of Mitochondria)
◆ यह कोशिकीय श्वसन (cellular respiration) करता है। यह ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है। शरीर नए रासायनिक यौगिकों को बनाने तथा यान्त्रिक कार्य करने के लिए इस ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
◆ यह जरूरत पड़ने पर कैल्शियम का संचय व स्रावण करता है।
(e) लवक (Plastids)
‘लवक’ शब्द ई. हेकल ने 1966 में दिया था। यह पादप व शैवाल में पाया जाने वाला बड़ा कोशिकांग है। यह केवल पादप कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं। लवक दोहरी झिल्ली से घिरे होते हैं, जिसके अन्दर एक तरल पदार्थ पाया जाता है। इसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं। इनमें स्टार्च, तेल तथा प्रोटीन पदार्थ संचित होते हैं। ये अपनी DNA तथा 70S प्रकार का राइबोसोम रखते हैं।
इनमें पाए जाने वाले रंजकों के आधार पर ये तीन प्रकार के होते हैं
(f) राइबोसोम (Ribosomes)
ये कणिकामय संरचनाएँ होती हैं, जिन्हें जॉर्ज पेलेड (1953) ने इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में सर्वप्रथम देखा। यह प्रोटीन एवं RNA की बनी होती है। ये किसी झिल्ली द्वारा ढकी नही रहती है। ये सबसे छोटे कोशिकांग हैं, जिन्हें पेलेड से पहले माइक्रोसोम कहा जाता था। यूकैरियोटिक कोशिका में 80S प्रकार तथा प्रोकैरियोटिक कोशिका में 705 प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं।
इनका मुख्य कार्य प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेना है। ये mRNA से प्रोटीन बनाने में सहायता करते हैं। अतः इन्हें कोशिका की प्रोटीन फैक्ट्री भी कहते हैं।
(g) तारककाय (Centrosomes )
इनकी खोज प्रथम बार सन् 1888 में टी बोवेरी ने की थी। यह एक बेलनाकार छोटी संरचना होती है, जो केवल जन्तु कोशिका में पायी जाती है। इसमें तारककेन्द्र (centriole) पाया जाता है, जिससे एस्ट्रल किरणें (astral rays ) निकलती हैं।
तारककाय के कार्य (Functions of Centrosomes)
◆ यह कोशिका विभाजन में सहायता करता है।
◆ इससे निकली एस्ट्रल किरणें, गुणसूत्र से जुड़कर उसको अपनी ओर खींचती हैं, जिससे गुणसूत्र दो भागों में बँट जाते हैं।
(h) रसधानियाँ (Vacuoles)
रसधानियाँ झिल्ली युक्त कोशिकांग हैं, जो जन्तु कवक, प्रोटिस्टा, जीवाणु व पादप कोशिकाओं में पायी जाती हैं परन्तु पादप कोशिका में कम संख्या में तथा बड़े आकार की रसधानियाँ पायी जाती हैं। ये झिल्ली द्वारा घिरी रहती हैं, जिसे टोनोप्लास्ट (tonoplast) कहते हैं।
रसधानियों में कोशिका रस भरा होता है, जो कोशिका को स्फीति तथा कठोरता देता है। कोशिका रस में खनिज व कुछ कार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं, जिन्हें कोशिका निगल जाती है। उदाहरण अमीबा । रिक्तिका मुख्यतया कई झिल्ली गोलकों से मिलने से बनती हैं।
कोशिकांग की कोई आधारभूत आकार व आकृति नहीं होती अपितु कोशिका की जरूरत के अनुसार बदलती रहती है। ये सामान्यतया पादपों में बड़ी (केन्द्रक के पास) होती हैं, जो कोशिका को स्फिीति देती है। ये जन्तुओं में छोटे आकार की होती हैं ।
कुछ एककोशिकीय जीवों में विशिष्ट रिक्तिका अतिरिक्त जल व अपशिष्ट को कोशिका से बाहर निकालती है।
रस रिक्तिका (Sap Vacuoles) यह तरल भरी रिक्तिका होती है, जो कोशिका द्रव्य ‘टोनोप्लास्ट’ नामक अर्धपारग्मय झिल्ली से पृथक रहती है ।
गैस रिक्तिका (Gas Vacuoles) ये गैसों का संग्रह करके कोशिका को हल्कापन, यान्त्रिक सहारा व हानिकारक किरणों से सुरक्षा देती हैं।
रसधानी के कार्य (Functions of Vacuoles)
◆ ये ठोस व तरल पदार्थों की संग्राहक थैलियाँ हैं
◆ इनमें अमीनो अम्ल, शर्करा, कार्बनिक अम्ल व प्रोटीन भरे होते हैं, जो पौधों के लिए आवश्यक हैं।
◆ ये कोशिका को पूर्ण रूप से फूला हुआ रखती है।
◆ अमीबा जैसे एककोशिकीय जीवों में विशिष्ट रसधानियाँ अतिरिक्त जल तथा कुछ अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का कार्य भी करती हैं।
(iii) निष्क्रिय पदार्थ (Inactive Inclusions)
कोशिका में कुछ अजीवित पदार्थ भी पाए जाते हैं, जो झिल्लीयुक्त नहीं होते तथा उपापचयी क्रियाओं को भी नहीं करते हैं। उदाहरण ग्लाइकोजन वसा क्रिस्टल तथा रंजक
कोशिका के प्रकार (Types of Cells)
संरचना के आधार पर कोशिका को दो प्रकार की कोशिकाओं में बाँटा गया है
(i) प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ (Prokaryotic Cells)
इन जीवों में कोशिका में केन्द्रक स्पष्ट रूप से नहीं पाया जाता है, इसका शाब्दिक अर्थ पूर्व केन्द्रक है। ये सरल जीव होते हैं। इनके केन्द्रक के ऊपर केन्द्रक झिल्ली नहीं पायी जाती है तथा केवल क्रोमैटिन पदार्थ पाया जाता है। अतः इनके केन्द्रक को केन्द्रककाय (nucleoid) कहते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्य कोशिकांग भी अनुपस्थित होते हैं। उदाहरण बैक्टीरिया। उदाहरण ई. कोलाई, क्लॉस्ट्रीडियम व नीले-हरे शैवाल, आदि ।
(ii) यूकैरियोटिक कोशिकाएँ (Eukaryotic Cells)
कोशिकाएँ जैसे प्याज कोशिका व गाल की कोशिका पूर्ण रूप से विकसित केन्द्रक तथा झिल्लीयुक्त कोशिकांग रखती हैं। ये समस्त जन्तु, पादप तथा यीस्ट में पायी जाती हैं। ये प्रोकैरियोटिक कोशिका से अधिक जटिल होती हैं। इनका केन्द्रक दोहरी झिल्ली द्वारा कोशिकाद्रव्य से पृथक रहता है। ये जन्तु कोशिका प्रोटिस्टा, कवक, पादप में पायी जाती हैं। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाएँ एक समान नहीं होती हैं। पादप में कोशिका भित्ति, जन्तु कोशिका से अतिरिक्त होती हैं।
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