गुर्जर प्रतिहार वंश : राजस्थान
गुर्जर प्रतिहार वंश : राजस्थान
गुर्जर प्रतिहार अपने आप को राम के भाई लक्ष्मण के वंशज मानते हैं। विदेशी इतिहासकार अलमसूदी (915-18) ने गुर्जरों को अलगूजर / अलगुर्जा कहा है। पुलकेशियन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में सर्वप्रथम गुर्जर जाति का उल्लेख हुआ है।
चन्द्रबरदाई के पृथ्वीराज रासों के अनुसार वशिष्ठ मुनि के अग्नि कुण्ड से सर्वप्रथम प्रतिहार का जन्म हुआ था। मुहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाएं बताई हैं। भारत के उत्तरी पश्चिम क्षेत्र अर्थात् गुर्जरात्रा क्षेत्र में निवास के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहने लगे। राठौड़ों से पहले मारवाड़ पर गुर्जर प्रतिहारों का राज था।
जोधपुर के घटियाला से संस्कृत भाषा के दो अभिलेख मिले हैं। जिसमें प्रथम अभिलेख 861 ई. का है इसमें प्रतिहार शासक कक्कुक का वर्णन है। गुर्जर प्रतिहारों का समय 8वीं से 10वीं सदी माना जाता है। गुर्जर प्रतिहारों की चार प्रमुख शाखाएं थी ।
कन्नौज के प्रतिहार
प्रतिहारों की सबसे प्राचीन शाखा मण्डोर थी। जिसका संस्थापक हरिशचन्द्र को माना जाता है। नागभट्ट प्रथम को प्रतिहारों का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
नागभट्ट प्रथम (730-60)
नागभट्ट प्रथम ने 730 ई. में चावड़ो से भीनमाल छीनकर अपनी नई राजधानी बनाया। उज्जैन पर अधिकार कर इसने प्रतिहारों की नई शाखा स्थापित की। ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट ने अरब देश की मलेच्छ जाति को हराया था। पुलिकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है। हांसोट अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने भड़ौच अरब शासक जुनैद से छीनकर भतृवड को दिया। राष्ट्रकुट शासक दन्तीदुर्ग ने नागभट्ट प्रथम को हिरण्यगर्भ यज्ञ में द्वारपाल बनाने की कोशिश की। यह जानकारी अमोघवर्ष प्रथम के संजन ताम्रलेख में मिलती है जो 871 ई. का है। नागभट्ट प्रथम को मलेच्छ नाशक, इन्द्र के घमण्ड का नाशक, नारायण की मूर्ति, क्षत्रिय ब्राह्मण, नागवलोक कहा जाता है।
ककुस्थ (760-83)
ककुस्थ ने मण्डौर में विजयस्तम्भ व विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया जो राजस्थान का दूसरा प्राचीन स्तम्भ है।
नोट :- राजस्थान का प्रथम विजयस्तम्भ भरतपुर में में है, जिसका निर्माण समुद्रगुप्त ने करवाया था। राजस्थान क प्रसिद्ध विजय स्तम्भ चितौड़गढ़दुर्ग में है जिसका निर्माण राण कुम्भा ने करवाया था। तनोट माता (जैसलमेर) के मन्दिर सामने दो विजयस्तम्भ हैं जिसका निर्माण 1965 की पाकिस्तान विजय पर करवाया था ।
वत्सराज (783-95)
यह उज्जैन के शासक देवराज व भूमिका देवी का पुत्र था। कुवलयमाला के लेखक उद्योतन सूरी इनके दरबार थे। इसने जालौर / जाबालीपुर के प्रतिहार वंश की नींव डाली जिसकी राजधानी भीनमाल थी।
नोट : ह्वेनसांग ने भीनमाल को पीलोभोलो कहा है।
वत्सराज को रणहस्तीन व जयवराह की उपाधि प्राप्त थी। यह शैव धर्म को मानता था । पृथ्वीराज विजय के रचनाकार जयानक ने दुलर्भराज चौहान को वत्सराज का सामन्त माना है। वत्सराज ने औसियां में महावीर स्वामी का मन्दिर बनाया जो पश्चिमी भारत का प्राचीनतम मन्दिर माना जाता है।
वत्सराज ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष को शुरू किया था। इसने बंगाल के पालवंशी शासक धर्मपाल का पराजित किया लेकिन स्वयं राष्ट्रकुट शासक ध्रुव से हार गया।
कन्नौज का त्रिपक्षीय संघर्ष :- कन्नौज का यह सघर्ष 752 ई. में कन्नौज के शासक यशोवर्धन की मृत्यु के बाद शुरू हुआ था। यशोवर्धन वर्धन वंश का शासक था। कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष की जानकारी अमोघवर्ष प्रथम के सज्जन ताम्रपत्र, राघनपुर अभिलेख, वाणी अभिलेख से मिलती है। यह संघर्ष कन्नौज पर अधिकार को लेकर बंगाल के पाल पश्चिम के प्रतिहार व दक्षिण के राष्ट्रकुटों के बीच 783 से 915 ई. में हुआ था। यह संघर्ष 6 चरणों में हुआ था
प्रथम चरण :- प्रतिहार शासक वत्सराज ने कन्नौज पर अधिकार कर अपने अधीन इन्द्रायुद्ध को कन्नौज का शासक बनाया। पाल शासक धर्मपाल ने वत्सराज पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुआ। राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वत्सराज को हरा दिया।
द्वितीय चरण :- राष्ट्रकूट शासक ध्रुव जब वापस दक्षिणी भारत लौट गया तब पाल शासक धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण कर अपने अधीन चक्रायुद्ध को कन्नौज का शासक बनाया । –
तीसरा चरण :- प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय ने धर्मपाल को पराजित कर कन्नौज का इन्द्रायुद्ध को पुनः बना दिया। राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने धर्मपाल व नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
चौथा चरण :- इस समय कभी प्रतिहारों की तो कभी राष्ट्रकुटों को सफलता मिली।
पांचवा चरण :- इस समय प्रतिहार शासक रामभद्र अयोग्य था तथा राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष अपने ही राज्य की समस्या में उलझ गया जिसका फायदा पाल शासक देवपाल ने उठाकर उत्तरी भारत में विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
छठा चरण :- प्रतिहार शासक मिहीरभोज व महेन्द्रपाल राष्ट्रकूटों को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
नागभट्ट द्वितीय (795-833)
यह वत्सराज व सुन्दर देवी का पुत्र था इसे परमभट्टारक व महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त थी। इसने कन्नौज के शासक धर्मपाल के सेनापति चक्रायुद्ध को हराकर कन्नौज पर अधिकार किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनायी। इसने मुगेर (बिहार) के युद्ध में बंगाल शासक ६ शर्मपाल को भी पराजित कर दिया। राष्ट्रकूट शासक गोविन्द (तृतीय ने 806 ई0 में नागभट्ट को पराजित कर दिया। नागभट्ट द्वितीय की विजयों का उल्लेख ग्वालियर प्रशस्ति में मिलता है। जिसमें नागभट्ट की दानशीलता के कारण इसे कर्ण की उपाधि दी गयी है। चन्द्रप्रभा सूरी के प्रभावक चरित ग्रंथ के अनुसार 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा नदी में जल समाधि ले ली। नागभट्ट ने बुचकेला (जोधपुर) में शिव व विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया। नागभट्ट द्वितीय प्रथम शासक था जिसने अरब आक्रमणों को असफल किया। चौहान शासक गुवक प्रथम नागभट्ट को सामन्त माना जाता है (गुवक प्रथम के सामन्त हटड ने जीणमाता मंदिर का निर्माण करवाया था ।) ।
रामभद्र (833-836)
यह नागभट्ट द्वितीय व रानी इष्टा देवी का पुत्र था । रामभद्र की शादी अप्पा देवी से हुई जिनसे राजाभोज का जन्म हुआ था। पाल शासक देवपाल ने रामभद्र को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया ।
मिहिर भोज / भोज प्रथम (836-889)
इसे आदिवराह (ग्वालियर अभिलेख में), सार्वभौम, मालवाचक्रवती, श्रीमदआदिवराह (सिक्कों पर), प्रभास पाटन (दौलतपुर अभिलेख में) व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। इसने अपने पिता रामभद्र की हत्या कर राज्य प्राप्त किया था। जिस कारण इसे प्रतिहारों का पितृहन्ता कहा जाता है। यह वैष्णों अनुयायी था। इसने द्रुम सिक्के का प्रचलन किया । मिहिर भोज प्रतिहारों का सबसे शक्तिशाली शासक था तथा इसका समय प्रतिहार वंश का स्वर्णकाल था ।
मिहिर भोज के समय 851 ई. में अरबयात्री सुलेमान भारत आया था। जिसने अपनी पुस्तक किताब-उल- सिंघ 1 – वल – हिंद में मिहिर भोज को अरबों का शत्रु बताया है। सुलेमान के अनुसार मिहिर भोज अपने विद्वान कवियों के एक- एक श्लोक पर सोने की मुद्राएँ प्रदान करता था । सुलेमान ने मिहिर भोज के बारे में लिखा कि वह इस्लाम का शत्रु था।
सुलेमान व ग्वालियर शिलालेख के अनुसार मिहिर भोज ने बंगाल के पाल शासक देवपाल व विग्रहपाल तथा राष्ट्रकूटशासक ध्रुव तथा कालिन्जर शासक जयशक्ति को संयुक्त रूप से नर्मदा नदी के किनारे हराया तथा कन्नौज पर अन्तिम रूप से अधिकार कर लिया।
राजस्थान के प्रतिहार, चौहान, गुहिल, कलचुरी, चैदी शासक मिहिर भोज के सामन्त थे । मिहिर भोज ने विष्णु के वराह अवतार के सिक्के चलाये। बैग्रमा (उत्तरप्रदेश) अभिलेख में मिहिर भोज को सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने वाला बताया है। दण्डपाशिक मिहिर भोज के शासनकाल में पुलिस अधिकारी था। जिसका उल्लेख 893 ई. के प्रतिहार अभिलेख से मिलता है।
महेन्द्रपाल प्रथम (889-908)
यह मिहिर भोज की पत्नी चन्द्रभट्टारिका का पुत्र था। इसे महाराजाधिराज, परमभट्टारक, रघुकुल चूडामणी, महेन्द्रायुध, निर्भय नरेश, महिषपाल, परमेश्वर की उपाधि प्राप्त थी। उत्तरभारत के राजनैतिक इतिहास के रचनाकार बी. एन. पाठक ने महेन्द्रपाल को भारत का अन्तिम महान हिन्दू सम्राट महेन्द्रपाल प्रथम को माना है। काठियावाड़, झांसी, अवध बिहार सरिफ, गया, हजारी बाग, पहाड़पुर (बंगाल) से अभिलेख मिले हैं जिनसे महेन्द्रपाल प्रथम की जानकारी मिलती है।
राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम का दरबारी विद्वान व गुरू था। राजशेखर ने अपने ग्रंथ बाल भारत में महेन्द्रपाल को रघुग्रामणी तथा विद्धशालभंजिका में रघुकुलतिलक कहा है। कर्पूरमंजरी, काव्य मीमांसा, बाल रामायण, हरविलास, बाल भारत, प्रचण्ड पाण्डव, भुवनकोश आदि राजशेखर के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। राजशेखर की पत्नी अवन्ति सुन्दरी थी जिनके कहने पर राजशेखर ने कर्पूरमंजरी की रचना की थी।
भोज द्वितीय (908-913)
यह महेन्द्रपाल प्रथम की पत्नी देहनागा देवी का पुत्र था। इसे आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी। इसे महिपाल ने हरा दिया।
महिपाल प्रथम (913-943) 361
यह महेन्द्रपाल प्रथम की रानी महिदेवी का पुत्र था। इसने अपने भाई भोज द्वितीय को हराकर राज्य प्राप्त किया था। जिसमें महिपाल की सहायता चन्देल शासक हर्षदेव ने की थी। विनायकपाल व हेरभपाल महिपाल की उपाधि थी। राजशेखर ने महिपाल को रघु वंश मुक्तामणि, आर्यावृत का महाराजाधिराज के नाम से उपाधि दी। इसके समय अरबयात्री अलमसूदी (915 – 18 ) भारत आया था। अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहारों को अलगुर्जर व गुर्जर राजा को बोरा के नाम से पुकारा है। महिपाल प्रथम के समय गुर्जर प्रतिहारों का पतन शुरू हो गया था। कवि पम्प के ग्रंथ पम्प भारत के अनुसार महिपाल प्रथम को राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने हरा दिया तथा कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
महेन्द्रपाल द्वितीय (943-948)
यह महिपाल प्रथम व प्रज्ञाधना का पुत्र था। इसके समय गुर्जर प्रतिहारों की कई शाखाएं हुई। प्रतापगढ़ अभिलेख के अनुसार महेन्द्रपाल द्वितीय ने दशपुर (मंदसौर मध्यप्रदेश) गांव दान में दिया था।
देवपाल (948-949)
इसके समय चन्देलों का स्वतंत्र राज्य स्थापित हुआ।
विनायकपाल द्वितीय (953-954)
महिपाल द्वितीय (955)
विजयपाल द्वितीय (960)
इसके समय गुजरात में चालुक्य वंश की स्थापना हुई।
राज्यपाल – इसके समय गजनी शासक महमूद गजनवी का 1018 ई. में कन्नौज पर आक्रमण हुआ तथा राज्यपाल कन्नौज छोड़कर भाग गया तथा महमूद गजनवी ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया। महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 आक्रमण किये जिसमें कन्नौज पर किया गया आक्रमण 12वां था। चन्देल शासक विधाधर ने राजाओं का संगठन | बनाकर कायर शासक राज्यपाल की हत्या कर दी।
त्रिलोचनपाल – 1019 ई. में महमूद गजनवी ने इसको । हरा दिया।
यशपाल – यह प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक माना । जाता है। जो 1036 ई. तक राज करता है। 1093 में चन्द्रदेव गहढ़वाल ने प्रतिहारों से कन्नौज अपने अधिकार में ले लिया तथा गहढ़वाल वंश की स्थापना की।
मण्डौर के प्रतिहार
इसे गुर्जर प्रतिहार वंश व मण्डौर के प्रतिहार वंश का संस्थापक / आदिपुरुष / मूलपुरूष कहते है। इसके दो रानियां : थी जिसमें क्षत्रिय रानी का नाम भद्रा था जिसके 4 पुत्र भोगभट्ट, रजिल, कदक व दह थे। इन चारों ने माण्डव्यपुर को जीता। रजिल के पोते नागभट्ट प्रथम ने मण्डौर को राजधानी बनाया, जोधपुर शिलालेखों के अनुसार मारवाड़ के प्रतिहार वंश का उदय 6ठीं शताब्दी के दूसरे चरण में हो चुका था ।
रजिल – यह 560 ई. में मण्डौर का शासक बना तथा इसके बाद ही प्रतिहारों की वंशावली प्रारम्भ हुई। इसने । राजसूय यज्ञ किया था।
नरभट्ट – ब्राह्मणों वे गुरूओं का संरक्षणकर्ता होने के कारण इसे पिल्लीपणी की उपाधि मिली। चीनी यात्री हवेनसांग ने अपनी पुस्तक सी.यू. की. में नरभट्ट के साहसी कार्यों के कारण पेल्लोपेल्ली नाम दिया।
नागभट्ट प्रथम – इसने मेड़ता जीतकर अपनी राजध ानी बनाया। इतिहास में इसे नाहड़ के नाम से जाना जाता है। नागभट्ट प्रथम की रानी जज्जिका देवी से भोज व तात नामक दो पुत्र हुए। –
भोज – भोज के बड़े भाई तात ने आध्यात्मिकता धारण कर ली ।
शीलुक – इसने सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर (जोधपुर) का निर्माण करवाया। शीलुक ने जैसलमेर के आस पास स्थित वल्लमण्डल के शासक देवराज भाटी को हराकर अधिकार कर लिया ।
झोट – झोट अच्छा वीणा वादक था । झोट ने गंगा नदी में जलसमाधि ले ली। –
कक्क – कक्क कन्नौज शासक नागभट्ट द्वितीय का सामन्त था। इसने नागभट्ट द्वितीय की बंगाल के शासक र्मपाल के विरुद्ध सहायता की थी। कक्क ने पद्मनी से विवाह किया जो भाटी वंश की राजकुमारी थी। जिसके बाजक नामक पुत्र हुआ। कक्क की रानी दुर्लभ देवी से कक्कुक का जन्म हुआ। कक्क ने मुंगेर (बिहार) के गौड़ शासकों के साथ युद्ध किया ।
बाउक – इसने मण्डौर के विष्णु मन्दिर में 837 ई. में प्रतिहार वंश की प्रशस्ती लगवाई।
कक्कुक – इसने घटियाला (जोधपुर) में 861 ई. में दो शिलालेख लगवाये जिनमें राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा का उल्लेख हुआ है। इस अभिलेख के अनुसार राणुका की मृत्यु पर उसकी पत्नी सम्पल देवी सती हुई थी जो भारत में सती प्रथा का प्रथम प्रमाण है।
नोट : भारत में सती प्रथा का प्रथम प्रमाण एरण अभिलेख (मध्यप्रदेश) में हुआ है जो 510 ई. का है। इस अभिलेख के अनुसार भानुगुप्त के समय हूण जाति का आक्रमण हुआ जिसमें भानुगुप्त के सामन्त गोपराज की मृत्यु हो गई तथा गोपराज की पत्नी सीता सती हो गई जो प्रथम प्रमाण है।