किसान विद्रोहों के लिए चम्पारण सत्याग्रह के महत्व को स्पष्ट कीजिए |
किसान विद्रोहों के लिए चम्पारण सत्याग्रह के महत्व को स्पष्ट कीजिए |
(56-59वीं BPSC/2016)
अथवा
चम्पारण सत्याग्रह अन्य किसान आंदोलनों का पथ-प्रदर्शक था। इसे स्पष्ट करते हुए उन बिन्दुओं की चर्चा करें।
उत्तर– 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं शताब्दी के पूवार्द्ध में अपनी दयनीय स्थिति से क्षुब्ध होकर किसानों ने अनेकों बार विद्रोह एवं आंदोलन किए। इनमें बिहार के चम्पारण सत्याग्रह का स्थान सर्वोपरि है। कई मामलों में चम्पारण सत्याग्रह अन्य किसान आंदोलनों के लिए पथ-प्रदर्शक बना ।
चम्पारण सत्याग्रह में कई बातें पहली बार हुई, जैसे:
1. गांधीजी द्वारा भारत में पहला सत्याग्रह का प्रयोग |
2. किसान समस्या को लेकर किए गए आंदोलनों में राष्ट्रीय स्तर के नेता की भागीदारी ।
3. किसान मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाना आदि।
अगर चम्पारण सत्याग्रह को आंदोलन के विभिन्न तत्वों को भी देखा जाय, तो कई महत्वपूर्ण बिन्दु उभर कर आते हैं। जैसे:
1. उद्देश्य के स्तर पर स्पष्टता – इस आंदोलन में किसानों का शोषण से मुक्ति के मुद्दे को बिना किसी लाग-लपेट के उठाया गया। इससे प्रेरित होकर आगे के आंदोलन में उद्देश्यों की स्पष्टता दिखी। उदाहरण के लिए, असहयोग आंदोलन में स्वराज की प्राप्ति, सविनय अवज्ञा आंदोलन में पूर्ण स्वराज की मांग, भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों भारत छोड़ो आदि ।
2. इसने नेतृत्व के स्तर पर गांधीजी की व्यापक स्वीकार्यता को सुनिश्चित किया। एक लम्बे समय से नरमपंथ एवं गरमपंथ का जो संघर्ष चल रहा था, वह गांधीजी के आने के बाद समाप्त होता दिखता है। शांतिवादी तरीकों में गांधीजी जहां नरमपंथी थे, वहीं कानून तोड़ने की निर्भीकता में गरमपंथी भी।
3. संगठन के स्तर पर कांग्रेस ने एक प्रकार से पहली बार किसान मुद्दों के प्रति स्पष्ट रूख अपनाया, क्योंकि लखनऊ अधिवेशन में ब्रजकिशोर प्रसाद के प्रस्ताव पर सहमति बनी।
4. विचारधारा के स्तर पर सत्याग्रह एवं अहिंसा के सफल प्रयोग ने आगे के आंदोलनों के लिए आधार तैयार किया।
5. जन-सहभागिता की दृष्टि से गांधी के साथ जुड़े कई नेताओं ने आगे चलकर विभिन्न आंदोलनों में अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। बिहारी जैसे समाचार पत्र, पत्रकारिता के माध्यम से इस सत्याग्रह का प्रचार किया।
6. उपलब्धि की दृष्टि से यद्यपि एक-चौथाई लगान को ही कम किया गया, फिर भी, तत्कालीन संदर्भों में यह बड़ी बात थी। इस सत्याग्रह की सफलता ने आगे के किसान आंदोलनों, जैसे-खेड़ा, बारदोली आदि के लिए उत्साह एवं प्रेरणा का संचार किया।
इस आंदोलन में गांधीजी की लोकप्रियता से चिंतित होकर, उन्हें गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया लेकिन शीघ्र ही उन्हें छोड़ दिया गया। किसानों की शिकायतों की जांच करने के लिए सरकार ने जून, 1917 में एक जांच समिति नियुक्त की। गांधीजी को भी इसका एक सदस्य बनाया गया। समिति की सिफारिशों के आधार पर चम्पारण कृषि अधिनियम बना। इसके अनुसार तिनकठिया प्रणाली समाप्त कर दी गई। किसानों को इससे बहुत बड़ी राहत मिली। किसानों में नई चेतना जागी और वे भी राष्ट्रीय आंदोलन को अपना समर्थन देने लगे।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि चम्पारण सत्याग्रह बाद में होने वाले कई गांधीवादी आंदोलनों का श्रीगणेश था जिसका प्रतिफल बाद के कई किसान आन्दोलनों में देखने को मिला।
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