सन् 1857 के विद्रोह में बिहार के योगदान की विवेचना कीजिए।

सन् 1857 के विद्रोह में बिहार के योगदान की विवेचना कीजिए।

( 63वीं BPSC / 2019 )
अथवा
1857 के विद्रोह के कारणों को उद्घाटित करते हुए बिहार में बाबू कुंवर सिंह का नेतृत्व और विभिन्न क्षेत्रों में अनेक स्वतंत्रता सेनायििों द्वारा चलाए गए आंदोलनों की चर्चा करते हुए उनके योगदान का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – बिहार सदियों से विद्रोही क्रांतिवीरों की सरजमीन रही है। इस सरजमीन ने जालिम हुक्मरानों को हमेशा ललकारा है और उन्हें जमींदोज किया है। जब मुगल अपने शिखर पर थे तब इसी बिहार के लाल ‘शेरशाह सूरी’ ने मुगलों के मंसूबों को नाकाम किया। फिर जब अंग्रेज आए तब बिहारवंशियों ने उनके खिलाफ बगावत और क्रांति का बिगुल फूंका।
1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और राष्ट्रीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु आगे चलकर इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अंत भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया।
1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर कदम बढ़ाया। मंगल पांडे की बहादुरी ने सारे देश में विप्लव मचा दिया। बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत कर दी। मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी। ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने बिहार में भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया।
27 अप्रैल, 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा। जब अंग्रेजी फौज ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में घमासान लड़ाई हुई। बहादुर स्वतंत्रता सेनानी जगदीशपुर की ओर बढ़ गए। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दया। बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और बाबू कुंवर सिंह रामगढ़ के बहादुर सिपाहियों के साथ बांदा, रीवा, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर में विप्लव का कहर ढाते रहे।
जब भारत ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई लड़ी तो कई प्रांतों में इसका नेतृत्व आरा के बाबू वीर कुँवर सिंह ने किया था। उस वक्त उनकी उम्र 80 वर्ष की थी। उन्होंने अपने नेतृत्व कौशल से अंग्रेजों की ताकतवर सेना को भी कई मौकों पर मात दी थी और जब 1857 का यह आंदोलन देश के अन्य प्रांतों में ठंडा पड़ गया तब भी वह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे।
बिहार के एक प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी पीर अली खान जो एक गरीब बुक बाइंडर थे, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के बीच मत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएं, पुस्तिकाएं और खुफिया संदेशों को गुप्त रूप से वितरित करने का काम किया था, जिसकी सजा में उन्हें तत्कालीन पटना के कमिशनर विलियम टेलर द्वारा सार्वजनिक स्थान पर फांसी दी गई थी। पीर अली एक स्वतंत्रता सेनाथी थे जिन्हें अंग्रेजों से लड़ने के कारण उन्हें फांसी दे दी गई। पीर अली भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बिहार चैप्टर के नायकों में से एक थे। 1857 की क्रांति के वक्त बिहार में घूम-घूमकर लोगों में आजादी और संघर्ष का जज्बा पैदा करने और उन्हें संगठित करने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। इनके अलावा नवादा के अंतीपुर के रहनेवाले राजा मेंहदी अली खां ने गुप्त संगठन के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष चलाया जिसकी वजह से उनका नाम विद्रोहियों के नाम की सूची में पहले स्थान पर था । वारिस अली को पटना में मुसलमानों के साथ राजद्रोहात्मक पत्र व्यवहार के कारण अंग्रेजों ने इन्हें 23 जून, 1857 को गिरफ्तार किया और बाद में फांसी दे दी।
वारिस अली की गिरफ्तारी के बाद अली करीम पर सरकार के खिलाफ बगावत का आरोप लगा । अंग्रेजी सरकार ने इन पर दो हजार रुपये इनाम रखा था। जवाहिर रजवार ने नालंदा व नवादा में 1857 में छापामार युद्ध शुरू किया था। उसी समय जब देवघर के विद्रोहियों का जत्था नवादा होकर गुजरा, तो इन्होंने उनका साथ देकर बगावत का झंडा बुलंद किया।
1857 के विद्रोह के दौरान हैदर अली ने राजगीर को कब्जे में ले लिया था। वे नालंदा के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी। देवघर के रोहिणि में 12 जून, 1857 के विरोध के महानायक सलामत अली-अमानत अली थे। इन्होंने मेजर मैकडोनाल्ड व कई अधिकारियों पर हमला किया था। उधर गया के डुमरी वाले मौलवी अली करीम खपुर में अपने क्रांतिकारियों व सहयोगियों का नेतृत्व कर रहे थे । 11 जून से पहले तक वो बाबू अमर सिंह के साथ लगातार अंग्रेजों से जंग कर रहे थे। जब अमर सिंह बिहार लौट रहे थे उस समय अमर सिंह के साथ मिल कर इन्होंने रुपसागर कैम्प पर हमला किया, ठीक उसी समय अली करीम के 400 सिपाही गाजीपुर में अंग्रेजो से लड़ रहे थे।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे मिलाकर लाखों लोगों ने जनभागीदारी और अपनी कुर्बानी देकर अहम योगदान दिया था।
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