ज्ञान की विभिन्न कसौटियों को विस्तार से समझाइये ।
ज्ञान की विभिन्न कसौटियों को विस्तार से समझाइये ।
उत्तर— ज्ञान की कसौटियाँ–ज्ञान को परखने की प्रमुख कसौटियाँ निम्नलिखित हैं—
(1) निश्चितता–जो अनुभव हम प्राप्त करते हैं, यदि वे अनिश्चित अर्थात् रूप, सीमा, अवधि व स्थिति के अनुसार न हों तो वे ज्ञान का आधार या रूप नहीं हो सकते; जैसे—अन्धेरे में किसी सफेद वस्तु का दिखाई देना। इस उदाहरण में सफेद वस्तु रूप, सीमा, अवधि व स्थिति के अनुसार अनिश्चित है, किन्तु अनुभव में आ रही है किन्तु ऐसा अनुभव ज्ञान नहीं कहा जा सकता। यह तभी कहा जाएगा जब वह निश्चितता की शर्त पूरी कर ले । अर्थात् अंधेरे में सफेद दिखाई देने वाली वस्तु ‘गाय’ है, अमुक आकार-प्रकार की है, अमुक स्थिति में है। वह इतने समय से वहीं है, आदि-आदि बातों का हमें अनुभव हो जाए तो निश्चितता की कसौटी पूरी हो गई है, यह माना जाता है ।
(2) नवीनता–ज्ञान को ज्ञान होने के लिए उसमें नवीनता होना आवश्यक है। नवीनता चाहे तथ्य को ही, सूचना की ही, दृष्टिकोण की हो या अनुभव की हो । नवीनता के बिना उसे ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। उसे आवृत्ति मात्र कहा जाएगा। एक उदाहरण से स्पष्ट करें, आप यह पूछ सकते हैं कि प्रतिदिन मंदिर जाना, रोजमर्रा के काम करना एवं सभी परिचितों से रोज मिलना क्या इनमें कोई ज्ञान नहीं होता ? तो इसका सीधा उत्तर होगा ‘नहीं’। कारण यह है कि इन सभी गतिविधियों को आप यांत्रिक शैली में करते हैं। जिस क्षण से आप उन्हें यांत्रिक शैली से न करके, भिन्न प्रकार से करेंगे और उनमें ‘नवीनता’ उत्पन्न होगी, वह अनुभव ‘ज्ञान’ बन जाएगा।
(3) अबाधितता–इसका अर्थ है कि एक प्रकार के ज्ञान का किसी अन्य प्रकार के ज्ञान से खण्डन नहीं होना चाहिए। आपने आँख से जो देखा, कानों से जो सुना, जीभ से जो चखा और त्वचा से जो अनुभव किया, इन सब में सामंजस्य होना चाहिए। अग्नि का स्पर्श हो जाने पर यदि शीतलता का अनुभव हो तो इसे ‘अग्नि का ज्ञान’ नहीं कहा जा सकता। पांच ज्ञानेन्द्रियों के अनुभव को अबाधितता के अतिरिक्त पूर्व एवं वर्तमान ज्ञान में भी अबाधित होना चाहिए। यदि आप विज्ञान द्वारा प्रस्तुत पूर्वज्ञान के इतिहास को देखें तो आपको पता चलेगा कि उसमें से कई मान्यताओं और तथ्यों का बाद में की गई खोज एवं अनुसंधान के आधार पर खण्डन हो गया है। अतः विज्ञान के क्षेत्र में जो ज्ञान अभी तक खण्डित नहीं हुआ है, वही वास्तविक ज्ञान है। संभवतया इसलिए सभी विषयों में निरन्तर नई खोज एवं स्थापनाएँ होती रहती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि ज्ञान स्थिर नहीं है अपितु गतिशील है। अबाधितता की कसौटी ज्ञान के वास्तविक स्वरूप के लिए महत्त्वपूर्ण है, जिसकी पूर्ति किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि ज्ञान की पुनरावृत्ति या उसकी स्मृति को ज्ञान नहीं माना गया है।
(4) स्पष्टता–हमें न केवल यह अनुभव होना चाहिए कि अंधेरे में दिखाई देने वाली सफेद गाय है और वह अमुक रूप, स्थिति एवं अवधि में है, अपितु यह भी अनुभव होना चाहिए कि वह अन्य से भिन्न भी है। ऊपर वाले गाय के उदाहरण में पहली कसौटी के अनुसार यद्यपि सब कुछ निश्चित है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि गाय के अतिरिक्त वहाँ जो कुछ है, गाय उससे भिन्न है जैसे गाय जहाँ स्थित है, वहाँ यदि सफेद दीवार या अन्य कोई सफेद वस्तु हुई तो, गाय के आकार-प्रकार का सही अनुभव नहीं हो सकेगा और इस गलत अनुभव के कारण इसे ज्ञान नहीं कहा जा सकेगा। आचार्य द्रोणाचार्य द्वारा कौरव-पांडवों से शिक्षाभ्यास के दौरान पूछा गया यह प्रश्न हम सभी को भली-भाँति याद होगा कि पेड़ पर बैठे पक्षी का तुम लोग क्या-क्या अंग देखते हो ? सभी ने अलग-अलग उत्तर दिए, यद्यपि वे उत्तर गलत नहीं थे। सही उत्तर केवल अर्जुन द्वारा दिया गया कि “मुझे पक्षी की आँख के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता।” इस कथन में पक्षी का पेड़ की अमुक डाली पर निश्चित रूप, अवधि एवं स्थिति में होना ‘निश्चितता’ की कसौटी को पूरा करता है, किन्तु लक्ष्य भेद के ज्ञान की दृष्टि से ‘स्पष्टता’ की कसौटी को पूरा नहीं करता है। लक्ष्य भेद का ज्ञान केवल ‘आँख’ को देखने अथवा उससे अन्य को पृथक् कर देने में निहित है। स्पष्टता का अर्थ है, किसी वस्तु का अन्य वस्तु से भिन्न रूप में अनुभव हो जाना।
(5) क्रिया साफल्य–अंतिम कसौटी क्रिया साफल्य को समझने पश्चात् ही वास्तविक ज्ञान को सही रूप में समझा जा सकता है, अर्थात् यह ज्ञान को उसकी पूर्णता तक पहुँचाती है।
क्रिया साफल्य का अर्थ है कि चारों कसौटियों पर खरा उतरने के बाद जब हम उस ज्ञान को क्रियात्मक, प्रयोगात्मक रूप दें अथवा उसके लिए कोई क्रिया करें तो उस क्रिया को ‘सफल’ होना चाहिए, अर्थात् क्रिया विशेष के करने पर उससे सम्बन्धित फल या परिणाम की प्राप्ति होनी चाहिए। उदाहरण से समझने का प्रयास करें, कहीं दूर हमें जल होने का अनुभव हुआ इसे ज्ञान बनाने के लिए हमने चारों कसौटियाँ पूरी कर ली, किन्तु जल, जब तक हमारी प्यास न बुझाए, तब तक उस जल को “प्यास बुझाने वाले जल के ज्ञान” के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कारण यह कि जो क्रिया हमने चारों कसौटियों के पूरा करने के बाद हुए ज्ञान के आधार पर की, वह सफल न हो तो इसे ज्ञान की अंतिम कसौटी, क्रिया साफल्य के आधार पर ज्ञान नहीं कहा जा सकता है, चाहे उसने पहले की चारों कसौटियाँ क्यों न पूरी कर ली हों।
आपने स्वयं अपने जीवन में और आपके परिचितों के जीवन में देखा होगा कि ‘क्रिया साफल्य’ के बिना उनका ज्ञान, उनकी गुणवत्ता अथवा परिश्रम, महत्त्व नहीं पाते। विज्ञान में भी ‘क्रिया साफल्य’ को ही प्रयोग की सत्यता माना जाता है। ज्ञान को जब सोद्देश्य क्रिया कहा गया है तो उसका आशय यह है कि उसे स्वयं के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहिए। रोगी को दी जाने वाली औषधि को तभी सही माना जायेगा जब वह रोगी की बीमारी को दूर करे । जो ऐसा न करे उसे न तो, सही औषधि कहा जाएगा और न उसे देने वाले को सही ज्ञाता । जिसे भी हम ज्ञान कहते हैं, वह वास्तव में तभी ज्ञान कहा जा सकेगा, जब वह इन सभी पाँच कसौटियों पर खरा उतरे ।
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