शिक्षण प्रतिमान से आप क्या समझते हैं ? शिक्षण प्रतिमान की उपादेयता समझाइये और पृच्छा (पूछताछ ) प्रशिक्षण प्रतिमान के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन कीजिये।

शिक्षण प्रतिमान से आप क्या समझते हैं ? शिक्षण प्रतिमान की उपादेयता समझाइये और पृच्छा (पूछताछ ) प्रशिक्षण प्रतिमान के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन कीजिये।

                                अथवा
सचमैन के पृच्छा पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान को समझाइये।
                                अथवा
सचमैन के पृच्छा प्रशिक्षण प्रतिमान को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर— शिक्षण प्रतिमानों का अर्थ एवं परिभाषाएँ– वस्तुओं का वह रूप जो अवास्तविक होते हुए भी वास्तविकता का बोध कराता है मॉडल या प्रतिमान कहलाता है। प्रतिमान शब्द आंग्ल भाषा के मॉडल का हिन्दी रूपान्तरण है। कक्षा में शिक्षण प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाली शिक्षण सहायक सामग्री में प्रतिमान प्रभावशाली सहायक साधन के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं। कोई औद्योगिक कारखाना या इमारत बनाने में नदी पर बाँध बनाने में किसी छवि को मूर्त रूप देने आदि कार्यों में व्यक्ति को चित्र, मानस बिंब एवं नक्शे के रूप में किसी न किसी प्रतिमान या मॉडल की आवश्यकता होती है। प्रतिमान के द्वारा ही वह उन कार्यों को साकार रूप प्रदान कर पाता है। मूर्तिकार, शिल्पकार, चित्रकार, अभियन्ता एवं भवन निर्माणकर्त्ता को मॉडल या प्रतिमान की आवश्यकता पड़ती है। प्रतिमान के दूसरे अर्थों में कोई नेता, महापुरुष, अभिनेता अथवा शिक्षक बालकों की दृष्टि में एक प्रतिमान का रूप ले लेते हैं जिनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बालक उनके हर पहलू को आत्मसात् करने का प्रयास करने लगता है। प्रतिमान का प्रयोग किसी व्यक्ति के आदर्शों को सम्मुख लाने के लिए किया जाता है जिससे इन आदर्शों को आत्मसात् करके कोई व्यक्ति चरित्र एवं व्यवहार से सम्बन्धित अच्छी एवं बुरी आदतों को ग्रहण करने का प्रयास करता है।
वील एवं जॉयसी के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमान से तात्पर्य शैक्षणिक क्रियाओं और पर्यावरण को नियोजित करने वाले मार्गदर्शन से है। इसके द्वारा कुछ विशेष लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षण और अधिगम के तरीके निश्चित किए जाते हैं। “
एन. के. जंगीरा एवं अजीत सिंह के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमान क्रमबद्ध और परस्पर सम्बन्धित ऐसे अवयवों का समुच्चय है जिसके द्वारा विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन मिलता है। इससे पर्यावरणजन्य सुविधाओं और अनुदेशनात्मक क्रियाओं की योजना बनाने, इन क्रियाओं को क्रियान्वित करने और निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।”
पाल डी. ईगन एवं उनके सहयोगी के अनुसार, “शिक्षण प्रतिमानों से अभिप्राय विशिष्ट अनुदेशनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निर्मित उपचारात्मक शिक्षण व्यूहरचनाओं से है। “
शिक्षण प्रतिमान की उपयोगिता के निम्न बिन्दु हैं—
(1) शिक्षण प्रतिमान की सहायता से छात्र की आवश्यकतानुसार हैं।
(2) शिक्षण प्रतिमान के द्वारा ही शिक्षण व्यूह रचना की जाती है। इसमें शिक्षा का उद्देश्य और अच्छी तरह से प्राप्त किया जा सकता है। उसे अधिगम- अनुभव उपलब्ध कराए जा सकते
(3) शिक्षण प्रतिमान शिक्षा के उद्देश्य को प्राप्त करने में अध्यापक की सहायता करते हैं। इनकी सहायता से शिक्षक उचित पाठ्यक्रम-वातावरण देकर उद्देश्य शीघ्र प्राप्त कर सकता है।
(4) विशिष्टीकरण के लिए शिक्षण प्रतिमान अत्यन्त उपयोगी हैं।
(5) पाठ्य-सामग्री के चयन में शिक्षण प्रतिमान शिक्षक की सहायता करते हैं ।
(6) शिक्षण प्रतिमान शिक्षण प्रक्रिया में अत्यधिक सुधार लाने में सक्षम हैं।
(7) शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य तालमेल बैठाने में शिक्षण प्रतिमान सहायता करते हैं ।
(8) शिक्षण प्रतिमान मूल्यांकन करने में भी सहायक होते हैं और इस कार्य के लिए शिक्षण प्रतिमान ही कसौटी की भूमिका निभाते हैं।
(9) शिक्षा के सिद्धान्तों के निर्माण में शिक्षण प्रतिमान अपना सक्रिय योगदान देते हैं ।
पूछताछ- प्रतिमान के तत्त्व / व्याख्या– पूछताछ / प्रतिमान की व्याख्या, इसके निम्नांकित तत्त्वों के द्वारा की जा सकती है—
(1) केन्द्र बिन्दु– इस प्रतिमान का केन्द्र बिन्दु निम्नांकित साधारण तथा विशेष उद्देश्यों से मिल कर बना है—
( क ) साधारण उद्देश्य
(a) विद्यार्थियों की वैचारिक क्षमता में वृद्धि करना ।
(b) उन्हें व्यवस्थित ढंग से, अपने विचारों को संगठित करने के योग्य बनाना ।
(c) उन्हें विशेषज्ञ बनाना ताकि चिंतन तथा वाचन शक्ति में प्रवाह आ सके।
(d) बनाना। उनको तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालने के योग्य
(ख ) विशिष्ट उद्देश्य – पूछताछ कौशल का प्रशिक्षण प्रदान करना ।
इस प्रकार, इस प्रतिमान का प्रमुख उद्देश्य, शोध आधारित सामग्री का प्रक्रियाकरण कार्य, कारणवाद तथा तर्कशास्त्र की धारणा के लिए, ज्ञानात्मक कौशलों का विकास करना है। इसका लक्ष्य, बच्चे को शृंखलाबद्ध पूछताछ-प्रशिक्षण के द्वारा, उसकी अधिक जानने की प्राकृतिक प्रवृत्ति को संतुष्ट करना है।
( 2 ) संरचना – पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान के पाँच चरण हैं, जिन्हें निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है
चरण              क्रिया
   I    समस्या का सामना
       (i) पूछताछ की विधियों/प्रक्रियाओं की व्याख्या ।
       (ii) समस्या अथवा जटिल घटना का प्रस्तुतीकरण ।
   II   तथ्य – संग्रह प्रमाणीकरण
        (i) वस्तुओं तथा परिस्थितियों की प्रकृति का परीक्षण
        (ii) समस्या-परिस्थिति के घटित होने का परीक्षण ।
  III   तथ्य – संग्रह तथा प्रयोगीकरण
        (i) प्रासंगिक परिवर्तनशील कारकों को पृथक् करना।
        (ii) अचेतन सम्बन्धों का परीक्षण तथा परिकल्पना ।
  IV व्याख्या तैयार करना
         (i) व्याख्या के नियम तैयार करना ।
  V पूछताछ-प्रक्रिया का विश्लेषण
         (i) पूछताछ-नीति का विश्लेषण तथा किसी अन्य अधिक प्रभावशाली नीति का विकास करना ।

इन विभिन्न चरणों की व्याख्या निम्नलिखित अनुसार हैं—
चरण I– इस चरण में, शिक्षक सर्वप्रथम विद्यार्थियों को, पूछताछ की विधियों की व्याख्या करता है तथा समस्यात्मक स्थिति अथवा जटिल घटना प्रस्तुत करता है। पूछताछ साधारण प्रश्नों के साथ प्रारम्भ होती है, जो ‘हाँ’ अथवा ‘न’ प्रकार के उत्तरों के साथ आगे बढ़ती है। विद्यार्थी एक-दूसरे के साथ मुक्त रूप से विचार-विमर्श कर सकते हैं ।
चरण II– दूसरे चरण में विद्यार्थी समस्यात्मक परिस्थिति के विषय में ज्ञान एकत्रित करते हैं। वे समस्या अथवा घटना से सम्बन्धित भ्रमों तथा शंकाओं को दूर करने का प्रयास करते हैं। शिक्षक भी उनकी इस कार्य में सहायता करता है तथा उन्हें प्रोत्साहित करता रहता है।
चरण III– इस अवस्था में विद्यार्थी यथार्थ रूप में प्रश्न पूछने प्रारम्भ कर देते हैं तथा शिक्षक ‘हाँ’ अथवा ‘न’ कह कर, उनके प्रश्नों के प्रति व्याख्या करता है ।
चरण IV– इस चरण में एकत्र की गई सूचना, जानकारी की सहायता से विद्यार्थी समस्या अथवा जटिल घटना की व्याख्या तैयार करते हैं । विभिन्न विद्यार्थी एक ही घटना की, विभिन्न विधियों से व्याख्या भी प्रस्तुत कर सकते हैं। सम्पूर्ण समूह मिलकर, समस्या की उचित व्याख्या कर सकता है।
चरण V– इस अवस्था में विद्यार्थी पूछताछ की सम्पूर्ण प्रक्रिया का विश्लेषण करते हैं। वे उन समस्या – विधियों पर विचार करते हैं जो उनकी पूछताछ प्रक्रिया के दौरान उन्होंने प्रयोग की थीं। इस प्रकार, वे अधिक प्रभावशाली नीतियों का विकास करने के योग्य हो सकते हैं ।
(3) सामाजिक प्रणाली– यह प्रतिमान की प्रारम्भिक अवस्था होती है, जहाँ शिक्षक समस्या को प्रस्तुत करता है तथा प्रश्नों की प्रकृति निश्चित करता है। तत्पश्चात् शिक्षक विद्यार्थियों को पूछताछ के लिए प्रोत्साहित करता है, तो अधिगम-प्रक्रिया अधिक स्वतंत्र हो जाती है । यहाँ विद्यार्थियों के मध्य विचार-विमर्श तथा प्रयोगीकरण की व्यवस्था भी होती है। इस प्रकार, इस प्रतिमान में, शिक्षक-संरचित पूछताछ से विद्यार्थी नियंत्रित पूछताछ सत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि वे पूछताछ प्रक्रियाओं में अधिक स्वतंत्र तथा सुयोग्य होते जाते हैं।
इस प्रकार, इस प्रतिमान को सामाजिक प्रणाली, मेलमिलाप की भावना, बौद्धिक स्वतंत्रता तथा समानता प्रदान करती है । उचित शिक्षकविद्यार्थी अंतर्क्रिया तथा विद्यार्थी-विद्यार्थी अंतर्क्रिया के साथ भरपूर, खुला वातावरण इस प्रतिमान की सफलता को विश्वसनीय बनाता है।
(4) प्रतिक्रिया के सिद्धान्त– जॉयस तथा वेल (1978) के अनुसार, विद्यार्थियों के कार्यों के प्रतिक्रम के रूप में, शिक्षक के उत्तर, निम्नांकित नियमों पर आधारित होने चाहिए—
(a) विद्यार्थियों को बल देकर कहा जाता है कि वे अपने सिद्धान्तों को और अधिक स्पष्ट करे तथा सामान्यीकरण को और अधिक समर्थन दें ।
(b) विद्यार्थियों के मध्य प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित किया जाता है।
(c) प्रश्न इस प्रकार के बनाए जाएँ कि उनके उत्तर ‘हाँ’ अथवा ‘न’ में हों ।
(d) विद्यार्थियों को कहा जाता है कि वे पूछताछ प्रतिमान की भाषा का ही प्रयोग करें ।
(e) यहाँ शिक्षार्थियों के लिए मुक्त बौद्धिक वातावरण होता है। सिद्धान्तों/परिकल्पनाओं को न तो मान्यता दी जाती है तथा न ही अस्वीकार किया जाता है।
(f) जो कथन अथवा प्रश्न अनुपयुक्त हों, उनके विषय में शिक्षक तुरंत सूचित करता है।
(g) जब भी विद्यार्थी उचित विधि से प्रश्नों को बनाने में असफल हों, तो उन्हें अधिक शब्दों में, उन प्रश्नों को पुन: बनाने के लिए कहा जाता है।
(5) सहायक प्रणाली– क्योंकि पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान, असंगत अथवा जटिल घटना के साथ प्रारम्भ होता है, अतः वह सारी स्रोत-सामग्री जो समस्या से सम्बन्धित होती है, यहाँ सहायक सामग्री का कार्य करती है। यह पुस्तक, फिल्म पोस्टर अथवा प्रयोग हेतु उपकरण आदि किसी भी प्रकार की हो सकती है।
इस तत्त्व के अंतर्गत, विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए प्रयोगात्मक परीक्षाएँ प्रयोग की जा सकती हैं। यह पता लगाया जाता है कि विद्यार्थी अपनी समस्याओं को समाधान करके, अपने कार्य को कितने प्रभावशाली ढंग से कर सकते हैं। अतः शिक्षक पूछताछ सामग्री का विकास कर सकता है।
(6) प्रतिमान का प्रयोग—
(a) पूछताछ – शिक्षण प्रतिमान बच्चों में वैज्ञानिक पूछताछ योग्यता, रचनात्मकता तथा अधिगम में अधिकार प्राप्ति का विकास करने में सहायता करता है।
(b) यद्यपि इसे प्रारम्भ में प्राकृतिक विज्ञानों के विषयों के प्रशिक्षण हेतु प्रयोग किया गया था, तथापि आजकल अन्य विषय भी इसकी परिधि में लिए जा सकते हैं। कोई भी घटना अथवा प्रयोग, जिसे समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जा सके, इसके द्वारा पढ़ाया जा सकता है।
(c) विद्यार्थी सृजक बन जाते हैं तथा वे अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए, कई विधियों तथा नीतियों के विषय में सोचने के योग्य हो जाते हैं।
(d) यह शिक्षार्थियों को इस योग्य बनाता है कि वे क्रमबद्ध विधियों के द्वारा समस्याओं का समाधान कर सकें ।
(e) कुछ परिवर्तन करके यह प्रतिमान प्रत्येक आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लिए सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
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