अध्ययन क्षेत्र (अनुशासन) की प्रकृति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

अध्ययन क्षेत्र (अनुशासन) की प्रकृति का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

उत्तर— अध्ययन क्षेत्र (अनुशासन) की प्रकृति–अनुशासन की विचारधारा परिवर्तनशील है, स्थाई नहीं। इसी कारण वैज्ञानिक परिवर्तनों के साथ-साथ इसकी विचारधारा में भी परिवर्तन होता रहता है। अनुशासन की प्रकृति का अध्ययन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं—

(1) सकारात्मक अनुशासन
(2) निर्देशात्मक अनुशासन
(3) चिंतनशील अनुशासन
(1) सकारात्मक अनुशासन–यह सिद्धान्त मध्य उन्नीसवीं शताब्दी में फ्रेंच (French) समाजशास्त्री व दर्शन शास्त्री (Sociologist and philosopher) अगस्त कोम्टे (1798-1857) के द्वारा विकसित किया गया। सकारात्मकता इस विचारधारा पर आधारित है कि केवल प्रामाणिक ज्ञान ही वैज्ञानिक ज्ञान है तथा इस प्रकार का ज्ञान वैज्ञानिक विधि के माध्यम से सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकार्य है अर्थात् तो अभिसुपुष्टि से प्राप्त होता है। वैज्ञानिक विधि अर्थात् अन्वेषण की वह तकनीक जो घटना का अवलोकन करे, प्रयोग कर परिणाम को प्राप्त करे व तार्किक मापन करे तथा जो विषय के विशिष्ट सिद्धान्त को तर्क पर या कारणों के आधार पर स्पष्ट करे ।
(2) निर्देशात्मक अनुशासन–अंग्रेजी शब्द normative की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में लैटिन भाषा के शब्द ‘norma’ से हुई है जिसका अर्थ नियम, निर्देश या आज्ञा से है। अर्थात् वह अनुशासन जो नियम के अनुसार इस विषय को स्पष्ट करता है कि व्यक्ति में कौनसे गुण, कैसा व्यवहार व व्यक्तित्व होना चाहिए, उसे निर्देशात्मक अनुशासन कहा जाता है। यह अनुशासन इस बात की पुष्टि करता है कि वस्तु ‘कैसी हो तथा होनी चाहिए’ उनका मूल्य क्या है ? कौनसी वस्तु अच्छी है या बुरी ? तथा कौनसी क्रिया सही है या गलत ? निर्देश वास्तव में सकारात्मक वाक्यों, तथ्यों पर आधारित होता है जो वास्तविकता को स्पष्ट करता है। जैसे—’ बच्चों को सब्जियाँ खानी चाहिए’ और ‘जो अपनी स्वतंत्रता व स्थिरता के लिए बलिदान देता है वो दोनों खो देता है। वही दूसरे हाथ पर इन वाक्यों का विस्तार अर्थ है ‘सब्जियों में अपेक्षाकृत अधिक विटामिन होता है’, ‘धूम्रपान कैंसर का कारण’ (Smoking causes Cancer) है तथा बलिदान का सामान्य परिणाम है स्वतंत्रता व स्थिरता दोनों को खो देना है। उपर्युक्त वाक्य निर्देशात्मक है तथा तार्किक भी है क्योंकि यह दोनों बातों को स्वतंत्र रूप से प्रमाणित करते हैं क्या तथा यह सार्वभौमिक सत्य भी है।
यह अनुशासन मूल्यों का अध्ययन करता है तथा मूल्य, समाज व सौन्दर्य से जुड़े मुद्दों के प्रश्नों के उत्तर या समाधान ढूँढने में सहायक बनता है। मूल्य शास्त्र का अंग्रेजी शब्द ‘Axiology’ है जो Greek शब्द ‘Axios’ से बना है जिसका तात्पर्य ‘मूल्य’ है । मूल्य वह है जिसका महत्त्व है, जिसे पाने के लिए व्यक्ति और समाज प्रयास करता हैं और जिसके लिए वे बड़े से बड़ा त्याग कर सकते हैं।
(3) चिंतनशील अनुशासन–चिंतनशील अनुशासन व्यवस्थित रूप से वस्तु के बारे में जानने व उससे सम्बन्धित खोज करने का प्रयास करता है। इस अनुशासन का सम्बन्ध वस्तु की वास्तविकता तथा उसकी अमूर्त चिंतनशीलता से होता है। अर्थात् यह अनुशासन क्रम (order), पूर्णता (wholeness) व अनुभवों के मध्य श्रृंखला को खोजने में रुचि रखता है। जैसे मिल्लिसियन दार्शनिकों ने अन्वेषण शुरू किया, वो यह खोजने व जानने का प्रयास करने में जुट गये कि कौनसे नियम ब्रह्माण्ड को कैसे संचालित करते हैं ? उन्होंने जीवन व उसकी रचना के संदर्भ में व्याख्या करने हेतु खोज शुरू कर दी तथा प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने हेतु कौनसी विधि काम में ली जाये इस पर विचार किया ? अंततः इन दर्शनशास्त्रियों के द्वारा पूर्णतः चिंतनशीलता (reasoning) का उपयोग किया गया। यह चिंतनशील अनुशासन का विशिष्ट उदाहरण है, क्योंकि वह चिन्तनशीलता के माध्यम से ब्रह्माण्ड रचना के रहस्य को जानना चाहते थे। चिंतनशील अनुशासन को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है— तत्त्व मीमांसा ( Metaphysics) और ज्ञान मीमांसा (Epistemology)।
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