ई विषयवस्तु से आप क्या समझते हैं ? इसका महत्त्व समझाइये और ई – जर्नल्स एवं ई – पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।

ई विषयवस्तु से आप क्या समझते हैं ? इसका महत्त्व समझाइये और ई – जर्नल्स एवं ई – पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।

उत्तर— ई विषयवस्तु– शिक्षा तकनीकी का विकसित स्वरूप – शिक्षक, शिक्षार्थी एवं विषयवस्तु तीनों को प्रभावित करता है। शिक्षक का दायित्व परम्परागत शिक्षण से आगे बढ़ कर इलेक्ट्रोनिक विषय-वस्तु को तैयार करना भी है । अतः यह समीचीन होगा कि हम यह भी ज्ञात करें कि ई-विषय वस्तु से क्या अभिप्राय है तथा इसको किस प्रकार विकसित किया जाता है सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के इस युग में ई-विषय वस्तु का क्या महत्त्व है ?
ई-विषयवस्तु का अर्थ एवं परिभाषाएँ—
“वेब पृष्ठ पर प्रदर्शित करने के लिए संरचित की गई डिजिटल विषय-वस्तु एवं छायाएँ ।” —ऑक्सफोर्ड शब्दकोश
‘वह डिजिटल विषयवस्तु जिसका प्रसारण कम्प्यूटर नेटवर्क यथा इन्टरनेट पर किया जा सके।” – पी.सी. विश्वकोश
युग शिक्षा में तकनीकी के प्रयोग ने हमें एक आभासीय वास्तविकता के में प्रवेश दिया है जिसमें शिक्षक एवं विद्यार्थी के मध्य का अन्तराल सिमट गया है। अच्छी प्रकार से तैयार की गई विषय-वस्तु के द्वारा विद्यार्थी को सन्तुष्ट किया जा सकता है। यह विषय-वस्तु, श्रव्य दृश्य, प्रतिछाया एवं दृश्य प्रभावों का सम्मिलित स्वरूप होता है। इसका दूरदर्शन पर प्रसारण शुल्क देकर क्रय करना, इन्टरनेट पर उपलब्धि, किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस विषय-वस्तु का अन्य संस्थानों से आदान-प्रदान भी किया जा सकता है।
ई-विषयवस्तु का महत्त्व— आजकल ई-कंटैंट राइटिंग को व्यवसाय का रूप दे दिया गया है। ई-कंटैंट राइटर केवल कंटैंट तैयार ही नहीं करता वरन् उसे update भी रखता है। अपने विषय की गहन जानकारी रखने वाला व्यक्ति ई-कंटैंट के माध्यम से दुनिया में अपनी पहचान बना सकता है। एक व्यक्ति द्वारा लिखे गए लेख या अध्ययन सामग्री से केवल प्रदेश या देश ही नहीं सम्पूर्ण दुनिया के लोग भी अवगत हो सकते हैं। ई-कंटैंट की मुख्य भाषा यद्यपि अंग्रेजी है लेकिन अब हिन्दी व अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध हो सकता है।
उच्च गुणवत्ता की दृष्टि से शिक्षा के क्षेत्र में ई-सामग्री के विकास पर बल दिया जा रहा है। यू.जी.सी. (University Grant Commission) ने विभिन्न विषयों शिक्षण से सम्बन्धित अधिगम के लिए तैयार उपयुक्त शैक्षिक सामग्री को यू.जी.सी. का दर्पण साइट्स पर सभी शिक्षकों एवं छात्रों के लिए सुलभ बना दिया है। यह शैक्षिक सामग्री (ई-कंटैंट) महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के विषय विशेषज्ञों द्वारा दिशा-निर्देशन के आधार पर तैयार की जाती है। आज विद्यार्थियों को विषय सम्बन्धी जानकारी एवं सूचनाओं के एकत्रीकरण के लिए पुस्तकालय इत्यादि में जाने की आवश्यकता नहीं है वरन् घर पर बैठकर वह कम्प्यूटर की सहायता से सारी जानकारियाँ आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इससे समय, धन व शक्ति की बचत होती है। कम समय में अधिक जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। विश्व प्रसिद्ध लेखों एवं लेखकों से अवगत होने का यह एक प्रभावशाली माध्यम है ।
अतः ई-कंटैंट शिक्षा के शिक्ष में एक आधुनिक नवाचार है । प्रतियोगिता के इस दौर में जहाँ एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है, यह होड़ चाहे व्यक्ति-व्यक्ति के बीच हो या देश-देश के बीच, शैक्षिक नवाचारों का ज्ञान, उनका प्रयोग एवं उनसे लाभान्वित होना आज की आवश्यकता बन चुकी है। जिस देश में इन शैक्षिक नवाचारों का प्रयोग जितना अधिक किया जाएगा वह शैक्षिक दृष्टि से उतना ही विकसित एवं उन्नत होगा। भारत में यद्यपि इन नवाचारों का प्रयोग बहुतायत से किया जा रहा है किन्तु ग्रामीण एवं दूर-दराज क्षेत्रों में अभी भी इस प्रकार की सुविधाओं का अभाव है। अतः आवश्यकता है कि इंटरनेट की सुविधाएँ गाँवों में भी दी जाएँ जिससे भारत के विकास में वह भी अपना योगदान दे सकें।
ई-जर्नल्स–इलेक्ट्रोनिक जर्नल्स को ही ई-जर्नल्स कहा जाता है। ये बौद्धिक स्तर की पत्रिकाएँ होती हैं इनका उपयोग इलेक्ट्रोनिक संचार से होता है। अतः ये वे साइट्स पर ही प्रकाशित की जाती हैं। ये ऐसे विशिष्ट ज्ञान का संग्रहण करती हैं जिसका प्रयोग प्राय: शोधकार्यों में किया जाता है। जैसा परम्परागत जर्नल्स का स्वरूप होता है तथा उसमें लेख, शोध कार्यों का प्रकाशन होता है वैसा ही स्वरूप भी ई जर्नल्स का होता है। कुछ जर्नल्स केवल ऑन-लाइन होते हैं तो कुछ का मुद्रित स्वरूप भी उपलब्ध होता है। कुछ जर्नल्स ओपन एक्सेस होते हैं अर्थात् बिना शुल्क दिये उनको कोई भी इन्टरनेट पर पढ़ सकता है तथा उस पर टिप्पणी भी कर सकता है। अधिकांश ई-जर्नल्स एच.टी.एम.एल. अथवा पी.डी.एफ. प्रारूप में उपलब्ध होते हैं ।
ई-जर्नल्स के लाभ-वर्तमान समय में हमें ई-जर्नल्स के निम्नलिखित लाभ स्पष्ट दिखाई देते हैं—
(1) इन जर्नल्स या इनके लेख को घर बैठे लैपटॉप या पी.सी. पर पढ़ा जा सकता है। पुस्तकालय जाने की आवश्यकता नहीं होती ।
(2) विषयवस्तु के लिए पूर्ण लेख या लेख के कुछ पृष्ठों को भी पढ़ा जा सकता है तथा खोजा जा सकता है ।
(3) इस प्रकार के जर्नल्स के लेख स्वयं को ई-मेल भी किये जा सकते हैं या डाउनलोड भी कर सकते हैं ।
(4) पुस्तकालय के बंद होने पर भी लेख पढ़ने के लिए सदैव उपलब्ध रहता है ।
(5) एक जर्नल्स के साथ हाइपर टेक्स्ट लिंक के द्वारा अन्य पत्र-पत्रिकाओं के विभिन्न भागों को भी पढ़ सकते हैं ।
(6) जर्नल्स में अधिक चित्र, आकृतियाँ, श्रव्य एवं दृश्य सामग्री को जोड़ा जा सकता है ।
(7) इनमें अपनी प्रतिक्रिया ई-मेल या टिप्पणी से भेज कर अन्तः क्रिया भी की जा सकती है।
(8) समय एवं स्थान की दृष्टि से स्वतन्त्रता होती है ।
(9) पुस्तकालयों की दृष्टि से उपयोगी है।
(10) शिक्षा से जुड़े कुछ ऑनलाइन जर्नल्स निम्नलिखित हैं–
ग्लोबल एजूकेशन टाइम्स, डिजिटल लर्निंग।
ई – पुस्तकालय– एक डिजिटल पुस्तकालय से अभिप्राय इलेक्ट्रोनिक प्रारूप में एकत्रित दस्तावेजों से है जो इन्टरनेट सी. डी. रोम कम्प्यूटर डिस्क पर उपलब्ध होते हैं। ये एक विशिष्ट पुस्तकालय पर आश्रित दस्तावेज होते हैं । एक पाठक पत्र-पत्रिका, पुस्तकों दृश्यों प्रति छायाओं, ध्वनिपंजिकाओं को एक दृश्यों को ग्रहण करने में समर्थ रहता है।
इन्टरनेट के माध्यम से ई-पुस्तकालय ब्राडबैण्ड से डी. ए. एल. या मॉडल के माध्यम से प्रयोग किया जाता है । यह सामान्य विषय-वस्तु, दस्तावेजों के लिए प्रयुक्त प्रक्रिया होती है किन्तु जटिल विषय-वस्तु के लिए इन्टरनेट की गति (Kbps) तीव्र होनी आवश्यक होती है। सी. डी. रोम पर गति धीमी होती है अपेक्षाकृत इन्टरनेट की गति तीव्र होती है । कुछ फाइल्स सीधी एच. टी. एम. एल. पर देखी जा सकती हैं। कुछ केवल पी.डी.एफ. प्रारूप में डाउनलोड की जा सकती हैं।
(1) दृश्य श्रव्य हेतु रंगीन टी.वी., वी.सी.आर., डी.वी.डी., साउण्ड बॉक्स, दूरभाष इत्यादि ।
(2) कम्प्यूटर, सर्वर, पीसी (मल्टीमीडिया सहित) यू.पी.एस. इत्यादि ।
(3) नेटवर्क, लेन (LAN), मैन (MAN), वैन (WAN) इन्टरनेट आदि ।
(4) प्रिंटर, लेजिर प्रिंटर, डॉट मैट्रिक्स, बार कोड प्रिंटर डिजिटल ग्राफिक प्रिंटर इत्यादि ।
(5) स्कैनर, एच.पी. स्केनर, जैट, शीट फीडर, ड्रम स्कैनर, स्लाइड स्कैनर, माइक्रोफिल्मिंग स्कैनर, डिजिटल कैमरा, बारकोड स्कैनर इत्यादि ।
(6) संग्रहण युक्तियाँ, आप्टिकल स्टोरेज डिवाइस, सीडी रोम जॉक बॉक्स इत्यादि ।
(7) सॉफ्टवेयर – कोई भी उपयुक्त सॉफ्टवेयर जो लैन, वैन तथा पी.सी. से संयुक्त हो तथा उपयुक्त हो ।
ई-पुस्तकालय की आवश्यकता के कारक–निम्नलिखित हैं—
(1) सूचनाओं के अत्यधिक प्रचार-प्रसार एवं ज्ञान विस्तार के कारण ।
(2) परम्परागत पुस्तकालयों में खोज करने में आने वाली समस्याओं के निदान हेतु ।
(3) तकनीकी के प्रयोग से कम कीमत/व्यय में अधिक भण्डारण संभव है अत: ई-पुस्तकालयों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
(4) नई पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ई-पुस्तकालय का होना अनिवार्य है ।
ई-पुस्तकालय के लाभ— ई-पुस्तकालय किसी क्षेत्र, भवन या स्थान तक सीमित नहीं होते इस प्रकार के पुस्तकालयों से लाभान्वित होने वाली का विस्तार सम्पूर्ण विश्व में होता है। इन्टरनेट के उपयोग से व्यक्ति अपने स्वयं के कम्प्यूटर या लैपटॉप पर इच्छित सूचना, ज्ञानखण्ड प्राप्त कर सकता है । मल्टीमीडिया की सहायता से व्यक्ति को इच्छित सूचना प्राप्त हो जाती है ।
ई-पुस्तकालय के प्रमुख लाभ निम्नांकित हैं—
(1) प्रतिक्षण उपलब्धता ।
(2) बहुआयामी पैठ ।
(3) भौतिक बंधन का अभाव ।
(4) सूचनाओं का नवीनीकरण ।
(5) कम स्थान की आवश्यकता ।
(6) कम लागत ।
(7) अधुनातन स्रोतों से जुड़ाव ।
(8) संरचित उपागम ।
ई-पुस्तकालय की सीमाएँ— ई-पुस्तकालय के उपर्युक्त लाभों के साथ-साथ इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं— संक्षिप्त में उनका उल्लेख निम्न बिन्दुओं में किया जा सकता है—
(1) कॉपीराइट की समस्या
(2) इन्टरनेट की गति पर आश्रितता ।
(3) प्रारम्भिक लागत का अधिक होना।
(4) अध्ययन का वातावरण न बनना।
(5) अत्यधिक उपयोग की प्रवृत्ति ।
(6) बहुत शीघ्र कालावधि से पार होना ।
वस्तुत: ई-पुस्तकालय एक श्रेष्ठ अवधारणा है किन्तु ये परम्परागत पुस्तकालयों का स्थान ग्रहण नहीं कर सकते। परम्परागत पुस्तकालयों में ही इन्हें समाहित करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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