शिक्षा का अर्थ व सम्प्रत्यय को परिभाषित कीजिए।
शिक्षा का अर्थ व सम्प्रत्यय को परिभाषित कीजिए।
उत्तर— शिक्षा का अर्थ— शिक्षा शब्द संस्कृत के ‘शिक्ष्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘सीखना’ अथवा ‘सिखाना’ होता है। शिक्षा को अंग्रेजी में ‘एजूकेशन’ कहते हैं । ‘एजूकेशन’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘एजुकेटम’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ‘शिक्षित करना’ । एजूकेटम भी दो शब्दों से मिलकर बना है—ई (E) और ड्यूको । ई का अर्थ ‘भीतर से’ और ड्यूको का अर्थ ‘बाहर निकालना’ अथवा ‘आगे बढ़ाना’। इस प्रकार एजूकेशन अथवा शिक्षा का अर्थ है- अन्त: शक्तियों का बाहर की ओर विकास करना’ । लैटिन भाषा के दो शब्द ‘एजूसीयर’ तथा ‘एजूकेयर’ भी शिक्षा के इसी अर्थ की ओर संकेत करते हैं। ‘एजूसीयर’ का अर्थ ‘विकसित करना’ अथवा ‘निकालना’ है तथा दूसरे ‘एजूकेयर’ का अर्थ है ‘आगे बढ़ाना, बाहर निकालना या विकसित करना’ । अतः शिक्षा का अर्थ आन्तरिक शक्तियों अथवा गुणों का विकास करना है ।
(1) शाब्दिक अवधारणा– शिक्षा शब्द संस्कृत की ‘शिक्षा’ धातु से बना है जिसका अर्थ सीखना तथा प्रेरक के रूप में अर्थ सिखाना है । इस अर्थ में एक व्यक्ति सीखने वाला तथा एक सिखाने वाला होता है। आंग्ल भाषा में शिक्षा के लिए Education शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के तीन शब्दों ‘एजूकेटम’, ‘एजूकेयर’ तथा ‘एजूसीयर’ से मानी जाती है। एजूकेटम दो शब्दों E + Duco से मिलकर बना है जिसमें ‘ई’ का अर्थ अन्दर से तथा ‘ड्यूको’ का अर्थ बाहर से निकालना अर्थात् व्यक्ति की आन्तरिक शक्तियों को बाहर लाना ।’ एजूकेयर’ शब्द का अर्थ है— पालन-पोषण करना, संवर्धन करना अर्थात् शिक्षा व्यक्ति का संवर्धन करती है। ‘एजूसीयर’ का अर्थ प्रेरणा, पथ-प्रदर्शन है अर्थात् शिक्षा व्यक्ति के जन्मजात गुणों को विकसित करती है। अर्थात् शिक्षा का शाब्दिक अर्थ है—’ बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का पूर्ण विकास ।’ शिक्षा की शाब्दिक अवधारणा स्वीकार करने वाले शिक्षा का अर्थ उपर्युक्त स्वरूप में ही स्वीकार करते हैं ।
(2) शिक्षा की संकुचित अवधारणा– संकुचित- अर्थ में शिक्षा का प्रयोग बोल-चाल की भाषा और कानून के रूप में किया जाता है। इस अर्थ में शिक्षा व्यक्ति के आत्मविश्वास और उनके वातावरण के सामान्य प्रभावों को अपने में कोई स्थान नहीं देती। इसके विपरीत यह केवल उन प्रभावों को अपने से स्थान देती है, जो समाज में अधिक आयु के व्यक्ति जान-बूझकर एवं नियोजित रूप से अपने छोटों पर डालते हैं। भले ही यह प्रभाव परिवार, धर्म या राज्य द्वारा डाला जाये ।”
शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा तथा जिसमें नवयुवकों से ज्ञान, चरित्र एवं व्यवहार को आकार एवं अनुरूपण दिया जाता है।
(3) शिक्षा की व्यापक अवधारणा– लॉज के द्वारा शिक्षा की व्यापक अवधारणा को सुन्दर शब्दों में स्पष्ट किया गया है। अपने विस्तृत रूप में शिक्षा कहीं भी, किसी भी परिस्थिति में, समय में प्राप्त की जा सकती है। झरनों के स्वर से, कोयल की कूक से, जड़-चेतन से व्यक्ति कुछ न कुछ अवश्य सीखता है। इन सबके महत्त्व को कम नहीं आंका जा सकता। शिक्षा जीवन की तरह व्यापक है जीवन के प्रत्येक अनुभव से ज्ञान के भण्डार में बढ़ोतरी होती है। घर – बाहर, मेले – उत्सव सभी से व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता है। प्रो. डम्बिल ने इस व्यापक अवधारणा पर विचार प्रकट करते हुए कहा है—
“शिक्षा के व्यापक अर्थ के अन्तर्गत वे समस्त प्रभाव आते हैं, जो व्यक्ति पर उसके जन्म से मृत्यु तक की यात्रा के बीच में प्रभाव डालते हैं।”
(4) शिक्षा की वास्तविक अवधारणा– वस्तुतः शिक्षा अपने वास्तविक स्वरूप में व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया है। भारतीय विचारधारा का अवलोकन करें तो गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने ‘एन ईस्टर्न यूनिवर्सिटी’ में स्पष्ट कहा है—“शिक्षा का बड़ा उपयोग केवल तथ्यों को एकत्रित करना नहीं, बल्कि मनुष्य को जानना और अपने को मनुष्य के आगे व्यक्त करना है। हर मानव प्राणी का यह कर्त्तव्य है कि वह कम से कम कुछ हद तक, न केवल बुद्धि की भाषा में बल्कि व्यक्ति की भाषा में भी, जो कला की भाषा है दक्षता प्राप्त करें।”
शिक्षा मनुष्य के परिष्कार एवं विकास की प्रक्रिया है । जीवन का प्रत्येक अनुभव शिक्षा है। शिक्षा मन, बुद्धि आत्मा का विकास है। शिक्षा शब्द एक ऐसे अक्षय पात्र के समान है जिसमें जो कुछ भी चाहें, वही प्राप्त किया जा सकता है। अतः इसका व्यक्ति के व्यक्तित्व, चरित्र, संस्कृति, चिन्तन, कुशलताएँ आदतें, जीवन शैली सभी पर प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। यदि शिक्षा न हो तो समाज का व्यवस्थित स्वरूप ही विकसित न हो पाये।
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