किन्हीं पाँच संवैधानिक मूल्यों का वर्णन कीजिए।

किन्हीं पाँच संवैधानिक मूल्यों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर— भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक मूल्य – स्वतंत्र भारत के संविधान में कई मूल्यों को उपयुक्त स्थान दिया गया है जो एक अच्छी नैतिक शिक्षा का आधार बन सकते हैं। इनमें से कुछ मूल्य निम्नलिखित हैं—

(1) सत्य व अहिंसा – भारतीय समाज का सबसे पहला मुख्य मूल्य सत्य व अहिंसा है। यह मूल्य आज नया नहीं है बल्कि यह प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। हमारा प्राचीन इतिहास उठाकर देखें तो इतने अधिक उदाहरण सामने आयेंगे जिनके आधार पर इन मूल्यों पर अनेक राजाओं व जनता ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया है। इन मूल्यों पर हमारे ऋषि-मुनियों व धर्मगुरुओं ने बहुत अधिक बल दिया। इस कारण ही वे मूल्य हमारे समाज के एक प्रकार से शाश्वत मूल्य हो गये हैं। “सत्यमेव जयते ” भारतीय जीवनदर्शन का प्राचीन मूल्य रहा है लेकिन आज भी इसका महत्त्व कम नहीं हुआ है।
वेद, उपनिषद्, जैन व बौद्ध दर्शनों में अहिंसा पर बहुत अधिक बल दिया गया है। अहिंसा में प्राणी मात्र पर हिंसा का निषेध किया गया है । यहाँ तक कि विचारों तक में हिंसा का निषेध किया गया है। हमारा देश विश्व शान्ति का हमेशा से हामी रहा है और कभी भी युद्ध का पोषक नहीं रहा है।
(2) आर्थिक न्याय – हमारे देश में समाजवादी विचारधारा को अपनाया है। समा विचारधारा में आर्थिक न्याय मुख्य होता है। इनमें धन व उत्पादन के साधनों के केन्द्रीयकरण के स्थान पर समाज के सामूहिक स्वामित्व पर बल दिया गया। समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक पर भी आम सहमति व्यक्त की गई। किसानों व श्रमिकों के जीवन स्तर को अच्छा करने में सहयोग देने का प्रावधान किया गया है। हमारे संविधान में बेगार प्रथा पर प्रतिबन्ध, समान कार्य, समान वेतन, 14 वर्ष से कम आयु के बालकों से काम नहीं लेने, निम्न वर्गों की आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास और आर्थिक व्यवसाय की स्वतंत्रता आदि का प्रावधान किया गया ।
(3) राजनीतिक न्याय – भारतीय समाज के अन्य मूल्यों का आधार राजनीतिक न्याय है और इसमें प्रजातंत्र को स्वीकार किया गया है। प्रजातंत्र के आधार – समानता, स्वतंत्रता व बन्धुत्व की भावना को स्वीकार किया गया है । प्रजातंत्र के लिए आवश्यक आधारों के साथ ही प्रेम, सेवा, सहयोग, सहानुभूति आदि गुणों को भी स्वीकार किया गया है । वयस्क मताधिकार, विचारों को अभिव्यक्त करने, समाचार पत्रों की स्वतंत्रता, भाषण देने, सभा करने, भ्रमण करने, दल बनाने आदि सभी की स्वतंत्रता समान रूप से भी सभी भारतीयों की है। अतः भारतीय समाज का यह राजनीतिक न्याय प्रजातांत्रिक मूल्य है।
(4) धर्मनिरपेक्षता – भारतीय समाज का दूसरा महत्त्वपूर्ण मूल्य धर्म निरपेक्षता है। हमारा समाज धर्म के सम्बन्ध में कभी भी संकीर्ण नहीं रहा । हमने धर्म को कष्ट, संकीर्णता या अत्याचार आदि किसी भी रूप में नहीं लिया। प्रारम्भ से ही हमारा समाज धर्म को व्यापक सहिष्णुता, समानता आदि के रूप में लेता आया है। यही कारण है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया हैं।
हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह किसी भी धर्म को स्वीकार करे, प्रचार करे, आचरण करे, उपासना करे और इन सभी के लिए संस्थाओं की स्थापना करके उनका संचालन करे। राज्य की ओर से किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा और राज्य धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। अतः भारतीय समाज का धार्मिक दृष्टि से धर्म निरपेक्षता का मूल्य बहुत विस्तृत दृष्टिकोण वाला है।
(5) विश्व बन्धुत्व की भावना – हमारा समाज प्रारम्भ से ही उदार व विस्तृत हृदय वाला रहा है इसलिए ही हमारे समाज की तुलना समुद्र से की है। जिस प्रकार समुद्र में अनेक नदियाँ समाहित होकर एक हो जाती है, उसी प्रकार भारतीय समाज में अनेक व्यक्ति, धर्म, संस्कृति वाले व्यक्ति आये और विलीन हो गये । हम संकीर्णता से ऊपर उठकर विश्व भ्रातृत्व या भाईचारे में विश्वास करते आये हैं। हमारा प्रारम्भ से ही यह नारा चला आ रहा है—
                                                                   “वसुधैव कुटुम्बकम्”
हम पूरी पृथ्वी या वसुधा को ही अपना कुटुम्ब (परिवार) मानते हैं । इससे अधिक बन्धुत्व की भावना नहीं हो सकती। हम सभी धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, क्षेत्र वालों को हमारा अपना मानते हैं। आज विज्ञान की उन्नति पर निर्भरता के कारण विश्व के देशों में यह भावना आई है लेकिन हमारे समाज में तो यह बात बहुत पहले से ही है। विश्व बन्धुत्व की भावना के कारण ही आज विश्व सरकार की बात की जाने लगी है। आज विश्व के किसी भी कोने में घटने वाली घटना का सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव पड़ता है। हमारे संविधान में विश्व शान्ति की बात की गई है ।
(6) सादा जीवन उच्च विचार – हमारे समाज के सभी महापुरुषों ने सादा जीवन व उच्च विचार पर बल दिया है। इसमें यह भावना निहित है कि व्यक्ति को ऊपरी दिखावे व आडम्बर से दूर रहकर सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए। इसके अलावा उसको विचारों में उच्चता रखनी चाहिए । विचारों में संकीर्णता नहीं रखनी चाहिए । इस प्रकार यह मूल्य हमें भौतिकता की चकाचौंध से दूर रहने व त्याग करने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी इसके सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी इसी त्यागमयी जीवन पर बल दिया।
(7) सामाजिक समानता – हमारे संविधान में सामाजिक समानता की व्यवस्था की गई है। इसमें जाति, धर्म, वर्ण, लिंग, भाषा आदि किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता । संविधान में यह व्यवस्था की गई कि ऊँच-नीच, छुआ-छूत, बेगार प्रथा आदि गैर-कानूनी है।
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