सृजनात्मक लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
सृजनात्मक लेखन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर— सृजनात्मक लेखन–अपने मन के अनुसार सृष्टि करना मानव स्वभाव का अंग है और रचनात्मकता सबसे पहले आत्माभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति के माध्यम के कई रूप हो सकते हैं। कोई शब्दों में, कोई रंगों और रेखाओं में, तो कोई शरीर की भाषा में अपनी बात अभिव्यक्त करने उचित में सहजता और सुविधा अनुभव करता है। अनुकूल परिस्थितियाँ, वातावरण, निरन्तर अभ्यास और लेखन की अनिवार्यता की अनुभूति रचनात्मक लेखन के आधार हैं। इनके माध्यम से कोई व्यक्ति अच्छा लेखक बनकर सुगमता की सीढ़ियाँ चढ़ सकता है। सृजनात्मक लेखन पारम्परिक रूप से साहित्य का ही अंग रहा है।
सृजनात्मक लेखन का उद्देश्य मनोरंजन करने के साथ-साथ मानवीय अनुभवों को बाँटना भी है । लेखक मानवता के सत्यों को कविताओं और कहानियों के माध्यम से प्रकट करता है। साहित्य में रचनात्मक लेखन ही `सृजनात्मक लेखन है।’सृजनात्मकता के मूलाधार’ के लेखक मेरीली मार्क्सबेरी ने सृजनात्मक लेखन को निम्नलिखित रूपों में प्रकट किया है—
(i) महत्त्वपूर्ण अनुभवों को रिकॉर्ड के रूप में रखना ।
(ii) अनुभवों को रुचिकर समूहों में बाँटना।
(iii) वैयक्तिक अभिव्यक्तियों को प्रकट करना ।
संस्मरण एवं निजी लेखों में कई बार लेखक अपने पाठकों को अपने जीवन से सम्बन्धित भावनाओं से परिचित करवाते हैं। इस प्रकार के लेखन में लेखक स्वयं को सम्बोधित करते हुए अपना लेखन कार्य करता है । सृजनात्मक लेखन में विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिसमें शामिल हैं—पात्र के चरित्र का विकास, विविध सेटिंग्स, भावना एवं दृष्टिकोण का विकास, संवेदनात्मक अपील, वर्णन एवं शब्दों के संयोजन को निरूपित करना। सृजनात्मक लेखन के विविध आयामों को प्रकट करने के लिए इसके निम्नलिखित प्रकारों को समझा जा सकता है—
(1) उपन्यास एवं नाटक–उपन्यास या नाटक समय के समेटे हुए रूप होते हैं जिसमें विभिन्न परिस्थितियों के विविध आयामों एवं चरित्र का विकास करना होता है। एक सृजनात्मक लेखक के लिए कहानी के माध्यम से अधिक से अधिक पाठकों को उससे बाँधना होता है। इसके साथ-साथ पाठकों और सम्बन्धित पात्रों के मध्य एक रिश्ते को विकसित करना होता है जिसमें पात्रों के भौतिक एवं संवेदनात्मक स्तरों को वर्णित करना होता हैं।
(2) कविताएँ एवं गाने–कविताएँ एवं गाने काफी गूढ़ अर्थ लिए होते हैं क्योंकि इनमें शब्दों की सीमा होती है। इसमें बहुत कम शब्दों में विषय को अभिव्यक्त करना होता है। ये साहित्यिक रचनाएँ होती हैं जिसमें भावनाओं को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हुए पाठकों के ध्यान को आकर्षित करना होता है। एक कविता का उद्देश्य जीवन के विचारों के रूप को निर्मित करना होता है, जिससे पाठक उन्हें वास्तविक रूप से महसूस करें।
कक्षा-कक्ष में सृजनात्मक लेखन–सृजनात्मक लेखन को सामान्यत: कार्यशाला प्रारूप में पढ़ाया जाता है। कार्यशाला में विद्यार्थी अपने मौलिक कार्य को विभिन्न सुझावों के लिए प्रस्तुत करते हैं। कार्यशाला में विद्यार्थियों को कविता लेखन व कहानी लेखन की विधाओं से अवगत कराया जाता है। साथ ही विद्यार्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने विचारों को चाहे अनगढ़ रूप से सही शब्द देने का प्रयास करे व परिनिष्ठित भाषा के लिए अच्छे कवियों और लेखकों का साहित्य पढ़े। कार्यशाला में भाग लेने से विद्यार्थियों को अपनी अभिव्यक्ति करने का अवसर मिलता है। साथ ही उन्हें पता चलता है कि वे जो रचनाएँ लिख रहे हैं, वे कितनी सही या फिर गलत हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सृजनात्मक लेखन साहित्य से जुड़ी एक विधा है। साहित्य केवल मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि ज्ञान प्राप्ति की सशक्त माध्यम है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here