सौन्दर्य बोध को परिभाषित कीजिए।
सौन्दर्य बोध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर— सौन्दर्य-बोध–सौन्दर्य बोध मूल प्रवृत्ति है जो समस्त उन्नत कोटि के जीवधारियों में पाई जाती है। अत: सौन्दर्य अनुभूति में प्रवृत्त कराने वाली वृत्ति का नाम सौन्दर्य-बोध है । वस्तु की आकारिक संरचना से प्राप्त रूप का ज्ञान इन्द्रियों द्वारा अनुभूत होता है वही सौन्दर्य-बोध कहलाता है।
सौन्दर्य-बोध में केवल प्रकृति के सौन्दर्य का ही नहीं अपितु मानव निर्मित रचनाओं के सौन्दर्य का भी बोध होता है। सौन्दर्य-बोध का प्रमुख स्रोत प्रकृति है, जिसमें नदी, पर्वत, आकाश, तारे, छ, वनचर, पशु-पक्षी और शिशु, युवक, युवतियाँ आदि सभी सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त कलाकारों द्वारा सृजित उत्कृष्ट कलाकृतियाँ, कवि और लेखकों द्वारा सृजित साहित्यिक कृतियाँ भी सम्मिलित की गई हैं।
सौन्दर्यानुभव के दो मार्ग हैं—दर्शनेन्द्रिय एवं श्रवणेन्द्रिय, जो स्वादेन्द्रिय एवं घ्राणेन्द्रिय की तुलना में ज्ञान को बहुत अधिक प्रत्यक्ष करती है। आँख और कान से ही हम सांसारिक यथार्थ और कलाकृति का भेद समझने में समर्थ होते हैं। प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी रूप में सौन्दर्य की खोज में रहता है और उसे अपने ढंग से व्यक्त करना चाहता है। व्यक्त करने का विचार आते ही सृजन कार्य का श्रीगणेश हो जाता है। सृजन का आवेग सभी कलाओं का मूल स्रोत है।
टालस्टॉय के अनुसार, “धर्मवृद्धि के निवेश से ही कलाकृति द्वारा प्राप्त मनोरंजन कला की वास्तविक कसौटी है। अतः नैतिक विवेक जाग्रत करने वाली कलाकृति ही सुन्दर हो सकती है।”
रस्किन के अनुसार, “सौन्दर्य केवल इन्द्रियों की संवेदना रूप सुख का साथ नहीं है। अपितु विषयों के सहारे से प्राप्त आनन्द के फलस्वरूप जब हमारा मन शक्ति व कृतज्ञता से भर जाता है, वही पूर्णता का शांत सौन्दर्य है। “
केण्ट के अनुसार, “सामंजस्य बोधजनित के विरुद्ध जातियों की सत्ता व स्थिति के कारण सौन्दर्य उत्पन्न होता है। जड़वस्तु में सौन्दर्य नहीं होता। सौन्दर्य व्यापकता और स्वतंत्रता में होता है। “
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