ऊतक (Tissues)

ऊतक (Tissues)

ऊतक (Tissues)

ऊतक, कोशिकाओं का विशिष्ट समूह होता है, जो शरीर के अन्दर एक निश्चित कार्य करते हैं। ऊतक में कोशिकाएँ एक तरह के कार्य को सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं। ये ऊतक एक विशिष्ट क्रम में व्यवस्थित होते हैं । ‘ऊतक’ शब्द एन ग्रऊ (N Grew) ने दिया था। वे कोशिकाएँ, जो आकृति में एकसमान होती हैं, समान प्रकार के कार्य को सम्पन्न करती हैं तथा समूह में ऊतक बनाती हैं।’ उदाहरण पेशीय तन्त्रिका कोशिकाएँ, आदि ।
ऊतक का अध्ययन करने वाली शाखा को औतिकी (Histology) कहते हैं। ऊतक पादप तथा जन्तुओं दोनों में भिन्न पाए जाते हैं।
पादप ऊतक (Plant Tissues)
पादप ऊतक पादपों को संरचनात्मक ऊर्जा तथा सहारा प्रदान करते हैं। अतः ये अधिकांशतय मृत होते हैं क्योंकि इन्हें मरम्मत की आवश्यकता नहीं होती है।
ऊतकों को कार्य के आधार पर निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है
विभज्योतक ऊतक (Meristematic Tissues)
विभज्योतक ऊतक जीवनभर विभाजित होते रहते हैं तथा ये पौधों में वृद्धि (growth) वाले भागों में ही पाए जाते हैं। ये ऊतक अवयस्क (immature) कोशिकाओं के बने होते है, जिनमें समसूत्री विभाजन (mitosis division) होता है तथा ये विभाजित होकर स्थायी ऊतक (permanent tissue) बनाते हैं। ये पादप के वृद्धि वाले भागों में जाते हैं। उदाहरण तने पर फूल, जहाँ पत्तियाँ, वर्तिकाग्र व परागण लगे होते हैं, जड़ व कैम्बियम, आदि में ।
इनकी कोशिकाएँ समान होती हैं, जो वृद्धि कर विकसित हो जाती हैं। नई बनी कोशिकाओं में धीरे-धीरे परिवर्तन होता रहता है।
विभज्योतक ऊतक के लक्षण (Characteristics of Meristematic Tissues) 
(i) ये गोल बहुभुज, आयत के आकार के हो सकते है तथा इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान (intracellular space) नहीं पाया जाता।
(ii) ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं, जो पादप की लम्बाई तथा चौड़ाई बढ़ाने में सहायता करती हैं।
(iii) इस ऊतक की कोशिकाएँ जीवित सेलुलोज की बनी कोशिका भित्ति से घिरी रहती है, जिसके अन्दर बहुत अधिक कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) भरा रहता है।
(iv) इनमें स्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है, रसधानी ( vacuoles) नहीं पाई जाती है तथा इनमें प्रारंभिक लवक (proplastids) लवक पाया जाता है।
विभज्योतक ऊतक के प्रकार (Types of Meristematic Tissues)
इन ऊतकों की उपस्थिति वाले क्षेत्रों के आधार पर इन्हें तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है
स्थायी ऊतक (Permanent or Mature Tissues)
ये ऊतक विभज्योतक ऊतक द्वारा ही बनते हैं, परन्तु ये अपनी विभाजन होने की शक्ति खो देते हैं, जिसके कारण ये स्थायी ऊतकों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये एक विशिष्ट कार्य को करने के लिए एक निश्चित व स्थायी आकार तथा संरचना ले लेते हैं। इस प्रकार से विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप तथा आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण (differentiation) कहते हैं। ये मृत तथा सजीव दोनों प्रकार की हो सकती हैं। ये कोशिकाएँ पतली या मोटी कोशिका भित्ति से घिरी रहती हैं।
विभज्योतक ऊतक की कोशिकाएँ विभेदित होकर विभिन्न प्रकार के स्थायी ऊतकों का निर्माण करती हैं
1. सरल स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissues)
ये ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं अर्थात् इनकी सभी कोशिकाएँ समांगी (homogenous) होती हैं। ये ऊतक तीन प्रकार के होते हैं
(i) मृदूतक (Parenchyma) ये सबसे सरल तथा अविशिष्ट ऊतक होते हैं। ये जीवित कोशिकाएँ होती हैं, जिनकी दीवार समान रूप से फैली होती हैं। इनके बीच में अन्तराकोशिकीय स्थान पाया जाता है, जिनमें गैसीय विनिमय (gaseous exchange) होता है। मृदूतक कोशिकाओं की परतें ऊतक के आधारीय पैंकिग का निर्माण करती हैं। ये अण्डाकार, गोल अथवा बहुभुजी होती हैं। ये स्थायी ऊतक का एक प्रकार है तथा इनकी कोशिका एक पतली कोशिका भित्ति (सेलुलोज व कैल्शियम पेक्टेट से बनी) से घिरी रहती हैं। ये तने, जड़ एवं पत्तियों के बाहरी आवरण (epidermis) तथा कॉर्टेक्स (cortex) मज्जा (pith), पैरीसाइकिल, पत्तियों, फलों के गुदे, बीज की अन्तः परत व विभज्योतक ऊतक में पाए जाते हैं।
कुछ मृदुतकों में हरितलवक (chloroplast) पाया जाता है, जो प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया करते हैं। इन ऊतकों को हरित ऊतक (chlorenchyma) कहते हैं। जलीय पौधों में मृदुतक की कोशिकाओं के मध्य वायु गुहिकाएँ (air cavities) पाई जाती हैं। उनसे जलीय पादपों को तैरने के लिए उत्प्लावन बल मिलता है, इन्हें वायुतक (aerenchyma) कहते हैं। मृदुतक प्रायः पौधों के कोमल भागों में अधिक पाए जाते हैं। कभी-कभी इन कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता आ जाती है, जिससे ये द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) करके कॉर्क कैम्बियम (cork cambium) या संवहन कैम्बियम (vascular cambium) बनाते हैं। ये कोशिका के जीवद्रव्य (protoplasm) में भोजन को संचित करते हैं।
(ii) स्थूलकोण ऊतक (Collenchyma) ये कोशिकाएँ लम्बी तथा जीवित होती हैं। इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular space) प्रायः अनुपस्थित होते हैं। इनके स्थान पर कोशिकाओं के कोनों पर कोशिका भित्ति के ऊपर पेक्टिन युक्त सेलुलोज की परत जम जाती है, जिससे कोशिका भित्ति कोनों पर मोटी तथा दृढ़ हो जाती है। ये पौधों के विभिन्न भागों को बिना टूटे लचीलापन प्रदान करते हैं जैसे पतियों, तनों में। ये पौधों को यान्त्रिक सहारा प्रदान करते हैं। ये ऊतक पर्णवृन्त में एपिडर्मिस के नीचे पर्णवृन्त, पुष्पवृन्त पर पाए जाते हैं।
(iii) दृढ़ोतक (Sclerenchyma) दृढ़ ऊतक की कोशिकाएँ लम्बी तथा पतली होती हैं, इनके ऊपर सेलुलोज व लिग्निन (lignin) की बनी मोटी भित्ति पाई जाती है। इन कोशिकाओं के भीतर कोई अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं पाया जाता हैं। इस ऊतक की कोशिकाएँ मृत होती हैं। इनका मुख्य कार्य पौधों के विभिन्न अंगों को यान्त्रिक सहारा प्रदान करना हैं। यह ऊतक पौधों को कठोर व मजबूत बनाता है। उदाहरण नारियल का रेशेयुक्त छिलका।
2. जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissues)
जटिल स्थायी ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं, जो एक साथ मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं ।
जटिल स्थाई ऊतक दो प्रकार के होते हैं
(i) जाइलम (Xylem) यह जल संवाहक ऊतक (water conducting tissues) कहलाता है। यह पौधों के विभिन्न भागों जैसे जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। इसका प्रमुख कार्य जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाना है, इनकी कोशिका भित्ति मोटी होती है। यह पौधों को यान्त्रिक सहारा व कड़ापन भी देता है।
इसके निर्माण में चार प्रकार की कोशिकाएँ भाग लेती हैं तथा इनमें अधिकतर मृत होती हैं
(a) वाहिनिकाएँ (Tracheids)
(b) वाहिकाएँ (Vessels)
(c) जाइलम मृदुतक (Xylem parenchyma)
(d) जाइलम तन्तु (Xylem fibres)
ये जड़ों, तनों व पत्तियों के संवहन छिद्रों में पाई जाती हैं। इनमें मृत खोखली कोशिकाएँ जैसे लकड़ी तन्तु व दृढ़ोतक के रूप में पाई जाती हैं।
◆ जाइलम की विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में से वाहिकाएँ (vessels) सबसे महत्त्वपूर्ण कोशिकाएँ हैं।
(ii) फ्लोएम (Phloem) फ्लोएम का मुख्य कार्य पौधे के हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों को दूसरे भागों तक पहुँचाना है तथा इस ऊतक को बास्ट (bast) भी कहते हैं। यह पदार्थों को कोशिकाओं में दोनों दिशाओं में गति करा सकते हैं। ये चार अवयवों से मिलकर बने होते हैं, जिनमें अधिकतर जीवित हैं
(a) चालनी नलिकाएँ (Sieve tubes)
(b) सखि कोशिकाएँ /सहकोशिकाएँ (Companion cells)
(c) फ्लोएम मृदुतक (Phloem parenchyma)
(d) फ्लोएम तन्तु (Phloem fibres)
इनमें फ्लोएम् तन्तु मृत हाते हैं। चालनी नलिकाओं में बहुत से छिद्र होते हैं, जो विभिन्न अंगों तक भोजन को पहुँचाते हैं, इसे आधार भी कहते हैं क्योंकि ये फ्लोएम तन्तु बांधने का भी कार्य करते हैं जैसे अलसी व सन।
जन्तु ऊतक (Animal Tissues)
जन्तुओं में विभिन्न प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं, जो जन्तुओं की जीवन-शैली (life style) के अनुकूल होते हैं। जन्तु भोजन, आश्रय तथा साथी की खोज में इधर-उधर विचरण करते हैं। अतः ये पादपों से अधिक ऊर्जा लेते हैं। जन्तुओं में वृद्धि भी जीवन भर नहीं होती है, जन्तुओं के अधिकांश ऊतक जीवित होते हैं तथा जन्तुओं में विभाज्य क्षेत्र की कोई निश्चित सीमा भी नहीं होती है। अतः जन्तुओं की इन सभी विशेषताओं के लिए इनमें चार प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं।
उपकला ऊतक (Epithelial Tissues or Epithelium)
ये पास-पास जुड़ी कोशिकाओं की एक से अधिक परत द्वारा बनी होती हैं, जो जन्तुओं के शरीर को ढकने तथा बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक होते हैं। ये बहुत से शरीर के अन्दर उपस्थित अंगों और गुहिकाओं को भी ढकने का कार्य करते हैं। ये शरीर के विभिन्न तन्त्रों को भी एक-दूसरे से पृथक रखते हैं। ये एक्टोडर्मल, मीजोडर्मल या एण्डोडर्मल (जर्म कोशिका) से उत्पन्न होती है। उदाहरण त्वचा, मुख का आवरण, रुधिर नलिकाओं, वायुकोष्ठों (air cavities), वृक्क नलिकाओं, आदि।
उपकला ऊतक के लक्षण (Characteristics of Epithelial Tissues)
(i) ये एक सघन परत बनाते हैं क्योंकि इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं पाया जाता है तथा कुछ पदार्थ (substances) उस स्थान को भर देते हैं ।
(ii) ये ऊतक अकोशिकीय आधार कला को, संयोजी ऊतक से अलग रखते हैं।
(iii) ये आन्तरिक अंगों को बाहरी सूक्ष्मजीवों के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
(iv) इसकी बाहरी परत बाहरी वातावरण की ओर होती है तथा अन्दर की परत आधारभूत झिल्ली (basement membrane) बनाती है।
(v) कुछ उपकला ऊतकों में श्लेष्म (mucous) का स्रावण होता है, जिससे वह अंगों तथा नालों की कला को नमीयुक्त रखता है, इन्हें श्लेष्म कला (mucous membrane) कहते हैं।
(vi) इनमें रुधिर नलिकाएँ नहीं होती हैं।
(vii) ये संयोजी ऊतकों से विसरण द्वारा पदार्थों का आदान-प्रदान करती हैं।
उपकला ऊतक के कार्य (Functions of Epithelial Tissues) 
(i) ये जल व पोषण पदार्थों के अवशोषण में सहायता करती हैं।
(ii) ये अंगों की चोट सुखाने, संक्रमण (infection) तथा रसायनों के हानिकारक प्रभाव से रक्षा करते हैं।
(iii) शरीर से उत्सर्जी पदार्थों की निकासी (exhust) में सहायता करती हैं।
उपकला ऊतक के प्रकार (Types of Epithelial Tissues) 
कोशिकाओं की परत तथा आकार के आधार पर उपकला ऊतक को निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है
1. सरल उपकला ऊतक (Simple Epithelial Tissues)
ये कोशिकाओं की एकल परत से बने होते हैं, जो मुख्यतया स्रावी तथा अवशोषी सतह पर पाए जाते हैं। इन्हें परत व आकार के अनुसार निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है
(i) शल्की एपिथीलियम (Squamous Epithelium) इनकी कोशिकाएँ चपटी (flat) होती हैं। ये बहुत पतली तथा कोमल अस्तर का निर्माण करती हैं। शरीर का रक्षात्मक कवच इन्हीं का बना होता है। इसका केन्द्रक चपटा होता है, जो मध्य में पाया जाता है, जो कोशिका सतह को कुछ उभार देता है।
स्थान (Location) ये त्वचा, मुख की परत, श्वसनियों, अन्तःकर्ण, सीलोम गुहा, रेटी हेस्टीज रुधिर नलिका (blood vessels), आधारनली (oesophagus), जीभ (tongue), वायुकोष (alveoli) के ऊपर पाई जाती हैं।
कार्य (Function) यह सुरक्षा, स्रावण तथा गैसों के विनिमय में सहायता करती है।
◆ रुधिर नलिकाओं तथा हृदय की उपकला को एन्डोथीलियम (endothelium) तथा गुहा में इसे मीसोथीलियम (mesothelium) कहते हैं।
(ii) घनाकार एपिथीलियम (Cuboidal Epithelium) ये कोशिकाएँ घनाकार होती हैं तथा ये अंगों को यान्त्रिक सहारा (mechanical support) भी प्रदान करती हैं।
स्थान (Location) ये ग्रन्थि कोशिका (gland cell) के रूप में अतिरिक्त विशेषता अर्जित कर लेती हैं, जो एपिथीलियम ऊतक की सतह पर पदार्थों का स्राव कर सकती हैं परन्तु कभी-कभी ये अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं तथा बहुकोशिकीय ग्रन्थिल एपिथीलियम (glandular epithelium) का निर्माण करती हैं। ये वृक्क नली (uriniferous tubule), लार ग्रन्थि (salivary gland), स्वेद ग्रन्थि (sweat gland) में पाई जाती हैं।
कार्य (Function) ये स्रावण, उत्सर्जन, अवशोषण, सुरक्षा तथा युग्मक निर्माण में सहायता करती हैं।
◆ घनाकार एपिथीलियम रसांकुरयुक्त अवशोष्य सतह पर ( मुक्त सतह पर) पाई जाती है, जो अवशोषण सतह को बढ़ा देती है।
(iii) स्तम्भाकार एपिथीलियम (Columnar Epithelium) इनकी कोशिकाएँ लम्बी होती हैं, जो अवशोषण व स्राव में सहायता करती हैं। ये एपिथीलियम अवरोध को पार करने में सहायता करती हैं। इनके मुक्त सिरे परं माइक्रोविली (microvilli) पाए जाते हैं। ये अंगों को यान्त्रिक सहारा (mechanical support) भी प्रदान करती हैं।
स्थान (Location) ये आंत का भीतरी स्तर बनाती हैं, जिसमें भोजन का अवशोषण होता है। ये जठर ग्रन्थि, आंत ग्रन्थि व अग्न्याशय बनाती है जो पाचक रसो का स्रावण करती है।
कार्य (Function) ये सुरक्षा, स्रावण तथा अवशोषण में सहायता करती हैं।
(iv) ग्रन्थियाँ उपकला ऊतक (Glandular Epithelium Tissue) जो स्तम्भाकार उपकला ऊतक स्रावण के लिए विशिष्टिकृत हो जाती हैं, उन्हें ग्रन्थिय उपकला ऊतक कहते हैं। ये जन्तुओं की विभिन्न ग्रन्थियों में पाई जाती हैं। ये स्तम्भाकार व आयताकार हो सकती हैं।
ये दो प्रकार की होती हैं
(a) एककोशिकीय ग्रन्थियाँ (Unicellular Gland) मुख्यतया आँत व श्लेष्म झिल्ली से निष्कासित ग्रन्थियाँ कोशिकाएँ होती हैं। उदाहरण आहारनाल की गॉब्लैट कोशिकाएँ ।
(b) बहुकोशिकाएँ ग्रन्थियाँ (Multicellular Gland) ग्रन्थियाँ एक प्रकार का संघ होती हैं, जो ग्रन्थियाँ कोशिकाओं की बनी होती हैं तथा गहराई में पाई जाती हैं। उदाहरण लार ग्रन्थियाँ । इन्हें पुनः दो प्रकार में विभाजित किया जाता है
नालीय (Tubular) ये ग्रन्थियाँ नाल के आकार की होती हैं। उदाहरण पसीना ग्रन्थियाँ (sweat gland) तथा तैलीय ग्रन्थियाँ (oil grand)।
एल्वीयोलर (Alveolar) इनमें कोष्ठ जैसा एक स्थान होता है, जो इनका स्रावी भाग होता है। उदाहरण ये लार ग्रन्थि तथा स्तन ग्रन्थियाँ बनाती हैं।
(v) पक्ष्माभी एपिथीलियम (Ciliated Epithelium) ये स्तम्भाकार एपिथीलियम कोशिकाओं के ही बने होते हैं, परन्तु उन पर पक्ष्माभ (cilia) होते हैं। ये गति कर सकते हैं। इनकी गति श्लेष्मा (mucous) को आगे स्थानान्तरित करके साफ करने में सहायता करती हैं।
स्थान (Location) ये श्वास नली में पाई जाती है तथा फैलोपियन नली, मस्तिष्क व मेरुरज्जु में भी पाई जाती है।
कार्य (Function) यह सुरक्षा, श्लेष्म के संवहन, मूत्र के संवहन तथा सेरिब्रोस्पाइनल तरल (cerebrospinal fluid) के संवहन में सहायता करती है।
◆ उपकला ऊतक में श्लेष्म ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं, तब इन्हें श्लेष्म परत (mucosa or mucous membrane) कहते हैं, जो संयोजी ऊतक को सहायता प्रदान करती है।
◆ उपकला की कोशिकाएँ म्यूकोपॉलीसैकेराइड तथा कौलेजन तन्तु बनाती है।
◆ पक्ष्माभ में चलने की क्षमता होती है, जो श्लेष्म को श्वसन तन्त्र पर चलाती है।
(vi) मिथ्य स्तरित उपकला ऊतक (Pseudostratified Epithelium Tissues) यह उपकला एककोशिकीय मोटी होती है, लेकिन दो कोशिकीय परत जैसी लगती है, इसलिए इसे मिथ्य स्तरित उपकला कहते हैं। ये कोशिकाएँ स्तम्भाकार होती हैं, जिसमें केन्द्रक उपस्थित होता है। लम्बी कोशिकाओं में अण्डाकार केन्द्रक होता है, जिसमें पक्ष्माभ होता है, जो मुक्त सतह तक फैली होती है, परन्तु छोटी कोशिकाओं में गोल केन्द्रक होता है तथा पक्ष्माभ नहीं होता है। ये मुक्त सतह तक फैली नहीं होती हैं।
स्थान (Location) यह कुछ ग्रन्थियों की बड़ी नलिकाओं में उपस्थित होती हैं जैसे लार ग्रन्थियाँ, नर व मादा का मूत्रमार्ग तथा घ्राण श्लेष्म। ये वायुनाल तथा ब्रोंकाई में भी होती हैं। पक्ष्माभ की चलनशीलता से कण्ठ में श्लेष्म का परिवहन होता है |
कार्य (Function) ये सुरक्षा तथा स्रावण का कार्य करते हैं। ये पुरुषों में मूत्रनाल में मूत्र व वीर्य का तथा कण्ठ से वायुनाल तक वायु के प्रवाह में सहायता करते हैं।
2. संयुक्त उपकला ऊतक (Compound Epithelium Tissues)
ये कई स्तरों के बने ऊतक होते हैं, जो सरल उपकला से अधिक मोटे व मजबूत होते हैं। स्तरित होने के कारण इनमें स्रावण तथा अवशोषण कम होता है, परन्तु ऊपरी या नीचे वाले ऊतकों की यान्त्रिक, ऊष्मीय तथा परासरणीय प्रभाव से रक्षा करते हैं।
ये दो प्रकार के होते हैं
(i) स्तरित संयुक्त उपकला (Stratified Compound Epithelium) ये उपकला की कई परतों के बने होते हैं, जिसकी सबसे आन्तरिक कोशिका कला स्तम्भाकार तथा आयताकार कोशिकाओं की बनी होती हैं, परन्तु ऊपरी सतह कार्य के अनुसार विभिन्न कोशिकाओं की बनी होती हैं। इन्हें चार भागों में विभाजित किया गया है
स्तरित शल्की, स्तरित घनाकार, स्तरित स्तम्भाकार तथा स्तरित पक्ष्माभी स्तम्भाकार ।
(ii) परिवर्ती संयुक्त उपकला (Transitional Compound Epithelium) इनमें परतें कम (4-6) पाई जाती हैं, जिसकी आधारीय परत की कोशिकाएँ स्तम्भाकार व आयताकार होती है, मध्य परत की कोशिकाएँ बहुभुजीय या नाशपाती के आकार की कोशिकाएँ होती हैं, जबकि ऊपरी सतह की कोशिकाएँ बड़ी, गोलाकार तथा घाटे के आकार की होती हैं ।
स्थान (Location) ये वृक्कों में, मूत्रनाल, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग में पाई जाती है, इसी कारण इन्हें यूरोथीलियम भी कहते हैं।
कार्य (Function) ये नालों में तनाव को मुक्त करता है। अतः मूत्राशय बहुत अधिक खिंच सकता है। ये टूटे बिना तथा फिर अपनी पुरानी आकृति व आकार प्राप्त कर लेते हैं।
संयोजी ऊतक (Connective Tissues)
ये जटिल जीवों के शरीर में सबसे अधिक पाई जाती है, जो भ्रूण की मीसोडर्म से बनती है। संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ शरीर में विभिन्न अंगों को आपस में सम्बद्ध रखती हैं, जिससे पदार्थों का आदान-प्रदान भी हो सके। इनकी कोशिकाएँ आपस में कम जुड़ी होती हैं तथा अन्तराकोशिकीय आधात्री (matrix) में धँसी होती हैं। यह मैट्रिक्स जैली अथवा कठोर दोनों प्रकार का हो सकता है। मैट्रिक्स की प्रकृति संयोजी ऊतक के अनुसार बदलती है । संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ आन्तरिक अंगों के रिक्त स्थानों में भरी रहती है।
कार्य (Function) एक ऊतक को दूसरे से जोड़ना, उपास्थि व अस्थि को सहायता, वसा का संचय, पदार्थों का परिवहन, आदि ।
पेशीय ऊतक (Muscular Tissues )
पेशीय ऊतकों में संकुचन का लक्षण होता है। ये मायोसाइट नामक कोशिकाओं के बने होते हैं, जो छोटे व लम्बे होते रहते है। इनमें विद्युत उद्वीपन का गुण भी होता है, जो कोशिका झिल्ली के चारों ओर विद्युत आवेश में अन्तर के कारण होता है।
पेशीय ऊतक लम्बी कोशिकाओं का बना होता है, जिन्हें पेशीय रेखा (muscle fibre) कहते हैं। पेशियों में एक प्रोटीन पाई जाती है, जिसे संकुचन प्रोटीन कहते हैं। यह पेशियों के संकुचन एवं प्रसार में सहायता करता है। ये ऊतक गतियों में सहायता करते हैं। इनके भीतर पाए जाने वाले तरल को सार्कोप्लाज्म (sarcoplasm), इनके केन्द्रक को सार्कोमीयर (sarcomere) कहते हैं। इनकी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका को साप्लाज्मिक रेटिकुलम कहते हैं। पेशीय ऊतकों में माइटोकॉण्ड्रिया अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसे सार्कोसोम (sarcosome) कहते हैं। इनमें ग्लाइकोजन अणु भी पाए जाते हैं, जो ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से संकुचन हेतु ऊर्जा प्रदान करते हैं।
पेशीय ऊतकों के कार्य (Functions of Muscular Tissues)
(i) यह जीव को तथा शारीरिक अंगों को चलनशीलता प्रदान करते हैं।
(ii) ये अस्थि को सहायता देते हैं।
(iii) ये हृदय स्पन्दन, रुधिर व लसिका के प्रवाह, भोजन का आवागमन, वायु के प्रवाह, ध्वनि तथा उत्सर्जी पदार्थों को संवहन (vascular) हेतु भी सहायता करते हैं।
(iv) चेहरे के भाव तथा आकार भी इन्हीं के द्वारा निर्धारित होता है।
पेशीय ऊतकों के प्रकार (Types of Muscular Tissues) 
पेशीय ऊतक तीन प्रकार के होते हैं
1. अरेखित पेशीय ऊतक (Unstripted Muscular Tissue) इन्हें चिकने पेशीय ऊतक (smooth/unstriated muscular time) भी कहते हैं। इन पेशियों पर हल्के तथा गहरे रंगों की एक के बाद एक धारियाँ पाईं जाती हैं। अतः ये अरेखित पेशी कहलाती हैं। इनकी कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार एवं एककेन्द्रिकीय होती हैं। यह गति को नियन्त्रित करती है परन्तु ये हमारी इच्छा से नहीं चलती है।
कार्यानुसार ये दो प्रकार की होती हैं
(i) एक इकाई (Single unit) जो खोखले अंगों की दीवार जैसे पाचन नाल, गर्भाशय, मूत्राशय, मूत्रनाल में पाई जाती है।
(ii) बहु इकाई (Multiunit) त्वचा, आँख की आइरिस तथा रुधिर नलिकाओं की दीवारों पर पाई जाती है।
स्थान (Location) आहारनली में, रुधिर नलिका में, आँख की पलक में, मूत्रवाहिनी में, फेफड़ों की श्वसनी में पाई जाती है।
संरचनानुसार ये दो प्रकार के तन्तु रखती हैं
(i) प्राथमिक तन्तु (Primary myofilament) मायोसिन के बने होते हैं।
(ii) द्वितीय तन्तु (Secondary myofilament) एक्टिन, ट्रोपोमायोसिन तथा ट्रोपोनिन के बने होते हैं।
अरेखित पेशीय ऊतकों के सामान्य लक्षण (General Features of Smooth Muscular Tissue) 
(i) ये रेखित पेशीय ऊतकों की तुलना में अधिक समय तक कार्य करती हैं।
(ii) ये इच्छानुसार कार्य नहीं करती हैं। अतः इन्हें अनैच्छिक (involuntary) पेशियाँ कहते हैं ।
2. रेखित पेशीय ऊतक (Striped Muscular Tissue) ये कशेरुकियों के मुलायम ऊतकों का लगभग 80% भाग बनाती हैं। इनकी कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार, अशाखीय तथा बहुकेन्द्रकीय होती हैं। इनके ऊपर गहरे रंग की पट्टियाँ पाई जाती हैं, जिस कारण इन्हें रेखित पेशीय ऊतक कहते हैं।
स्थान (Location) ये शरीर की सतह, हाथ-पैर, जीभ, ग्रसनी ग्रासनली की शुरूआत में पाई जाती हैं। हाथ व पैर की बाइसेप्स तथा ट्राइसेप्स पेशियाँ इन्हीं से बनती हैं।
रेखित पेशीय ऊतकों के सामान्य लक्षण (General Features of Striped Muscular Tissue)
(i) ये जल्दी संकुचन करती है परन्तु फिर जल्दी थक जाती हैं।
(ii) इन्हें ऐच्छिक पेशी (voluntary muscles) भी कहते हैं तथा ये हमारी इच्छा से कार्य करती हैं।
(iii) इन पेशियों को कंकाल पेशी (skeleton muscles) भी कहा जाता हैं, क्योंकि ये हड्डियों से जुड़ी होती हैं।
(iv) ये शारीरिक गति में सहायता करती हैं।
(v) इनमें रुधिर नलिकाएँ भी पाई जाती हैं।
3. हृद पेशी (Cardiac Muscles) ये अनेच्छिक पेशियाँ हृदय में पाई जाती हैं। ये बेलनाकार, शाखीय एवं एक केन्द्रक वाली होती हैं। ये हृदय की दीवार बनाती हैं, जिनमें जीवन भर लयबद्ध (rhythmic) प्रसार व संकुचन होता है तथा इनमें भी धारियाँ पाई जाती हैं।
स्थान (Location) ये फेफड़ों की नसों (pulmonary veins) की दीवारों पर पाया जाता है।
कार्य (Function) इनके संकुचन व प्रसार के कारण ही शरीर में हृदय द्वारा रुधिर का प्रवाह होता है।
तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissues)
शरीर के विभिन्न अंग बाहरी उत्तेजना के अनुकूल प्रतिक्रिया करते हैं। इन अंगों को प्रतिक्रिया करने के लिए तन्त्रिका ऊतक की कोशिकाएँ उत्तेजित करती हैं। तन्त्रिका ऊतक की कोशिकाएँ स्वयं उत्तेजित होकर अपने द्वारा उत्तेजना को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाती हैं। तन्त्रिका ऊतक मस्तिष्क, मेरुरज्जु (spinal cord) में उपस्थित होती हैं। तन्त्रिका ऊतक की कोशिकाओं को तन्त्रिका कोशिका (neuron) कहा जाता है।
तन्त्रिका ऊतक का संघटन
तन्त्रिका ऊतक के विभिन्न घटक निम्न हैं
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