केन्द्र प्रायोजित योजनाएं, केन्द्र और राज्यों के बीच हमेशा विवाद का मुद्दा रही हैं। प्रासंगिक उदाहरणों का हवाला देते हुए चर्चा करें ।

केन्द्र प्रायोजित योजनाएं, केन्द्र और राज्यों के बीच हमेशा विवाद का मुद्दा रही हैं। प्रासंगिक उदाहरणों का हवाला देते हुए चर्चा करें ।

अथवा

केन्द्र और राज्यों के बीच केन्द्र प्रायोजित योजना के संबंध में होने वाले विवादों का उल्लेख करते हुए कुछ योजनाओं का उदाहरण दें तथा इस विवाद का मूल्यांकन करें।
उत्तर – केन्द्र द्वारा अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जाती है। ये योजनाएं शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन, कृषि कल्याण आदि से संबंधित होती है। अनेक बार ऐसी योजनाएं केन्द्र और राज्यों के बीच विवाद का मुद्दा बन जाती है जो देश के सहकारी संघवाद की भावना को कमजोर कर देती है ।
> केन्द्र प्रायोजित योजनाओं पर केन्द्र और राज्यों के बीच विवाद के प्रमुख कारण
> केंद्र प्रायोजित योजनाओं में तीव्र वृद्धि, जिनका निर्माण एवं कार्यान्वयन राज्य सरकार के साथ बिना किसी पर्याप्त विचार-विमर्श के पूरी तरह से केंद्र द्वारा निर्धारित किया जाता है।
> बेहद केंद्रीकृत एवं कठोर रूपरेखा वाली ऐसी योजनाएं प्रायः राज्यों की विशिष्ट जरूरतों से असंगत हो जाती हैं। क्योंकि अधिकतर मामलों में इन योजनाओं के व्यय पर एक हिस्सा राज्य सरकार का होता है, राज्य सरकार अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इन पर अपने संसाधनों का आवंटन करने में बेहद कठिनाई महसूस करती है।
>  इन योजनाओं के माध्यम से केन्द्र द्वारा राज्यों पर अनेक शर्तों को थोपा जाता है, जो राज्यों की स्वायत्तता को बाधित करती हैं।
> कई अन्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राज्यीय मुद्दे हैं, जो केंद्र एवं राज्य संबंधों में महत्वपूर्ण हैं। इनमें बड़े सिंचाई कार्यक्रम, बड़ी नदियों का अपरदन, केन्द्रीय सार्वजानिक उपक्रमों, रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्गों, पत्तनों, हवाई अड्डों इत्यादि में केंद्रीय निवेश जैसे विषय शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक मुद्दे में केंद्र एवं राज्यों के हित शामिल हैं। इन विषयों के संदर्भ में अक्सर केन्द्र सरकार राज्यों से सलाह नहीं लेती है।
> सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सशक्त करने, गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की पहचान करने और अनिवार्य वस्तु अधिनियम का प्रशासन, जो मुद्रास्फीति को कम करने में बेहद प्रासंगिक बन गया है, जैसे मुद्दे भी केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच विवाद उत्पन्न करते हैं।
> न केवल शिक्षा जैसे विषय को राज्य सूची से समवर्ती सूची में डालने से, अपितु तथाकथित केंद्र प्रायोजित योजनाओं में तीव्र वृद्धि द्वारा भी केंद्र सरकार ने राज्य सूची में घुसपैठ की है।
> राज्य विषयों पर ये केंद्रीय योजनाएं, जिनमें केंद्र द्वारा लगाए गये कठोर निर्देश होते हैं, वित्तीय निहितार्थों के अतिरिक्त राज्य की स्वायत्तता एवं उनके विकास अधिमानताओं को प्रभावित करते हैं।
> इसके अतिरिक्त, समवर्ती सूची के तहत् विषयों के क्षेत्रों पर संघ – राज्य के बीच परामर्श करने का कोई औपचारिक संस्थागत ढांचा नहीं है।
> पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की फ्लैगशिप आयुष्मान भारत स्कीम से बाहर होने का फैसला लिया। इस योजना को पीएम मोदी ने पिछले साल 23 सितंबर को लागू किया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि पश्चिम बंगाल राज्य आयुष्मान भारत योजना के लिए 40 प्रतिशत फंड नहीं देगा। अगर केंद्र सरकार को राज्य में अपनी योजना चलानी है तो पूरा फंड देना होगा।
> आयुष्मान भारत स्कीम को लेकर विवाद दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच भी है। दिल्ली में योजना के तहत करीब 20 लाख से अधिक लोगों को लाभ मिलेगा। उल्लेखनीय है कि इस योजना का पूरा नाम ‘आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ है, लेकिन दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की मांग है कि इस योजना का नाम प्रधानमंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के नाम पर रखा जाए।
> 1 जुलाई, 2017 से लागू जीएसटी के संदर्भ में भी केन्द्र तथा अनेक राज्यों के बीच विवाद की स्थिति है। टैक्स स्लैब में बदलाव के लिए दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने भी आवाज उठाई है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने जीएसटी में अधिकतम टैक्स स्लैब 12% रखने की मांग की है और 28% तथा 18% के टैक्स स्लैब को हटाने को कहा है।
> गौरतलब है कि एक जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद पंजाब, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, गोवा, बिहार, गुजरात और दिल्ली की आय में खास तौर पर काफी कमी आई है। अभी बीते अप्रैल-नवंबर की अवधि में ही इन राज्यों की आय में 14 से 37 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। केंद्रशासित प्रदेशों में पुदुचेरी की आय में तो 43 प्रतिशत तक की कमी आई है। इसके चलते केंद्र को राज्यों के लिए उनके राजस्व के नुकसान के मुआवजे के रूप में 2018 में 48,202 करोड़ रुपए जारी करने पड़े हैं।
निष्कर्ष : संस्थागत निकाय, जिनके माध्यम से केंद्र-राज्य संबंधों से सम्बद्ध मुद्दों को विचार विमर्श एवं हल किया जाता है, वे हैं- अंतर्राज्यीय परिषद्, राष्ट्रीय एकता परिषद्, राष्ट्रीय विकास परिषद्, योजना आयोग, वित्त आयोग एवं भारतीय रिजर्व बैंक बोर्ड एवं अन्य वित्तीय संस्थाएं विगत परिदृश्य दिखाता है कि न तो इन निकायों ने राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ प्रभावी कार्य किया है और न ही इनके निर्णय राज्यों के प्रति निष्पक्ष थे। इनका यह दृष्टिकोण एवं व्यवस्था परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि केन्द्र और राज्यों के बीच विभिन्न योजनाओं पर एक समन्वयकारी स्थिति निर्मित की जा सके तथा योजनाओं के निर्माण में राज्यों की आवाज एवं हितों को उचित स्थान मिल सके।
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Sujeet Jha

Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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