गीता दर्शन की ज्ञान मीमांसा को समझाइये ।

गीता दर्शन की ज्ञान मीमांसा को समझाइये ।

उत्तर— गीता दर्शन की ज्ञान मीमांसा—गीता दर्शन की ज्ञान मीमांसा का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है—
(1) ज्ञान की श्रेष्ठता–इस संसार में ज्ञान सबसे श्रेष्ठ है। ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निस्संदेह कुछ भी नहीं है। ज्ञानामृत को भोगने वाला ही परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं। सांसारिक वस्तुओं से सिद्ध होने वाले यज्ञ से ज्ञान रूपी यज्ञ सब प्रकार से श्रेष्ठ है । सम्पूर्ण सावन्या कर्म, ज्ञान में शेष होते हैं अर्थात् ज्ञान उनकी पराकाष्ठा है। ज्ञान के द्वारा ही पापों से मुक्ति मिलती है और ज्ञान रूपी अग्नि से ही सम्पूर्ण कर्मों का नाश करती है और इस ज्ञान द्वारा ही सच्चिदानन्द के स्वरूप के दर्शन करता हुआ व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है क्योंकि इससे मनुष्य का मोह नष्ट हो जाता है, वह चैतन्य रूप हो जाता है ।
(2) ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया—
(i) कामनाओं की समाधि–ज्ञान काम से ढका होता है । इन्द्रियाँ मन, बुद्धि, इस काम के निवास स्थान हैं। काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित कर इस जीवात्मा को मोहित करता है। इसलिए ज्ञान प्राप्ति के लिए इंन्द्रियाँ, मन एवं बुद्धि को वश में करना ज्ञान प्राप्ति का प्रथम सोपान है ।
(ii) गुरु के प्रति श्रद्धा, तत्परता एवं इन्द्रियों का संयम– जितेन्द्रिय, गुरु के प्रति श्रद्धा रखने वाला एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए तत्पर मनुष्य ही ज्ञान को प्राप्त करता है ।
(iii) गुरु सेवा एवं प्रश्न–प्रति प्रश्न द्वारा ज्ञानी जनों (गुरुओं) से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
(iv) अभ्यास योग द्वारा एकाग्रता–इन्द्रिय मन को वश में करना भी ज्ञान प्राप्ति में सहायक है।
ज्ञान के प्रकार–गीता में ज्ञान के सात्विक, राजस व तामस तीन प्रकार हैं। इनमें सात्विक ज्ञान श्रेष्ठ है ।
(3) ज्ञान प्राप्ति का स्रोत–ज्ञान प्राप्ति का स्रोत बुद्धि नहीं बल्कि आत्मा है। गीता में कहा गया है कि बुद्धि से सूक्ष्म तथा सब प्रकार से बलवान एवं श्रेष्ठ अपनी आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
(4) ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य–गीता के अनुसार ज्ञेय या जानने योग्य परम ब्रह्म है जिसको जानकार परमानन्द प्राप्त होता है।
(5) ज्ञान प्राप्त व्यक्ति के लक्षण–ज्ञान प्राप्त व्यक्ति आध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिर होकर परमात्मा के प्राणी मात्र में दर्शन करता है। वह ऐसे व्यक्ति में क्षेपण एवं दम्भाचरण का अभाव, क्षमा, मन वाणी को सरलता, बाहर भीतर की शुद्धता, अन्तःकरण की स्थिरता, इन्द्रियों सहित शरीर का विग्रह, अनासक्ति, अहंकार एवं मोह का अभाव, हर्ष शोकादि में समस्थिति आदि प्रकार के लक्षण होते हैं। ऐसा व्यक्ति जीव मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *